Saturday, May 25, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (समापन क़िस्त)

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मुग्धा अखिल के क्लीनिक में उसके चेम्बर में थी. मधु बेहोश सी सोई हुई थी. मुग्धा ने इशारे से पूछा था उसकी इस स्थिति के बारे में. अखिल उसे ले कर बाहर आ गया और संक्षेप में सब बता कर बोला -“मुग्धा, तुम्हारा फ़्रेंड राजुल और उसकी बीवी मधु एक सुखद जीवन व्यतीत कर सकें यह हम लोगों के लिए एक फ़्रेंडली मिशन की तरह है. हम इसके लिए प्रयासरत हैं और रहेंगे. तुम्हें इस मिशन में एक अहम किरदार निभाना है. एक सहज मित्रता के तहत तुम्हें उनकी काउन्सलिंग करनी है. मधु के बिहेवियरल आसपेक्ट्स हम लोग घर पर डिस्कस करेंगे तफ़सील से. अभी ज्यों ही यह जागती है, तुम इसे साथ ले जा कर थोड़ा सैर करा लाओ जहाँ भी तुम ठीक समझो. तब तक मैं इसके ड़ायग्नोसिस पर और श्योर हो लेता हूँ अपने कालीग्ज़ के साथ डिस्कस करने के बाद. हमें सतह पर जो 'psychology' दिखती है उसकी जड़ें बहुत ही गहरे अवचेतन में होती हैं. हमें बहुत धैर्य और सावधानी से काम लेना होगा मुग्धा !”
"मुग्धा तुम सुन रही हो ना," मुग्धा को कंधे से पकड़ कर हिलाते हुए पूछ रहा था अखिल

“हम्म ,हाँ हाँ मैं सुन रही हूँ.“ मुग्धा अपनी त्वरित फ़ीलिंग्स को अखिल से छुपाने की कोशिश करती हुई बोली.

सोच रही थी मुग्धा.....क्या हो गया है आज उसे, अखिल के लिए इतनी तीव्र पज़ेसिवनेस ? इतने सालों से अखिल को जानते समझते भी आज इस ख़ूबसूरत औरत मधु का अखिल से लिपट जाने की कल्पना उसे विचलित कर रही थी. अखिल को यदि पता चला तो कितना हँसेंगे मुझ पर. उफ़्फ़ अखिल की शर्ट से मधु के तेज़ पर्फ़्यूम की ख़ुशबू भी आ रही है. नारीसुलभ ईर्ष्या फ़न उठा रही थी, किंतु वह दंश दे सके उस मिट्टी की मुग्धा नहीं बनी थी. सोचों को झटक कर बोली -“चलो कॉफ़ी पीते हैं और तुम अपने अब तक के ड़ायग्नोसिस को ब्रीफ़ भी कर दो मुझ को."

अखिल ने सोलिना को कॉफ़ी बनाने के लिए कहा और वहीं विज़िटिंग लाउंज में बैठ कर दोनों बातें करने लगे.

अखिल ने कहा -“ देखो मुग्धा जब कोई मेंटल डिसॉर्डर होता है तो पेशंट्स के व्यवहार से ही हम निश्चित करते हैं की वो किस कैटेगॉरी का डिसॉर्डर है. तुम तो जानती हो वो कई कैटेगरीज का मिक्स्चर होता है. अभी तक मैं जो समझ पाया हूँ उसके अनुसार मधु पैरनॉइड पर्सनालिटी डिसॉर्डर के साथ साथ हिस्ट्रीआनिक पर्सनालिटी डिसॉर्डर से भी ग्रसित है. इन सब की जड़ में आनुवंशिक और वातावरण दोनों का ही असर हो सकता है. मुग्धा ,तुम्हें मधु के अंतर्मन तक पहुँचना होगा, जो तुम अपनी ब्रिल्लीयंस, शालीनता और कारुणिक स्वभाव के साथ आसानी से बख़ूबी कर सकती हो. डिसॉर्डर को  सम्भालने के लिए कुछ मेडिकेशन और ज़्यादा समझदारी की ज़रूरत है, इसके  बारे में हम डीटेल में चर्चा करेंगे. अभी कॉफ़ी फ़िनिश करें और चेम्बर में लौट चलें."
"अगर हमारी मधु माई जाग गयी तो नया तमाशा खड़ा कर देगी."
अखिल के उसकी आँखों में झाँकते हुए हल्के स्पर्श के साथ यह कहना ना जाने क्यों मुग्धा को और हल्का कर गया था.

अखिल और मुग्धा चेम्बर में पहुँचे ही थे कि मधु तंद्रा से बाहर आती हुई दिखी. अधमुंदी आँखों से उसने अपने आसपास का जायज़ा लिया और अचानक चौंक के उठ बैठी.
"मैं.....यहाँ.....कैसे ?"
मुग्धा ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर पानी का ग्लास बढ़ाया -“मधु तुम थकी थी इसलिए तुम्हें नींद आ गयी थी. अब कैसा महसूस कर रही हो ?”
मुग्धा को वहाँ पा कर मधु कुछ असहज महसूस कर रही थी लेकिन मुग्धा की परवाह भरी मुस्कुराहट ने उसे आश्वस्त कर दिया. वह बोली-“डॉक्टर साहब से मिलने आयी थी. न जाने कैसे चक्कर सा आ गया. डॉक्टर साहब ने नहीं सम्भाला होता तो सर ही फूट जाता मेरा."

मुग्धा हंस कर बोली -“डॉक्टर साहब के होते ऐसा कैसे हो सकता है,सम्भालने में बड़े माहिर हैं हमारे डाक्टर जी." अखिल की तरफ़ मुख़ातिब होती मुग्धा ने पूछा, "क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं अखिल."
फिर मधु को कहने लगी, "चलो हम लोग थोड़ा माल की सैर कर आते हैं. कुछ वक़्त साथ बिताएँगे, बातें सातें होगी. और हाँ तुम्हें मेरी ड्रेस भी तो डिज़ाइन करनी है, अगर मूड हुआ तुम्हारा तो उसका मटीरीयल भी देख लेंगे."
"बड़ा दिल कर रहा है तुम्हारे साथ लंच किया जाय. मधु यार यूँ लगता है हम कोई बिछुड़ी हुई सहेलियाँ हैं और आज मिल गयी हैं."
मुग्धा स्वस्थ रिश्तों के बीज बो रही थी.

"हाँ भाई आज तो तुम्हीं लोग एंजॉय करो. अगर कुछ अप्पोईंटमेंट्स लाइंड अप नहीं होते तो मैं भी ब्यूटिफ़ुल गर्ल्ज़ के साथ हो लेता." थोड़ा सा फ़्लर्ट दिखा रहा था ख़ुद को अखिल ताकि मधु को कम्फ़र्ट लेवल में लाया जाय.

मधु की इच्छा नहीं हो रही थी अखिल से दूर जाने की लेकिन चोरी पकड़े जाने का भी डर था. थोड़ा मन ज़्यादा बेमन से ही सही वो मुग्धा के साथ हो ली.

मुग्धा उसे ले कर हज़रतगंज स्थित एक माल पहुँच गयी. मधु ने चला कर कहा, "ज़रा मेटेरीयल पर नज़र मार लेते हैं."

स्टोर्स के चक्कर लगाने, कपड़ों की वराइयटी देखने और दिमाग़ को ड्रेस डिज़ाइन के लिए तैयार करने में मधु का ध्यान अखिल से हट गया था. मुग्धा ने अब्ज़र्व किया मधु को ड्रेस डिज़ाइनिंग का पैशन था. उत्साह से वह मुग्धा के साथ उसकी ड्रेस प्लान करने में जुट गयी. क़रीब एक घंटे मटीरीयल शो रूम्स में  समय बिताने के बाद, मुग्धा उसे रॉयल कैफ़े में ले गयी. धीमा संगीत और हल्की रोशनी, बाहर की गरमी के बाद बहुत सूधिंग थे.  दोनों ख़ाली देख कर एक कोने की टेबल पर गयी. मुग्धा ने मेन्यू कार्ड उठा कर मधु को थमा दिया और पूछा मधु से कि उसे क्या पसंद है ... मधु भी अब मुग्धा के साथ सहज थी. दोनों इस नतीजे पर पहुँचीं कि 'चाइनीज' का ऑर्डर किया जाए. फ़्रेश लाइम सोडा मँगाया मुग्धा ने बिलकुल चिल्ड और और फिर मधु के बताए अनुसार खाने का भी ऑर्डर कर दिया. बहुत ही अपनाइयत से मधु से बोली-“मधु, यू रियली हैव टेस्ट. बहुत अच्छी ड्रेसेज़ और मटीरीयल सलेक्ट किए तुमने. मज़ा आ गया शॉपिंग में !”

मधु ने ने भी उत्साह से कहा -“हाँ ,मुझे भी. ना जाने कब से शॉपिंग को गयी ही नहीं थी मैं तो. सब पुराने पुराने कपड़े भरे हैं वार्डरॉब में."

मुग्धा ने कहा-“अरे तुम्हारी यह कुर्ती भी बहुत सुंदर है. एकदम ट्रेंडी लग रही है. बहुत फब रही है तुम पर.  कहाँ से ली ?"

मधु मुँह बनाते हए बोली -“ये तो पिछले साल फैबइंडिया से ली थी."

मुग्धा एक दम उछल कर बोली -“वाओ ,फैबइंडिया तो मेरा फ़ेव ब्राण्ड है. बहुत ही ग्रेसफ़ुल होते हैं उसके कपड़े."

मधु ने कहा -“ लेकिन महँगे बहुत लगते हैं मुझे तो. कॉटन के कपड़े ले कर ख़ुद ही डिज़ाइन कर लूँ मैं तो उनसे बेहतर."

मुग्धा ने प्रशंसात्मक नज़रों से मधु को देखते हुए कहा-“ वाक़यी तुम बहुत टेलेंटेड हो. इस फ़ील्ड में क्यूँ नहीं काम करती ?आजकल तो देखो ब्रैंड्ज़ कितने पॉप्युलर हैं. अच्छे डिज़ाइनर्ज़ के लेबल्स की बहुत डिमांड है. लोग ब्राण्ड को देख कर पैसा देते हैं तुम किसी बड़े ब्राण्ड को जोईन करो न, अरे नहीं अपना ब्राण्ड डेवलप करो....आइ एम श्योर योर्स वुड बी अ ग्रेट हिट."

मधु उसाँस भर कर बोली -“क्या कहूँ मुग्धा..मेरा तो जैसे सारा टैलेंट  ही व्यर्थ गया. कितना शौक़ था मुझे ड्रेस डिज़ाइनिंग का,अच्छे अच्छे कपड़े पहनने का. सब लोग कितनी तारीफ़ करते थे मेरी. कॉलेज में तो ब्यूटी क्वीन भी सलेक्ट हुई थी मैं...लेकिन सब धूल में मिल गया. जबसे राजुल मेरी ज़िंदगी में आया तब से मानो  ग्रहण ही लग गया है लाइफ़ को."

मुग्धा अनजान बनते हुए बोली -“अरे ऐसा क्या हो गया,तुम दोनों तो बहुत ही अच्छे कपल्स हो."

मधु दार्शनिक अन्दाज़ में बोली-“जो दिखता है वो सच कहाँ होता है, मुग्धा डियर ! अखिल जैसा पति मिला है न इसलिए इस क़वायद और जद्दोजहद से दो चार नहीं हुई हो. कितना मुश्किल होता है एक नान कम्पैटिबल इंसान के साथ एक ही छत के नीचे रहना. मुग्धा ये त्रासदी तुम कैसे जान पाओगी....लकी हो तुम टच वुड." आदतन टेबल को छू रही थी मधु हालाँकि टेबल ग्लास टॉप की थी.

मुग्धा अपनी आवाज़ में बहुत ही कन्सर्न लाती हुई बोली-“ओह ,मैं तुम्हारी मनस्थिति समझ पा रही हूँ मधु. हो सके तो मुझे मित्र समझ कर शेयर करो,मन हल्का होगा."

मुग्धा स्पंदनों से बहुत कुछ सुकून पहुँचा रही थी मधु को. मधु को उसका साथ तपती धरती पर शीतल बौछार सा महसूस हो रहा था. वो खुलती चली गयी ,लगभग वही कहानी जो राजुल ने मुग्धा को सुनाई थी. बस अंतर वर्ज़न का था. राजुल ने ख़ुद को विक्टिम बताया था और मधु ने ख़ुद को ...दोनों को ही एक दूसरे से ढेरों शिकायतें थी.

हाँ मधु ने मुग्धा से अपने संशय भी बताए, जैसे कि उसे लगता है कि राजुल का कहीं अफ़ेयर चल रहा है और वो अपनी माशूक़ा के साथ मिल कर मुझे मारने का प्लान बनाता है.
"कई बार मैंने सुना है उसे फ़ोन पर किसी से बात करते हुए....कई बार तो फ़ोन बजता है मेरे सामने लेकिन वो ऐसे बैठा रहता है जैसे उसे सुनायी न पड़ रहा हो. मेरे फ़ोन पर कई बार धमकी भरे कॉल आते हैं."

मुग्धा अपनी बॉडी लैंग्विज से यह जता रही थी की उसे मधु की बात पर पूरा विश्वास है. मधु के चुप होने पर उसने पूछा लास्ट कॉल कब आया था.

मधु कुछ याद करते हुए बोली -“जिस दिन अखिल हमारे घर आए थे पहली बार उसी दिन सुबह आया था."

मुग्धा समझ गयी की जबसे दवा पहुँचनी शुरू हुई है मधु को उसका यह हलूसिनेशन कम हो गया है. मेंटल नोट्स बना लिए थे मुग्धा ने मधु से हुई बातचीत के अखिल से शेयर करने के लिए.

आगे पूछा मुग्धा ने -“मधु तुम्हें योगा करना अच्छा लग रहा है ना ?”
मधु बोली -“हाँ मुग्धा ,पता है पहले मैं ख़ूब योगा करती थी एक दम फ़िट थी."

मुग्धा मुस्कुराते हुए बोली -“अभी भी हो ,बस अब रेगुलर रहना ,बल्कि थोड़ा मेडिटेशन भी किया करो मन शांत रहेगा."

अब तक दोनों का लंच ख़त्म हो चुका था. मुग्धा बिल चुका कर मधु को साथ ले क़ुल्फ़ी खाने पहुँच गयी. मधु बोली, "अरे बाबा अभी तो इतना खाया है." मुग्धा बोली क़ुल्फ़ी तो रास्ता बना लेती है पिघल कर जाने का और दोनों हँस पड़ीं. मुग्धा को संतुष्टि थी की मधु ने उसे मित्र के तौर पर स्वीकार लिया था. अब उसका काम आसान हो जाएगा .

मधु को ड्रॉप करने मुग्धा उसके घर गयी तो सोनू के लिए चोकलेट पेस्ट्रीस लेना नहीं भूली. मधु के बार बार कहने पर भी मुग्धा अंदर नहीं गयी, हाँ मधु को ड्रॉप करते ही राजुल को यह हिदायत देना नहीं भूली कि मधु की बातें इंट्रेस्ट से सुने,पूछे कि उसका दिन कैसे गुज़रा, उसकी शॉपिंग को इंवोलव हो कर देखे और अपरिशिएट करे. सार संक्षेप यह कि उसे उसके साथी होने का एहसास कराए....उसकी ख़ुशी में ख़ुश होये और ज़ाहिर भी करे. ऐसे छोटे छोटे बिहेवेरीयल इन्पुट्स मुग्धा यदाकदा देती रहती थी राजुल को....और सौभाग्य से राजुल को भी एहसास होने लगा था कि ऐसे जेस्चर रिश्तों में खाद पानी का काम करते हैं. बरसों की कंडिशनिंग से मुक्त होता मूल स्वभाव राजुल भी कोशिश कर रहा था इन्हें अपने व्यवहार में उतारने की.

मुग्धा ने अखिल को सिलसिलेवार मधु के साथ हुई बातें बता रही थी बारीक से बारीक डिटेल्ज़ के साथ....शब्द, बॉडी लेंगवेज, चेहरे के हाव भाव, आँखों के अक्स, रुचि अरुचि इत्यादि. अखिल गम्भीरता से सब सुन रहा था.

अखिल फिर मानो कुछ कनक़्लूड करता हुआ बोला -“हम्म, मुग्धा यह केस जैसा मैंने तुम्हें कहा था दो या दो से अधिक डिसॉर्डर को रिफलेक्ट रहा है. परानोईड डिसॉर्डर तो है ही जो उस दिन के उसके हिंसक रूप और किसी की उसके ख़िलाफ़ साज़िश की सोच  से ज़ाहिर हो  रहा है....यह आनुवंशिक हो सकता है. लेकिन इसकी इंटेन्सिटी अब कम  हो रही है दवाओं के असर से. दूसरा हिस्ट्रीआनिक डिसॉर्डर इंडिकेट हो रहा है जिसमें अटेन्शन सीकिंग ,बहुत भावुक और नाटकीय तरीक़े से सेक्सुअल प्रोआक्टिव होना जैसा आज मधु ने किया....हर बात को नाटकीय भावनाओं से ज़ाहिर करना ....ख़ुद को बहुत इम्पोर्टेंट समझना और फ़िज़िकल एपीरिएँस के लिए बहुत ही कोंशस रहना..... यह सब बचपन की कंडीशनिंग और माहौल जनित है जो काउन्सलिंग और बिहेवियर थेरपी से ठीक किया जा सकेगा."

