Saturday, May 25, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (समापन क़िस्त)

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मुग्धा अखिल के क्लीनिक में उसके चेम्बर में थी. मधु बेहोश सी सोई हुई थी. मुग्धा ने इशारे से पूछा था उसकी इस स्थिति के बारे में. अखिल उसे ले कर बाहर आ गया और संक्षेप में सब बता कर बोला -“मुग्धा, तुम्हारा फ़्रेंड राजुल और उसकी बीवी मधु एक सुखद जीवन व्यतीत कर सकें यह हम लोगों के लिए एक फ़्रेंडली मिशन की तरह है. हम इसके लिए प्रयासरत हैं और रहेंगे. तुम्हें इस मिशन में एक अहम किरदार निभाना है. एक सहज मित्रता के तहत तुम्हें उनकी काउन्सलिंग करनी है. मधु के बिहेवियरल आसपेक्ट्स हम लोग घर पर डिस्कस करेंगे तफ़सील से. अभी ज्यों ही यह जागती है, तुम इसे साथ ले जा कर थोड़ा सैर करा लाओ जहाँ भी तुम ठीक समझो. तब तक मैं इसके ड़ायग्नोसिस पर और श्योर हो लेता हूँ अपने कालीग्ज़ के साथ डिस्कस करने के बाद. हमें सतह पर जो 'psychology' दिखती है उसकी जड़ें बहुत ही गहरे अवचेतन में होती हैं. हमें बहुत धैर्य और सावधानी से काम लेना होगा मुग्धा !”
"मुग्धा तुम सुन रही हो ना," मुग्धा को कंधे से पकड़ कर हिलाते हुए पूछ रहा था अखिल

“हम्म ,हाँ हाँ मैं सुन रही हूँ.“ मुग्धा अपनी त्वरित फ़ीलिंग्स को अखिल से छुपाने की कोशिश करती हुई बोली.

सोच रही थी मुग्धा.....क्या हो गया है आज उसे, अखिल के लिए इतनी तीव्र पज़ेसिवनेस ? इतने सालों से अखिल को जानते समझते भी आज इस ख़ूबसूरत औरत मधु का अखिल से लिपट जाने की कल्पना उसे विचलित कर रही थी. अखिल को यदि पता चला तो कितना हँसेंगे मुझ पर. उफ़्फ़ अखिल की शर्ट से मधु के तेज़ पर्फ़्यूम की ख़ुशबू भी आ रही है. नारीसुलभ ईर्ष्या फ़न उठा रही थी, किंतु वह दंश दे सके उस मिट्टी की मुग्धा नहीं बनी थी. सोचों को झटक कर बोली -“चलो कॉफ़ी पीते हैं और तुम अपने अब तक के ड़ायग्नोसिस को ब्रीफ़ भी कर दो मुझ को."

अखिल ने सोलिना को कॉफ़ी बनाने के लिए कहा और वहीं विज़िटिंग लाउंज में बैठ कर दोनों बातें करने लगे.

अखिल ने कहा -“ देखो मुग्धा जब कोई मेंटल डिसॉर्डर होता है तो पेशंट्स के व्यवहार से ही हम निश्चित करते हैं की वो किस कैटेगॉरी का डिसॉर्डर है. तुम तो जानती हो वो कई कैटेगरीज का मिक्स्चर होता है. अभी तक मैं जो समझ पाया हूँ उसके अनुसार मधु पैरनॉइड पर्सनालिटी डिसॉर्डर के साथ साथ हिस्ट्रीआनिक पर्सनालिटी डिसॉर्डर से भी ग्रसित है. इन सब की जड़ में आनुवंशिक और वातावरण दोनों का ही असर हो सकता है. मुग्धा ,तुम्हें मधु के अंतर्मन तक पहुँचना होगा, जो तुम अपनी ब्रिल्लीयंस, शालीनता और कारुणिक स्वभाव के साथ आसानी से बख़ूबी कर सकती हो. डिसॉर्डर को  सम्भालने के लिए कुछ मेडिकेशन और ज़्यादा समझदारी की ज़रूरत है, इसके  बारे में हम डीटेल में चर्चा करेंगे. अभी कॉफ़ी फ़िनिश करें और चेम्बर में लौट चलें."
"अगर हमारी मधु माई जाग गयी तो नया तमाशा खड़ा कर देगी."
अखिल के उसकी आँखों में झाँकते हुए हल्के स्पर्श के साथ यह कहना ना जाने क्यों मुग्धा को और हल्का कर गया था.

