Wednesday, October 17, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (अंक ८ )


***********
मुग्धा चाय की ट्रे लेकर जब लिविंग रूम में  पहुँची तो
अखिल मगन होकर रंगोली के गानों के साथ ताल मिलाते
हुए झूम रहा था .”पूछे जो कोई मुझसे बहार कैसी होती है ..”.और अगली लाइन पर मुग्धा को आते देख बोला, -“नाम तेरा ले कर कह दूँ की यार ऐसी होती है “...."यारजी कुछ
भी हो,ओल्ड इज गोल्ड.. ये गाने कभी भी मन से नहीं उतर
सकते.

मुग्धा मुस्कुराते हुए चाय का एक कप अखिल के हाथों में
पकडाते हुए और एक ख़ुद लेकर बोली "अब गाने ही सुनते
रहोगे कि  आगे का भी कुछ सोचना है"

अखिल एयर इंडिया के महाराजा की तरह सीने पे हाथ
रख के झुकते हुए  बोला "जो मल्क़ा-ए-अखिल्स्तान हुकुम
दें....बंदा हाज़िर है ..."

मुग्धा नखरे से बोली –"नौटंकी ! कौन  कहेगा कि  तुम इस
शहर के टॉप मोस्ट सायकाटरिस्ट हो.पागलों का इलाज करते करते खुद पागलों जैसी हरकतें करने लगे हो"

अखिल नाटकीयता भरे मगर फ़लसफ़ाना अन्दाज़ में बोला,
"बेगम मुग्धाजान हर इंसान किसी ना किसी लेवल का
पागल ही होता है ...कुछ के हालात और माहौल 
उन्हें कुछ ज्यादा इम्बैलेंस  कर देते हैं बस इतना ही तो
फ़र्क़ है."

मुग्धा ताड़ गयी थी कि अब लोहा गर्म है और चोट करने
से अखिल का टेक्निकल  ज्ञान झरना शुरू हो सकता है
...झट से पूछ बैठी, "कैसे असर करते है माहौल और
सोशल रेस्पांसिज़ के हालात  किसी के व्यवहार पर ?"

अखिल पहले से ही समझ चुका था की आज मुग्धा से
पीछा छुड़ाना आसान नहीं, इसलिए गंभीरता औढ़  कर चाय
का सिप लेते हुए बोला, "देखो सोशल कंडीशनिंग किसी
भी व्यक्ति को ट्रेनिंग देने के लिए एक तरह का सामाजिक
प्रोसेस है  ताकि  वो समाज में स्वीकृत तौर तरीकों  आदर्शों
और  नियमों   के हिसाब से अपने व्यवहार को सुनिश्चित
करे ..और संस्कार मनुष्य अपने आस पास के माहौल से
इकठ्ठा करता है जैसे माता पिता ,टीचर्स ,राजनीतिबाज़
धार्मगुरु, मीडिया आदि किसी न किसी रूप में हमारी
कल्चरल वैल्यूज ,beliefs एथिकल सिस्टम को हमारे
सामने रखते हैं और इन सबके बीच हम खुद को कहाँ पाते
हैं यह सबसे  महत्वपूर्ण है."

मुग्धा बहुत ध्यान से सुन रही थी अखिल नमकीन बादाम 
कुतरता हुआ बोला – " पर्सनलिटी की ग्रोथ सोशल
कंडीशनिंग पर तो निर्भर करती ही है जो कि सोशल 
कल्चरल फैक्टर्स पर बहुत हद तक  निर्भर होती है .किसी
का भी व्यक्तित्व सिर्फ कल्चर पर निर्भर नहीं कर सकता
इंडिविजुअल डिफरेंसेस का फैक्टर भी बहुत मायने रखता
है. इसलिए एक सी कल्चर और माहौल  में पलने बढ़ने वाले
भाई बहिन भी कभी कभी बहुत ही अलग व्यक्तित्व रखते
हैं."

अखिल दम भर को रुका ,मुग्धा की तन्मयता देख कर आगे
बोला, "सबसे मुश्किल है किसी भी व्यक्तित्व का
मनोवैज्ञानिक आकलन ,मनुष्य मशीन तो नहीं बहुत कुछ है
.यदि सिगमंड  फ्रायड की माने तो मानव व्यवहार
चेतन,अचेतन और अवचेतन का सम्मिलित रूप है जो काम
या यौन द्वारा प्रभावित होता है ,फ्रायड के शिष्य एडलर और
जुंग ने लगभग आपके गुरु के मनोविश्लेषण सिद्धांत को ही
आगे बढाया यद्यपि उसने  फ्रायड के सेक्स पहलु पर
अत्यधिक जोर देने की बात को संतुलित किया था."