अब राजुल पर भी अपना ऑब्ज़र्वेशन बता रहा था अखिल,
"मुझे तो राजुल में भी कुछ नारसिस्ट पर्सनालिटी ट्रेट्स दिखती  हैं. जैसे ख़ुद को अत्युत्तम दिखाना, लगातार प्रशंसा की भूख, संवेदना का अभाव, दूसरों का लाभ उठाने की प्रवृति, अपने लिए हर ख़ासियत को अतिशय देखना, अपने ही महत्व के लिए वांछा इत्यादि. फ़िलहाल उसमें एंगजायटि के लक्षण उभर कर आए हैं जो अवसाद याने डिप्रेसन में तब्दील हो सकते हैं."
कह रहा था अखिल, " अच्छी बात यह है कि उसका केस अभी क़ाबू का है और वह बात को समझ भी रहा है. दवाएँ मैंने प्रिस्क्राइब कर दी है और कुछ अहम बातें भी उसे समझा दी है.  राजुल को भी कुछ काउन्सलिंग सेशन्स की  ज़रूरत है.मुग्धा ! उसके विगत में हुए थोड़े नकारात्मक व्यवहार के बावजूद भी तुम्हारा उसके साथ दोस्ताना बर्ताव उसे बहुत सुकून दे पाया है और मानसिक ताक़त भी. हम लोग आपसी डिस्कसन और फोलो अप द्वारा बहुत कुछ बेलेंस भी कर रहे हैं ताकि वह अपनी लिमिट क्रॉस ना कर सके. उसकी भलाई की हमें परवाह है मगर हमारे अपने रिश्ते की क़ीमत पर नहीं." आख़री जुमलों में अखिल की फ़र्म और फ़ेयर शख़्सियत का अक्स ज़ाहिर हो रहा था.

अखिल फिर से मधु के बारे में बोल रहा था, "मधु ने दवाओं का बहुत अच्छा रेस्पॉन्स किया है. मुग्धा क्यूँ ना हम उसके कुछ सेशन डॉक्टर विभा के  साथ रखें.  बल्कि राजुल और मधु  दोनों को ही डॉक्टर विभा और डॉक्टर अनुराधा को रेफ़र कर देते हैं ताकि वाक़ायदा इनको हमारे सुयोग्य थेरापिस्ट की स्ट्रक्चर्ड प्रोफ़ेसनल हेल्प भी मिल सके."

मुग्धा बोली -“ हाँ, ये दोनों बहुत अनुभवी हैं और उनके व्यक्तित्व की ख़ासियत है कि पेशेंट्स खुलते चले जाते हैं. डॉक्टर विभा जहाँ पेशेंट्स की सायिकोलोज़ी को समझ कर उनको ज़रूरत के मुताबिक़ काउन्सलिंग प्रवाइड कर सकती हैं वहीं डॉक्टर अनुराधा अपने दर्शन और प्राणिक ऊर्जा के प्रयोग से उनकी सोचों में परिवर्तन ला सकती हैं. अनु मधु की प्राणिक हीलिंग करेंगी तो रिज़ल्टस और जल्दी मिलने लगेंगे."

अखिल-मुग्धा ने पूरा ऐक्शन प्लान तैयार करके उसपे तहे दिल से काम शुरू कर दिया था. मधु जान ही नहीं पाती थी की मुग्धा कब बातों बातों में उसकी सोचों को बदल देती थी. ना जाने कब मधु के मन में राजुल के प्रति सहज कोमल भावनाओं का प्रस्फुटन होने लगा था. अखिल के प्रति अनावश्यक आकर्षण भी मुग्धा के अपनेपन और काउन्सलिंग के कारण धूमिल पड़ने लगा था. अखिल और मुग्धा की रिलेशनशिप अब मानो दोनो के लिए एक आदर्श सी होने लगी थी जिसे वे अपने लिए भी फॉलो करने लगे थे खासकर मधु ज़्यादा रिसेप्टिव थी. नारी की मानसिक और शारीरिक संरचना गहरी और ग्रहण करने के लिए अधिक योग्यता रखती है.

मुग्धा ने कहा था मधु से - "अखिल राजुल के पुराने दोस्त होने के नाते तहेदिल से चाहते हैं कि तुम दोनों बहुत ख़ुश रहो,बिलकुल जैसे कि हम दोनों हैं. राजुल कुछ परेशानियों में घिर कर कुछ अनटुआर्ड बिहेव कर जाता है तुमसे हालाँकि ऐसा नहीं होना चाहिए. अखिल समझाते रहते हैं उसे कि मधु तुम्हारा लकी चार्म है....उसकी ख़ुशी तुम्हारी ख़ुशी है. मधु ! अखिल तुम्हारा बहुत सम्मान करते हैं, तारीफ़ भी बहुत करते हैं. रिश्तों को नाम देना अखिल की फ़ितरत नहीं किंतु अगर दुनियावी नज़र से आकलन करें तो कह सकती हूँ उनको तुम में अपनी छोटी बहन, बेटी और सखी जैसी नज़र आती है. अखिल हर समय कहते हैं मुग्धा इनका परिवार ख़ुशहाल बनाने में जो कुछ मुझसे बन पड़ेगा करूँगा. तुम देखना मधु, राजुल बदलेगा ,किंतु थोड़ा तुमको भी ख़ुद को बदलना होगा, प्यार और कोमलता से कुछ भी पा जाना सम्भव हो जाता है, यह मेरा अपना अनुभव है."

असर हो रहा था मधु पर. दैहिक आकर्षण अब स्नेह, सम्मान और भरोसे में बदल रहा था. मुग्धा की ड्रेस डिज़ाइन करने के बाद उसे मुग्धा के ही फ़्रेंड सर्कल से बहुत सारे ऑर्डर मिल गए थे. व्यस्त हो गयी थी मधु .....और अपने पेशन को जीते हुए बहुत ख़ुश भी थी. स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा था. तीन सेशन डॉक्टर अनुराधा के साथ हो चुके थे और डॉक्टर अखिल की दवाएँ भी अपना असर दिखा रही थी. डॉक्टर विभा की काउन्सलिंग का नतीजा था कि मधु को समझ आ गया था और स्वीकार्य हो गया था आनुवंशिक कारण से हुए डिसॉर्डर के लिए उसे ये दवाएँ तज़िंदगी मेडिकल सुपरविजन में लेनी होंगी.

राजुल का व्यवहार भी पहले से काफ़ी सहज हो रहा था. डॉक्टर विभा ने उसके साथ भी काफ़ी मेहनत की थी. डॉक्टर विभा ने अखिल को हँसते हुए कहा था-“बड़ा ही अक्खड़ पेशेंट दिया है इस बार आपने मुझे," अपना तकियाकलाम जुमला इस्तेमाल कर रही थी डा. विभा, "...बट ना, यू नो आइ तो लव चेलेंजेज़."

मुस्कुराते  हुए बोला था अखिल -“आइ नो योर केपबिलिटीज़, विभा." विभा के दिल में अखिल के प्रति एक अलग सा सम्मान भरा प्रेम था जो एकतरफ़ा था लेकिन मनोविज्ञान की माहिर विभा उसको आत्मा के तल पर जी रही थी....अब तक अकेली थी. हाँ बिन बोले अखिल और मुग्धा उसका रेसिप्रोकेशन कर रहे थे....अखिल का क्लीनिक जैसे विभा का मंदिर हो और वो मीरा.
रिश्तों का दर्शन बहुत अनूठा होता है.

सोनू अपने सहज स्वभाविक बचपन में लौट आया था. अखिल तो जान छिड़कता था उस पर और शतरंज में तो अब सोनू उसको हराने  भी लगा था. राजुल ने उसको चेस की कोचिंग भी जोईन करा दी थी. राजुल का बिज़नेस अच्छा चलने लगा था. मन ख़ुश और शांत होता है तो ज़िंदगी के हर पहलू पर उसकी छाप दिखती है. क्लाइंटस ख़ुश थे राजुल के बदले हुए ऐटिट्यूड  से.

वक़्त के दरिया में न जाने कितना पानी बह गया था. सोनू इस साल एइथ स्टेंडर्ड में पहुँच गया था. मधु के बुटीक का उद्घाटन सोनू के जन्मदिन के दिन करना निश्चित हुआ था और राजुल उसी की व्यवस्था में शिद्दत से लगा हुआ था, उसका उत्साह देखते ही बनता था. अरे हाँ,  राजुल को एक बड़ा ऑर्डर सिंगापुर की एक फ़र्म से मिला था, उसने बहुत ही सटीक ढंग से उसके एक्जेक्यूशन में जी जान लगा दी थी. हाँ उसने मधु के बुटीक के उद्घाटन के बाद ऑर्डर डिस्पैच करने के लिए क्लाइंट को राज़ी भी कर लिया था. राजुल के जीवन का हर काम अब अपने लिए केंद्रित था, बस 'अपने' की परिभाषा में अब सोनू और मधु तो थे ही, मुग्धा और अखिल की निस्वार्थ ख़ुशी भी शुमार हो गयी थी.

मधु-राजुल के घर मुग्धा-अखिल डिनर पर आए हुए हैं. मधु ने आज अपने हाथों से इस शाम के लिए ना जाने क्या क्या बनाया है. राजुल ने भी घर सजाने में मधु का साथ दिया है....फूलों के गुलदस्ते....झूलते हुए नए परदे....सुगंध वाली केंडलस से उभरती महकती रोशनी और बहुत ही सकारात्मक स्पंदन....आज सोनू-मुग्धा-राजुल के अपार्टमेंट को मकान से घर बना रहे हैं. कृतज्ञता यदि हृदय से प्रकट हो तो हमारी हर बात,हर चीज़, हर जुंबिश  अहोभाव ही अहोभाव के वाइब्ज़ प्रसरित करने लगती है. कृतज्ञता मानव का सर्वश्रेष्ठ अर्पण जिसमें सिवाय उसके अहम के कुछ भी व्यय नहीं होता किंतु ना जाने क्यों दुनियाँ के अधिकांश लोग इस अना के जाली नोटों को ख़र्च नहीं करना चाहते. कितनी विचित्र बात है, विपरीत होते हुए भी ज्ञान और अहम दोनों में बड़ी समानता है....दोनों के ही ख़र्च करने से समृद्धि और बढ़ जाती है....

हाँ तो खाने से पहले ड्रिंक्स की महफ़िल जमी है. अखिल और राजुल ने आज भारत की सब से बेहतरीन सिंगल मॉल्ट व्हिस्की 'Amrut' ट्राई करने का सोचा है......और सम्माननीय महिलाओं के लिए अखिल की पेशकश, उसने अपने हाथों से इटालियन  नीग्रोनि कोकटेल तैय्यार की है. सोनू मियाँ भी महफ़िल में अक्टिव हैं.....अपनी मन पसंद मोक्टेल रास्पबेरी मोहितो एँजोय कर रहे हैं जो अखिल अंकल ने उसके लिए ख़ास बनाया है. मधु-राजुल द्वारा मिल जुल कर बनाए गए स्नेक्स सेशन को और जीवंत बना रहे हैं. एक के बाद एक, जोक्स और टाँग खिंचाई के दौर चल रहे हैं....पाँचों की सहभागिता देखते ही बनती है. आपसी बांडिंग और सद्भाव की अनकही कहानी कह रही है यह महफ़िल..

अखिल और मुग्धा इस परिवार को ख़ुश देख बहुत ही संतुष्ट थे और मधु और राजुल के लिए तो मुग्धा और अखिल मानो साक्षात देवदूत हो.

अचानक मधु उठ खड़ी होती है. कहती है मुग्धा सुनो तो....मधु की अस्तव्यस्तता देख कर अचानक माहौल में कुछ पल के लिए असमंजस, ठहराव और अव्यक्त चिंता के भाव उभर आते हैं. मुग्धा खड़ी हो कर मधु के पास चली आती है. अखिल और राजुल भी खड़े हो जाते हैं. सोनू बहुत कन्फ़्यूज़्ड. ये चंद पल 'अब क्या होगा' वाले हो रहे हैं मानो.

बहुत ही भावुक हो कर मुग्धा से लिपट गयी -“मुग्धा ,कैसे कहूँ तुम मेरे लिए क्या हो. मैं तो उस अंधकार को ही अपनी नियती मान बैठी थी. तुम और अखिल रोशनी की किरण बन कर आए और हमारे घर को जगमगा दिया. तुम लोगों का यह क़र्ज़ तो किसी तरह नहीं उतार सकूँगी."
उसी साँस में बोले जा रही थी मधु, "एक गुज़ारिश है, मेरी एक किसी अनजाने अनकहे अधिकार के नाते माँग है. देखो इनकार ना कर देना. मेरा दिल टूट जाएगा."

यह कैसा इमोशनल ब्लेक मेल है, कहीं फिर से तो मधु को दौरा नहीं पड़ गया. कहीं सोये हुये साँप ने फिर से तो फ़न नहीं उठा लिया. ख़ुद के सोचों पर नियंत्रण करते हुए मुग्धा ने बहुत स्नेह से रेस्पोंड किया, "बोलो तो सही मधु !"

मधु ने इसरार भारी आवाज़ में कहा, "बस अपने बुटीक को तुम्हें डेडिकेट करना चाह रही हूँ और नाम देना चाह रही हूँ “मुग्धा". प्लीज़ अपनी कन्सेंट दे दो."

मुग्धा ने अखिल की ओर देखा और आँखों से वह कह दिया जिसकी मधु को गहरी अपेक्षा थी. "मधु ! तुम भी." बस ये शब्द थे मुग्धा के.

मुग्धा इस स्नेह से अभिभूत कुछ भी और न कह सकी. उसने राजुल की तरफ़ देखा जिसके  रोम रोम से कृतज्ञता छलक रही थी. राजुल ने कहा -“मुग्धा आख़िर तुम्हारे सहज निर्मल  बहाव ने मेरे मन का हर मैल धो डाला... हृदय से नमन करता हूँ तुम्हें और अखिल को जिन्होंने हमें जीने का ढंग सिखा दिया."

अखिल जो अब तक मूक दर्शक बना हुआ सब देख रहा था बोला -“भाई ये कुछ ज़्यादा ही इमोशनल सीन हो गया ना ..... चलो सभी उपस्थित सज्जन सजनियाँ अपना अपना आसन ग्रहण करें और अपने अपने पेय पदार्थ का सेवन करें."

अखिल की आवाज़ पर सब भीगी आँखों से भी मुस्कुरा उठे.........

(समाप्त)

Saturday, May 18, 2019

मुग्धा :एक बहती नदी (सोलहवीं क़िस्त)



★★★★★★★

राजुल ने मुग्धा को पहले ही सूचना दे दी थी कि मधु अखिल के क्लीनिक आ रही है ताकि टाइम स्लॉट के अनुसार वह मेनेज हो जाए. मुग्धा ने अखिल से मशविरा करके ऐसा समय इंगित कर दिया जब अखिल पूरा समय और ध्यान दे पाए.

राजुल अखिल के क्लीनिक तक मधु के साथ गया.मधु नहीं चाहती थी वो साथ आए लेकिन राजुल ने कहा उसे फ़िक्र रहेगी वो बस बाहर से छोड़ के लौट आएगा फिर जब मधु फ़्री हो के कॉल करेगी तो लेने भी आ जाएगा.मधु को उसका यह केयरिंग रूप अच्छा लगा लेकिन उसने कुछ भी ज़ाहिर नहीं किया.

अखिल का चेम्बर एक बड़ा सा कमरा था. जिसमें एक सॉलिड मार्बल टॉप वाली टेबल उसके लिए थे, एक बड़ी सी रिकलायिंग चेयर के साथ. सामने भी उसी के मैच की विज़िटर्ज़ चेयर्स लगी हुई थी. टेबल से दूर एक सिटिंग स्पेस बना था जहाँ बहुत ही आरामदेह सोफ़े लगे थे, ईरानी क़ालीन बिछा हुआ था और एक ऑरीएंटल डिज़ाइन की ग्लास टॉप वाली सेंट्रल टेबल लगी हुई थी. इस सिटिंग स्पेस का उपयोग सबजेक्ट (जिन्हें काउन्सलिंग करना हो) के साथ बात चीत के लिए करता था डाक्टर अखिल.

चेम्बर की साज सज्जा बहुत ही सूधिंग थी. टेबल के ठीक पीछे भगवान बुद्ध की एक बड़ी सी पेंटिंग लगी हुई थी. उधर सिटिंग प्लेस में कुरुक्षेत्र में अर्जुन को सारथी रूप कृष्ण की गीता का उपदेश देते हुए की पेंटिंग लगी थी. ताज़ा फूलों के गुलदस्ते भी लगे हुए थे. एक कोने में लाफ़िंग बुद्धा की एक बड़ी सी कलात्मक मूर्ति भी मार्बल स्टैंड पर लगी हुई थी. फ़र्नीचर और इंटिरीअर्स एक सुखद फ़ील देने वाले थे अखिल के चेम्बर में.

चेम्बर के साथ ही सटे तीन और चेम्बर्ज़ थे. एक चेम्बर में डाक्टर अनिमेश चक्रवर्ती बैठते थे, जो एक सीनियर  फिजिशियन थे. बाक़ी दो चेम्बर्ज़ काउन्सलिंग और थेरपी के लिए थे जिनका उपयोग उसकी टीम की क्लिनिकल सायिकलोजिस्ट डा. विभा राठोड़ और डा. अनुराधा उनियाल करते थे. विभा एक ग्रैजूएट मेडिको और क्लिनिकल सायकॉलिजस्ट थी. अनुराधा की शैक्षणिक योग्यताएँ लीक से हट कर थी, वह आयुर्वेद में स्नातक, डायटीशियन और  योगा डिप्लोमा होल्डर भी थी. अनुराधा ने दर्शन शास्त्र में मास्टर्स किया और प्राणिक हीलिंग में भी एडवांसड कोर्स किया हुआ था. मुग्धा ने भी सेल्फ़ स्टडी और अखिल के साथ के कारण बहुत कुछ जानकारी हासिल की हुई थी. अखिल की चिकित्सा का ढंग बहुत ही यूनिक था. उन्होंने पश्चिम और पूर्व की चिकित्सा प्रणालियों का शानदार समन्वय किया हुआ था जिसमें भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को भी ख़ास महत्व दिया था. अखिल की शिक्षा यद्यपि भारत के बाहर हुई, उदार चिंतन के साथ वह मौलिक भारतीय मूल्यों का क़ायल भी था.