अखिल और मुग्धा चेम्बर में पहुँचे ही थे कि मधु तंद्रा से बाहर आती हुई दिखी. अधमुंदी आँखों से उसने अपने आसपास का जायज़ा लिया और अचानक चौंक के उठ बैठी.
"मैं.....यहाँ.....कैसे ?"
मुग्धा ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर पानी का ग्लास बढ़ाया -“मधु तुम थकी थी इसलिए तुम्हें नींद आ गयी थी. अब कैसा महसूस कर रही हो ?”
मुग्धा को वहाँ पा कर मधु कुछ असहज महसूस कर रही थी लेकिन मुग्धा की परवाह भरी मुस्कुराहट ने उसे आश्वस्त कर दिया. वह बोली-“डॉक्टर साहब से मिलने आयी थी. न जाने कैसे चक्कर सा आ गया. डॉक्टर साहब ने नहीं सम्भाला होता तो सर ही फूट जाता मेरा."

मुग्धा हंस कर बोली -“डॉक्टर साहब के होते ऐसा कैसे हो सकता है,सम्भालने में बड़े माहिर हैं हमारे डाक्टर जी." अखिल की तरफ़ मुख़ातिब होती मुग्धा ने पूछा, "क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं अखिल."
फिर मधु को कहने लगी, "चलो हम लोग थोड़ा माल की सैर कर आते हैं. कुछ वक़्त साथ बिताएँगे, बातें सातें होगी. और हाँ तुम्हें मेरी ड्रेस भी तो डिज़ाइन करनी है, अगर मूड हुआ तुम्हारा तो उसका मटीरीयल भी देख लेंगे."
"बड़ा दिल कर रहा है तुम्हारे साथ लंच किया जाय. मधु यार यूँ लगता है हम कोई बिछुड़ी हुई सहेलियाँ हैं और आज मिल गयी हैं."
मुग्धा स्वस्थ रिश्तों के बीज बो रही थी.

"हाँ भाई आज तो तुम्हीं लोग एंजॉय करो. अगर कुछ अप्पोईंटमेंट्स लाइंड अप नहीं होते तो मैं भी ब्यूटिफ़ुल गर्ल्ज़ के साथ हो लेता." थोड़ा सा फ़्लर्ट दिखा रहा था ख़ुद को अखिल ताकि मधु को कम्फ़र्ट लेवल में लाया जाय.

मधु की इच्छा नहीं हो रही थी अखिल से दूर जाने की लेकिन चोरी पकड़े जाने का भी डर था. थोड़ा मन ज़्यादा बेमन से ही सही वो मुग्धा के साथ हो ली.

मुग्धा उसे ले कर हज़रतगंज स्थित एक माल पहुँच गयी. मधु ने चला कर कहा, "ज़रा मेटेरीयल पर नज़र मार लेते हैं."

स्टोर्स के चक्कर लगाने, कपड़ों की वराइयटी देखने और दिमाग़ को ड्रेस डिज़ाइन के लिए तैयार करने में मधु का ध्यान अखिल से हट गया था. मुग्धा ने अब्ज़र्व किया मधु को ड्रेस डिज़ाइनिंग का पैशन था. उत्साह से वह मुग्धा के साथ उसकी ड्रेस प्लान करने में जुट गयी. क़रीब एक घंटे मटीरीयल शो रूम्स में  समय बिताने के बाद, मुग्धा उसे रॉयल कैफ़े में ले गयी. धीमा संगीत और हल्की रोशनी, बाहर की गरमी के बाद बहुत सूधिंग थे.  दोनों ख़ाली देख कर एक कोने की टेबल पर गयी. मुग्धा ने मेन्यू कार्ड उठा कर मधु को थमा दिया और पूछा मधु से कि उसे क्या पसंद है ... मधु भी अब मुग्धा के साथ सहज थी. दोनों इस नतीजे पर पहुँचीं कि 'चाइनीज' का ऑर्डर किया जाए. फ़्रेश लाइम सोडा मँगाया मुग्धा ने बिलकुल चिल्ड और और फिर मधु के बताए अनुसार खाने का भी ऑर्डर कर दिया. बहुत ही अपनाइयत से मधु से बोली-“मधु, यू रियली हैव टेस्ट. बहुत अच्छी ड्रेसेज़ और मटीरीयल सलेक्ट किए तुमने. मज़ा आ गया शॉपिंग में !”

