Friday, May 10, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (चौदहवीं क़िस्त )


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(अब तक आपने पढ़ा : २५ साल बाद कॉलेज के दोस्तों के गेट टुगेदर में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है ,जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगता है.. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं ,मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं ,मॉल में अकस्मात सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है ,राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है ,घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है ,दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं,उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....मुग्धा और अखिल बात करके इस नतीजे पर पहुंचते  हैं कि राजुल के माध्यम से मधु और सोनू की मदद की जा सकती है ,मुग्धा राजुल से बात करके उसके विगत कई जानकारी ले कर उसे ढाँढस बंधाती है कि हम लोग मिल के सब ठीक करेंगे,अखिल और मुग्धा केस डिस्कस करके आगे की प्लानिंग के अनुसार राजुल को अपने घर नाश्ते पर बुलाते हैं )

अब आगे :
★★★★★★★

नाश्ते की टेबल पर बैठते हुए अखिल ने राजुल से पूछा-" राजुल, मुग्धा ने तुमसे हुई बातें मुझसे शेयर की. दोस्त होने के नाते हम बहुत कन्सर्ंड हैं तुम लोगों के लिए....खासकर मैं तुम्हारा ध्यान सोनू की तरफ दिलाना चाहूंगा. उसका बहुत ख़याल करना होगा .सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम इन सब परेशानियों से बाहर आ कर खुशनुमा ज़िन्दगी जीने के इच्छुक हो न ?"

राजुल बोला-"कौन नहीं चाहता एक खुशहाल ज़िन्दगी,अखिल साहब ...लेकिन हर किसी की किस्मत तो आप जैसी नहीं होती ना ?"

अखिल मुस्कुरा दिया -" किस्मत की लकीरें तो हाथों में ही होती हैं न.हमारे ऊपर है कि हम उन्हें बिगाड़ें या ठीक करें. बहुत सी बातें हम बदल नहीं सकते लेकिन उनको देखने का नज़रिया तो अवश्य बदल सकते हैं. परेशान होने के बजाय स्वीकार्यता को बढ़ा कर शांति महसूस कर सकते हैं. हम ज़िन्दगी को किस तरह लेते हैं बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है ..."

"ये सब किताबी बातें मैंने भी बहुत पढ़ी हैं ...लेकिन इनसे कुछ भी होना जाना नहीं." बोला था राजुल.

अखिल हार न मानता हुआ बोला -" हम कोशिश तो करके देख सकते हैं ...तुम्हारे सहयोग के बिना कुछ भी संभव नहीं. तुम और किसी का न भी सोचो लेकिन सोनू तो तुम्हारा अंश है, और मैंने महसूस किया है तुम्हारा प्यार उसके लिए ...उसका भविष्य,उसका स्वास्थ्य,उसका विकास सब कुछ प्रभावित होगा .... आइ एम स्योर, तुम भी चाहोगे कि सब अच्छा ही हो."

राजुल ने कहा -" बिल्कुल ! उसके अलावा मेरा है ही कौन. उसी के लिए तो कमा रहा हूँ ..जी रहा हूँ."

अखिल ने कहा -"तो बस फिर,हम एक कोशिश करेंगे हालात को ठीक करने की ..और तुम उसमें पूरा सहयोग करोगे. जो भी पूछूं उसका बिलकुल सही जवाब दोगे, बिना कुछ भी छुपाये ,बिना यह सोचे कि मैं क्या सोचूंगा तभी तुम और हम तुम्हारे लिए  एक ख़ुशहाल ज़िंदगी का रास्ता तलाश सकेंगे."

न जाने अखिल की गंभीर किन्तु मृदु आवाज़ में कैसा सम्मोहन था कि राजुल बिना बोले बस सहमति में गर्दन ही हिला सका.

अखिल बोला- "और बताओ कैसा चल रहा है सब?"

राजुल ने कहा -"ठीक ही है ."

अखिल ने पूछा -"परिवार में कौन कौन है?"

राजुल बोला -"बस मैं ,मधु और सोनू."

"और तुम्हारे पेरेंट्स या भाई बहन ?" सवाल किया अखिल ने .

राजुल ने कहा -" सब अपने अपने में मस्त और व्यस्त हैं."

अखिल आगे पूछ रहा था -" कहाँ रहते हैं वे लोग, कब मिले थे तुम लास्ट उन से ?"