अखिल की सेक्रेटरी ने मधु को विज़िटिर्स वेटिंग में बिठाया और अखिल को उसके आगमन की सूचना दे दी. पाँच मिनट पश्चात अखिल स्वयं चेम्बर से बाहर आया. मधु ने खड़े हो कर नमस्कार किया जिसका प्रत्युत्तर अखिल नें मुस्कुरा कर गर्मजोशी से स्वागत करते हुए नमस्ते कह कर दिया और बोला, "आइए मधुजी अपने बात चीत करते हैं." कुछ भी औपचारिक फ़ॉर्मैलिटी जैसे रेजिस्ट्रेशन फ़ीस पेमेंट आदि ना की जाय इसका निर्देश उसने पहले से ही अपनी सेक्रेटरी को दे दिया था.

अपने सामने वाली चेयर  पर बैठने का इशारा करते हुए अखिल ने कहा, "स्वागत है मधुजी आपका. कैसी हैं आप ?"

मधु बोली, "मैं अपोईंटमेंट लिए बिना ही चली आई, माफ़ कीजिएगा. दरअसल मुझे लगा कि मुझे वाक् इन कर लेना चाहिए और आप मुझे ज़रूर समय देंगे."

मधु मुस्कुरा रही थी.

अखिल ने कहा, "हम लोग पारिवारिक मित्र हैं. ऑफिशियल अपाइंटमेंट के रूल्ज़ हमारे लिए नहीं है लेकिन फ़ोन से सूचना देकर आने से आपको प्रतीक्षा में समय नहीं गँवाना होगा. यह कह कर अखिल ने अपना विज़िटिंग कार्ड मधु की ओर बढ़ा दिया. कह रहा था अखिल, "इस पर मेरे फ़ोन नंबर हैं. फ़ोन पहले मेरी सेक्रेटरी सोलिना उठाती है. बस आप उसको अपना नाम बोलिएगा मुझ से कनेक्ट कर देगी." फ़ेस रीडिंग में अखिलेश माहिर था, उसकी हर गतिविधि जो सहज दिखती थी उसके पीछे बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक प्रोसेसिंग रहती थी.

"आप कॉफ़ी पीना पसंद करेंगी. सोलीना बहुत अच्छी कॉफ़ी बनाती है."अखिल का व्यवहार स्निग्ध किंतु गरिमामय था. मधु  मानो आसपास की सराउंडिंग का भरपूर जायज़ा विभोर हो कर ले रही थी. चेहरे पर ख़ुशी थी लेकिन कृत्रिम उदासी ओढ़ कर बोली, “डॉक्टर साहब बहुत कमज़ोरी लगती है सारे दिन घबराहट और बेचैनी सी रहती है ,अजीब अजीब सी आवाज़ें सुनायी देती हैं. कभी डोर बेल सुनायी देती है जा कर देखती हूँ तो कोई होता ही नहीं. कभी कभी फ़ोन की रिंग सुनायी देती है, अलग अलग रिंग टोन..लेकिन असल में कोई कॉल नहीं आयी होती. मुझे तो लगता है  सब कमज़ोरी की वजह से ही है." मधु जैसे ख़ुद का डायग्नोसिस ख़ुद ब ख़ुद कर रही थी.

अखिल बोला -“ क्वाइट पॉसिबल ! एक काम करते हैं आपका एक छोटा सा हेल्थ चेक अप मेरे कलीग डाक्टर अनिमेश से करवा देते हैं ताकि जनरल हेल्थ पर अपन जान लें." उसने  इंटरकॉम पर डा. अनिमेश से कहा, "दादा नमोस्कार. हमारी एक फ़्रेंड को आपकी हेल्प चाहिए. हम लोग काफ़ी पी कर आप के पास आ जाएँ. ज्यों ही फ़्री हों हमें बुला लीजिएगा."

कॉफ़ी सिप करते अखिल मधु से ऐसे बात कर रहा था मानो बरसों की नज़दीकी जान पहचान हो.

"अनिमेश दा याने डाक्टर अनिमेश चक्रवर्ती बस चार साल पहले लंदन से भारत आ बसे हैं. अकेले हैं, शादी नहीं की. गीत, संगीत, कविता और पेंटिंग के शौक़ीन है. बाहर से पढ़े होने के बावजूद भी ज्योतिष और हस्त रेखा में बड़ी रुचि रखते हैं. माँ काली के बड़े भक्त हैं दादा. की बोर्ड बहुत अच्छा बजाते हैं और  गाते भी बहुत अच्छा हैं."

मधु बोली, "सुखी हैं, शादी नहीं की. बहुत मुश्किल है कोई कंपेटिबल जीवन साथी मिलना. क्या लाभ किसी ऐसे के साथ एक छत के नीचे समय बिताना जो कंपेटिबल ना हो." बहुत ओपिनियनेटेड हो रही थी मधु. कंपेटिबल शब्द  जो अपने आप में एक पैंडोरा बॉक्स है, बहुत कुछ कहे जा रहा था.

अखिल चाहता था मधु उससे खुल के बात करे जिससे उसके लिए उसका ट्रीटमेंट करना आसान हो जाए...इसलिए उसने कहा, " ट्रू !" और ऐसा एक्सप्रेस किया जैसे मधु कोई बहुत बड़े ज्ञान का रहस्योद्घाटन कर रही हो. कम्यूनिकेशन स्किल में माहिर अखिल जानता था कि मधु जैसे व्यक्ति कैसे बोलना शुरू करते हैं. अखिल बोला, "हाँ हम जो कुछ हैं अपने अपने अनुभवों की देन होते हैं.....और बताईये कुछ नया ताज़ा." मानो जैसे पहले लगातार बातें होती रही है.

मधु बोली-“ क्या कहूँ डॉक्टर साहब ! ज़िंदगी अजाब हो गयी है मेरी तो. जाने किस घड़ी में राजुल से शादी कर ली थी. बर्बाद ही हो गयी मैं तो. एक लम्हा भी ख़ुशी हासिल नहीं." फिर अचानक अखिल की आँखों में झाँकती हुई बड़े गहरे अन्दाज़ से बोली -"बस उस दिन जब से आपसे मिली हूँ तब से थोड़ी सी ख़ुशी महसूस कर पा रही हूँ .कितने अच्छे हैं आप. कितना ख़याल रखते हैं, (सब का शब्द जानकार दबी जुबान से बोली)...हर किसी की क़िस्मत में कहाँ आप सा साथी मिलना (साथी के आगे का शब्द "जीवन"--दबा गयी थी मधु)."

अखिल तटस्थ बना रहा. चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी. उसका पाला बहुत पड़ा था ऐसे पेशंट्स से. मुग्धा तो आए दिन उसकी खिंचायी करती रहती थी ऐसे क्रशेज़ को ले कर. ख़ूब आता था अखिल को इन स्थितियों से निबटना.

मधु से पूछा अखिल ने -“ऐसी क्या कमी है राजुल में ?"

मधु ने कहा -“कोई एक हो तो बताऊँ डॉक्टर साहब. हर बात में झगड़ा करना उसकी आदत हो गया है. बाहर न जाने कितनी औरतों से अफ़ेयर चलता है उसका. मेरी किसी बात का सीधे मुँह जवाब नहीं देता. अगर सोनू न होता तो मैंने तो तलाक़ ही ले लिया होता उससे."

अखिल ने कहा-“लेकिन राजुल तो आपकी बहुत तारीफ़ कर रहा था. उसने बताया कि आप कितनी अच्छी ड्रेस डिज़ाइन करती हैं और खाना भी बहुत अच्छा बनाती हैं. मैं तो किसी दिन सेल्फ़ इन्वाइट करने वाला हूँ आपके घर ख़ुद को.... खाना खाने के लिए."

मधु भौचक्की सी अखिल को सुन रही थी -“ राजुल ने कहा ये सब,मेरे लिए ?"

अखिल ने कहा -“ हाँ ,सही नहीं है क्या ?  वरना मुझे कैसे पता चलता कि आप ड्रेस डिज़ाइन भी करती हैं."

मधु कुछ सोचने लगी थी.मौक़ा देख कर अखिल ने राजुल की तरफ़ से बहुत सी ऐसी बातें उसे कहीं जो उसे कोमलता का एहसास कराए मसलन राजुल कहता है मधु कैसे सब मेनेज करती है ,बहुत स्मार्ट है ,मैं चिड़चिड़ा जाता हूँ काम के प्रेशर से लेकिन वह हमेशा मेरा साथ देती है.

मधु पर असर हो रहा था. चेहरे का तनाव ढीला पड़ रहा था तभी योजना अनुरूप मुग्धा ने क्लीनिक में प्रवेश किया और मधु के साथ अखिल को देख बोली-“ओह आइ ऐम सारी ! अगर मैंने डिस्टर्ब किया हो तो."

अखिल बोला -“अरे नहीं मुग्धा सही समय आयी तुम. इनसे मिलो ये मेरे फ़्रेंड राजुल की वाइफ़ मधु हैं मतलब हमारी भी फ़्रेंड,और मधु ये मेरी बेटर हाफ़ मुग्धा है “

मधु ने ईर्ष्या भरी नज़रों से मुग्धा की तरफ़ देखा जैसे कि वह अखिल को उससे छीन रही हो. मुग्धा के चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान थी. उसने हाथ बढ़ते हुए कहा -“ हेलो मधु ,आप घर आइए न हमें बहुत ख़ुशी होगी."

अखिल ने मुग्धा से पूछा -“हाँ मुग्धा कैसे आना हुआ ?”

मुग्धा बोली -“अरे आज मेरा योगा पर एक सेमिनार है तुमको सुबह बताना याद नहीं रहा तो अभी घर की चाबियाँ  ड्रॉप करने आयी थी. सोलिना ने कहा अंदर कोई पेशेंट नहीं फ़्रेंड है तो सोचा मिलती चलूँ तुमसे भी और फ़्रेंड से भी."

अखिल बोला -“अच्छा हुआ मधु से भी मिलना हो गया. पता है ये बहुत अच्छी ड्रेस डिज़ाइनर हैं."

मुग्धा ने चहकते हुए कहा -“रियली ! वाओ !! मुझे अभी नीलिमा की शादी की पचीसवीं सालगिरह के लिए एक ड्रेस लेनी है ,क्यूँ न मधु, आप मेरे लिए डिज़ाइन करिए ना ओकेज़न के लिए एक शानदार सी ड्रेस."

मधु संकुचित हो उठी -“बोली मुझे तो बहुत समय हो गया ड्रेस डिज़ाइनिंग का काम छोड़े हुए, अब तो सब भूल ही गयी हूँ."

मुग्धा ने हँसते हुए कहा -“अरे हुनर कभी नहीं भूला जाता.हाँ थोड़ा धूल जम जाती है उसे हम झाड़ लेंगे. अब तो मेरी ड्रेस आप ही डिज़ाइन करेंगी, मैं आपका साथ दूँगी. बूटीक पर भी तो मैं ख़ुद का ही डिज़ाइन बनवाती हूँ...तो बस पक्का."

मधु ने अनमने ढंग से सर हिला दिया. किंतु कहीं उसको लग रहा था कि इस बहाने उसे अखिल का साथ शायद ज़्यादा मिल जाएगा जो उसे रोमांचित भी कर रहा था.

अखिल ने कहा -“मुग्धा तुम मधु को अपनी योगा क्लास में जोईन क्यूँ नहीं कर लेती थोड़ा कम्पोज़्ड फ़ील करेंगी."

मुग्धा बोली -“व्हाइ नॉट ! आइ वुड लव टू हैव हर देयर !”

अखिल बोला -“तो ठीक है मधु ! आप मुग्धा के साथ योगा सीखिए और उसकी ड्रेस डिज़ाइन कीजिए और हाँ इस शनिवार आप लोग हमारे घर खाने पर आ रहे हैं." फिर मुग्धा की तरफ़ मुख़ातिब हो कर बोला, "ख़ूब जमेगी शामे शनिवार."

मधु बोली -डॉक्टर साहब ,राजुल नहीं आएगा मेरे साथ."

“एक तो आप ये डॉक्टर साहब कहना बंद कीजिये. नाम से बुलाइए मुझे. हाँ राजुल से मैं बात कर लूँगा, वह तो क्या उसके फ़रिश्ते भी आएँगे." इंटिमेसी दिखाते हुए, हँसता हुए बोला था अखिल.

इतने में इंटरकॉम पर डा अनिमेश का फ़ोन आया, "ओखिल, तूम अपनी फ़्रेंड के साथ आओगे."

"हाँ दादा." कहते हुए अखिल खड़ा हो गया. मुग्धा ने दोनों से बाय किया. अखिल मधु के साथ अनिमेश दा के चेम्बर में था.

अनिमेश को परिचय करा रहा था अखिल, "दादा ये मधु है हमारी फ़्रेंड. मधु को बहुत कुछ करना है, लेकिन लो एनर्जी फ़ील करती है. आप प्लीज़ इनको हेल्प करें."

"डोंट यू वरी, आइ वुड डू माई बेस्ट." डा. अनिमेश बोल रहा था. अखिल अपने चेम्बर को लौट आया.

अनिमेश ने मधु का क्लिनिकल चेक अप किया. उसकी मेडिकल हिस्ट्री नोट की और कुछ रक्त के टेस्ट्स प्रिस्क्राइब किए. उसने कहा कि वैसे सब कुछ सामान्य लग रहा है, थोड़ी ख़ून की कमी दिख रही है और कुछ वायटमिंज़ और कैल्शियम डिफिशिएंसी भी. रिपोर्ट्स आने पर क्लिनिकल ओब्ज़र्वेशन को रिलेट कर पाएँगे. उसने कुछ सप्लिमेंट्स मधु के लिए प्रिस्क्राइब किए.

मधु लौट कर अखिल के चेम्बर में चली आयी. अखिल "साइकोलॉजी टुडे " का ताज़ा अंक पलट रहा था. अखिल देख पा रहा था कि बहुत ही प्रशंसा भरी गहरी नज़रों से मधु उसे देख रही थी. इन्फ़ोर्मल होती सी मधु पूछ रही थी, "अखिल साहब यह आप जो पिन स्ट्राइप शर्ट पहने हैं वह माइकेल कोर है ना. बड़ा फब रहा है आप पर. हाँ इस पर यह जो ब्लू टाई है ना उसकी जगह अगर मेरून हो तो और अच्छी लगेगी. माफ़ कीजिएगा फ़ेशन डिज़ाइनर हूँ ना कहे बिना नहीं रह सकी." मधु मानो अखिल को इमप्रेस करना चाह रही थी. "बहुत अच्छा लगा मुझे आप से मिलकर. मुझे तो लगता है आप मेरी ज़िंदगी में देवदूत बन कर आए हैं." अच्छा चलती हूँ अभी. शनिवार की शाम आप से भेंट होगी. अब तो क्लीनिक में भी आना जाना लगा ही रहेगा.

मैं आप से कुछ और भी डिस्कस करना चाहूँगी.

अखिल ने कहा-"बिल्कुल,अनिमेश दा और मैं आपकी रिपोर्ट्स देख लेते हैं फिर बैठेंगे, बातें होगी."

मधु अखिल को धन्यवाद दे कर बोली राजुल मुझे लेने आएगा. मैं विज़िटर ऐरिया में बैठती हूँ, अभी आप व्यस्त होंगे.

अखिल को समझते देर नहीं लगी कि मधु की मनसा उसके यहाँ ठहरने की है. उसने कहा, "मैं फ़्री हूँ.  आप यहाँ राजुल का इंतज़ार कर सकती हैं, इस बहाने आपसे कुछ और बातें भी होगी."

मधु को मानो मुँह माँगी मुराद मिल गयी हो. थेंक्स बोलकर जम गयी.

मधु का मन बहुत हल्का था जब उसने राजुल को आने के लिए फ़ोन किया. उधर मुग्धा राजुल को पहले ही मेसेज कर चुकी थी “प्लान  एक्सेक्यूटेड !”

अखिल मधु से उसकी हॉबीज़ और कॉलेज जीवन के बारे में बात करने लगा था. अखिल की हर बात का जवाब उत्साह से दे रही थी मधु और बातें इस तरह पुट कर रही थी जिस से अखिल इंप्रेस हो. अखिल भी उत्साह दिखा रहा था. यह बात और थी कि मधु यह नहीं जान पा रही थी कि अखिल किस मिट्टी का बना है. उसकी शालीनता और सपोर्टिव होना उसकी प्रोफ़ेसनल ही नहीं वैयक्तिकता की भी ख़ासियत थी. वो जानता था कि कहाँ बेलेंस स्ट्राइक करना है. अपने दोस्तों के बीच नवाब पतंगबाज के निक नेम से जाना जाता था अखिल. ढील देने और खींचने के अनोखे अन्दाज़ होते थे अखिल के.