मधु ने ने भी उत्साह से कहा -“हाँ ,मुझे भी. ना जाने कब से शॉपिंग को गयी ही नहीं थी मैं तो. सब पुराने पुराने कपड़े भरे हैं वार्डरॉब में."

मुग्धा ने कहा-“अरे तुम्हारी यह कुर्ती भी बहुत सुंदर है. एकदम ट्रेंडी लग रही है. बहुत फब रही है तुम पर.  कहाँ से ली ?"

मधु मुँह बनाते हए बोली -“ये तो पिछले साल फैबइंडिया से ली थी."

मुग्धा एक दम उछल कर बोली -“वाओ ,फैबइंडिया तो मेरा फ़ेव ब्राण्ड है. बहुत ही ग्रेसफ़ुल होते हैं उसके कपड़े."

मधु ने कहा -“ लेकिन महँगे बहुत लगते हैं मुझे तो. कॉटन के कपड़े ले कर ख़ुद ही डिज़ाइन कर लूँ मैं तो उनसे बेहतर."

मुग्धा ने प्रशंसात्मक नज़रों से मधु को देखते हुए कहा-“ वाक़यी तुम बहुत टेलेंटेड हो. इस फ़ील्ड में क्यूँ नहीं काम करती ?आजकल तो देखो ब्रैंड्ज़ कितने पॉप्युलर हैं. अच्छे डिज़ाइनर्ज़ के लेबल्स की बहुत डिमांड है. लोग ब्राण्ड को देख कर पैसा देते हैं तुम किसी बड़े ब्राण्ड को जोईन करो न, अरे नहीं अपना ब्राण्ड डेवलप करो....आइ एम श्योर योर्स वुड बी अ ग्रेट हिट."

मधु उसाँस भर कर बोली -“क्या कहूँ मुग्धा..मेरा तो जैसे सारा टैलेंट  ही व्यर्थ गया. कितना शौक़ था मुझे ड्रेस डिज़ाइनिंग का,अच्छे अच्छे कपड़े पहनने का. सब लोग कितनी तारीफ़ करते थे मेरी. कॉलेज में तो ब्यूटी क्वीन भी सलेक्ट हुई थी मैं...लेकिन सब धूल में मिल गया. जबसे राजुल मेरी ज़िंदगी में आया तब से मानो  ग्रहण ही लग गया है लाइफ़ को."

मुग्धा अनजान बनते हुए बोली -“अरे ऐसा क्या हो गया,तुम दोनों तो बहुत ही अच्छे कपल्स हो."

मधु दार्शनिक अन्दाज़ में बोली-“जो दिखता है वो सच कहाँ होता है, मुग्धा डियर ! अखिल जैसा पति मिला है न इसलिए इस क़वायद और जद्दोजहद से दो चार नहीं हुई हो. कितना मुश्किल होता है एक नान कम्पैटिबल इंसान के साथ एक ही छत के नीचे रहना. मुग्धा ये त्रासदी तुम कैसे जान पाओगी....लकी हो तुम टच वुड." आदतन टेबल को छू रही थी मधु हालाँकि टेबल ग्लास टॉप की थी.

मुग्धा अपनी आवाज़ में बहुत ही कन्सर्न लाती हुई बोली-“ओह ,मैं तुम्हारी मनस्थिति समझ पा रही हूँ मधु. हो सके तो मुझे मित्र समझ कर शेयर करो,मन हल्का होगा."

