Tuesday, August 4, 2009

RISHTON KI DOR.................


आज नलिनी का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. यंत्रचालित सी बस घर के काम निबटाने में लगी हुई थी और फिर आके बैठ गयी सोफे पर सोचते हुए..आज दिन की घटनाओ को ...आज दोपहर में किसी काम से वो बाज़ार गयी थी तो हर तरफ चहल पहल थी.दुकानों पर रंगबिरंगी राखियाँ मिठाई की दुकानों पर भीड़ और कितने भाई अपनी बहनों के लिए गिफ्ट खरीदते हुए ..याद आया की कल तो रक्षा बंधन है !!!!.............
अतीत के भवंर में डूबती उतरती वो घर लौट आई .बचपन के दिनों से लेकर जवानी के वो खिलखिलाते पल..भाई के साथ गुज़रे लम्हे सब एक चलचित्र की भांति नज़रों के सामने से गुज़र रहे थे .पापा की लाडली नलिनी कैसे अपने से दो साल बड़े विक्रम की झूठी सच्ची शिकायतें कर उसकी डांट पड़वा देती थी ..और माँ के हाथ के बने लड्डू बराबर बाँट दिए जाने के बाद ..अपने हिस्से के जल्दी जल्दी ख़तम कर टुकुर टुकर तकती थी भाई को खाते देख...तब माँ कैसे घुड़कती थी भाई को..- बहिन देख रही है और तू खा रहा है ..शर्म नहीं आती तुझे..चल दे उसे भी... और विक्रम बेचारा हमेशा घाटे में रह जाता ......कितना सीधा था मेरा भाई..था क्या.. आज भी है..सोचते सोचते नलिनी की आँखें भर आई ...कॉलेज का वो पहला साल..भाई के होने से कितना सुरक्षित महसूस करती थी वो...और विक्रम भी तो हमेशा उसके चारों तरफ अपनी निगाहों का जैसे घेरा बना के महफूज़ रखता था उसे ...घूमने फिरने पिकनिक पिक्चर हर जगह हंसते खिलखिलाते दोनों भाई बहिन अपने दोस्तों में सबके प्रिय थे ...अविरल से प्यार की भनक भी भाई को ही सबसे पहले मिली थी ...और उसने ज़मीन आसमान एक कर दिया था उसकी जांच पड़ताल करने में.सब तरफ से तसल्ली होने के बाद उसने नलिनी के सर पर अपना हाथ रख दिया था - तू चिंता मत कर मैं हूँ न... और फिर सचमुच जैसे ढाल बन गया था वो परिवार के हर तीर के सामने..गैर जाती का अविरल उस ज़माने में इतनी सहजता से स्वीकार्य नहीं था पर विक्रम ने उसे उसकी खुशियों से मिलाने का अपना वादा बखूबी निभाया .....
हर राखी पर सुबह से ही नलिनी घर को सजाती..दरवाजों पर सोन रखती..एक तरफ नलिनी एक तरफ विक्रम लिख कर सौ सौ दुआएं देती भाई को ..और अपनी स्नेह्सिंचित राखी भाई की कलाई पर बाँध मजबूत कर लेती अपने प्यार की इस डोर को ..पर......... एहसास नहीं था उसे की ये डोर कमज़ोर हो सकती है..दुनियावी बातों का असर इस रिश्ते को भी धुंधला कर सकता है ........
शादी के बाद नलिनी हर राखी पर स्वयं अपने हाथों से राखी बांधने घर आया करती थी ...भाई की शादी के बाद भी दस्तूर जारी रहा शुरू में कुछ साल भाभी का प्यार बरसता रहा नलिनी पर पर धीरे धीरे नलिनी को दूरियों का एहसास होने लगा और उसने अपना आना बस रक्षाबंधन तक ही सीमित कर लिया ...एक बार वो बिना बताये भाई को चौंकाने के लिए घर पहुँच गयी ..बहुत उत्साह से दोनों भतीजों के लिए कपडे खिलोने..भाभी के लिए साडी..और भाई के लिए घडी की खरीदारी की थी उसने .घर की doorbell दबाने के लिए जैसे ही हाथ बढाया उसने भाभी की अन्दर से आती हुई आवाज़ ने उसका हाथ रोक दिया..भाभी फ़ोन पे बात कर रही थी...

हाँ माँ ..अच्छा है इस बार दीदी नहीं आ रही है..न ही उनका कोई फ़ोन आया ..वरना विक्रम तो जैसे घर लुटाने के लिए तैयार रहते हैं बहिन के लिए .....ह्म्म्म हम्म... हां.. हाँ और क्या.. हमारे भी तो खर्चे बढ़ रहे हैं.. अब आती है तो खाली हाथ विदा भी तो नहीं कर सकते..उसका क्या है.. इंजिनियर पति है.. खता पीता घर है.. पर मेरे पास तो इतना पैसा नहीं है न.. आ जाती है तोहफे ले कर अपने पैसों का रौब दिखाने.. फिर उसी हिसाब से हमें लौटना भी तो पड़ता है....जैसे तैसे तो मैंने उसका आना साल में एक बार तक सीमित कराया है...... अच्छा है ..आना बंद हो तो मैं चैन पाऊं .....