राजुल अखिल के क्लीनिक पहुँचा तो मधु अखिल के चेंबर में ही थी. अखिल ने राजुल को तुरंत अंदर ही बुला लिया और मधु के बारे में बताते हए बोला -“राजुल हम ने  कुछ टेस्टस प्रिस्क्राइब किए हैं  मधु के.  ये काफ़ी वीक और अनीमिक लग रही हैं इसलिए कुछ सप्लिमेंट्स लिखे हैं डा अनिमेश ने. तुम्हें ख़याल रखना है कि ये उन्हें रेगुलर लें.  बाक़ी सब ठीक है. और हाँ इस सैटर्डे तुम मधु और सोनू हमारे घर डिनर पर आ रहे हो. मुग्धा से भी मिलना हो जाएगा तुम्हारा. मधु तो अभी मिल चुकी है."

प्लान के मुताबिक़ मधु पर यही ज़ाहिर होना था की अखिल और राजुल पुराने दोस्त हैं ,क्यूँकि मधु की मानसिक स्थिति राजुल की महिला मित्रों को स्वीकार करने योग्य नहीं थी. ऐसी कोई भी बात जो उसके डिसॉर्डर को ट्रिगर करे अवोईड करनी थी. राजुल को मुग्धा लगातार निर्देश देती रहती थी वाटसप्प के ज़रिए और उसको सकारात्मक सोचों की तरफ़ प्रेरित करने में सफल भी हो रही थी. राजुल अपनी कुंठाओं से बाहर आने की कोशिश कर रहा था,अभी तक किसी ने भी उसे यह रास्ता दिखाया ही नहीं था. मित्र के नाम पर जो भी थे सब उसकी कुंठित सोचों में वृद्धि ही करते थे और पीठ पीछे मज़ाक़ भी बनाते थे. आइना दिखा कर सुधार लाने का काम तो कभी किसी ने किया ही नहीं था. करते भी कैसे ? ख़ुद ही लोग इतने उलझे हुए रहते हैं की उन्हें दिखता ही कहाँ है की कोई दूसरा उलझा है.

मधु पर दवा का असर दिखने लगा था. अखिल ने सप्लिमेंट्स के साथ कुछ न्योरोलोजिकल दवाएँ भी लिखवा दी थी जिनके लिए ख़ास तौर पर उसने राजुल को बता दिया था कि मिस नहीं होनी चाहिए. राजुल मधु का पूरा ख़याल रखता था और सोनू भी धीरे धीरे अपनी बाल सुलभ चंचलता की ओर वापस आ रहा था. मुग्धा रोज़ ड्राइवर भेज कर मधु को अपने साथ योगा क्लास ले जाने लगी जिससे मधु का व्यक्तित्व संतुलित होने लगा था

शनिवार को राजुल मधु और सोनू अखिल मुग्धा के घर पहुँचे ,मुग्धा की अभिजात्य छाप उसके घर पर परिलक्षित थी. डिनर बहुत ही शानदार रहा. सभी ने मिलकर म्यूज़िक भी सुना और सोनू के साथ तो ख़ुद अखिल शतरंज की बाज़ी लगा बैठा. अखिल ने सोनू के लिए कहा कि उसमें ग्रांड मास्टर होने की क़ाबलियत है.

मधु का सारा ध्यान अखिल पर ही केंद्रित था. किसी न किसी बहाने वो उसको स्पर्श करना चाह रही थी. कभी सब्ज़ी का डोंगा पास करते हुए कभी उससे सलाद की प्लेट माँगते हुए. अखिल और मुग्धा समझ रहे थे किंतु राजुल थोड़ा अजीब महसूस कर रहा था. अखिल ने इशारे से राजुल को ढाढ़स दिया. मुग्धा भी सहज थी मुस्कुराते हुए मधु से बात करते हुए कोशिश की थी कि उसका ध्यान अखिल से हट सके. बहुत बातें हुई..फ़िल्मों की गानों की. मधु को फ़िल्में देखने का बहुत शौक़ था लेकिन अब तो कब से उन लोगों ने हॉल में जा कर कोई फ़िल्म ही नहीं देखी थी. ,मुग्धा ने आननफानन में अगले संडे का मूवी देखने का प्रोग्राम फ़ाइनल कर लिया. सोनू भी ख़ुशी से उछल पड़ा. राजुल भी अब जान पा रहा था की ज़िंदगी इन छोटी छोटी ख़ुशियों से भरी है बस ज़रूरत है ख़ुद को थोड़ा सहज और खुला रखने की.

घर पहुँच कर भी मधु अखिल के बारे में ही सोचती रही,कितना शालीन है. हर बात की कितनी केयर है उसे. मुग्धा कितनी लकी है काश मुझे मिलता अखिल. सोचते सोचते सो गयी मधु...और सपने में भी अखिल का साथ ही देखती रही. न जाने उसके अवचेतन ने उसे क्या बता दिया कि वह सोमवार को बिना किसी को बताए सीधे अखिल के क्लीनिक पहुँच गयी. अखिल अकेला ही था चेम्बर में. मधु बिना एक क्षण का विलंब किए सीधे अखिल से लिपट गयी. अखिल इस अप्रत्याशित पहल से भौचक्का रह गया. उधर मधु फूट फूट कर रोए जा रही थी और कह रही थी, "अखिल आइ लव यू सो मच. मैं अकेली हूँ नितांत अकेली. मेरे नारीत्व को एक ऐसे पुरुष साथी की तलाश रहती थी जाने कब से जो मेरे अरमानों और चाहत को समझ पाए. हर पल जीने में मेरा साथ दे. जो मुझे सुने और समझे. मेरे लिए रुके और चले. मेरा इंतज़ार करे. मुझे लगता है मेरी यह तलाश अब ख़त्म हुई. तुम को देखा तो लगा हमारा तो जन्मों का नाता है. अखिल तुम मुझे मिल गए हो अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती प्लीज़ मुझे ले चलो कहीं. कैसे जीऊँगी मैं तुम बिन."

अखिल का अध्ययन और प्रोफ़ेशन ऐसा था कि मानव व्यवहार की बारीकियों को वह भली भाँति समझ पा रहा था. मधु का यह ऐब्नॉर्मल बिहेवियर उसका अपना स्वभाव नहीं था. उसके हार्मोंस और नयूरोंस का असंतुलन उसके लिए ज़िम्मेदार था. जजमेंटल होकर उसे दुषचरित्र महिला समझ लेना एक घोर नासमझी की बात होगी. अखिल जानता था कि मेडिकेशन और थेरपी मधु को वापस एक सामान्य मानवी के रूप में फिरा लाएँगे. राजुल को भी हीनत्व भावना और कुंठाओं से बाहर लाना होगा ताकि मधु और उसको आपसी संबंधों के लिए अनुकूल वातावरण मिल सके.

अखिल एक कमिटमेंट और कनविक्शन को जीने वाला इंसान था जो अपनी संगिनी मुग्धा को बेंइंतेहा प्यार करता था. मुग्धा को अपने बचपन के दोस्त राजुल के जीवन में ख़ुशहाली आई देख दिली ख़ुशी होगी और मुग्धा की ख़ुशी उसका विजन और मिशन हर पल के लिए जो था. इसलिए अखिल मुहावरे वाली -'एक्स्ट्रा माइल' वाक करने को तत्पर था. ऐसी विकट स्थिति को सकारात्मक और रचनात्मक रूप देकर समस्या को अवसर में बदल देना उस जैसे जीनियस के वश की ही बात थी. दुनियावी सोचों और तौर तरीक़ों से हट कर अप्रोच थी अखिल

की जीने की.

अखिल ने ख़ुद को संयत करते हुए कोमलता से मधु को हल्के हाथों से कंधे से पकड़ कर ख़ुद से अलग करते हुए कुर्सी पर बिठाया और पानी का ग्लास उसकी तरफ़ बढ़ा दिया. मधु अभी भी सुबक रही थी. अखिल बोला -“शांत हो जाओ मधु , गहरी साँस लो और पानी पियो ,आँख बंद करके ख़ुद को ढीला छोड़

दो....सोचो तुम एक मानसरोवर में हंसिनी की तरह फ़्लोट हो रही हो."

अखिल की गहरी आवाज़ का जादू मधु पर असर कर रहा था.

अखिल ने मधु के सिर पर हाथ फेरा और ललाट पर आज्ञा चक्र के पास अपने अंगूठे से छुआ.

थोड़ी देर में मधु शांत हो गयी,उसकी साँसों की गति से लग रहा था कि वह गहरी नींद में सो गयी है. अखिल ने मुग्धा  को फ़ोन करके सब कुछ बताया और कहा कि क्लीनिक आकर मधु को कहीं सैर करा लाए. क़रीब दस मिनट बाद मधु जागेगी तब तक मुग्धा भी पहुँच पाएगी.
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क्रमशः

Thursday, May 16, 2019

मुग्धा: एक बहती नदी (पंद्रहवी क़िस्त)


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(अब तक आपने पढ़ा : २५ साल बाद कॉलेज के दोस्तों के गेट टुगेदर में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है ,जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगता है.. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं ,मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं ,मॉल में अकस्मात सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है ,राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है ,घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है ,दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं,उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....मुग्धा और अखिल बात करके इस नतीजे पर पहुंचते  हैं कि राजुल के माध्यम से मधु और सोनू की मदद की जा सकती है ,मुग्धा राजुल से बात करके उसके विगत कई जानकारी ले कर उसे ढाँढस बंधाती है कि हम लोग मिल के सब ठीक करेंगे,अखिल और मुग्धा केस डिस्कस करके आगे की प्लानिंग के अनुसार राजुल को अपने घर नाश्ते पर बुलाते हैं,नाश्ते के दौरान अखिल राजुल को आइना दिखाता है और उसे मधु के ट्रीटमेंट में सहयोग करने के लिए राजी कर लेता है ,मुग्धा राजुल को एक्शन प्लान समझाती है )

अब आगे
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पंद्रहवी क़िस्त
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प्लान के मुताबिक़ राजुल मुग्धा के घर से निकल कर बाज़ार से  सोनू की मन पसंद चोकलेट पेस्ट्री और मधु की पसंद के मटर समोसे ले कर घर पहुँचा,सोच  रहा था कैसे बातों बातों में निकलवा लिया मुग्धा ने कि मधु को क्या पसंद है,इतने सालों में तो मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि शादी से पहले कैसे वो फ़रमाइश करके मुझसे ऑफ़िस से लौटते हुए  मटर समोसे मंगवाती थी. क्या सच ही मुझे ख़ुद को भी देखने की ज़रूरत है ! क्या तो बोल रही थी मुग्धा “ कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी “ ... क्या सचमुच मुझे भी ज़रूरत है उसकी ?

सोचता हुआ राजुल घर में घुसा. सोनू अपने कमरे में किताबों में झुका हुआ था ,जाने पढ़ रहा था या कहीं खोया हुआ था. मधु अपने चेहरे पर फ़ेस पैक लगाए पैरों को पानी के टब में डुबोए मोबाइल पर कोई गेम खेल रही थी. घर अभी भी अस्तव्यस्त था ,हाँ रसोई के झूठे बर्तन ज़रूर महरी ने आ कर साफ़ कर थे. राजुल झुँझलाने ही लगा था कि उसे मुग्धा का कहा हुआ याद आ गया -“राजुल ,इस प्लान की पहली ज़रूरत यह है कि तुम किसी की भी कमियों का नेगेटिव रीऐक्शन नहीं दोगे. जब तक किसी बात से कुछ ख़ास अंतर न पड़ रहा हो उसे इग्नोर करोगे....और अगर उसे कहना ज़रूरी भी है तो तुरंत रीऐक्ट करने के बजाय उसे सकारात्मक तरीक़े से कन्वे करोगे,मूल मंत्र है ... *सो व्हाट !"  "क्या फ़र्क़ पड़ता है" .... इस मंत्र को याद रखना कुछ भी इरिटेट करे तो. कुछ दिन तुमको ख़ुद पर चेक रखना होगा, फिर यह तुम्हारे व्यवहार में आ जाएगा. तुम प्लीज़ इस को गम्भीरता से समझो और फ़ोलो करो."

राजुल ठहर गया. एक गहरी साँस भरी और सोचा -“क्या हुआ जो फैला पड़ा है सामान. कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता.".... और सोनू को आवाज़ लगते हुए बोला - “सोनू देखो पापा क्या लाए हैं.“

सोनू ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. उसका कुछ भी मन ही नहीं कर रहा था. राजुल की आवाज़ दूसरी बार आयी तब भी सोनू अपनी ही सोचों में गुम था. तीसरी बार राजुल की आवाज़ थोड़ी झुँझलाहट भरी थी - “सोनू ,सुनायी नहीं पड़ रहा क्या ?” अब तो सोनू बिलकुल ही इग्नोर करने पर आमादा हो गया था. सोनू शायद सोचने लगा था क्या होगा ज़्यादा से ज़्यादा मार ही तो लेंगे न,नहीं जाऊँगा मैं. विद्रोही सा हो गया था सोनू.

उधर राजुल को फिर मुग्धा की चेतावनी याद आ गयी और फिर 'सो व्हाट' का मंत्र फूँक कर वो सोनू के कमरे में आया -“ क्या कर रहा है मेरा बच्चा.... देखो पापा चोकलेट पेस्ट्री लाए हैं सोनू के लिए ,पसंद है न तुम्हें." सोनू को यक़ीन नहीं हुआ कि ये उसके पापा हैं. उसने राजुल की ओर अविश्वसनीय निगाहों से देखा. उसका मुस्कुराता चेहरा देख सोनू की आँखों में भी चमक आ गयी .राजुल ने फिर कहा -“पसंद हैं न ?“ सोनू एकदम से उठ कर राजुल से लिपट गया बोला - "हाँ पापा , मुझे भूख भी लगी है."

चलो चलो, हम सब मिल कर खाते हैं. "देखो मैं मटर के समोसे भी लाया हूँ," राजुल ने मधु को सुनाते हुए कहा. न जाने क्यूँ अभी भी उसका पुरुष अहम उसे मधु से सीधे नहीं बोलने दे रहा था. मधु ने कनखियों से राजुल को देखा, लेकिन मुँह बनाए गेम खेलती रही. राजुल ने डाइनिंग टेबल पर सारा समान रख कर सोनू से कहा, "तुम मम्मी को बोल कर आओ मैं प्लेट्स लाता हूँ."

सोनू ख़ुश ख़ुश मधु के पास गया और बोला -“ चलो न मम्मी ! भूख लगी है ,पापा कितनी अच्छी चीज़ें लाएँ हैं."

मधु सोनू का हाथ झटक कर बोली - “मुझे नहीं खाना, न जाने क्या मिला कर लाए होंगे. इनका बस चले तो सीधे ज़हर ही दे दें मुझे."

सोनू सुन कर सहम गया. किचन से प्लेट्स ले कर रहा राजुल भी तिलमिला उठा और चीख़ कर बोला -"तुम्हें क्यों दूँगा, ख़ुद ही खा लूँगा ज़हर मैं."... और टेबल पर प्लेट्स पटक कर बाहर निकल गया.
सोनू की मोटी मोटी आँखों में आँसू थे. क्या हो जाता है अचानक यह सब ? सोनू अपने कमरे में जा कर सुबक रहा था, उधर मधु बेपरवाही से गेम खेल रही थी और राजुल घर के बाहर निकल कर मुग्धा को कॉल कर रहा था -“नहीं होगा मुग्धा मुझसे ,,, यार कितना और बर्दाश्त करूँ ?" कहते हुए राजुल ने पूरी घटना सुना दी.
मुग्धा बोली - “राजुल तुमको संयम रखना होगा. मधु स्वस्थ नहीं  है इस बात को ख़याल में रखो. उसका व्यवहार एक नोर्मल व्यक्ति का व्यवहार नहीं है. तुम भी उसी की तरह रीऐक्ट करोगे तो कैसे सम्भलेगा सब,,,सोचो सोनू पर क्या बीती होगी. उसे भूख लगी थी. तुम तो समझदार हो,तुम संभाल सकते हो ना सब. जाओ वापस जाओ और मन को शांत रखो. शाम को अखिल आएँगे तुम्हारे घर. कुछ दिन में सब कुछ ठीक होने लगेगा."

राजुल उखड़ा हुआ था लेकिन उसे कोशिश तो करनी ही थी. उसने तीन चार गहरी साँसे ली तब उसे कुछ अच्छा महसूस हुआ. वापस घर में गया और सोनू के कमरे में जा कर उसको उठा के बोला-“आइ एम सारी सोनू. माफ़ कर दे राजा बेटा...ग़ुस्सा आ गया था, चल खाते हैं अपन."
सोनू सुबकते हुए बोला -“मम्मी ! “
राजुल ने कहा -“हाँ मम्मी भी खाएँगी “
और सोनू का हाथ पकड़ कर बाहर मधु के पास आया और कहा -“मधु आइ आम सारी ! मुझे ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था. दर असल मैं मन से तुम्हारी पसंद के मटर समोसे लाया हूँ. याद है न तुम फ़रमाइश किया करती थी. चलो मुँह धो लो प्लीज़, हम सब साथ बैठ कर खाएँगे." राजुल की आँखों में वही सहज स्नेहिल भाव आ गए थे. सोचों का असर हमारी बॉडी लैंग्विज पर जो पड़ता है.

मधु राजुल की आवाज़ की कोमलता पर चकित थी.कुछ तो गड़बड़ है उसने आँखों को गोल गोल घुमाते हुए सोचा. लेकिन मटर के समोसों का लालच उसे झगड़ा करने से रोकने में सफल हो गया और वो चुपचाप उठ कर मुँह धोने चली गयी. राजुल ने सोनू की ओर मुस्कुरा के उसके साथ हाथ की ताली मारी और दोनों टेबल की ओर चल दिए .

