Wednesday, October 10, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (भाग ६)


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(अब तक आपने पढ़ा कि कॉलेज फ्रेंड्स के 25 साल बाद मिलने पर मुग्धा अतीत से होते हुए वर्तमान के राजुल तक पहुंचती है ..उसके व्यवहार से क्षुब्ध मुग्धा उसके इस व्यवहार के पीछे छिपे कारणों को जानने को उत्सुक हो उठती है ...अब आगे ....)
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घर आ कर उसने अखिल को राजुल द्वारा  की गयी टिप्पणियों के बारे में बताया.. अखिल ने कहा -" यह बहुत जड़ों तक पैठ जाता है कई लोगों के दिमाग में ..लड़की लड़के का फ़र्क ..लड़कियों के लिए बनाये हुए कुछ मानक जो न जाने किन परिस्थितियों में इजाद हुए ..और खुद की कुंठित भावनाएं इन सभी का मिला  जुला असर पड़ता है एक व्यक्ति की सोच पर ..तुम तो राजुल और उसके परिवार को बचपन से जानती हो ..कैसा था इसका बचपन का बैकग्राउंड ??

मुग्धा ने बताया- उसके मम्मी पापा संकीर्ण सोच रखते थे ...उस पर घर वालों के मापदंडों का बहुत प्रेशर था ,यह करो यह मत करो ..पढाई में अव्वल रहो ,ऊंचा चरित्र रहे इसके लिए लड़कियों से दूर रहो ...हर बात में critisize करते थे उसके परिवार के लोग ..उसे कुछ नया करते देख बोलते कि पढाई करो ये सब काम नहीं आएगा ..बारहवीं क्लास में उसने एक ट्रांसमीटर बनाया था उस पर भी उसकी तारीफ करने के बजाय यही बोला गया कि समय और पैसे की बर्बादी..बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला नहीं मिल पाया था तब भी बहुत सुनने को मिलता था उसे ..हमारे साथ के एक लड़के के नम्बर इससे कम होते हुए भी उसे reservation policy के तहत एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग institute में एडमिशन मिल गया था उसका भी बहुत नकारात्मक असर हुआ था राजुल पर.

अखिल बहुत गंभीरता से मुग्धा की बातें सुन रहा था ,एक गहरी हुंकार के साथ उसने कहा – इसीलिए उसके व्यवहार में एक तरह का विद्रोह पनप गया था ,वह  अटेंशन और अप्रूवल के लिए लोगों का मुंह देखता था और खुद के प्रति हीन भावना घर कर गयी .

अपना चश्मा उतार कर मुग्धा को निहारता हुआ अखिल बोला:
 "an inferiority complex occurs when the feelings of inferiority are intensified in the individual through discouragement or failure .

 राजुल में इस inferiority complex का बीज उसी समय पड़ गया था जो आज एक भरा पूरा वृक्ष बन चुका है और इसी के चलते शायद वह suffer कर रहा है ....आजकल मनोवैज्ञानिक inferiority complex को “ lack of covert self esteem” भी  कहते हैं ."

मुग्धा ने पूछा –क्या इस हीन भावना का असर हमेशा नकारात्मक ही होता है ?

