Sunday, October 14, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (अंक ७)



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अब तक का सार संक्षेप : मुग्धा एक उदार विचारों वाली सुसंस्कृत युवती है. उसका जीवन साथी अखिल एक मनोचिकित्सक. दोनों के बीच पति पत्नी से कहीं अधिक दोस्तों जैसा रिश्ता और आपसी समझ है. राजुल मुग्धा का बचपन का सहपाठी व्यक्तित्व में हीनभाव, सामाजिक पारिवारिक अनुकूल के चलते स्त्रियों के बारे में दक़ियानूसी सोच, असफलता जनित कुंठाएँ, राजुल का मुग्धा का कोलेज साथियों की पार्टी में मिलना, व्यंग्यात्मक और आधिकारिकता की बातें करना. मुग्धा का करुण हृदय अपने बचपन के दोस्त राजुल की मदद करना चाहता है अपने संगी अखिल की सहायता से.

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अंक सातवाँ
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अखिल की आवाज़ से मुग्धा ख़यालों से वापस लौटी ...अखिल कह रहा था कहाँ खो गयीं मैडम !! ज़रा कुछ चाय शाय इस गरीब को भी मिल जाती तो .....
 मुग्धा मुस्काराते हुए चाय बनाए चल दी  ...और अखिल उठ कर उन दोनों की पसंदीदा गज़लों का CD लगाने लगा ..फिज़ा में मेहंदी हसन की मखमली आवाज़ “ ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं “...बहने लगी ...चाय की ट्रे ले कर आती मुग्धा को अर्थपूर्ण मुस्कराहट के साथ देखता हुआ अखिल गुनगुना उठा “ मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ... और मुग्धा के गाल किसी किशोरी की तरह लाल हो उठे .... और अखिल खिलखिला कर हंस पड़ा ,बोला – यही रंग देखना था मुझे ..यार इतने गंभीर डिस्कशन तुम्हारी शोखी चुरा लेते हैं ....

मुग्धा कुछ कह पाती इससे पहले अखिल के फ़ोन की घंटी बज उठी ... अखिल ने एक नज़र मुग्धा पर डाली और फ़ोन उठाया ,डॉ वर्मा थे दूसरी तरफ ..अखिल ने कहा कि  कुछ अर्जेंट न हो तो वो उनको १५ मिनट बाद कॉल बैक करता है ...और मुग्धा मुस्कुरा दी .. अखिल की ऐसी ही बातें उसके मन को गहरे छू जाती हैं...

फ़ोन रख कर अखिल ने मुग्धा की आँखों में झाँका और बोला-अब कहिये जनाब ...

मुग्धा जानते बूझते बोली –फ़ोन क्यूँ रख दिया ..बात कर लेते ...

अखिल शरारत से बोला –अरे चाय ठंडी हो जाती ....और फिर मेहँदी हसन साहब भी तो बुरा मान जाते ....कहते हुए खिलखिला दिया ...

अगले दिन इतवार था ...अखिल और मुग्धा के लिए रिलैक्स्ड दिन ....मुग्धा उनींदी  ही थी जब हर इतवार की तरह अखिल चाय की ट्रे ले के हाज़िर हो गया ..भोर की किरणों ने मुग्धा के चेहरे  को और भी रौशन कर दिया था .. मुग्धा के माथे पर चुम्बन अंकित करते हुए अखिल ने उसे जगाया तो मुग्धा को लगा जैसे पूरी कायनात उसकी बाहों में सिमट आई है....उससे ज्यादा खुशनसीब इस दुनिया में कोई नहीं ..अखिल के २० सालों के साथ ने उसे कितना कुछ दे दिया है ... उसके व्यक्तित्व को निखारने से ले कर उसकी मेधा को सही दिशा देने में हर समय अखिल उसके साथी के रूप में कदम दर कदम चला है ....

चाय का घूँट लेते हुए मुग्धा ने कहा – कितने साल हो गए तुमको चाय बनाते हुए ...

अखिल बोला –यार अब तुम जैसी नहीं बनती तो नहीं बनती ... पता नहीं  तुम्हारे हाथों का स्वाद आ जाता है क्या चाय में ...

मुग्धा खिलखिला उठी ,बोली –दिल से नहीं बनाते होगे न... मन तो तुम्हारा भटकता रहता है अपनी गोपियों में जो पेशेंट बनकर तुम कान्हा संग रास रचाने चली आती हैं कंसल्टेशन और काउन्सलिंग के बहाने.....

अखिल मुंह लटका के बोला –यार मैं तो अपनी पूरी बीइंग से बनता हूँ ..अपनी प्यारी बीवी के लिए ..लेकिन उसे कभी पसंद ही नहीं आती .....अब दूसरा राउंड खुद ही बनाये ...तो मुझे भी तृप्ति मिले ...