राजुल ने कहा, "मम्मी पापा तो यहीं लखनऊ में हैं. बहन मुम्बई है .मम्मी पापा से तो मिल लेता हूँ कोई चार छह महीने के अंतराल पर मगर बहन के परिवार वाले मुझे पसंद नहीं करते. बहन ने मेरी काफी इंसल्ट की थी, जब कोई पाँच साल पहले एक बार उसके घर गया था, तब से हम लोगों की बातचीत तक बन्द है."

अखिल ने पूछा " मम्मी पापा लखनऊ में ही रहते हैं तो तुम लोगों के साथ क्यों नहीं रहते ?"

राजुल ने बताया-"दर असल मधु के व्यवहार के कारण. उसका व्यवहार उन लोगों के प्रति ठीक नहीं था और मम्मी भी हर बात का दोष मुझी को देती रहती थी. रोज़ की किच किच....तब पापा ने अलग घर ले लिया...जब भी उन्हें कोई ज़रूरत होती है तो मैं ही उनके पास चला जाता हूँ."

"हम्म !"- हुँकार भरी थी अखिल ने -" मधु से तो तुम्हारी लव मैरिज थी न ?"

राजुल एक विद्रूप सी हँसी के साथ बोला-" 'लव' का तो पता ही नहीं क्या होता है कैसा होता है ...हाँ अच्छी लगती थी और उसी को लव समझ के शादी कर ली..नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी जहन्नुम हो जाएगी."

अखिल ने कहा-"खुल के बताओगे अपने और मधु के रिश्ते के बारे में ?"

राजुल बोला -"शादी के बाद शुरू शुरू के दिन बहुत अच्छे थे,मधु बहुत सुंदर....मेरा बहुत खयाल भी रखती....वो खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी...उसने ड्रेस डिजाइनिंग का डिप्लोमा किया हुआ है सो खुद के लिए ड्रेसेज़ भी वही डिज़ाइन करती थी बहुत ही स्मार्ट और सुंदर थी मधु, सब मुझसे जलते थे इतनी शानदार बीवी मिलने पर."

अखिल चुपचाप सुन रहा था,बोला-"फिर?"

"मधु ने एक बुटीक जॉइन कर लिया था. मेरा जॉब लेकिन छूट गया था, ऐसे में मधु ही उस समय घर संभालती थी. फिर मनु याने हमारे पहले बेटे का जन्म हुआ. मैंने भी पापा से पैसे ले कर अपना बिज़नेस शुरू किया था.कई बुटीक से माल उठा कर दिल्ली और मुम्बई सप्लाई करता था. मधु की डिज़ाइन की हुई ड्रेसेस बहुत पसंद की जाती थी.धीरे धीरे हमने अपना ही बुटीक खोल लिया था. लेकिन मधु का व्यवहार कभी कभी बहुत अजीब होता था. मुझे लेडी कस्टमर से बात करता देखती तो वहीं लड़ना शुरू कर देती. घर में भी मम्मी और मधु में छोटी छोटी बातों पर झगड़े होते थे. मुझसे तो पता नहीं क्या बैर पाल लिया था उसने ......कुछ भी बात करो उसमें उसे यही लगता था कि मैं उसके खिलाफ कोई साजिश कर रहा हूँ"

"मैं भी आख़िर कब तक सहता ,चिल्ला पड़ता था ..एक दो बार हाथ भी उठ गया मेरा. मधु कहती थी कि अपने मम्मी पापा के साथ मिल कर मुझे मारने की साजिशें रच रहे हो. दिमाग घूम जाता था मेरा तो. मैंने डिवोर्स के  लिए भी अप्लाई करने का सोचा था. जिस वकील से बात की उसने मधु की कंडीशन समझ कर सुझाव दिया कि मधु को किसी मनोचिकित्सक को दिखा लें..हो सकता है डॉक्टर की रिपोर्ट से डिवोर्स केस मजबूत हो जाये ..डॉक्टर को दिखाने गए तो डॉक्टर ने कुछ साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर बताया और ये भी कि मधु दुबारा प्रेग्नेंट है. साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए उन्होंने कहा प्यार और अपनत्व से हेंडल करने से ठीक हो जाएगा ,थोड़ा सब्र रखिये आप लोग......लेकिन मधु जैसी बातें करती थी उसमें सब्र की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी."

