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कॉलेज में उसी 'राजुल' को अपने साथ की सीट पर बैठा देख कुछ पल के लिए उसे असुविधा सी महसूस हुई किन्तु 'राजुल' का मुस्कुराता चेहरा देख उसने खुद को आश्वस्त किया कि अब हम बच्चे नहीं हैं ..और शायद राजुल पुरानी सभी बातें भुला कर एक नयी दोस्ती की शुरुआत कर सके ..यह सोच कर उसने भी उस मुस्कुराहट का प्रतिउत्तर हलकी मुस्कुराहट से देते हुए पूछ लिया -"कैसे हो ? "
राजुल ने कहा," मैं ठीक हूँ ...तुम ? "
मुग्धा बोली 'मैं भी ठीक हूँ .."
इतने में सर आ गए और क्लास शुरू हो गयी ...
समय अपनी गति से बढ़ता रहा ..पढाई में 'राजुल' और 'मुग्धा ' दोनों ही मेधावी थे ..दोनों एक दूसरे की यथासंभव सहायता करते और नोट्स का आदम प्रदान करते ..कि अचानक एक दिन मुग्धा ने अपनी किसी दोस्त के जरिये सुना कि राजुल के घर में उसे ले कर बहुत क्लेश हो रहा है ..राजुल की मम्मी नहीं चाहती कि वह मुग्धा के साथ बात करे ..क्यूंकि मुग्धा एक बदचलन लड़की है . उनके बेटे की बदनामी मुग्धा के कारण हो रही है... और राजुल की बहन ने भी कहा कि वह नहीं चाहती कि उसका भाई एक कैरेक्टरलेस लड़की से बात करे .लेकिन राजुल मुग्धा से बात करना छोड़ने को तैयार नहीं ...मुग्धा यह सुन के मानों ज़मीन पर आ गिरी.. राजुल की बहन 'तनुश्री' जो उससे कितनी अच्छी तरह मिलती है.. ढेरों बातें करती है ..पीठ पीछे उसके लिए ऐसा कैसे कह सकती है.. और मुग्धा चरित्रहीन है !! ...क्यूंकि वह बिना किसी पूर्वाग्रह के लड़कों से बात कर पाती है.. लेकिन सामने सामने शालीन और छुईमुई बने रहने और छुप छुप कर लड़कों से मिलने वाली लडकियां बहुत सुसंस्कृत और चरित्र वाली हैं !! क्या है कैरेक्टर की परिभाषा?? मुग्धा को घर से किसी बात के लिए रोक टोक नहीं थी और इसीलिए वह एक जिम्मेदार युवती थी हर किसी से सहजता से मिलना बात करना बिना किसी कंडिशनिंग के उसके व्यक्तित्व में शुमार था और शायद यही उसे बाकी लड़कियों से अलग करता था ...तथाकथित चरित्रवान लड़कियों से ...
मुग्धा अपनी मम्मी से कुछ नहीं छुपाती थी... उसका मानसिक और भावात्मक संबल उसका परिवार था.. उसने यह सब कह डाला अपनी मम्मी से... और एक बार फिर राजुल और उसकी दोस्ती पर ताले लग गए ...मुग्धा ने अपनी तरफ़ से राजुल से बात करना बंद कर दिया..
ऐसे में एक दिन मुग्धा ने पाया कि किसी दूसरे कॉलेज का एक मवाली सा लड़का रोज ही उसका पीछा करता है जब वह कॉलेज आती है ..और ३-४ दिन बाद तो उसने उसका रस्ता रोक कर बात करने की कोशिश करी .. मुग्धा अकेली आती थी अपनी साइकल पर ..वो बुरी तरह घबरा गयी ..और उसे एकमात्र सहारा राजुल ही दिखा जिससे वह मदद मांग सकती थी . किन्तु जब उसने राजुल से बताया तो उसने कहा- " अपना मतलब पड़ा तो मुझसे बात करने चली आई..!!
मुग्धा ने जवाब दिया , "मुझे अकेले आने में डर लगता है ..अगर तुम मेरे हॉस्टल से कॉलेज तक मेरे साथ आओ तो वह लड़का एक दो दिन में पीछा करना छोड़ देगा ."
राजुल ने व्यंग से कहा ,"क्यूँ ? मैं क्यूँ आऊँ ? तुमने ही उसे सिग्नल दिए होंगे ..तभी तो वो आता है तुम्हारे पीछे ..वैसे तो मुझसे बात नहीं करती और अब जरूरत पड़ने पर मदद मांगने चली आई
मुग्धा हतप्रभ सी राजुल को देखती रह गयी...अफ़सोस हुआ उसे कि क्यूँ इतना कमजोर समझा उसने खुद को जो इस घटिया इंसान से मदद मांगने चली आई ..अपनी जंग हर किसी को खुद ही लड़नी होती है ..खुद ही सोचेगी वह कुछ और .. अब इस राजुल के सामने कभी हाथ नहीं फैलाएगी मदद के लिए .. उसे लगा था कि जो कुछ भी पुराने सम्बन्ध रहे हैं उनके नाते ही राजुल को उसकी सुरक्षा की चिंता होगी ..किन्तु उसकी सोच जान कर उसे बहुत अफ़सोस हुआ ...और उस दिन के बाद मुग्धा के लिए राजुल के अस्तित्व का कोई मतलब नहीं रह गया था ..
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क्रमशः
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