मुग्धा स्पंदनों से बहुत कुछ सुकून पहुँचा रही थी मधु को. मधु को उसका साथ तपती धरती पर शीतल बौछार सा महसूस हो रहा था. वो खुलती चली गयी ,लगभग वही कहानी जो राजुल ने मुग्धा को सुनाई थी. बस अंतर वर्ज़न का था. राजुल ने ख़ुद को विक्टिम बताया था और मधु ने ख़ुद को ...दोनों को ही एक दूसरे से ढेरों शिकायतें थी.

हाँ मधु ने मुग्धा से अपने संशय भी बताए, जैसे कि उसे लगता है कि राजुल का कहीं अफ़ेयर चल रहा है और वो अपनी माशूक़ा के साथ मिल कर मुझे मारने का प्लान बनाता है.
"कई बार मैंने सुना है उसे फ़ोन पर किसी से बात करते हुए....कई बार तो फ़ोन बजता है मेरे सामने लेकिन वो ऐसे बैठा रहता है जैसे उसे सुनायी न पड़ रहा हो. मेरे फ़ोन पर कई बार धमकी भरे कॉल आते हैं."

मुग्धा अपनी बॉडी लैंग्विज से यह जता रही थी की उसे मधु की बात पर पूरा विश्वास है. मधु के चुप होने पर उसने पूछा लास्ट कॉल कब आया था.

मधु कुछ याद करते हुए बोली -“जिस दिन अखिल हमारे घर आए थे पहली बार उसी दिन सुबह आया था."

मुग्धा समझ गयी की जबसे दवा पहुँचनी शुरू हुई है मधु को उसका यह हलूसिनेशन कम हो गया है. मेंटल नोट्स बना लिए थे मुग्धा ने मधु से हुई बातचीत के अखिल से शेयर करने के लिए.

आगे पूछा मुग्धा ने -“मधु तुम्हें योगा करना अच्छा लग रहा है ना ?”
मधु बोली -“हाँ मुग्धा ,पता है पहले मैं ख़ूब योगा करती थी एक दम फ़िट थी."

मुग्धा मुस्कुराते हुए बोली -“अभी भी हो ,बस अब रेगुलर रहना ,बल्कि थोड़ा मेडिटेशन भी किया करो मन शांत रहेगा."

अब तक दोनों का लंच ख़त्म हो चुका था. मुग्धा बिल चुका कर मधु को साथ ले क़ुल्फ़ी खाने पहुँच गयी. मधु बोली, "अरे बाबा अभी तो इतना खाया है." मुग्धा बोली क़ुल्फ़ी तो रास्ता बना लेती है पिघल कर जाने का और दोनों हँस पड़ीं. मुग्धा को संतुष्टि थी की मधु ने उसे मित्र के तौर पर स्वीकार लिया था. अब उसका काम आसान हो जाएगा .

मधु को ड्रॉप करने मुग्धा उसके घर गयी तो सोनू के लिए चोकलेट पेस्ट्रीस लेना नहीं भूली. मधु के बार बार कहने पर भी मुग्धा अंदर नहीं गयी, हाँ मधु को ड्रॉप करते ही राजुल को यह हिदायत देना नहीं भूली कि मधु की बातें इंट्रेस्ट से सुने,पूछे कि उसका दिन कैसे गुज़रा, उसकी शॉपिंग को इंवोलव हो कर देखे और अपरिशिएट करे. सार संक्षेप यह कि उसे उसके साथी होने का एहसास कराए....उसकी ख़ुशी में ख़ुश होये और ज़ाहिर भी करे. ऐसे छोटे छोटे बिहेवेरीयल इन्पुट्स मुग्धा यदाकदा देती रहती थी राजुल को....और सौभाग्य से राजुल को भी एहसास होने लगा था कि ऐसे जेस्चर रिश्तों में खाद पानी का काम करते हैं. बरसों की कंडिशनिंग से मुक्त होता मूल स्वभाव राजुल भी कोशिश कर रहा था इन्हें अपने व्यवहार में उतारने की.