"इन्ही सब झगड़ों के बीच सोनू का जन्म हुआ और फिर मनु की बीमारी का भी पता चला. उसकी सर्जरी के समय ही वो कॉलेप्स कर गया था. उस घटना ने मधु को बहुत शॉक पहुंचाया. एक दम से गुम हो गयी थी खुद में वह. सोनू का भी ख़याल नहीं था उसे. कैसे कैसे करके मैंने सोनू को संभाला यह मैं ही जानता हूँ ....बस उसके बाद से तो हमारी ज़िंदगी जैसे शोलो पे चल रही है. एक पल का भी सुकून नहीं घर में. इंसान शादी क्या इसी तरह जीने के लिए करता है ?"

अखिल संवेदनशीलता के साथ राजुल को समझाता हुआ बोला-" मैं समझ सकता हूँ  राजुल, लेकिन शादी में सब कुछ पका पकाया नहीं मिलता. पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हो कर एक परिवार की रचना करते हैं. किसी एक के साथ कुछ परेशानी हो तो दूसरा उसको सपोर्ट करता है. दुख सुख के साथी होते हैं दोनों एक दूजे के ....हर परिस्थिति में एक दूसरे की भावनाओं का खयाल रखते हुए जीवन बिताने से ही जीवन खुशगवार होता है ...कमियों को पॉइंट आउट करने से दुख और क्लेश ही बढ़ता है"

बोल रहा था अखिल, "तुम्हें एक उदाहरण से समझाता हूँ कि प्यार कैसे कठिन से कठिन परिस्थियों को भी सरल कर देता है. एक दंपति आपस में बेहद प्यार करते थे किंतु वक़्त का खेल पत्नी को चर्मरोग हो गया और वह इस चिंता में घुलने लगी की अब वह कुरूप हो रही है और उसका पति उसे छोड़ देगा.होनी को कुछ और ही मंज़ूर था पति के साथ सड़क दुर्घटना हुई और उसकी आँखों की रोशनी जाती रही....लेकिन इन प्यार करने वाले दोनो ने एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा. पत्नी उसकी आँखें बन गयी, अचानक एक दिन पत्नी की सीढीयों से गिर कर मृत्यु हो गयी. दुखी मन पति जब चिता को आग दे कर घर जा रहा था तो दोस्तों पड़ोसियों ने कहा अब कौन रखेगा तुम्हारा ध्यान बिना आँखों के कैसे मेनेज करोगे.....तो पति ने अपना काला चश्मा उतारते हुए बताया की उसकी आँखें कभी ख़राब नहीं हुई थी ,बस अपनी पत्नी को असुरक्षा की भावना से बचाने के लिए उसने यह नाटक किया था....कहा था उसने "वरना उसका मन बहुत पहले ही टूट जाता और वो मेरे प्यार को बस दया समझ लेती....जो हमारे आंतरिक प्रेम के सारे समीकरण तक बदल देता.....कैसे जी पाते हम लोग."

जारी था अखिल का बोलना, "इस कहानी को सुनाने का मक़सद यह है राजुल कि भावनाओं को सम्मान देते हुए एक कंजेनियल माहौल में जिया जा सकता है ,मधु ने तुम्हारा साथ तुम्हारे कठिन समय में जो दिया उसके बारे में ख़ुद तुमने ही मुझे बताया है, किंतु तुम उसकी कमियों को ज़्यादा तवज्जो दे रहे हो. तुमने अपने बारे में जो कुछ भी बताया उससे यह समझ आता है कि तुम्हारे किसी के साथ भी बहुत अच्छे सम्बंध कभी नहीं रहे ,क्यूँ ? सोचा है क्या कभी इस पर कि हर किसी को तुमसे ही क्यूँ शिकायत होती है ? बाक़ी लोगों का तो मुझे दूसरा पक्ष नहीं मालूम लेकिन मुग्धा ने अपने और तुम्हारे बारे में मुझे सब कुछ बताया है,कितना अच्छा साथ था न बचपन में तुम्हारा....लेकिन कुछ तो अनपेक्षित परिस्थितियाँ रही और उस से अधिक तुमने मुग्धा के प्रति कुछ धारणाएँ बना ली. एक तंग सोच से देखते हो तुम किसी भी घटना को,  तुम्हारे ख़ुद के पूर्वाग्रह हर किसी के पहलू को देखने समझने नहीं देते."