मटर के समोसे खाते हुए मधु वाचाल हो उठी थी ,सोनू को उत्साह से अपने और राजुल के वो दिन बता रही थी जब राजुल ऑफ़िस से आते हए उसके लिए समोसे लाता था. सोनू भी मम्मी को ख़ुश देख कर ख़ुश था और अपने स्कूल की बातें बता रहा था. राजुल सोच रहा था मुग्धा ने ठीक कहा था...इतना भी मुश्किल नहीं है माहौल को ठीक रखना, बस जज़्बा हो उसका और दृढ़ निश्चय भी.

खा पी कर मधु अपने कमरे में सोने चली गयी थी. राजुल सोनू  के साथ उसके रूम में उसकी बुक्स और स्कूल का काम देखने लगा. मुग्धा ने उसे कहा था सोनू के साथ क्वालिटी टाइम बिताने को. सोनू थोड़ा घबराया हुआ था क्योंकि स्कूल का कोई भी काम उसने पूरा नहीं किया हुआ था. डर था उसे कि अभी फिर से पापा ग़ुस्सा हो के चिल्लाने लगेंगे. लेकिन राजुल कुछ नहीं बोला और उसकी सब कापीयां देखता रहा. फिर उसने बहुत ही कोमलता से सोनू से पूछा कि मन नहीं लगता क्या पढ़ने में ,सोनू ने आँखें झुका लीं. उसका नन्हा सा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. राजुल ने उसको प्यार से अपनी तरफ़ खींचा और बोला,"अच्छा पापा पढ़ाएँगे सोनू को तो पढ़ेगा ना." सोनू ने सर हिला कर हामी भरी और राजुल के सीने से लिपट गया. उसे बहुत सुखद एहसास हो रहा था राजुल के इस परिवर्तन पर और राजुल मुग्धा के दिए निर्देश बार बार याद कर रहा था अपना धैर्य बनाए रखने के लिए. अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद उसे उम्मीद हो चली थी कि ज़िंदगी पटरी पर आ सकती है.

पूर्व निश्चित समय पर अखिल राजुल के घर पहुँचा , राजुल ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया और सोनू को आवाज़ लगायी -“देखो तो सोनू कौन आया है."

सोनू अपने कमरे से बाहर आया और अखिल को देखते ही दौड़ कर उससे लिपट गया. कितना सुकून था दोनो के लिए ही.अखिल ने हाथ में पकड़ा हुआ कूकीज़ बॉक्स और कार ब्लॉक्स का गेम सोनू को दिया. सोनू की आँखें ख़ुशी से चमक उठी, "क्या मेरे लिए अंकल ?"

अखिल शरारत से मुस्कुराते हए बोला -“और कौन है यहाँ सोनू बेटे के अलावा,जिसके लिए मैं लाउँगा."

आवाज़ें सुन कर मधु भी अपने कमरे से बाहर आ गयी. अस्तव्यस्त सी मधु अभी नाइट गाउन में ही थी. बिखरे बाल,सूनी सी आँखें....सवालिया निगाहों से उसने अखिल की तरफ़ देखा. राजुल ने परिचय कराते हुए कहा -" मधु ये मेरे दोस्त हैं कल अचानक बहुत साल बाद माल में मिले तो मैंने घर आने के लिए बोला था." उसी साँस में मधु की ओर मुख़ातिब हो कर बोला, "और यह मधु है मेरी बेटर हाफ़."

सुनते ही भड़क उठी मधु-“किस किस को लाओगे मेरे मर्डर का प्लान करने ,इतने सालों में तो कोई दोस्त नहीं आया कभी ,अचानक से ये दोस्त कहाँ से पैदा हो गया."

अखिल हाथ जोड़ते हुए विनम्रत से बोला-  “आप कुछ और  समझ रही हैं मधु जी. स्वाभाविक भी है अचानक ही तो मैं सामने आ गया हूँ."

अखिल की बात पूरी भी नहीं हो पायी थी कि घायल चीते की सी गति से मधु किचन में गयी और चाक़ू उठा लायी. वहशी अन्दाज़ में लहराते हए बोली -“ख़बरदार मुझे किसी ने भी छूने की कोशिश की,काट के रख दूँगी."

उत्तेजना से मधु की साँसे उखड़  रही थी. सोनू सहम कर राजुल के पीछे छुप गया था. अखिल ने राजुल को शांत रहने का इशारा कर दिया था. धीमे धीमे क़दमों से मधु की ओर बढ़ते हए अखिल गहरी नज़रों से मधु को देखते हुए बोल रहा था -“मधु जी आप तो बहुत समझदार हैं. कितनी सचेत हैं अपनी सुरक्षा के प्रति."
कहे जा रहा था अखिल, "ख़ूबसूरती और बुद्धिमता का ऐसा कंबिनेशन तो बहुत ही रेयर होता है." मधु की सांसें उसकी बातें सुनते हुए कुछ धीमी हुई लेकिन अभी भी हिंसा और जुनून उसकी बॉडी लैंग्विज से बजाहिर था.....कब क्या कर डाले उस धारदार चाकू से जिसे हाथ में लिए वह चण्डी सी बनी हुई थी. ऐसे में प्रेज़ेन्स ओफ़ माइंड बहुत ज़रूरी होती है और अखिल इस विषय में माहिर.
तब तक अखिल ने लपक कर मधु को पकड़ लिया और उसके  हाथों से चाक़ू छीन कर एक तरफ़ उछाल दिया. मधु छटपटा रही थी उसकी गिरफ़्त से छूटने को लेकिन अखिल की मज़बूत बाहों से ना निकल सकने के कारण निढाल हो गयी थी. राजुल तब तक पानी का ग्लास ले आया था. अखिल ने मधु को शालीनता  से कुर्सी पर बिठा कर उसे पानी दिया....स्निग्ध स्वर और परवाह वाले अन्दाज़ में पूछा, "आप ठीक हैं न मधु जी"
मधु ने हाँ में सर हिलाया... ना जाने कैसी  मदहोशी थी अभी भी कि उसे अखिल की पुष्ट बाहें अपने इर्द गिर्द महसूस हो रही थीं. अखिल की आवाज़ मानों उसके कानों में शहद सी घुल रही थी, अरसे बाद पुरुष स्पर्श ने उसको झंकृत कर दिया था. अखिल ने कोमलता से उसका हाथ थामा हुआ था और दूसरे हाथ से उसके हाथ पर थपकी दे रहा था. राजुल संकोच से गड़ा जा रहा था. मधु का व्यवहार उसके लिए नया नहीं था लेकिन अखिल के सामने पहली बार ऐसा होने से वह बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा था.

अखिल ने मधु से पूछा, "आप थक गयी होंगी, थोड़ा आराम करना चाहेंगी ?"
मधु यंत्रचालित सी अखिल का सहारा ले कर बेडरूम तक चली गयी. अखिल ने एक टैब्लेट निकाल कर कहा आपको वीकनेस है यह गोली खा लीजिए अच्छा फ़ील करेंगी."

राजुल चकित था देख कर कि कैसे मधु ने बिना किसी हील हुज्जत के  वह दवा  खा ली. अखिल ज़रूर सम्मोहन विद्या में भी पारंगत है. राजुल ने सुन रखा था कि परामनोविज्ञान की तकनीकें भी मनोचिकित्सा के लिए कुछ विशेषज्ञ प्रयोग में लाते हैं.

अखिल ने मधु को सिर्फ़ रीलेक्सेंट और नींद की गोली दी थी जो उसे कुछ ही देर में नींद के आग़ोश में ले गयी. वह गहरी नींद में है यह सुनिश्चहित कर अखिल राजुल को ले कर बाहर के कमरे में आ गया. सोनू सहमा सहमा सा दोनो को देखे जा रहा था.अखिल ने उसे प्यार से पास बुलाया और कहा -“मम्मा की तबियत ठीक नहीं है. सोनू इज ए बिग बॉय. हेल्प करेगा न मम्मा को ठीक करने में और उनका ख़याल रखने में." सोनू ने तुरंत गर्दन हिला दी.

अखिल राजुल की तरफ़ मुख़ातिब हो कर बोला -“देखो राजुल इस समय मधु की कंडिशन सिवियर है. वायलेंट  हो रही है वह. इस समय बातचीत का कोई असर नहीं होगा उस पर. हमें पहले मेडिकेशन के ज़रिए उसे उस स्टेज तक लाना होगा, जहाँ वह स्थितियों को समझने लायक़ हो जाए. मेडिकेशन का असर आने में दो से तीन हफ़्ते लगते हैं. इस दवा की रिक्वायर्ड डोजेज  किसी भी तरह उसके शरीर में पहुँचनी होगी. चूँकि ऐसे डिसोर्ड़र से ग्रसित व्यक्ति सीधे सीधे दवा लेने में सहयोग नहीं करते, उनके अपने भले के लिए कुछ उपाय अपनाने होते हैं. दवा कोई ऐसे व्यक्ति के ज़रिए खाने या पीने की चीज़ों में मिलाकर दी जाती है जिस पर उसका संदेह नहीं होता और लगाव भी होता है."

अखिल कह रहा था, "जब थोड़ी अंडर्स्टैंडिंग होने लगती है दवा के असर से, उसके बाद काउन्सलिंग के ज़रिए हम पेशेंट को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि उसके साथ कुछ परेशानी है जिसके लिए उसे यह दवा हमेशा लेनी होगी.  कई बार दवा बंद भी कर दी जाती है लेकिन जेनेटिक कारणों से हुई ऐसी बीमारियों में ज़्यादातर केसेज़ में लगातार लाइफ़ टाइम दवा लेनी होती है, ताकि दैन दिन ज़िंदगी नोर्मल गुज़र सके. अभी मैं एक  इंजेक्शन लिख रहा हूँ तुम तुरंत ले आओ. मधु लगभग सोयी सी है, मैं लगा देता हूँ. उसका असर इंटेन्स होगा. साथ में दवा भी लिख दे रहा हूँ. तुम ले आओ मैं समझा दूँगा कैसे देनी है."

फिर सोनू से बहुत दुलार से बोला अखिल,  "सोनू मम्मा को दवा देने में हेल्प करेगा ना ?"
राजुल ने पूछा, "लेकिन सोनू क्यों ?"
अखिल ने कहा,-" मधु को तुम पर भरोसा नहीं है. सोनू पर उसे कोई शक नहीं होगा. दवा लिक्विड और टेबलेट्स में है. सोनू पानी में मिला कर भी दे सकता है या किसी भी खाने की चीज़ में भी. सोनू को थोड़ा सा ट्रेंड करना होगा. बस कुछ ही दिन की बात है फिर मधु ख़ुद ही हेंडल करने लगेगी. बस तुम दोनो को बहुत संयम रखना होगा और पूरा सहयोग करना होगा."

सोनू अपनी उम्र से ज़्यादा परिपक्व था. उसने डॉक्टर अखिल से मम्मा को दवा देने का तरीक़ा समझ लिया. दवा की शीशी और गोलियाँ उसने अपनी किताबों की शेल्फ़ में छुपा कर रख दी और अखिल के बताए अनुसार येन केन प्रकारेण मधु को किसी भी तरह दे ही देता था. इंजेक्शन और लगातार दावा का असर था कि मधु का व्यवहार भी संयत हो रहा था. राजुल को देख कर अब भड़कती नहीं थी मधु.  हाँ बातें बहुत बड़ी बड़ी करती थीं,जैसे दुनिया भर का ज्ञान उसी के दिमाग़ की उपज हो.

अखिल के राजुल के घर आने के चार पाँच दिन बाद मधु ने राजुल से कहा तुम्हारा वो दोस्त नहीं आया फिर.  राजुल ने कहा -“ समय नहीं मिला होगा. डॉक्टर है ना वो ..क्लीनिक में बिजी रहता होगा."

मधु बोली-“अच्छा, मैं भी सोच रही थी किसी डॉक्टर को दिखा लूँ बहुत वीकनेस लगती है आजकल. मुझे पता देना उनके क्लीनिक का मैं मिल आऊँगी."

राजुल ने अखिल से पूछा तो अखिल ने मधु से मिलने के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया और साथ ही यह भी कहा कि उसे अकेले ही आने देना चूँकि वह अकेले ही आना  चाहती है.

राजुल से अखिल का ऐड्रेस मिलने के बाद मधु अलग ही कल्पनालोक में विचरण करने लगी थी. उसे ना जाने क्यों नाज़ था अपनी सुंदरता पर. सोचती थी किसी को भी अपना दीवाना बना लेना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल है. उस दिन अखिल के सानिद्य ने उसकी सुसुप्त वांछाओं को जगा दिया था. मानव एक ऐसा पुतला है जहाँ बायोलोजी और सायकॉलोजी बाज़ वक़्त दोनों ही अपना खेल करने लगती है. मधु कपोल कल्पनाओं में अखिल के साथ शारीरिक नज़दीकियों को जी कर ख़ुद को खिली खिली सी महसूस कर रही थी. राजुल के अजीब से व्यवहार और अप्रोच के चलते उसका छूना उसे बर्दाश्त नहीं था. पुरुष संसर्ग के लिए उसमें अजीब सी अरुचि पैदा हो गयी थी. लेकिन अनायास ही वह अखिल की कल्पनाओं में बिलकुल ही डूब सी गयी थी और उसे एनज़ोय कर रही थी. मानव मन की इस सहज मनस्थिति के लिए जजमेंटल नहीं होकर इसे एक सहज मनोवैज्ञानिक स्थिति समझना विवेक सम्मत होगा.....विवेक द्वारा स्वसंतुलन का वरदान भी अस्तित्व से मानव को मिला है, बस आवश्यकता है होशमंद और स्पष्ट होने की. हाँ तो मधु का अंतरंग और बहिरंग दोनों ख़ुशी से दमक रहा था.

अखिल से मिलने को अवचेतन में रखते हुए मधु सुबह से सँवार रही थी ख़ुद को. उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना जो उसके गोरे रंग पर गुलाबी आभा दे रहा था. क़रीने से किया हुआ हल्का सा मेकअप, खूबसूरत मोतियों की हल्की फुल्की लेकिन अभिजात्य ज्वेलरी और राजुल का लाया विदेशी मादक पर्फ़्यूम ग़ज़ब ढा रहे थे. आज की मधु और एक हफ़्ते पहले की मधु में ज़मीन आसमान का अंतर था. राजुल चुपचाप उसकी सब तैयारियाँ देख रहा था. अनायास आ रहे जलन और असुरक्षा के भावों से लड़ते हुए यह भी सोच रहा था कि कितने अच्छे से कैरी करती है मधु ख़ुद को. राजुल को विश्वास सा हो रहा था कि अखिल और मुग्धा उसे नकारात्मक सोचों से अवश्य बाहर निकालेंगे....उसका वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन सकारात्मकता और रचनात्मकता की राह पर चला आएगा . फिर वापस यह विचार भी आ रहे थे, सब किताबी बातें है ... इतना सब जो बिगड़ चुका है, ठीक थोड़ा ही होगा. मधु जो परानोईड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर की ऐब्नोर्मैलिटी से ग्रसित है क्या सामान्य हो पाएगी. अचानक उसने सिर झटका और मुग्धा और अखिल मानो उसके सामने आ गए. मुग्धा को तो ख़ैर वह बचपन से ही जानता था और दिल की गहराई में वह उसकी सद्भावना और करुणा को समझ पा रहा था लेकिन अखिल के स्पंदन उसमें आशा और विश्वास का संचार कर रहे थे. उसे लग रहा था कि परमात्मा ने इस जोड़े को उसके भले के लिए ही उस से मिलवाया है.
मुग्धा-अखिल के प्रति एक गहरे आदर और विश्वास के भाव उसकी सारी नकारात्मकता को दूर भगा ले जा रहे थे. एक नज़र उसने मधु पर डाली, उसने अपने अंतर में कुछ कोमल कोमल सा अनुभव किया. सोच रहा था राजुल, काश सब कुछ ठीक हो जाए.......
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क्रमशः

Friday, May 10, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (चौदहवीं क़िस्त )


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(अब तक आपने पढ़ा : २५ साल बाद कॉलेज के दोस्तों के गेट टुगेदर में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है ,जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगता है.. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं ,मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं ,मॉल में अकस्मात सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है ,राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है ,घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है ,दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं,उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....मुग्धा और अखिल बात करके इस नतीजे पर पहुंचते  हैं कि राजुल के माध्यम से मधु और सोनू की मदद की जा सकती है ,मुग्धा राजुल से बात करके उसके विगत कई जानकारी ले कर उसे ढाँढस बंधाती है कि हम लोग मिल के सब ठीक करेंगे,अखिल और मुग्धा केस डिस्कस करके आगे की प्लानिंग के अनुसार राजुल को अपने घर नाश्ते पर बुलाते हैं )

अब आगे :
★★★★★★★

नाश्ते की टेबल पर बैठते हुए अखिल ने राजुल से पूछा-" राजुल, मुग्धा ने तुमसे हुई बातें मुझसे शेयर की. दोस्त होने के नाते हम बहुत कन्सर्ंड हैं तुम लोगों के लिए....खासकर मैं तुम्हारा ध्यान सोनू की तरफ दिलाना चाहूंगा. उसका बहुत ख़याल करना होगा .सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम इन सब परेशानियों से बाहर आ कर खुशनुमा ज़िन्दगी जीने के इच्छुक हो न ?"