मुग्धा ने अखिल को सिलसिलेवार मधु के साथ हुई बातें बता रही थी बारीक से बारीक डिटेल्ज़ के साथ....शब्द, बॉडी लेंगवेज, चेहरे के हाव भाव, आँखों के अक्स, रुचि अरुचि इत्यादि. अखिल गम्भीरता से सब सुन रहा था.

अखिल फिर मानो कुछ कनक़्लूड करता हुआ बोला -“हम्म, मुग्धा यह केस जैसा मैंने तुम्हें कहा था दो या दो से अधिक डिसॉर्डर को रिफलेक्ट रहा है. परानोईड डिसॉर्डर तो है ही जो उस दिन के उसके हिंसक रूप और किसी की उसके ख़िलाफ़ साज़िश की सोच  से ज़ाहिर हो  रहा है....यह आनुवंशिक हो सकता है. लेकिन इसकी इंटेन्सिटी अब कम  हो रही है दवाओं के असर से. दूसरा हिस्ट्रीआनिक डिसॉर्डर इंडिकेट हो रहा है जिसमें अटेन्शन सीकिंग ,बहुत भावुक और नाटकीय तरीक़े से सेक्सुअल प्रोआक्टिव होना जैसा आज मधु ने किया....हर बात को नाटकीय भावनाओं से ज़ाहिर करना ....ख़ुद को बहुत इम्पोर्टेंट समझना और फ़िज़िकल एपीरिएँस के लिए बहुत ही कोंशस रहना..... यह सब बचपन की कंडीशनिंग और माहौल जनित है जो काउन्सलिंग और बिहेवियर थेरपी से ठीक किया जा सकेगा."

अब राजुल पर भी अपना ऑब्ज़र्वेशन बता रहा था अखिल,
"मुझे तो राजुल में भी कुछ नारसिस्ट पर्सनालिटी ट्रेट्स दिखती  हैं. जैसे ख़ुद को अत्युत्तम दिखाना, लगातार प्रशंसा की भूख, संवेदना का अभाव, दूसरों का लाभ उठाने की प्रवृति, अपने लिए हर ख़ासियत को अतिशय देखना, अपने ही महत्व के लिए वांछा इत्यादि. फ़िलहाल उसमें एंगजायटि के लक्षण उभर कर आए हैं जो अवसाद याने डिप्रेसन में तब्दील हो सकते हैं."
कह रहा था अखिल, " अच्छी बात यह है कि उसका केस अभी क़ाबू का है और वह बात को समझ भी रहा है. दवाएँ मैंने प्रिस्क्राइब कर दी है और कुछ अहम बातें भी उसे समझा दी है.  राजुल को भी कुछ काउन्सलिंग सेशन्स की  ज़रूरत है.मुग्धा ! उसके विगत में हुए थोड़े नकारात्मक व्यवहार के बावजूद भी तुम्हारा उसके साथ दोस्ताना बर्ताव उसे बहुत सुकून दे पाया है और मानसिक ताक़त भी. हम लोग आपसी डिस्कसन और फोलो अप द्वारा बहुत कुछ बेलेंस भी कर रहे हैं ताकि वह अपनी लिमिट क्रॉस ना कर सके. उसकी भलाई की हमें परवाह है मगर हमारे अपने रिश्ते की क़ीमत पर नहीं." आख़री जुमलों में अखिल की फ़र्म और फ़ेयर शख़्सियत का अक्स ज़ाहिर हो रहा था.

अखिल फिर से मधु के बारे में बोल रहा था, "मधु ने दवाओं का बहुत अच्छा रेस्पॉन्स किया है. मुग्धा क्यूँ ना हम उसके कुछ सेशन डॉक्टर विभा के  साथ रखें.  बल्कि राजुल और मधु  दोनों को ही डॉक्टर विभा और डॉक्टर अनुराधा को रेफ़र कर देते हैं ताकि वाक़ायदा इनको हमारे सुयोग्य थेरापिस्ट की स्ट्रक्चर्ड प्रोफ़ेसनल हेल्प भी मिल सके."