कहते कहते अखिल ने देखा कि राजुल के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे हैं. उसे अपनी आलोचना सुनना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था.

राजुल कुछ कहने के लिए मुँह खोलता उससे पहले ही अखिल बोल पड़ा -“जानता हूँ राजुल अच्छा नहीं लग रहा तुम्हें, कष्ट भी हो रहा है......लेकिन किसी भी सर्जरी में दर्द तो होता है लेकिन वो किसी बीमारी को ठीक करने के लिए ही होता है जो लम्बे समय से कष्ट दे रही होती है. अगर उसका ट्रीटमेंट नहीं करोगे तो आगे भी कष्ट देगी. तुम कष्ट पाते रहे और अपनी बीमारी के निदान और इलाज से भागते रहे. भागने से कुछ समय की शांति मिल जाती है लेकिन स्थायी उपचार नहीं होता. तुमने मुझ पर भरोसा किया है न स्थायी उपचार के लिए.....मैं एक डाक्टर से अधिक दोस्त के नाते सलाह दूँगा कि ख़ुद को आइने में देखने की हिम्मत करो."

राजुल ये सुन के थोड़ा शांत हो गया,बोला - "मुग्धा मेरे बचपन की बहुत गहरी दोस्त रही है अखिल साहब. कुछ भी होता रहा हमारे बीच लेकिन उसके लिए एक अलग सा लगाव है मुझे ,न जाने क्या विशेषता है उसके व्यक्तित्व की जो मैं महसूस करते हुए भी नकारना चाहता रहा .... और अब ज़िंदगी के इस मोड़ पर उससे मिलना सुखकर लग रहा है ... किंतु आपकी इन बातों से मुझे लगा कि मैं मुग्धा की नज़रों में गिर जाऊँगा."

अखिल कोमलता से राजुल के हाथ पर हाथ रख कर बोला - " यही ! बस यही तो कुंठा है ... मुग्धा ये सब जानती समझती है तुम्हारे बारे में और यह भी कि तुम चाहो तो इन सब से मुक्ति पा सकते हो. तुम्हारे भीतर के केयरिंग इंसान को जानती है वह ,उसने सब ख़ुद बताया है मुझे ,बस तुमने उस कोमल इंसान के ऊपर बहुत से आवरण डाल लिए हैं....घिर गए हो अपनी ही सोचों के जाल में.....धुँध सी छा गयी है ... उसे हटाना है तुमको और हम उसमें तुम्हारी मदद करेंगे. मधु का इलाज आसान हो जाएगा जब तुम उसे प्यार और सपोर्ट दोगे. .... बोलो हो

ना तैयार ?"

राजुल ने मुग्धा की तरफ़ देखा जो पूरी सदाशयता से मुस्कुरा रही थी.....आँखों में अपनत्व था. राजुल ने कुछ कुछ संशय की मुद्रा में सर हिला कर हामी भर दी. उसे यक़ीन नहीं था कि ऐसा कुछ बेहतर भी हो सकता है लेकिन कोशिश करने में क्या जाता है ,इससे बुरा भी तो कुछ नहीं होगा.

अखिल बोला - "अब मेरे क्लीनिक का टाइम हो रहा है राजुल. मैंने और मुग्धा ने सब कुछ डिस्कस कर लिया है. वह तुम्हें समझा देगी कि हमें कैसे आगे बढ़ना है. बस तुमको अपने ग़ुस्से और इरिटेशन पर क़ाबू रखना होगा. कुछ  'बिहेवियर थेरेपीज' हैं जिनका प्रयोग हम तुम और मधु दोनो पर करेंगे. मधु के लिए हो सकता है कुछ मेडिकेशन भी देना पड़े, जो मैं उससे मिलने और बात करने के बाद ही बता पाउँगा. अभी तुम मुग्धा से सारा प्लान समझो, मैं निकलता हूँ." ...और अखिल नैप्किन से मुँह पोंछता हुआ वाशबेसिन की तरफ़ बढ़ गया था.

मुग्धा मुस्कुरा के बोली - “चाय ख़त्म करो राजुल,फिर मैं तुम्हें अपने प्लान की डिटेल्ज़ समझाती हूँ."

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क्रमशः

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