राजुल बोला-"कौन नहीं चाहता एक खुशहाल ज़िन्दगी,अखिल साहब ...लेकिन हर किसी की किस्मत तो आप जैसी नहीं होती ना ?"

अखिल मुस्कुरा दिया -" किस्मत की लकीरें तो हाथों में ही होती हैं न.हमारे ऊपर है कि हम उन्हें बिगाड़ें या ठीक करें. बहुत सी बातें हम बदल नहीं सकते लेकिन उनको देखने का नज़रिया तो अवश्य बदल सकते हैं. परेशान होने के बजाय स्वीकार्यता को बढ़ा कर शांति महसूस कर सकते हैं. हम ज़िन्दगी को किस तरह लेते हैं बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है ..."

"ये सब किताबी बातें मैंने भी बहुत पढ़ी हैं ...लेकिन इनसे कुछ भी होना जाना नहीं." बोला था राजुल.

अखिल हार न मानता हुआ बोला -" हम कोशिश तो करके देख सकते हैं ...तुम्हारे सहयोग के बिना कुछ भी संभव नहीं. तुम और किसी का न भी सोचो लेकिन सोनू तो तुम्हारा अंश है, और मैंने महसूस किया है तुम्हारा प्यार उसके लिए ...उसका भविष्य,उसका स्वास्थ्य,उसका विकास सब कुछ प्रभावित होगा .... आइ एम स्योर, तुम भी चाहोगे कि सब अच्छा ही हो."

राजुल ने कहा -" बिल्कुल ! उसके अलावा मेरा है ही कौन. उसी के लिए तो कमा रहा हूँ ..जी रहा हूँ."

अखिल ने कहा -"तो बस फिर,हम एक कोशिश करेंगे हालात को ठीक करने की ..और तुम उसमें पूरा सहयोग करोगे. जो भी पूछूं उसका बिलकुल सही जवाब दोगे, बिना कुछ भी छुपाये ,बिना यह सोचे कि मैं क्या सोचूंगा तभी तुम और हम तुम्हारे लिए  एक ख़ुशहाल ज़िंदगी का रास्ता तलाश सकेंगे."

न जाने अखिल की गंभीर किन्तु मृदु आवाज़ में कैसा सम्मोहन था कि राजुल बिना बोले बस सहमति में गर्दन ही हिला सका.

अखिल बोला- "और बताओ कैसा चल रहा है सब?"

राजुल ने कहा -"ठीक ही है ."

अखिल ने पूछा -"परिवार में कौन कौन है?"

राजुल बोला -"बस मैं ,मधु और सोनू."

"और तुम्हारे पेरेंट्स या भाई बहन ?" सवाल किया अखिल ने .

राजुल ने कहा -" सब अपने अपने में मस्त और व्यस्त हैं."

अखिल आगे पूछ रहा था -" कहाँ रहते हैं वे लोग, कब मिले थे तुम लास्ट उन से ?"

राजुल ने कहा, "मम्मी पापा तो यहीं लखनऊ में हैं. बहन मुम्बई है .मम्मी पापा से तो मिल लेता हूँ कोई चार छह महीने के अंतराल पर मगर बहन के परिवार वाले मुझे पसंद नहीं करते. बहन ने मेरी काफी इंसल्ट की थी, जब कोई पाँच साल पहले एक बार उसके घर गया था, तब से हम लोगों की बातचीत तक बन्द है."

अखिल ने पूछा " मम्मी पापा लखनऊ में ही रहते हैं तो तुम लोगों के साथ क्यों नहीं रहते ?"

राजुल ने बताया-"दर असल मधु के व्यवहार के कारण. उसका व्यवहार उन लोगों के प्रति ठीक नहीं था और मम्मी भी हर बात का दोष मुझी को देती रहती थी. रोज़ की किच किच....तब पापा ने अलग घर ले लिया...जब भी उन्हें कोई ज़रूरत होती है तो मैं ही उनके पास चला जाता हूँ."

"हम्म !"- हुँकार भरी थी अखिल ने -" मधु से तो तुम्हारी लव मैरिज थी न ?"

राजुल एक विद्रूप सी हँसी के साथ बोला-" 'लव' का तो पता ही नहीं क्या होता है कैसा होता है ...हाँ अच्छी लगती थी और उसी को लव समझ के शादी कर ली..नहीं सोचा था कि ज़िन्दगी जहन्नुम हो जाएगी."

अखिल ने कहा-"खुल के बताओगे अपने और मधु के रिश्ते के बारे में ?"

राजुल बोला -"शादी के बाद शुरू शुरू के दिन बहुत अच्छे थे,मधु बहुत सुंदर....मेरा बहुत खयाल भी रखती....वो खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी...उसने ड्रेस डिजाइनिंग का डिप्लोमा किया हुआ है सो खुद के लिए ड्रेसेज़ भी वही डिज़ाइन करती थी बहुत ही स्मार्ट और सुंदर थी मधु, सब मुझसे जलते थे इतनी शानदार बीवी मिलने पर."

अखिल चुपचाप सुन रहा था,बोला-"फिर?"

"मधु ने एक बुटीक जॉइन कर लिया था. मेरा जॉब लेकिन छूट गया था, ऐसे में मधु ही उस समय घर संभालती थी. फिर मनु याने हमारे पहले बेटे का जन्म हुआ. मैंने भी पापा से पैसे ले कर अपना बिज़नेस शुरू किया था.कई बुटीक से माल उठा कर दिल्ली और मुम्बई सप्लाई करता था. मधु की डिज़ाइन की हुई ड्रेसेस बहुत पसंद की जाती थी.धीरे धीरे हमने अपना ही बुटीक खोल लिया था. लेकिन मधु का व्यवहार कभी कभी बहुत अजीब होता था. मुझे लेडी कस्टमर से बात करता देखती तो वहीं लड़ना शुरू कर देती. घर में भी मम्मी और मधु में छोटी छोटी बातों पर झगड़े होते थे. मुझसे तो पता नहीं क्या बैर पाल लिया था उसने ......कुछ भी बात करो उसमें उसे यही लगता था कि मैं उसके खिलाफ कोई साजिश कर रहा हूँ"

"मैं भी आख़िर कब तक सहता ,चिल्ला पड़ता था ..एक दो बार हाथ भी उठ गया मेरा. मधु कहती थी कि अपने मम्मी पापा के साथ मिल कर मुझे मारने की साजिशें रच रहे हो. दिमाग घूम जाता था मेरा तो. मैंने डिवोर्स के  लिए भी अप्लाई करने का सोचा था. जिस वकील से बात की उसने मधु की कंडीशन समझ कर सुझाव दिया कि मधु को किसी मनोचिकित्सक को दिखा लें..हो सकता है डॉक्टर की रिपोर्ट से डिवोर्स केस मजबूत हो जाये ..डॉक्टर को दिखाने गए तो डॉक्टर ने कुछ साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर बताया और ये भी कि मधु दुबारा प्रेग्नेंट है. साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए उन्होंने कहा प्यार और अपनत्व से हेंडल करने से ठीक हो जाएगा ,थोड़ा सब्र रखिये आप लोग......लेकिन मधु जैसी बातें करती थी उसमें सब्र की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी."

"इन्ही सब झगड़ों के बीच सोनू का जन्म हुआ और फिर मनु की बीमारी का भी पता चला. उसकी सर्जरी के समय ही वो कॉलेप्स कर गया था. उस घटना ने मधु को बहुत शॉक पहुंचाया. एक दम से गुम हो गयी थी खुद में वह. सोनू का भी ख़याल नहीं था उसे. कैसे कैसे करके मैंने सोनू को संभाला यह मैं ही जानता हूँ ....बस उसके बाद से तो हमारी ज़िंदगी जैसे शोलो पे चल रही है. एक पल का भी सुकून नहीं घर में. इंसान शादी क्या इसी तरह जीने के लिए करता है ?"

अखिल संवेदनशीलता के साथ राजुल को समझाता हुआ बोला-" मैं समझ सकता हूँ  राजुल, लेकिन शादी में सब कुछ पका पकाया नहीं मिलता. पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हो कर एक परिवार की रचना करते हैं. किसी एक के साथ कुछ परेशानी हो तो दूसरा उसको सपोर्ट करता है. दुख सुख के साथी होते हैं दोनों एक दूजे के ....हर परिस्थिति में एक दूसरे की भावनाओं का खयाल रखते हुए जीवन बिताने से ही जीवन खुशगवार होता है ...कमियों को पॉइंट आउट करने से दुख और क्लेश ही बढ़ता है"

बोल रहा था अखिल, "तुम्हें एक उदाहरण से समझाता हूँ कि प्यार कैसे कठिन से कठिन परिस्थियों को भी सरल कर देता है. एक दंपति आपस में बेहद प्यार करते थे किंतु वक़्त का खेल पत्नी को चर्मरोग हो गया और वह इस चिंता में घुलने लगी की अब वह कुरूप हो रही है और उसका पति उसे छोड़ देगा.होनी को कुछ और ही मंज़ूर था पति के साथ सड़क दुर्घटना हुई और उसकी आँखों की रोशनी जाती रही....लेकिन इन प्यार करने वाले दोनो ने एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा. पत्नी उसकी आँखें बन गयी, अचानक एक दिन पत्नी की सीढीयों से गिर कर मृत्यु हो गयी. दुखी मन पति जब चिता को आग दे कर घर जा रहा था तो दोस्तों पड़ोसियों ने कहा अब कौन रखेगा तुम्हारा ध्यान बिना आँखों के कैसे मेनेज करोगे.....तो पति ने अपना काला चश्मा उतारते हुए बताया की उसकी आँखें कभी ख़राब नहीं हुई थी ,बस अपनी पत्नी को असुरक्षा की भावना से बचाने के लिए उसने यह नाटक किया था....कहा था उसने "वरना उसका मन बहुत पहले ही टूट जाता और वो मेरे प्यार को बस दया समझ लेती....जो हमारे आंतरिक प्रेम के सारे समीकरण तक बदल देता.....कैसे जी पाते हम लोग."

जारी था अखिल का बोलना, "इस कहानी को सुनाने का मक़सद यह है राजुल कि भावनाओं को सम्मान देते हुए एक कंजेनियल माहौल में जिया जा सकता है ,मधु ने तुम्हारा साथ तुम्हारे कठिन समय में जो दिया उसके बारे में ख़ुद तुमने ही मुझे बताया है, किंतु तुम उसकी कमियों को ज़्यादा तवज्जो दे रहे हो. तुमने अपने बारे में जो कुछ भी बताया उससे यह समझ आता है कि तुम्हारे किसी के साथ भी बहुत अच्छे सम्बंध कभी नहीं रहे ,क्यूँ ? सोचा है क्या कभी इस पर कि हर किसी को तुमसे ही क्यूँ शिकायत होती है ? बाक़ी लोगों का तो मुझे दूसरा पक्ष नहीं मालूम लेकिन मुग्धा ने अपने और तुम्हारे बारे में मुझे सब कुछ बताया है,कितना अच्छा साथ था न बचपन में तुम्हारा....लेकिन कुछ तो अनपेक्षित परिस्थितियाँ रही और उस से अधिक तुमने मुग्धा के प्रति कुछ धारणाएँ बना ली. एक तंग सोच से देखते हो तुम किसी भी घटना को,  तुम्हारे ख़ुद के पूर्वाग्रह हर किसी के पहलू को देखने समझने नहीं देते."

कहते कहते अखिल ने देखा कि राजुल के चेहरे पर कई रंग आ जा रहे हैं. उसे अपनी आलोचना सुनना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था.

राजुल कुछ कहने के लिए मुँह खोलता उससे पहले ही अखिल बोल पड़ा -“जानता हूँ राजुल अच्छा नहीं लग रहा तुम्हें, कष्ट भी हो रहा है......लेकिन किसी भी सर्जरी में दर्द तो होता है लेकिन वो किसी बीमारी को ठीक करने के लिए ही होता है जो लम्बे समय से कष्ट दे रही होती है. अगर उसका ट्रीटमेंट नहीं करोगे तो आगे भी कष्ट देगी. तुम कष्ट पाते रहे और अपनी बीमारी के निदान और इलाज से भागते रहे. भागने से कुछ समय की शांति मिल जाती है लेकिन स्थायी उपचार नहीं होता. तुमने मुझ पर भरोसा किया है न स्थायी उपचार के लिए.....मैं एक डाक्टर से अधिक दोस्त के नाते सलाह दूँगा कि ख़ुद को आइने में देखने की हिम्मत करो."

राजुल ये सुन के थोड़ा शांत हो गया,बोला - "मुग्धा मेरे बचपन की बहुत गहरी दोस्त रही है अखिल साहब. कुछ भी होता रहा हमारे बीच लेकिन उसके लिए एक अलग सा लगाव है मुझे ,न जाने क्या विशेषता है उसके व्यक्तित्व की जो मैं महसूस करते हुए भी नकारना चाहता रहा .... और अब ज़िंदगी के इस मोड़ पर उससे मिलना सुखकर लग रहा है ... किंतु आपकी इन बातों से मुझे लगा कि मैं मुग्धा की नज़रों में गिर जाऊँगा."

अखिल कोमलता से राजुल के हाथ पर हाथ रख कर बोला - " यही ! बस यही तो कुंठा है ... मुग्धा ये सब जानती समझती है तुम्हारे बारे में और यह भी कि तुम चाहो तो इन सब से मुक्ति पा सकते हो. तुम्हारे भीतर के केयरिंग इंसान को जानती है वह ,उसने सब ख़ुद बताया है मुझे ,बस तुमने उस कोमल इंसान के ऊपर बहुत से आवरण डाल लिए हैं....घिर गए हो अपनी ही सोचों के जाल में.....धुँध सी छा गयी है ... उसे हटाना है तुमको और हम उसमें तुम्हारी मदद करेंगे. मधु का इलाज आसान हो जाएगा जब तुम उसे प्यार और सपोर्ट दोगे. .... बोलो हो

ना तैयार ?"

राजुल ने मुग्धा की तरफ़ देखा जो पूरी सदाशयता से मुस्कुरा रही थी.....आँखों में अपनत्व था. राजुल ने कुछ कुछ संशय की मुद्रा में सर हिला कर हामी भर दी. उसे यक़ीन नहीं था कि ऐसा कुछ बेहतर भी हो सकता है लेकिन कोशिश करने में क्या जाता है ,इससे बुरा भी तो कुछ नहीं होगा.

अखिल बोला - "अब मेरे क्लीनिक का टाइम हो रहा है राजुल. मैंने और मुग्धा ने सब कुछ डिस्कस कर लिया है. वह तुम्हें समझा देगी कि हमें कैसे आगे बढ़ना है. बस तुमको अपने ग़ुस्से और इरिटेशन पर क़ाबू रखना होगा. कुछ  'बिहेवियर थेरेपीज' हैं जिनका प्रयोग हम तुम और मधु दोनो पर करेंगे. मधु के लिए हो सकता है कुछ मेडिकेशन भी देना पड़े, जो मैं उससे मिलने और बात करने के बाद ही बता पाउँगा. अभी तुम मुग्धा से सारा प्लान समझो, मैं निकलता हूँ." ...और अखिल नैप्किन से मुँह पोंछता हुआ वाशबेसिन की तरफ़ बढ़ गया था.

मुग्धा मुस्कुरा के बोली - “चाय ख़त्म करो राजुल,फिर मैं तुम्हें अपने प्लान की डिटेल्ज़ समझाती हूँ."

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क्रमशः

Saturday, May 4, 2019

मुग्धा : एक बहती नदी (तेरहवीं क़िस्त)


★★★★★★★★

मुग्धा ने अखिल को राजुल से हुआ वार्तालाप यथावत विस्तार के साथ बताया. अखिल गंभीरता से हर बिंदु को ध्यान से सुन रहा था .सब कुछ सुन कर उसने एक गहरी साँस ली और बोला-"ओह तो यह सिचुएशन है. मधु का यह मेन्टल डिसऑर्डर और राजुल का कुंठित व्यक्तित्व ! कोढ़ में खाज जैसा है....मिसाल है न करेला और नीम चढ़ा "...कहते हुए मुस्कुरा पड़ा ..."लगता है हमें  दोनों एन्ड पर काम करना होगा मैडम जी."
अखिल ने बात आगे बढ़ायी, "हमें पहले तो राजुल को मधु की जेन्युइन प्रॉब्लम के लिए विश्वास दिलाना होगा और उसको तैयार करना होगा कोआपरेट करने के लिए. उसके बाद हम मधु के ट्रीटमेंट और काउंसलिंग पर ठीक से काम शुरू कर सकेंगे."

"लेकिन मेरे जाने मधु को तुम्हारे द्वारा हैंडल किया जाना ही उचित होगा अखिल, क्योंकि उसका शक्की दिमाग मेरे और राजुल के साथ होने पर एग्रिवेट हो सकता है." -मुग्धा कह रही थी.

"हाँ ,रानी साहिबा!" अखिल निहाल हो कर बोला, "यार तुम तो मुझसे भी बड़ी psycologist हो गयी हो."

"वैसे इस पैरानॉयड डिसऑर्डर पर कुछ और रोशनी डाल कर रिफ्रेश करेंगे, मियाँ अखिल !" जिज्ञासु हो कर पूछ रही थी मुग्धा.