मुग्धा बोली -“ हाँ, ये दोनों बहुत अनुभवी हैं और उनके व्यक्तित्व की ख़ासियत है कि पेशेंट्स खुलते चले जाते हैं. डॉक्टर विभा जहाँ पेशेंट्स की सायिकोलोज़ी को समझ कर उनको ज़रूरत के मुताबिक़ काउन्सलिंग प्रवाइड कर सकती हैं वहीं डॉक्टर अनुराधा अपने दर्शन और प्राणिक ऊर्जा के प्रयोग से उनकी सोचों में परिवर्तन ला सकती हैं. अनु मधु की प्राणिक हीलिंग करेंगी तो रिज़ल्टस और जल्दी मिलने लगेंगे."

अखिल-मुग्धा ने पूरा ऐक्शन प्लान तैयार करके उसपे तहे दिल से काम शुरू कर दिया था. मधु जान ही नहीं पाती थी की मुग्धा कब बातों बातों में उसकी सोचों को बदल देती थी. ना जाने कब मधु के मन में राजुल के प्रति सहज कोमल भावनाओं का प्रस्फुटन होने लगा था. अखिल के प्रति अनावश्यक आकर्षण भी मुग्धा के अपनेपन और काउन्सलिंग के कारण धूमिल पड़ने लगा था. अखिल और मुग्धा की रिलेशनशिप अब मानो दोनो के लिए एक आदर्श सी होने लगी थी जिसे वे अपने लिए भी फॉलो करने लगे थे खासकर मधु ज़्यादा रिसेप्टिव थी. नारी की मानसिक और शारीरिक संरचना गहरी और ग्रहण करने के लिए अधिक योग्यता रखती है.

मुग्धा ने कहा था मधु से - "अखिल राजुल के पुराने दोस्त होने के नाते तहेदिल से चाहते हैं कि तुम दोनों बहुत ख़ुश रहो,बिलकुल जैसे कि हम दोनों हैं. राजुल कुछ परेशानियों में घिर कर कुछ अनटुआर्ड बिहेव कर जाता है तुमसे हालाँकि ऐसा नहीं होना चाहिए. अखिल समझाते रहते हैं उसे कि मधु तुम्हारा लकी चार्म है....उसकी ख़ुशी तुम्हारी ख़ुशी है. मधु ! अखिल तुम्हारा बहुत सम्मान करते हैं, तारीफ़ भी बहुत करते हैं. रिश्तों को नाम देना अखिल की फ़ितरत नहीं किंतु अगर दुनियावी नज़र से आकलन करें तो कह सकती हूँ उनको तुम में अपनी छोटी बहन, बेटी और सखी जैसी नज़र आती है. अखिल हर समय कहते हैं मुग्धा इनका परिवार ख़ुशहाल बनाने में जो कुछ मुझसे बन पड़ेगा करूँगा. तुम देखना मधु, राजुल बदलेगा ,किंतु थोड़ा तुमको भी ख़ुद को बदलना होगा, प्यार और कोमलता से कुछ भी पा जाना सम्भव हो जाता है, यह मेरा अपना अनुभव है."

असर हो रहा था मधु पर. दैहिक आकर्षण अब स्नेह, सम्मान और भरोसे में बदल रहा था. मुग्धा की ड्रेस डिज़ाइन करने के बाद उसे मुग्धा के ही फ़्रेंड सर्कल से बहुत सारे ऑर्डर मिल गए थे. व्यस्त हो गयी थी मधु .....और अपने पेशन को जीते हुए बहुत ख़ुश भी थी. स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा था. तीन सेशन डॉक्टर अनुराधा के साथ हो चुके थे और डॉक्टर अखिल की दवाएँ भी अपना असर दिखा रही थी. डॉक्टर विभा की काउन्सलिंग का नतीजा था कि मधु को समझ आ गया था और स्वीकार्य हो गया था आनुवंशिक कारण से हुए डिसॉर्डर के लिए उसे ये दवाएँ तज़िंदगी मेडिकल सुपरविजन में लेनी होंगी.

राजुल का व्यवहार भी पहले से काफ़ी सहज हो रहा था. डॉक्टर विभा ने उसके साथ भी काफ़ी मेहनत की थी. डॉक्टर विभा ने अखिल को हँसते हुए कहा था-“बड़ा ही अक्खड़ पेशेंट दिया है इस बार आपने मुझे," अपना तकियाकलाम जुमला इस्तेमाल कर रही थी डा. विभा, "...बट ना, यू नो आइ तो लव चेलेंजेज़."