बेचारा अखिल गोपियों के बाबत अपनी ऐयर क्लीयर करे इस से पहले ही मुग्धा अगला राउंड चाय बनाने  के लिए उठ गयी और अखिल ने  लिविंग रूम में आ कर TV ऑन कर दिया ..इतवार की सुबह दोनों का पसंदीदा प्रोग्राम ‘रंगोली’ शुरू हो रहा था .. रंगोली के दौरान दोनों जैसे बच्चे बन जाते थे ...मुग्धा का फ़िल्मी गानों के प्रति बहुत रुझान था और उसे ज्यादातर गानों की जानकारी होती थी मसलन कौन सिंगर कौन सी मूवी कौन से एक्टर और उसे इसका गुमान भी था .. अखिल से पूछ बैठती कि  पहचानों कौन एक्टर और अखिल जानबूझ कर गलत बताता ...और मुग्धा बहुत गर्व से कहती नहीं ये नहीं है ..अखिल कहता लग जाए शर्त १००-१०० की .... और फिर हार जाता ...और मुग्धा शर्त जीत के खुश होती और अखिल उसकी ख़ुशी से...आज भी यही हुआ ....गाना बज रहा था “ये पर्वतों के दायरे ...” और हीरोइन थोडा कम जानी पहचानी सी थी....मुग्धा इतरा  के बोली बताओ कौन है....अखिल को नाम याद तो आ रहा था लेकिन वो मुग्धा के उत्साह पर पानी नहीं फेरना चाहता था ..बोला मुमताज़ लग रही है ...मुग्धा खिलखिला के हंस पड़ी...बोली तुमको तो सब एक सी लगती हैं ...अखिल बोला अरे नहीं..वही है... लगा लो शर्त... मुग्धा बोली आज तो १००० की लगाउंगी ..अखिल बोला भाई ये ज़ुल्म क्यूँ ..मुग्धा बोली -मुमताज़ तुम्हारी फेवरिट हीरोइन है और उसे ही नहीं पहचानते ...ये तो शर्त के साथ साथ जुरमाना भी हुआ .... अखिल भी अड़ गया कि  मुमताज़ ही है ...लग गयी शर्त ..और फिर मुग्धा ने बड़े गर्व से बताया की ये कुमुद चुगानी है ... और अखिल झूठा मातम मनाता हुआ सर पकड़ के बैठ गया “ लो इतवार की सुबह सुबह चूना लगवा दिया” ..और इन खुशनुमा पलों को जीते हुए दोनों ने सन्डे टाइम्स उठा लिया ..

मुग्धा की नज़र ह्यूमन साइकोलॉजी पर आधारित एक आर्टिकल पर पड़ी और उसने अखिल से कुछ पूछने को मुंह खोला ही था कि अखिल ने उसके हाथ से पेपर छीन लिया..बोला-“बस अब तुम शुरू हो जाओगी मेरा दिमाग खाली करने को..यार सन्डे को तो इन सब को backfoot पर रख दो.. चलो movie देखने चलते हैं “ ...कह कर पेपर  में नज़रें दौड़ाने लगा एक एक करके सब मूवीज के नाम बताये लेकिन मुग्धा का मन किसी पे अटका ही नहीं उसके दिमाग में तो साइकोलॉजी का कीड़ा कुलबुला रहा था और राजुल उसके दिमाग से हट नहीं रहा था ...उधर अखिल मूड में नहीं था गंभीर विषय को छूने के लिए ...

मुग्धा को अनमना देख अखिल पूछ बैठा- क्या हुआ देवी जी ..अब कौन सा कीड़ा घुस गया दिमाग में ...

मुग्धा बोली –यार आर्टिकल में लिखा है कि सोशल कंडीशनिंग का बहुत व्यापक असर होता है इस तरह की सोचों और व्यवहार पर.. राजुल के बारे में सोच रही थी की उसका व्यवहार इतना अजीब क्यूँ हैं ..रात तुमने  बात को उसके इन्फिरियोरिटी काम्प्लेक्स की तरफ घुमा दिया  और उसके मेरे प्रति अजीब व्यवहार के कारण को टाल गए   ....

अखिल ज्ञानी की मुद्रा में बोला- “बालिके !!! जितनी तुम्हारी पाचन शक्ति है उतना ही परोसूँगा न मैं ...कल भर के लिए उतना काफी था फिर एक layman की तरह बाकी बातों को टच किया था न उसमें कौन सी राकेट साइंस है ...अब तुम्ही देखो न..बचपन से देखा है मुग्धा देवी ने अपनी माताश्री को अपने पापा पर हुकुम चलाते तो  इस मासूम अखिल पर वही अप्लाई हो जाता है..” छेड़ते हुए बोला अखिल

मुग्धा सुन के चिढ़ गयी बोली- कब मैंने हुकुम चलाया तुम पर ...

अखिल ठहाके लगा के हंसा और शरारत से गाने लगा “जान मेरी रूठ गयी जाने क्यूँ हमसे ...आफत में पड़ गयी जान “ ...

मुग्धा भी उसकी अदाओं पर अपनी हँसी नहीं रोक पायी  ...लेकिन उसको तो राजुल की सोशल कंडीशनिंग की तह तक पहुंचना था ..अखिल को पटाने का तरीका जानती थी वो..

बोली – गोभी के पकोड़े और सूजी का हलवा खाओगे नाश्ते में.... अखिल के चेहरे पे ज्यूँ १००० वाट का बल्ब जल गया हो...बोला हाँ हाँ क्यूँ नहीं ..लेकिन उससे पहले एक चाय और चाहिए .... मुग्धा उठ के चाय बनाने चल दी और अपनी कुक को ज़रूरी इंस्ट्रक्शन दे कर बोली तुम सिर्फ तैयारी करो..मैं खुद बनाउंगी आज सब कुछ ..





(क्रमशः)

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