गला साफ़ करके और उसके बाद हलकी सी सीटी बजाते
हुए अखिल कह रहा था "व्यवहार बहुत बड़ा फैक्टर होता है
किसी भी इंसान को समझने में ..यधपि आज के दिन
ब्रिटिश अमेरिकन मनोवैज्ञानिक, रेमंड  बी कैटल द्वारा
प्रतिपादित ट्रेट अप्रोच पर आधारित व्यक्तित्व
सिद्धांत को एक बीते दिनों की बात समझते हैं लेकिन मैं
आज भी इसके बेसिक्स को स्वीकारता हूँ और अपने चिंतन
 में रखता हूँ ..केटेल ने चार प्रकार के ट्रेट्स पहचानी जो
मनुष्यों में कुल मिला कर पायी जाती हैं .
पहली है, कॉमन ट्रेट्स, जो सामान्य जनता में पायी जाती है
जैसे आनेस्टी , अग्रेशन  और कोऑपरेशन.

दूसरी होती  है, यूनिक ट्रेट्स जैसे temperamental और
इमोशनल रीऐक्शंस.

अखिल अब किसी राजनेता की मिमिक्रि कर रहा था,

"बहनों और भाइयों ! तीसरी को  कहते हैं, सरफ़ेस ट्रेटस जैसे कि Curiosity, dependebility,tactfullness"

अब "नौटंकीबाज़" अखिल मदारी के अन्दाज़ में बोल रहा था,

"मेहरबान क़द्रदान !......और चौथी को उस्ताद कहते हैं सोर्स ट्रेटस जैसे dominance, submission,emotionality वग़ैरह."

मुग्ध हो रही थी मुग्धा कि उसका मियाँ कितना हुनरमंद है कि सामने वाले को  बांधे रखने के ज़मीनी गुर जानता है.

मुग्धा पूछ बैठी, "उस्ताद ! यह तो बताओ कि किया कैसे जाता है आकलन किसी के व्यक्तित्व का ?"

शांत भाव से अखिल चाय का सिप लेते हुए बोला, "यह
जानने  के लिए कि व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है
वास्तविक जीवन  स्थितियों में वे हैं : ऑब्जरवेशन
टेक्निक्स और situational tests ,लेकिन हमें व्यक्ति
की आत्मकथा (स्वक्ति),प्रश्नोत्तर जीवनी (परकथ्य) आदि
को भी कंसीडर करना होता है."

मुग्धा को इंटरेस्ट आ रहा था किन्तु कभी कभी ऐसा भी लग
रहा था कि कहीं अखिल उसे थकाने के लिए तो इस तकनीकी लेक्चर को लम्बा खींच रहा है ताकि मुग्धा थक हार कर विषय से  रुखसत ले ले...लेकिन मुग्धा जानती थी इस
मनोवैज्ञानिक से काम करवाना, अखिल सयिकोलोजिस्ट
था तो वो सुपर सयिकोलोजिस्ट.

बोली, "अच्छा अब नाश्ता लगाती हूँ बाकी बातें नाश्ते पर
होंगी ...और थोड़ी ही देर में पकोड़ों और हलवे की खुशबु से
घर महक उठा ..और कुछ ही देर में सद्यःस्नाता मुग्धा खूबसूरत महेश्वरी साड़ी में सजी अखिल की मनपसंद नोरिटा की सफ़ेद और सिल्वर क्राकरीसे सजी हुई नाश्ते की ट्रे
ले कर रूम में दाखिल हुई .

अखिल देखते ही निहाल हुआ सा  बोला, "भाई आज तो क़त्ल का पूरा साजो सामान ले कर चली हैं मोहतरमा."

भाप उड़ाती चाय और सोंधी सोन्धी पकोड़ों की खुशबू से अखिल पूरे मूड में आ गया ,लपक कर एक पकोड़ा उठा के मुंह में डालते ही बोला, "यार तुम कमाल हो,क्या ज़ायक़ा है हाथों में...जी करता है चूम ही लूं ."

मुग्धा  आँखों में ढेर सा प्यार भर के बोली -
"अखिल यार वह राजुल वाले सब्जेक्ट पर कुछ प्रैक्टिकल
पहलुओं को बताओ न ..मैं तो आज तुम्हारे श्री मुख से
राजुल के व्यक्तित्व का आकलन जानना चाहूंगी ..सुना है डाक्टर अखिल कांफ्रेंसेज में केस स्टडीज पर प्रेजेंटेशन दे कर झंडे गाड़ देते हैं."

प्यार करने वाला मर्द अपने पेशे में चाहे जितना भी
लोकप्रिय और सफल हो अपने जीवनसाथी की आँखों और
जुबान पर अपना नाम पेशे के एक्सपर्ट के रूप में भी चाहता
है मानों संगिनी एग्जामिनर हो और वो खुद एक नम्बर पाने
का इच्छुक स्टूडेंट.

शुरू हो गया था अखिल....,



क्रमशः

No comments:

Post a Comment