मुस्कुराते  हुए बोला था अखिल -“आइ नो योर केपबिलिटीज़, विभा." विभा के दिल में अखिल के प्रति एक अलग सा सम्मान भरा प्रेम था जो एकतरफ़ा था लेकिन मनोविज्ञान की माहिर विभा उसको आत्मा के तल पर जी रही थी....अब तक अकेली थी. हाँ बिन बोले अखिल और मुग्धा उसका रेसिप्रोकेशन कर रहे थे....अखिल का क्लीनिक जैसे विभा का मंदिर हो और वो मीरा.
रिश्तों का दर्शन बहुत अनूठा होता है.

सोनू अपने सहज स्वभाविक बचपन में लौट आया था. अखिल तो जान छिड़कता था उस पर और शतरंज में तो अब सोनू उसको हराने  भी लगा था. राजुल ने उसको चेस की कोचिंग भी जोईन करा दी थी. राजुल का बिज़नेस अच्छा चलने लगा था. मन ख़ुश और शांत होता है तो ज़िंदगी के हर पहलू पर उसकी छाप दिखती है. क्लाइंटस ख़ुश थे राजुल के बदले हुए ऐटिट्यूड  से.

वक़्त के दरिया में न जाने कितना पानी बह गया था. सोनू इस साल एइथ स्टेंडर्ड में पहुँच गया था. मधु के बुटीक का उद्घाटन सोनू के जन्मदिन के दिन करना निश्चित हुआ था और राजुल उसी की व्यवस्था में शिद्दत से लगा हुआ था, उसका उत्साह देखते ही बनता था. अरे हाँ,  राजुल को एक बड़ा ऑर्डर सिंगापुर की एक फ़र्म से मिला था, उसने बहुत ही सटीक ढंग से उसके एक्जेक्यूशन में जी जान लगा दी थी. हाँ उसने मधु के बुटीक के उद्घाटन के बाद ऑर्डर डिस्पैच करने के लिए क्लाइंट को राज़ी भी कर लिया था. राजुल के जीवन का हर काम अब अपने लिए केंद्रित था, बस 'अपने' की परिभाषा में अब सोनू और मधु तो थे ही, मुग्धा और अखिल की निस्वार्थ ख़ुशी भी शुमार हो गयी थी.

मधु-राजुल के घर मुग्धा-अखिल डिनर पर आए हुए हैं. मधु ने आज अपने हाथों से इस शाम के लिए ना जाने क्या क्या बनाया है. राजुल ने भी घर सजाने में मधु का साथ दिया है....फूलों के गुलदस्ते....झूलते हुए नए परदे....सुगंध वाली केंडलस से उभरती महकती रोशनी और बहुत ही सकारात्मक स्पंदन....आज सोनू-मुग्धा-राजुल के अपार्टमेंट को मकान से घर बना रहे हैं. कृतज्ञता यदि हृदय से प्रकट हो तो हमारी हर बात,हर चीज़, हर जुंबिश  अहोभाव ही अहोभाव के वाइब्ज़ प्रसरित करने लगती है. कृतज्ञता मानव का सर्वश्रेष्ठ अर्पण जिसमें सिवाय उसके अहम के कुछ भी व्यय नहीं होता किंतु ना जाने क्यों दुनियाँ के अधिकांश लोग इस अना के जाली नोटों को ख़र्च नहीं करना चाहते. कितनी विचित्र बात है, विपरीत होते हुए भी ज्ञान और अहम दोनों में बड़ी समानता है....दोनों के ही ख़र्च करने से समृद्धि और बढ़ जाती है....