अखिल का 'ज्ञान दान ' शुरू हो गया था - "यह एक क्रोनिक डिजीज है जो कि सोचने, विचारने की क्षमता के साथ-साथ व्यक्ति विशेष की कार्यक्षमता को भी व्यापक रुप से प्रभावित करती है.  इसके लक्षण कुछ हद तक सिजोफ्रेनिया  जैसे लगते हैं लेकिन यह सिजोफ्रेनिया से अलग होता है. कुछ रिसर्च में पाया गया है कि इन दोनों डिसऑर्डर्स में जेनेटिक आधार पर समानता पाई गई है. पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर में डिप्रेशन, नशीले पदार्थों के सेवन का आदी होना है और भीड़ से डर लगना आदि ....परेशानी होने का खतरा अधिक होता है. पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर में व्यक्ति अक्सर अपने आस-पास के लोगों पर बेवजह शक करने लगता है. उसे लगता है कि हर एक व्यक्ति उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है. ऐसे वे वह अंदर ही अंदर अकेलेपन और घुटन का शिकार होता चला जाता है तथा डिप्रेशन और तनाव में आ जाता है.  मधु इससे ग्रसित है या नहीं यह तो मैं उसका क्लीनिकल इग्ज़ैमिनेशनऔर एनालिसिस करके ही डायग्नोज कर सकता हूँ, लेकिन जितना कुछ राजुल से पता चला है उसके आधार पर लक्षण तो यही लग रहे हैं."

मुग्धा ने हुँकार भरते हुए कहा -"तो हमें राजुल को कॉन्फिडेंस में लेना होगा पहले."

अखिल खिसियानी सी आजिज़ी के स्वर में बोला -"हाँ ! सर भारी हो रहा है मेरा तो,यारां, तुम्हारे हाथ की गरमा गरम चाय पीने की तलब होने लगी है."

"तुम और तुम्हारी तलब !  कब कब नहीं जगती यह निगौड़ी." मुग्धा मुस्कुराते हुए चाय बनाने चल दी और अखिल मन ही मन राजुल मधु और सोनू के लिए एक्शन प्लान की रूप रेखा पर सोचने लगा.

***************

राजुल घर पहुंचा तो वहाँ सन्नाटा सा छाया हुआ था. सोनू उन्ही कपड़ों में रोता रोता सो गया था. उसके चेहरे पर आया दुख उसकी मासूमियत से मिल कर राजुल के मन को द्रवित कर गया. उसने गोद में उठा कर सोनू को उसके बिस्तर पर ठीक से लिटा कर चद्दर ओढ़ा दी और दबे पाँव कमरे से निकल आया. किचन में झांका तो देखा,सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा था. सिंक में गंदे बर्तनों का अंबार और गैस के ऊपर उबल कर गिरी हुई चाय पत्ती, एक भगोने में अधखायी मैगी पड़ी हुई थी ..राजुल को कोफ़्त हो आयी ...उसे भूख भी महसूस होने लगी थी. एक बार तो सोचा कि मधु को बोले, फिर कुछ सोच कर उसने चुपचाप फ्रिज से ब्रेड निकाल कर सेक ली और दूध के साथ खा लिया. मुग्धा की बातें उसके कानों में गूंज रही थी. इस समय वह किसी भी तमाशे की शुरुआत करने के मूड में नहीं था.

बैडरूम में सोई मधु के खूबसूरत चेहरे पर अभी भी तनाव था. राजुल उसे देखता हुआ विगत में पहुंच गया था. मधु की खूबसूरती उसके दोस्तों के बीच एक रश्क़ का सबब थी. गर्व किया करता था राजुल ऐसी खूबसूरत बीवी पा कर. ज़रा भी बर्दाश्त नहीं होता था उसे, अगर वह हँस कर उसके किसी भी दोस्त से बात कर ले. मधु के चक्कर में ही उसका लगभग अपने हरेक दोस्त से झगड़ा हो जाता था. मधु कभी भी तो उसे समझ नहीं पाई,स्ट्रगलिंग टाइम में भी कभी उसका सहारा नहीं बनी. बस हर समय लड़ना झगड़ना, ताने देना. आखिर घर किसलिए और किसके लिए आये वह. सुकून के दो पल भी तो नहीं मिलते. अचानक उसे मुग्धा की बात याद आ गयी. कहीं सच में तो मधु को मानसिक बीमारी नहीं ?.....और उसने गूगल कर के पैरानॉयड डिसऑर्डर सर्च किया ...उफ्फ ये तो सभी लक्षण मधु में हैं . यह मनोविकार अनुवांशिक भी हो सकता है... राजुल को ख़याल आया कि मधु की बुआ का व्यवहार भी कुछ ऐसा ही हुआ करता था. लड़ झगड़ कर पति का घर छोड़ आती थी बुआ और भाई के घर में ही रहने लगी थी. शादी से पहले मधु उनकी बहुत बातें बताया करती थी. राजुल ने दोनों हाथों से सर थाम लिया. हे भगवान ये सब मेरे ही साथ क्यों ? बचपन से अब तक मुझे ही बिना दोष के सज़ा क्यों मिलती रही है ...मैं तो सब को समझता हूँ मगर दुनिया में कोई भी मुझे क्यों नहीं समझ पाया आज तक.....माँ-बाप,दोस्त,बहन, टीचर्स, सहकर्मी, पड़ोसी और यहां तक कि मेरे क्लाइंट्स भी ..मैं ही तो सब के हिसाब से खुद को एडजस्ट करता रहता हूँ, लेकिन कोई मेरे बारे में सोचता तक नहीं ,कोई भी मेरी बात नहीं मानता...कितना कुछ सहा है मैंने और आज भी सहे जा रहा हूँ.....इन सबके कारण ही मैं ज़िंदगी का वो मुकाम हासिल नहीं कर पाया जो मेरा होना चाहिए था....चाहे परिवार हो या कैरियर..आज मधु की जगह मुग्धा मेरे साथ होती तो हम कितना खुश रहते...आखिर क्या है उस पागलों के डॉक्टर में जो मैं उसे नहीं दे सकता था ...बड़ी बड़ी बातें करता है बस वह 'जानवरों का डाक्टर'...,अरे मैंने उसे बचपन से इतना चाहा है कि कोई क्या चाहेगा ..पर उसे भी एहसास कहाँ था इस बात का ...घमंडी लड़की.  शायद अब रियलायीज हो रहा सब कुछ उसे तभी तो बढ़ बढ़ कर बात कर रही है मुझ से.

मन ही मन राजुल अपने एहसासे कमतरी को काल्पनिक बहानों के कवर चढ़ा रहा था. उसने कभी भी खुद को 'जस का तस' देखने की कोशिश ही नहीं कि थी और औरों को भी अपने रंगीन चश्मों से ही देखता था...उसकी इसी प्रवृति ने उसके मानस में कई ग्रंथियों का निर्माण कर दिया था जो उसको चैन से नहीं जीने दे रही थीं...कुंठाएं उस के व्यवहार पर हावी हो कर अपना अक्स अक्सर दिखा ही जाती थी ...एक कन्फ्यूज्ड सा व्यक्तित्व था राजुल का.

राजुल बेचैनी से सुबह होने के इंतज़ार में था, उसे मुग्धा और अखिल से मिलना जो था.

सुबह राजुल मुग्धा को कॉल करता, उससे पहले ही अखिल का कॉल आ गया. अखिल ने राजुल से कहा कि वो 10 बजे तक उसके घर आ जाये. अखिल का क्लीनिक टाइम 11 बजे से था ,वह उससे पहले ही राजुल से मिल कर सब बातें तसल्ली से कर लेना चाहता था.

राजुल जल्दी जल्दी तैयार हो कर निकलने लगा तो मधु ने पूछा, "कहाँ जा रहे हो सुबह सुबह." मधु की आवाज़ में रात की घटना के असर की कोई झलक तक नहीं थी.राजुल ने चिढ़ कर जवाब दिया, "तुमसे मतलब ..कहीं भी जाऊँ ..."

मधु खिसिया गयी और हाथ का बर्तन फेंक मारा राजुल पर. तब तक राजुल घर से बाहर निकल चुका था.पीछे से मधु के बड़बड़ाने की आवाज़ें आ रही थी .राजुल सर झटक कर कैब बुक करने लगा था.

मुग्धा के घर राजुल 10 बजे से पहले ही पहुंच गया था. अखिल अभी वाशरूम में ही था और क्लिनिक के लिए तैयार हो रहा था. मुग्धा ने राजुल को ड्राइंगरूम में बिठाया और मेड से चाय नाश्ता लाने को बोल दिया. मुग्धा की सहजता के सामने राजुल ख़ुद को बहुत अशांत और असहज अनुभव कर रहा था. उसके दिमाग में कॉलेज के दिन चलचित्र की भांति घूम रहे थे. काश ! मुग्धा उसे मिल गयी होती.

मुग्धा पूछ रही थी - " कैसा है सोनू ?"
"कहाँ खोये हो राजुल ,मैं पूछ रही हूँ सोनू कैसा है " दुबारा पूछा था मुग्धा ने तो राजुल सोचों से बाहर आया, बोला -"हाँ सोनू ठीक है, सो रहा था अभी."

तभी अखिल तैयार हो कर ड्राइंग रूम में आ गया और बड़ी गर्मजोशी से राजुल से हाथ मिलाते हुए बोला-" स्वागतम राजुल भाई ! भई आपसे तो पहली ही मुलाकात में कुछ गहरा रिश्ता जुड़ गया है .प्लीज़ बी कम्फ़र्टेबल ! मुग्धा यार नाश्ता लगवाओ ...."

मुग्धा कुछ बोलती उससे पहले ही ट्राली में सजा हुआ नाश्ता ले कर मेड हाज़िर हो गयी थी.

पोहा,सैंडविच छौंकी हुई बटन इडली और सूजी का बादाम वाला हलवा ..अखिल लंबी साँस खींच के नाश्ते की खुशबू लेता हुआ बोला, "आज तो राजुल के बहाने हमको भी अच्छा खाने को मिल जाएगा." फिर मुग्धा की तरफ एक शरारती मुस्कुराहट फेंक कर बोला -" क्यों ना बेगम !" और ठठा कर हँस पड़ा.राजुल की तरफ देख कर उसने कहा, "चलो नाश्ता करते हैं और साथ साथ बातें भी होती रहेंगी."

राजुल कुछ संकोच और कुछ अखिल के खुलेपन पर चकित सा डाइनिंग टेबल की ओर उन दोनों के साथ बढ़ गया था.
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क्रमश:

Thursday, May 2, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (बारहवीं क़िस्त)


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(अब तक आपने पढ़ा : पच्चीस साल बाद कॉलेज के दोस्तों के 'गेट टुगेदर' में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है, जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण करने का कीड़ा कुलबुलाने लगता है. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं. मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं. मॉल में अकस्मात लगभग आठ वर्षीय सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है. राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है. घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है. दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं. उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....)
अब आगे-
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बारहवीं क़िस्त
★★★★★★★★★

अखिल और मुग्धा टहलते हुए सोनू और राजुल की ही बातें कर रहे थे. मुग्धा महसूस कर रही थी कि अखिल को कहीं ना कहीं संतान की कमी खलती है. आज सोनू को देख कर उनकी आंखों में जो एहसास दिख रहा था वह मुग्धा को अंदर तक बेचैन किए जा रहा था. उसे भी बच्चे अच्छे लगते हैं लेकिन यह अपने हाथ में तो नहीं . शादी को कितने बरस हो गए किंतु वे संतान सुख से वंचित हैं और दूसरी ओर राजुल और मधु जैसे पेरेंट्स हैं जो अपनी आपसी लड़ाई में में प्रभु के उपहार मासूम बच्चों को पीस रहे हैं....आख़िर क्या गुनाह है इन नौनिहालों का ?

अखिल कह रहे थे: "सोनू की समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए राजुल और मधु के संबंधों को गहराई से समझना होगा. राजुल की बातों से ऐसा लग रहा था मुझे कि मधु कुछ एंग्जायटी या डिप्रेशन से ग्रसित है जिसे राजुल का कुंठित स्वभाव और खाद पानी देता है. तुम चाहो तो राजुल से दोस्ती को ज़रा रेफ़्रेश कर लो, उसी राह से हम मधु के लिए कुछ कर पाएँगे."

मुग्धा अपनी सोचों की तंद्रा से बाहर आते हुए बोली -"ठीक है ! मैं कोशिश करती हूं हालांकि उस चिड़चिडे इंसान को झेलना मेरे बस की बात नहीं. मुझे तो बचपन से ही उसके साथ कम्फ़र्ट लेवल नहीं रहा."

अखिल हँस पड़े -"जितनी बड़ी दुनिया है उतनी तरह के लोग हैं और फिर तुम भी तो राजुल की मदद करना चाहती थी. हो सकता है अस्तित्व ने इस के लिए हमें यह अनायास अवसर दिया है."


उधर घर से गुस्से से भरा हुआ निकला राजुल अपने ही ख़यालों में गाफ़िल  न जाने कितनी देर तक चलता रहा. अचानक ठंडी हवा ने उसके पसीने से भीगे बदन को छुआ तो ठिठक कर रुक गया. चलते चलते गोमती के किनारे आ पहुंचा था राजुल. नदी की तरफ से बह कर आती ठंडी हवा ने तन को ही नहीं मन को भी शीतलता पहुंचाई और वो वहीं किनारे बने एक पार्क की बेंच पर बैठ गया. मधु की बातों ने उसे बहुत अपसेट कर दिया था. ना जाने क्यों अखिल और मुग्धा के बारे में सोचते हुए उसे ईर्ष्या होने लगी थी. तभी उसके मोबाइल पर मुग्धा की कॉल आने लगी. एक अजब सी खुशी जैसे राजुल की रग रग में दौड़ गयी. उत्साह से उसने कॉल रिसीव की -"हाय मुग्धा ! कैसे याद किया ?"

मुग्धा ने पूछा-"कहाँ हो तुम ? मीटिंग ओवर हो गयी ?"

राजुल अचानक चौंक पड़ा-" अरे मैं तो भूल ही गया कि मुझे किसी से मिलना था. दरअसल घर पहुंचते ही मधु ने तमाशा खड़ा कर दिया और में गुस्से में घर से निकल आया. अब तो 7 बज रहा है ,मुझे दो मिनट दो मुग्धा, मैं ज़रा कॉल करके बता दूं क्लाइंट को, फिर तुम्हें कॉल बैक करता हूँ."

मुग्धा ने कहा -"हाँ हाँ कोई नहीं, मैंने तो ऐसे ही कर लिया था कॉल."

"नहीं मुग्धा अभी कॉल करता हूँ,तुम फ्री हो न ?" -पूछा राजुल ने

मुग्धा बोली -" हाँ राजुल तुम कर लेना कॉल."

दो मिनट बाद ही राजुल का कॉल आ गया . बहुत उत्साहित था वह .मुग्धा से पूछा-'कैसी हो तुम ? "
मुग्धा हँस के बोली- "अरे अभी कुछ ही देर पहले तो मिले थे इतनी देर में क्या बदल जाऊंगी."
राजुल बोला -"अरे उस समय तुमसे तो ज़्यादा बात ही नहीं हो पाई. मुझे संकोच हो रहा था, न जाने तुम्हारे पति क्या सोचें."
 मुग्धा ने कहा -"तुम दोस्त हो मेरे इसमें सोचने जैसा क्या है."

राजुल ने ठंडी सांस भरते हुते कहा-"तुम नहीं समझोगी मुग्धा.यह पति पत्नी का रिश्ता बड़ा अजीब होता है. अधिकारत्व की भावना इतनी प्रबल होती है कि दम घुटने लगता है कभी कभी तो."

मुग्धा ने बात बदलते हुए कहा -"अरे छोड़ो इन बातों को. अपने बारे में बताओ, क्या किया क्या कर रहे हो ? इतने साल कैसे गुज़रे ?"
राजुल शुरू हो गया. उसकी आवाज़ में जोश था, जैसे बहुत दिन बाद बन्द कपाट खुले हों और ताज़ी हवा में भीतर का सब जमाव पिघलने लगा हो..बहने लगा हो. फ़ोन की दूसरी और से राजुल की आवाज़ आती जा रही थी जिसका कुछ अंश मुग्धा सुनती और कुछ के परे जा कर उसका अर्थ समझने की कोशिश करती जा रही थी. राजुल ने उसे बताया, अपने विगत के बारे में और बताते हुए यह एहसास बहुत प्रखर था कि ज़िंदगी में उसे कुछ भी नहीं मिला.

राजुल का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी के लिए टी .एस.राजेंद्रा में हो गया था किन्तु उसके पापा और मम्मी ने उसे वहाँ नहीं जाने दिया इकलौता बेटा था पूरे साल शक्ल  भी नहीं देख पायेंगे.फिर हमेशा शिप पर रहेगा ..हम लोग रिटायर होने के बाद अकेले कैसे रहेंगे. राजुल की आवाज़ में अपने माता पिता के प्रति खिन्नता थी ..मुग्धा को एहसास हुआ कि राजुल की सोचों पर उसके माता पिता का ही असर है ..एक परिधि से बाहर  जैसे उन्होंने देखना  नहीं सीखा वैसे ही राजुल भी एक सीमा के परे जा कर नहीं देख पा रहा था.
उसके बाद राजुल कभी कहीं कभी कहीं छोटे मोटे जॉब करता रहा . कभी मेडिकल रिप्रेसेन्टेटिव ,कभी लैब अस्सिटेंट ..कुछ अच्छे मौके मिले लेकिन गलत निर्णय के कारण हाथ से निकल गए ..उसी बीच में मधु से शादी ..मधु उसके घर के पास ही रहती थी और बेहद खूबसूरत मधु से हर कोई बात करने को लालायित रहता था ..राजुल से मधु ज्यादा खुली हुई थी और उसने राजुल से वादा  ले लिया था शादी का ..राजुल ने मुग्धा को बताया कि जब तक मधु के साथ रहा उसे लगता रहा कि  वह उसे प्यार करता है ..लेकिन कुछ सालों के लिए दूसरे शहर जाने के बाद उसको उस एहसास में कमी नज़र आने लगी ..किन्तु मधु से किये वादे ने उसको शादी से मुकरने नहीं दिया ..और उसने सोचा की शादी तो करनी ही है.. किसी अनजान से करने से अच्छा है मधु से ही सही.. और यदि राजुल मधु से शादी करने से इनकार करता तो मधु टूट जाती ..और फिर कोई ऐसा कुछ था भी तो नहीं जिसकी वजह से मधु से शादी करने के लिए मना किया जाए.