नलिनी स्तब्ध सी ..वंही की वंही पत्थर सी जम गयी... आँखों से आंसुओं की धार फूट पड़ी.मन हुआ वंही से वापस लौट जाए पर अविरल को क्या कहेगी.. भाभी का ये ओछापन बता पाएगी उन्हें?? कुछ पल यूँही खड़ी रही ..भाभी की आवाज़ आनी अब बंद हो गयी थी ..खुद को संयत कर करीब १५ मिनट के बाद नलिनी ने घंटी बजायी.भाभी ने दरवाजा खोला और एक पल के लिए हतप्रभ हो..गले से लगा लिया नलिनी को..
-अरे दीदी फ़ोन कर देती.हम आ जाते लेने .विक्रम तो कितने उदास थे ..बच्चे भी बुआ क्यूँ नहीं आ रही ..रट लगाये हुए थे ...विक्रम कितने खुश होंगे.. .....

और नलिनी एक फीकी मुस्कराहट के साथ सोच रही थी की इंसान कितने मुखौटे लगा सकता है ..उसी पल उसने अगले साल से न आने का प्रण कर लिया था ....कितने साल उसे अपने न जाने के झूठे कारन अविरल से बताने पड़े थे...फिर उनको भी समझ आ गया था ..एक कर्त्तव्य की तरह वो राखी भेज दिया करती थी..भाई ने एक दो बार पूछा फिर वो भी अपनी दुनिया में ज्यादा सहज हो गया .
हर राखी के बाद भाभी का दो line लिखा हुआ moneyorder आ जाता था जो नलिनी को एक भारी बोझ सा लगने लगा था ... रक्षाबंधन से १५ दिन पहले से दुविधा शुरू हो जाती..राखी भेजूं की न भेजूं .पूरे साल खबर भी नहीं मिलती भाई की...कितना बदल देता है वक़्त इंसान को...राखी भेजने से ही क्या रिश्ता निभता है.....मेरे बच्चे कब बड़े हो गए..कब कॉलेज गए .. उनके मामा को पता ही नहीं है ....राखी भेजना और जवाब में पैसों का आ जाना ..वितृष्णा होती थी नलिनी को ...उन दोनों के बीच का प्यार स्नेह कब भौतिकता की भेंट चढ़ गया पता ही नहीं चला ....अंतत: नलिनी ने राखी भेजना भी बंद कर दिया और फिर किसी शुभचिंतक से पता चला था की भाभी ने खूब कसीदे काढ़े हैं उसके लिए ...
---भाई की जरा चिंता नहीं है..अरे बड़ी होगी अपने घर की.... राखी भी नहीं भेजती... मैं तो खुद ही खरीद कर बंधवा देती हूँ.. रस्म तो निभानी चाहिए...

जिस साल राखी बिना भेजे आये हुए moneyorder को वापस किया था नलिनी ने ..वही साल था सारे धागों के टूट जाने का ..... वो डोर जिसके हर बात में विक्रम और नलिनी का प्यार बसा था.... खुलती चली गयी और एक एक करके धागे टूटते चले गए .... और आज नलिनी को ये भी पता नहीं चला की रक्षाबंधन आ चुका है ............................

सोचते सोचेत कब अँधेरा हो गया नलिनी को पता ही नहीं चला..
अविरल की आवाज़ ..--------अरे भाई नीलू कंहा हो..ये अँधेरा क्यूँ कर रखा है घर में....?

खुद को संभालती नलिनी उससे पहले बत्ती जल उठी... और उसकी सूजी आँखें देख अविरल सब कुछ समझ गए..

मुस्कुराते हुए उसे बाँहों में समेटा और कहा ---छूटने दो नीलू जो छूट रहा है..पकड़े रहोगी तो कभी खुश नहीं रह पाओगी.. वो खुश हैं.. स्वस्थ हैं.. और तुमको क्या चाहिए..तुम दिल से दुआ करो ..और तुमको क्या पता विक्रम भी तुमसे जुड़ा हो .. रिश्तों की डोर चाहे बाहरी तौर पर न दिखे पर मजबूत इतनी होती है कि सिर्फ उससे बंधे हुए लोग ही उसका जुडाव महसूस कर सकते हैं ...खुश रहो और किसी भी बात का कोई गिला मत रखो..यही तुम्हारे भाई को तुम्हारा राखी का गिफ्ट होगा ..

नलिनी मुस्कुरा उठी.. और ये सोचते हुए चाय बनाने चल दी कि कल सुबह सबसे पहले उठ कर भाई को फ़ोन करेगी..और अपने रक्षाबंधन कि एक खूबसूरत शुरुआत करेगी...

2 comments:

  1. मानवीय भावनाओं का चित्रण तो कोई आपसे सीखे .जितनी दक्षता से आप कवितायों को अनंत ऊंचाई देती हैं उतनी ही दक्षता से कहानी में भी असीम भावनाएं भर देती है आप तो सच में अपना मूल्यांकन ही नहीं करती हैं कभी ..पहचानो खुद को मुदिता जी
    ईश्वर ने आपको कुछ विशिष्ट बनाया है आप जगत की हैं आप प्रभु की अनुपम कृति हैं!!

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  2. बस इस तरह रिश्तों का दूर हो जाना एक आह को जन्म देता है । सुंदर कथा शिल्प ।

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