हाँ तो खाने से पहले ड्रिंक्स की महफ़िल जमी है. अखिल और राजुल ने आज भारत की सब से बेहतरीन सिंगल मॉल्ट व्हिस्की 'Amrut' ट्राई करने का सोचा है......और सम्माननीय महिलाओं के लिए अखिल की पेशकश, उसने अपने हाथों से इटालियन  नीग्रोनि कोकटेल तैय्यार की है. सोनू मियाँ भी महफ़िल में अक्टिव हैं.....अपनी मन पसंद मोक्टेल रास्पबेरी मोहितो एँजोय कर रहे हैं जो अखिल अंकल ने उसके लिए ख़ास बनाया है. मधु-राजुल द्वारा मिल जुल कर बनाए गए स्नेक्स सेशन को और जीवंत बना रहे हैं. एक के बाद एक, जोक्स और टाँग खिंचाई के दौर चल रहे हैं....पाँचों की सहभागिता देखते ही बनती है. आपसी बांडिंग और सद्भाव की अनकही कहानी कह रही है यह महफ़िल..

अखिल और मुग्धा इस परिवार को ख़ुश देख बहुत ही संतुष्ट थे और मधु और राजुल के लिए तो मुग्धा और अखिल मानो साक्षात देवदूत हो.

अचानक मधु उठ खड़ी होती है. कहती है मुग्धा सुनो तो....मधु की अस्तव्यस्तता देख कर अचानक माहौल में कुछ पल के लिए असमंजस, ठहराव और अव्यक्त चिंता के भाव उभर आते हैं. मुग्धा खड़ी हो कर मधु के पास चली आती है. अखिल और राजुल भी खड़े हो जाते हैं. सोनू बहुत कन्फ़्यूज़्ड. ये चंद पल 'अब क्या होगा' वाले हो रहे हैं मानो.

बहुत ही भावुक हो कर मुग्धा से लिपट गयी -“मुग्धा ,कैसे कहूँ तुम मेरे लिए क्या हो. मैं तो उस अंधकार को ही अपनी नियती मान बैठी थी. तुम और अखिल रोशनी की किरण बन कर आए और हमारे घर को जगमगा दिया. तुम लोगों का यह क़र्ज़ तो किसी तरह नहीं उतार सकूँगी."
उसी साँस में बोले जा रही थी मधु, "एक गुज़ारिश है, मेरी एक किसी अनजाने अनकहे अधिकार के नाते माँग है. देखो इनकार ना कर देना. मेरा दिल टूट जाएगा."

यह कैसा इमोशनल ब्लेक मेल है, कहीं फिर से तो मधु को दौरा नहीं पड़ गया. कहीं सोये हुये साँप ने फिर से तो फ़न नहीं उठा लिया. ख़ुद के सोचों पर नियंत्रण करते हुए मुग्धा ने बहुत स्नेह से रेस्पोंड किया, "बोलो तो सही मधु !"

मधु ने इसरार भारी आवाज़ में कहा, "बस अपने बुटीक को तुम्हें डेडिकेट करना चाह रही हूँ और नाम देना चाह रही हूँ “मुग्धा". प्लीज़ अपनी कन्सेंट दे दो."

मुग्धा ने अखिल की ओर देखा और आँखों से वह कह दिया जिसकी मधु को गहरी अपेक्षा थी. "मधु ! तुम भी." बस ये शब्द थे मुग्धा के.

मुग्धा इस स्नेह से अभिभूत कुछ भी और न कह सकी. उसने राजुल की तरफ़ देखा जिसके  रोम रोम से कृतज्ञता छलक रही थी. राजुल ने कहा -“मुग्धा आख़िर तुम्हारे सहज निर्मल  बहाव ने मेरे मन का हर मैल धो डाला... हृदय से नमन करता हूँ तुम्हें और अखिल को जिन्होंने हमें जीने का ढंग सिखा दिया."

अखिल जो अब तक मूक दर्शक बना हुआ सब देख रहा था बोला -“भाई ये कुछ ज़्यादा ही इमोशनल सीन हो गया ना ..... चलो सभी उपस्थित सज्जन सजनियाँ अपना अपना आसन ग्रहण करें और अपने अपने पेय पदार्थ का सेवन करें."

अखिल की आवाज़ पर सब भीगी आँखों से भी मुस्कुरा उठे.........

(समाप्त)

1 comment:

  1. सुंदर समापन, बहुत बहुत बधाई

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