मुग्धा को ये सब बातें सुन कर महसूस हुआ कि राजुल स्वयं को शहीद समझता है ...उसे लगता है उसने मधु को खुश करने के लिए उससे शादी की.. मम्मी पापा को खुश करने के लिए मर्चेंट नेवी का जॉब छोड़ा..एक धारणा उसके मन में गहरे पैठी है कि उसने सभी की  खुशी के लिए त्याग किया है एक आदर्श पुत्र और पति बनने की कोशिश की है  जिसके कारण आज भी वह खुद को सेटल नहीं कर पा रहा है ..अपनी इस अस्तव्यस्त ज़िंदगी का जिम्मेदार वह अपनी ज़िंदगी से जुड़े सभी लोगों को मानता है.

 राजुल ने मुग्धा से पूछा उसकी ज़िंदगी के बारे में ..मुग्धा एक सहज ज़िंदगी जीने वाली ..उसने  बिना किसी लाग लपेट के अपने और अखिल के मिलने और शादी के बारे में बताया .. राजुल की ईर्ष्याजनित टिप्पणी थी -"तो तुम बिना किसी उतार  चढ़ाव के एक खुशहाल ज़िंदगी जी रही हो..कितनी खुशकिस्मत हो तुम, समय पर शादी....सब कुछ अपनी जगह सेट्ट ...लेकिन मैं इतना किस्मत वाला नहीं ..पता नहीं कौन से कर्मों का बोझा ढो रहा हूँ."

मुग्धा ने कहा - " हो जाता है जीवन में ऐसा..कभी कभी कुछ गलत निर्णय ज़िंदगी को अस्तव्यस्त कर देते हैं ..लेकिन उनसे उबरना होता है हमें ..आगे बढ़ना होता है उन्ही का मातम नहीं मनाते रहना होता."

राजुल बोला - " मुग्धा ! तुम नहीं जानती कुछ भी. ज़िंदगी ने कैसे कैसे मजाक किये है मेरे साथ.  मुझसे मेरा बेटा छीन  लिया ..और मेरी बीवी...उसने मेरी ज़िंदगी नरक बना रखी है....मुझ पर हर पल शक रहता है उसे ..अजीब अजीब इलज़ाम लगा लगा कर मुझसे लड़ने के सिवाय और कुछ आता ही नहीं..कितनी बार वह आत्महत्या की कोशिश कर चुकी है ..उसी के कारण मैं घर से बाहर  भटकता रहता हूँ... जब सब लोग सो जाते हैं, तभी घर में एंटर होता हूँ ..डॉक्टर कहते हैं कि उसे कोई मानसिक बीमारी है ..लेकिन मुझे तो लगता है वह नाटक करती है."

मुग्धा ने कहा-'हो सकता है उसे सच में ही कोई प्रॉब्लम हो..क्या होता है मुझे डिटेल्स  बताओ .नाटक क्यूँ करेगी वह ?"

राजुल ने कहा -" कहती है कि कोई उसके खिलाफ साजिश करता है. कोई उसे मारने  का षड़यंत्र  करता है. एक बार तो उसने पुलिस में मेरे खिलाफ रपट तक लिखा दी थी ..घर पर पुलिस  आई ..बेटे पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है इन सब बातों का."

मुग्धा ने पूछा-"कब से है ऐसा ?"

राजुल बोला -"शादी के कुछ समय बाद से ही. दरअसल एक बार मेरी एक मित्र का फोन आ गया था बस तभी से उसे मेरी हर बात पर उसे शक होने लगा. मीनू नाम की मेरी मित्र का नाम ले ले कर वह मुझे कोसती रहती है ताने देती है."

मुग्धा ने पूछा - "डॉक्टर को दिखाया तुमने उसे ?"

राजुल बोला-"हाँ दिखाया है.. डॉक्टर कहते हैं कि पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर है. लेकिन मुझे लगता है कि वह नाटक करती है. सब कुछ ठीक चलता रहता है. सबसे हंस कर बात करती है बस मुझे ही देख कर भड़क जाती है."

मुग्धा  बोली -"राजुल यह एक मानसिक डिसऑर्डर. तुम शायद मधु को गलत समझ रहे हो. उसको प्यार और अपनत्व की जरूरत है .. इस तरह की बीमारियों में परिवार वाले और ख़ास कर spouse बहुत बड़ा संबल होते हैं पीड़ित व्यक्ति के लिए."

राजुल ने कहा -'"तुम इतनी श्योरिटी से कैसे कह सकती हो ?"

मुग्धा बोली- "अखिल एक मनोचिकित्सक हैं और ऐसे कितने ही केसेज़ मैंने देखे है उनको हैंडल करते हुए. बहुत क्रिटिकल सिचुयेशन होती है ..तुम हौसला रखो मैं तुम्हारे साथ हूँ..मधु का ट्रीटमेंट पॉसिबल है ..हम बात करेंगे इस बारे में."

राजुल बोला -"तुम नहीं जानती मुग्धा ..तुमसे बात करके मुझे कितना अच्छा लग रहा है ..ऐसा लग रहा है मैं अकेला नहीं हूँ ...कोई है जो मेरी परेशानियों को समझ सकता है ..वरना मैं तो बहुत अकेला पड़ गया हूँ."

मुग्धा ने तहे दिल से कहा- "राजुल दोस्त होते किसलिए हैं. तुम परेशान रहना बंद करो. ऐसा करो, जल्द ही मधु और सोनू को ले घर चले आओ."

राजुल बोला- "मधु कहीं नहीं जाएगी मेरे साथ."

मुग्धा ने कहा -"अच्छा कोई बात नहीं, हम देखते हैं कि हम उसे कैसे कम्फ़र्टेबल कर सकते हैं."

राजुल मुग्धा से बात करके ख़ुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था.

.....और मुग्धा ? उसे तो अखिल को अपनी 'इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट' जो देनी थी.
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(क्रमश:)

Wednesday, January 23, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (ग्याहरवीं क़िस्त)


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(अंतराल ज़्यादा हो जाने के लिए पाठकों से क्षमा याचना सहित अबतक का सार संक्षेप :
मुग्धा कॉलेज के रीयूनियन में अपने बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है और उसके कुंठित व्यक्तित्व के बारे में अपने पति अखिल जो एक मनोचिक्तिसक है ,से चर्चा करती है ,इतेफाक से दोनो मॉल में राजुल और उसके बेटे सोनू से टकरा जाते हैं , अब आगे ....)

(ग्याहरवीं  क़िस्त )

अखिल और राजुल काफी देर बातें करते रहे ,अखिल का तो पेशा ही था परेशान लोगों की मनोव्यथा सुनना और उससे बात करने में स्वतः ही लोग खुलते चले जाते थे ..मुग्धा को भी आश्चर्य हो रहा था कि  इतना अकड़फूँ राजुल कैसे अपने पारिवारिक जीवन का कच्चा चिठ्ठा खोल रहा है ...लेकिन अखिल को बताते हुए भी राजुल के वक्तव्य मधु की कमियों को ही बखान रहे थे और वह जैसे शोषित हो मधु द्वारा ...एक बेचारगी का भाव और उन सब विसंगतियों से पलायन करना मानों उसका अचीवमेंट हो ..

अचानक राजुल ने घडी देखी  और बोला-“अरे 4 बज गया ,आपके साथ समय का पता ही नहीं चला ,अब हमें चलना होगा सोनू को घर छोड़ने के बाद मुझे ६ बजे एक आर्डर के सिलसिले में मीटिंग के लिए जाना है “

अखिल ने भी उठते हुए हाथ बढाया और कहा – ओके राजुल ,बहुत अच्छा लगा आपसे और सोनू से मिल कर ,कभी मधु को ले कर घर आइये ...बहुत ख़ुशी होगी उनसे मिल कर..

राजुल ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए हल्का सा सर हिलाया और मुस्कुरा कर विदा ली..अखिल ने सोनू को गाल पे थपथपा के प्यार करते हए कहा –बहुत ध्यान रखना अपना बच्चे .....

मुग्धा और अखिल को निर्निमेष देखता हुआ सोनू राजुल के साथ चल पड़ा...

मुग्धा और अखिल ने एक दुसरे को देखा ..जहाँ मुग्धा की आँखों में कई प्रश्न डोल  रहे थे वहीँ अखिल एक गहरी साँस ले कर बोला –God,Please help the child...!!

मुग्धा ने पूछा –“क्या हुआ अखिल ?”

अखिल बोला चलो घर चल के बात करते हैं ....और दोनों शौपिंग बैग्स  उठा कर कार की तरफ बढ़ लिए ,पूरे रास्ते न अखिल कुछ बोला न मुग्धा ...दोनों अपनी अपनी सोचों में आज के घटना क्रम का आकलन और विश्लेषण कर रहे थे..

घर आते ही अखिल बोला –“यार एक कप चाय चाहिए ...”

मुग्धा जानती थी की इस समय अखिल को उसी के हाथ की बनी चाय की ज़रुरत है ..वो खुद जा कर दो कप चाय बना कर लायी और अखिल के सामने आ कर बैठ गयी... अखिल अपने दायें हाथ की ऊँगली और अंगूठे से अपनी दोनों आँखें बंद किये सोच में डूबा था ...मुग्धा ने पूछा –क्या हुआ अखिल ,तुम विचलित से क्यूँ लग रहे हो ?

अखिल बोला –“यार ,उस बच्चे से न जाने क्यूँ अचानक एक लगाव हो गया है ...वो बहुत टेंशन में है स्ट्रेस्ड है..न जाने क्या चल रहा है उसकी लाइफ में ..उसी के बारे में सोच रहा था “

मुग्धा बोली- स्ट्रेस्ड  है !!..कैसे लगा तुम्हें ...?

अखिल ने कहा –“तुमने उसकी कलाइयों पर कट्स और प्रिकिंग के निशान देखे थे न ...बच्चे अपने स्ट्रेस को दबाने के लिए खुद को हर्ट करते हैं , इंटेंश्न्ली खुद को काटते हैं ब्लेड से या कंपास की नोक  चुभोते हैं , ऐसा करने से उनको जो दर्द होता है उसमें वो कुछ देर के लिए ही सही अपना स्ट्रेस भूल जाते हैं लेकिन धीरे धीरे डिप्रेशन की स्टेज पर पहुँचने लगते हैं .क्लीनिकली इसे “ non-suicidal deliberate self harm “ कहा जाता है ..आजकल ऐसे केसेस बहुत बढ़ गए हैं हम जैसे डॉक्टर्स के पास .अगर timely इसको डील नहीं किया जाता तो ये सुसाइड तक भी पहुंचा सकता है बच्चों को ..

मुग्धा सन्न बैठी सुन रही थी –“ ओह माय गॉड !!! तो वो निशान  इसलिए थे और सोनू इसीलिए फुल स्लीव्स पहने रहता है की किसी को पता न चलें..

“हाँ “,अखिल आगे बोला –“आजकल बच्चे कई तरह के स्ट्रेस से घिरे हैं .पढाई का स्ट्रेस ,करियर का स्ट्रेस, अकेलेपन का स्ट्रेस,माँ बाप के रिश्तों में खटास का असर जैसा कि सोनू के मामले में मुझे रूट कॉज दिख रहा है “

मुग्धा बोली- हाँ अखिल ! राजुल और मधु के संबंधों का असर इस मासूम पर पड़ रहा है ...

अखिल ने कहा –मुग्धा ! हमें इस बच्चे की मदद करनी चाहिए ... तुम राजुल की पुरानी  दोस्त हो ...थोडा ज्यादा अपनाइयत  दिखा कर उसके  पारिवारिक जीवन में घुसो और असलियत को जानने  की कोशिश करो ..जितना आज की बातों से राजुल को समझा हूँ वो सीधी  बात समझने वाला जीव नहीं है ,उसके आपने पूर्वाग्रह हैं ..उसे यदि सोनू के लिए हम अपना क्लिनिकल diganosis बताएँगे तो उखड़ जाएगा ,सोनू की भलाई के लिए हमें बहुत धैर्य और स्ट्रेटेजी से आगे बढ़ना होगा ..

मुग्धा बोली- बिलकुल अखिल ,मैं तैयार हूँ ..बहुत ही प्यारा बच्चा है ..और शायद हमसे टकराया भी इसीलिए कि ईश्वर चाहते हैं कि हम उसकी मदद करें ...

अखिल ने हँसते हुए  कहा – हाँ तुम्हारे ईश्वर ने तो पूरा प्रोग्राम फिक्स किया हुआ है ...चलो अब थोडा टहल आते हैं...तब से मन भारी था ..तुमसे बात करके अब हल्का लग रहा है ..अमूमन हम डॉक्टर्स इमोशनल नहीं माने जाते और हम रख  भी लेते हैं दूसरों  के इमोशंस  से खुद को अलग थलग लेकिन सोनू से कुछ लगाव हो गया था..

मुग्धा मुस्कुरा दी ..बोली हो जाता है ... चलो टहल आते हैं ....

उधर सोनू और राजुल भी अखिल और मुग्धा से हुई मुलाकात के असर से अछूते नहीं थे..दोनों अपनी अपनी मनस्थिति के अनुसार उन पलों को जी रहे थे जब वे उन दोनों के साथ थे ..
सोनू को अखिल का सुरक्षित आगोश याद आ रहा था तो वहीँ राजुल के ऊपर इस मुलाकात की मिक्स प्रतिक्रिया थी ,एक तरफ वह  अखिल के खुले व्यवहार के समक्ष खुद को कुंठित महसूस कर रहा था दूसरी तरफ अखिल के सामने खुद को खोल कर हल्का भी महसूस कर रहा था ...कुछ इर्ष्या भी थी मुग्धा के प्रति और खुद के प्रति ग्लानि भी ..

राजुल और सोनू ने इन्हीं भावनाओं से गुज़रते हुए घर में प्रवेश किया तो मधु ने तुरंत ही सवालों की बौछार शुरू कर दी ...” कहाँ थे इतनी देर... कब के निकले हो ...मेरी किसी को चिंता नहीं...”
राजुल उस समय अपनी ही सोचों में डूबा बिना कोई जवाब दिए बाथरूम में घुस गया ,सोनू दौड़ के मम्मी से लिपट गया और बोला ,” मम्मा ,आज पापा मुझे मॉल ले के गए थे और पता है वहां एक आंटी और अंकल मिले ..बहुत अच्छे थे दोनों ...आंटी ने मुझे बहुत प्यार किया और अंकल ने मुझे बहुत सारी चीज़ें खिलाई ...

मधु बोली –“कौन थे ये आंटी अंकल ?”

सोनू ने कहा –“ मालूम नहीं ,लेकिन आंटी पापा को जानती थी पहले से ..अंकल आज ही मिले...

इतने में राजुल बाथरूम से गुनगुनाता हुआ बाहर निकला तो मधु की त्योरियां चढ़ गयी ...एक दम चंडी का रूप ले कर वो कमर पे हाथ रख कर सीधे राजुल के सामने जा खड़ी  हुई –“ कौन सी माशूका मिल गयी आज तुमको ?”

राजुल अचकचा गया बोला –“ क्या बकवास कर रही हो ?”

मधु बोली –सोनू ने मुझे सब बता दिया है ...इतने खुश तो कभी नज़र नहीं आते ..आज कोई पुरानी  प्रेमिका से मुलाकात हो गयी ..जनाब की बांछें खिली हुई हैं ...इसीलिए मुझे छोड़ के गए थे ..सब जानती हूँ मैं ...” कहते कहते मधु ने रोना शुरू कर दिया ..अनवरत प्रलाप जारी था उसका –“ मेरी तो ज़िन्दगी ही ख़राब हो गयी ...न जाने किस घडी में इस आदमी से शादी के लिए हाँ कह दिया था ....”

राजुल पहले तो भौंचक्का सा देखता रहा फिर उसका चेहरा तमतमा गया ...बोला “दिमाग ख़राब है तुम्हारा और मेरा भी किये रहती हो हर समय ...एक पल का चैन नहीं इस घर में” ....कहता हुआ धडाम से दरवाजा बंद करते हुए घर से बाहर निकल गया...

सहमा हुआ सोनू एक तरफ खड़ा हुआ सारा नज़ारा देख रहा था ..मधु वहीँ सोफे पे बैठ के जोर जोर से रोते हुए बोले जा रही थी -' मैं तो पहले से ही जानती थी ..कहीं कोई चक्कर चल रहा है तुम्हारा ..इसीलिए इसी फिराक में हो कि कब मुझसे पीछा छूटे ..वो तो मैं एलर्ट रहती हूँ  वरना अब तक तो जान से मार डालते मुझको .."

और सोनू अपने कमरे में जा के औंधे मुंह बिस्तर पर पड़ गया ... आये दिन घटने वाले ये दृश्य उसके लिए नए नहीं थे ..उसे समझ नहीं आता था कि माँ जो सबसे ठीक तरह से बात करती है पापा के सामने ही एकदम बदल कैसे जाती है...
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क्रमश: