Sunday, March 28, 2010

है तुझे भी इजाज़त...(चौथी किस्त )

एक अलग ही ऊर्जा का एहसास हृदय में समेटे रेवती सभी कलाकारों का धन्यवाद कहती घर को लौट आई .चंद्रप्रभा जी से फ़ोन नम्बर्स का आदान प्रदान हुआ और चंद्रप्रभा जी ने उसे ताकीद करी कि वह उनसे संपर्क बनाये रखेगी.हृदय से उठते आनंद को रेवती पहली बार महसूस कर रही थी .कुछ ऐसा जो उसका स्वयं का है, उसको , दुनिया ने सराहा है ,ये एहसास आनंदित कर रहा था उसे. ये सुखद क्षण स्नेहा से बाँट लेने का मन हुआ उसका पर वह तो इस समय पिता के साथ होगी यह सोच कर रोक लिया उसने खुद को ..एक अव्यक्त ख़ुशी के एहसास से परिपूर्ण भरपूर नींद ली उसने और सुबह तरोताजा मन से उठ कर संजय के आगमन कि तैयारियों में जुट गयी.उसकी पसंद का खाना ..उसके मन की गृह सज्जा.. घर का कोना कोना चमका डाला.स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि संजय के आगमन का ऐसा इंतज़ार उसने कब से नहीं किया !! और यह सब करते हुए उसे ख़ुशी हो रही है भले ही संजय इन सबको देखे भी नहीं पर उसने अपने मन की ख़ुशी के लिए यह सब किया है इसलिए उसे शायद थकन भी महसूस नहीं हो रही ..करीब ११ बजे तक सब कामों से निवृत हो कर वह नहा धो कर तरोताजा हो गयी और काटन की चंदेरी साड़ी में उसका सुदृढ़ शरीर खिल उठा .४० पार की रेवती किसी भी तरह ३५ वर्ष से ज्यादा उम्र की नहीं लगती थी .आईने में स्वयं को देखा तो चौंक गयी ..यह बिना श्रृंगार के रूप कैसे दमक रहा है..समझ नहीं पायी कि चेहरा तो मन का दर्पण है..अंतर्मन तृप्त महसूस कर रहा है तो चेहरे पर उस तृप्ति कि छाया भी दिखाई पड़ रही है .. .. अभी इन विचारों में डूब उतर ही रही थी कि टैक्सी के रुकने की आवाज़ आई ..और संजय के बेल बजाने से पहले ही उसने दरवाज़ा खोल दिया .संजय रेवती का खिला खिला सा रूप देख कर चकित था ..पर प्रशंसा करना जैसे उसने सीखा ही नहीं था.ना जाने कौन सा काम्प्लेक्स उसको अन्दर ही अन्दर सालता था जिसके कारण रेवती में उसे कोई गुण नज़र नहीं आता था एक नज़र रेवती पर डाल संजय अन्दर चला आया ..और बहुत औपचारिकता से पूछा -"कैसी हो? " रेवती की आँखों में झिलमिलाते दीयों में जैसे पानी पड़ गया हो..चेहरा भी उतर गया उसका ..पर अगले ही क्षण उसने समझा लिया खुद को ..और संजय के लिए चाय बनाने रसोई में चली गयी ..संजय मुंह हाथ धो कर अखबार पढने बैठ गया था जब रेवती चाय बना कर लायी औपचारिक सा माहौल घुटन पैदा कर रहा था रेवती के मन में॥ स्नेहा होती थी तो वो सेतु बनी रहती थी दोनों के बीच ..अब जैसे बातों का कोई सूत्र ही हाथ नहीं रहा हो॥
अचानक से रेवती पूछ बैठी - " स्नेहा कैसी है ?" ..संजय ने चौंक कर अखबार से मुंह
उठाया और हुंकार भरी - " ह्म्म्म अच्छी है स्मार्ट हो गयी है "
और फिर चुप्पी ..उफ़ रेवती का मन कर रहा था भाग जाये इस घुटन के
महाल से कहीं दूर , जहाँ वह खुल कर सांस ले पाए ..
अचानक संजय ने अखबार से मुंह उठा कर कहा -" ये कौन सानया शौक
पाल लिया है तुमने ?"
रेवती को कुछ समझ नहीं आया वह प्रश्नवाचक
दृष्टि से संजय को देखने लगी.संजय ने अख़बार में छपे एक समाचार को उसके सामने फ़ेंक दिया ..रेवती ने अखबार उठा कर देखा उसकी तस्वीर छपी थी स्टेज पर बैठ कर गाना गाते हुए .साथ में उस संगीत संध्या की खबर छपी थी ..रेवती कुछ नहीं कह सकी चुपचाप नज़रें झुकाए बैठी रही ..हृदय की धड़कन यूँ बेकाबू हो रही थी जैसे वो कोई चोरी करती पकड़ी गयी हो.
संजय ने रूखे शब्दों में
कहा - "बढ़िया है !वहां बेचारा पति पैसे कमाने के चक्कर में घर से बेघर रह रहा है और यहाँश्रीमती जी रास रंग में व्यस्त हैं॥
कट कर रह गयी रेवती
ऐसी ओछी सोच का वो जवाब भी क्या दे सुबह के सारे उत्साह पर जैसे पानी पड़ गया हो..मन वितृष्णा से भर उठा इस इंसान के लिए कुछ भी करना बेमानी है॥
संजय तो यह कह कर नहाने चला गया और रेवती दिल ही दिल में आंसू गिराती रही॥ आँखों से छलकने को बेताब आंसू..रोकने सीख लिए थे उसने संजय के सामने॥ जहाँ कद्र ना हो वहां इन मोतियों को नहीं लुटाना चाहिए ..
इतने मन से बनाये खाने को परोसने का उत्साह भी ख़तम हो गया था रेवती का.यन्त्रचालित सी वह टेबल पर खाना लगा रही थी और सोच रही थी कि कैसे कटेगा यह एक महीना ऐसी घुटन के साथ ..संजय खाना खाने आया तो रेवती की मातमी सूरत देख कर भड़क उठा -" क्या यार इतने समय बाद घर आओ तो यह मुहर्रमी चेहरा दिखता है इसी लिए आना छोड़ दिया है मैंने" ..झुंझलाता हुआ वो खाना खाने बैठ गया ..रेवती की आँखें फिर भीग उठी॥संजय क्या कभी उसके मन को नहीं समझ पायेंगे ? ..चुपचाप वह खाना परोसने लगी॥ पहला कौर खाते ही संजय बोल उठा .-"बस यही चीज़ मिस करता हूँ मैं वहां..घर का खाना ."..रेवती को सुकून मिला कि कुछ तो अच्छा लगा संजय को..सरल हृदय रेवती जरा सी बात पर खुश हो जाती थी जरा सी बात पर आँखें भिगो लेती थी ..और यही व्यक्तित्व संजय समझ नहीं पाता था ..दो सर्वथा भिन्न प्रवृतियों के इंसान सिर्फ वैवाहिक रस्मों से एक दूसरे से कैसे जुड़ सकते हैं ये रेवती कभी नहीं समझ पायी..सारी ज़िन्दगी जैसे अपेक्षाओं और समझौतों में ही निकल जाती है और .
उसी को लोग सुखद वैवाहिक जीवन का नाम दे देते हैं

(क्रमश:)

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