अखिल बोला : Alfred Adler नामक मनोवैज्ञानिक के अनुसार हम सभी में inferiority की फीलिंग होती है ,यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह स्वस्थ सामान्य जीवन जीने के प्रयास के लिए stimuli हो सकती है यदि हम इसको समझ सकें और सकारात्मक दृष्टिकोण अपना कर इसे रूपांतरित कर सकें ..
हाँ !यह एक बीमारी जैसी अवस्था में बदल जाती है जब व्यक्ति  को खुद की अनुपयोगिता का एहसास बहुत गहरा होने लगे और वो प्रेरित होने के बजाय एंग्जायटी और डिप्रेशन की तरफ जाने लगे ..ऐसे केस में डेवेलप होने के बजाय डिक्लाइन होने लगता है इंसान और राजुल का केस कुछ ऐसा ही लगता है ..रहा सवाल उसके विकृत नजरिये का तो बचपन की टोकाटाकी ,लड़की लड़कों में फरक करना उसके अस्वस्थ मन में जड़ें जमा गया है ...पुरुषों को अधिकारिक्ता और possesiveness का एहसास हमारा समाज सदियों से कराता आया है और इसीलिए पुरुष और स्त्री के बीच मित्रता का खयाल  ही ऐसी कुंठित सोच वाले पुरुषों को अस्तव्यस्त कर देता है ..उनको लगता है कि स्त्री को लगाम को खींच कर रखना चाहिए ..जबकि उन्हें यह नहीं पता कि बेलगाम तो उनके अंदर की दमित भावनाएं हैं जो किसी स्त्री को सहज व्यवहार करते देख सरपट दौड़ने लगती है और जिसका दोषारोपण वे उस स्त्री पर करते हैं ....एक सीमित परिधि में देखना  और कुछ परिभाषाओं में किसी भी व्यक्तित्व को फिट करने की कोशिश  करना ऐसी सोच को बढ़ावा देता है ..सही गलत का निर्धारण ऐसे लोग अपनी मान्यताओं के हिसाब से करने लगते हैं ..और यह नहीं समझ पाते कि दूसरों से अधिक उनका खुद का नुकसान हो रहा है.. मित्रता  से वंचित ..मित्र न मिल पाने का दोष पूरे ज़माने पर रख देते हैं .. उनके दुखों के लिए हर कोई जिम्मेदार होता है .. सिर्फ उन्हें खुद को छोड़ कर...."

मुग्धा ने कहा -' हाँ ..पुराना मित्र होने के नाते मुझे उससे सहानुभूति है .. मैं चाहती हूँ कि वह ज़िंदगी को विस्तृत तौर पर देख पाये ..हो सकता है अभी तक उसकी कुंठित सोच को झकझोरने वाला कोई न मिला हो .. कई बार जिसे हम मित्र समझते हैं वही हमारी कुंठाओं को बढ़ावा देने वाला साबित होता है ..दूसरे आयाम न दिखा कर उसी सोच को समर्थन देना मित्रता कतई नहीं ..एक मित्र होने के नाते मैं उसे इस तरह की सोचों के दलदल से बाहर  निकालना  चाहती हूँ ..सफल होना या न होना अलग बात है..किन्तु ईमानदारी से प्रयास करना चाहती हूँ .."

अखिल ने कहा - " हाँ यही तो एक होशमंद इंसान होने के नाते हमारा कर्तव्य है ..यदि हमें कोई बात ऐसी लगती है जो किसी को  एक बेहतर जीवन जीने में सहायता कर सकती है उसे हमें दूसरों तक पहुँचाना अवश्य चाहिए ..अपनाना या न अपनाना उसकी मर्जी ..बस एक बात का ध्यान रखना ..वह तुम्हारे लिए ओवर प्रोटेक्टिव है ..कहीं कोई गहन भावना भी है ..तुम्हारी इस कंसर्न को वह कहीं एक 'प्रेम प्रसंग' समझने की भूल भी कर सकता है ..तुम मदद की मंशा लिए एक मनोविज्ञानिक केस स्टडी करते करते खुद न उलझने लगो.."

मुग्धा शरारत से मुस्कारते हुए कहा - " मेरा इलाज तो तुम कर ही लोगे .." और इसके साथ ही दोनों हंस पड़े ..मुग्धा मन में सोचने लगी कि कितने पति पत्नी होते होंगे इस तरह के मित्र .!! क्यूँ समझ नहीं पाते कि यह रिश्ता इसी मित्रता की भावना से पनप सकता है सुन्दर फूल खिला सकता है और इसी तरह की नयी पौध भी तैयार कर सकता है ...जीवन का सबसे गहन रिश्ता किस तरह परम्पराओं और मान्यताओं की भेंट चढ जाता है लोग कभी जान ही नहीं पायेंगे शायद ..




क्रमशः

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