Friday, October 5, 2018

मुग्धा:एक बहती नदी (तीसरा अंक)


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राजुल बी.एससी. करने के बाद न जाने किस शहर में  चला गया और मुग्धा भी उस कॉलेज से स्नातक की पढाई करने के बाद स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी चली आई ..कभी कोई कॉमन फ्रेंड मिलता तो उसके बारे में उड़ती हुई खबरें सुनने को मिलती.. कभी जॉब कर रहा है कभी कोई कोर्स कर रहा है..मुग्धा को अफ़सोस होता कि उसकी मेधा व्यर्थ जा रही है उसमें इंजिनीयर बनने के सभी गुण थे .. बारहवीं कक्षा में ही न जाने कैसे कैसे प्रोजेक्ट बनाता रहता था जो दैनिन्दिन जीवन में उपयोगी होते थे ..किन्तु समय के थपेडों ने न जाने क्या सोचा हुआ था उसके लिए ...

फिर एक दिन एक मित्र के माध्यम से सन्देश आया उसका कि वह मुग्धा से मिलना चाहता है .. मुग्धा को क्या आपत्ति हो सकती थी ..मुग्धा ने तो जैसे कुछ रोकना जाना ही नहीं था .. उसका यही व्यवहार उसे सामाजिक नियम कायदों से अलग करता था .. और शायद यही कारण था उस पर लगे हुए " बदचलन ' के ठप्पे का.. जो " चलन " से हट कर व्यवहार करे वह बदचलन ..!!!

राजुल को क्या बात करनी है इसका जरा भी अंदाज़ा मुग्धा को नहीं था ..

मिलते ही राजुल ने गड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू किये ..पुरानी बातों को याद दिला दिला कर उसको गलत ठहराना ...मसलन ..गाने इतनी तेज आवाज़ में क्यूँ सुनती थी ..सबको अपनी ओर आकर्षित करने का तरीका था क्या.. कॉलेज में पढ़ने आती थी कि हँसने ..और तो और पता नहीं कहाँ  से खबर सुन के आया था कि मुग्धा की बदचलनियों  के चलते उसके पापा ने उसकी खूब पिटाई की थी और शर्म के कारण  वे १५ दिन की  छुट्टी ले कर अपने गांव चले गए थे ...मुग्धा से उसने इन सबका जवाब माँगा ..मुग्धा हक्की बक्की सी उसे देखे जा रही थी ..और सोच रही थी कि कितना कचरा भरा है इसके दिमाग में ... राजुल ने दुनिया भर में उसके बारे गढ़ी हुई कहानिया सुन कर कुछ धारणाएं स्थापित कर ली  थी ..जिनको  गलत सिद्ध करने का मुग्धा के पास न तो साधन था और न ही मानस   .. राजुल उससे कहता रहा ..वो सुनती रही और बस यही कहती रही कि जैसा तुम ठीक समझो.. मुझे खुद को साबित नहीं करना है किसी के भी सामने ..मैं जो हूँ वह हूँ ..मेरा परिवार जानता  है कि मैं क्या हूँ उनका विश्वास मेरे साथ है और मुझे किसी की  परवाह नहीं कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है और क्यूँ सोचता है ..

राजुल ने कहा - समाज में रहना है तो उसी के हिसाब से रहना होता है..तुम्हें बदनामी से डर नहीं लगता ? कोई शादी भी नहीं करेगा तुमसे  इस बदनामी के चलते ..

वितृष्णा हो आई मुग्धा को ..किस कुघड़ी  में उसने इससे मिलने के लिए हाँ कह दिया था ..अच्छी खासी सरल ज़िंदगी जी रही है ..कहाँ की गन्दगी भर के ले आया है दिमाग में..

प्रकट में मुग्धा ने इतना ही कहा कि मनगढंत बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं ..तुम चाहो तो सच मानों   वरना मुझ पर यकीं कर लो..तुम्हारी इच्छा ..

और राजुल एक दम से विनम्र हो गया और बोला - बस अब तुमने कह दिया कि सब झूठ है मुझे तसल्ली  हो गयी .. और यह कहते हुए उसने विदा ली मुग्धा से कि अब हम जब भी मिलेंगे अच्छे दोस्तों की तरह मिलेंगे .. सब गलतफहमियां  दूर ..और अब हम परिपक्व हो गए हैं बचकानी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए ..

मुग्धा ने राहत  की साँस ली ..और राजुल के अपरिपक्व व्यवहार को भी सहज मान के ज्यादा ध्यान नहीं दिया ...

मुग्धा ने सर को झटका दिया ..कॉलेज की यादों में और भी बहुत सी बातें हैं उसे रह रह कर राजुल की बातें ही क्यूँ याद रहती हैं ...सुरभि,मोहित , आस्था और नमिता ..उसकी तो शादी भी तय हो गयी थी बी.एससी. करते करते ..और उसका मंगेतर जब उससे मिलने आता था तो हम सब सहेलियां उसकी कितनी खिंचाई करते थे ..आखिरी बार उन सबसे नमिता की शादी में ही मिलना हुआ था ..२५ साल बाद सबसे मिलना होगा कितना मज़ा आएगा ..मोहित और सुरभि से तो कभी कभी फोन पर बात हो जाती है किन्तु अपनी अपनी दुनिया में उलझे हुए मिलने का मौका मिल ही नहीं पाया ..मोहित ने ही नेट पर से ढूंढ ढूंढ कर अधिकतर दोस्तों के पते ठिकाने मालूम किये हैं और सबको इस शनिवार मिलने का मौका भी उपलब्ध कराया है ..मुग्धा को ऐसा लग रहा था कि वो वही २० साल की तरुणी बन गयी है ...आँखों के सामने सहेलियों के साथ मूवी देखने जाना ..चाट खाना ..कितने मजेदार दिन होते थे वे..उस समय लगता था कि मम्मी लोगों के मजे हैं..हमको तो पढ़ना पड़ता है ..अब एहसास हुआ कि एक पत्नी, एक माँ बनने में कितनी तपस्या और सहनशीलता चाहिए होती है ..विचारों का ताना बाना चलता रहा ,कभी मुग्धा खुद में ही डूबी मुस्कुरा पड़ती कभी उदास हो जाती ..अखिल ने तो उसको छेड़ना भी शुरू कर  दिया था कि अपने पुराने दोस्तों से मिलने से पहले ही यह हाल है..बाद में मुझे तो डर है कि इकलौती बीवी से हाथ न धो बैठूं ...

अखिल लखनऊ  के एक जाने माने मनोचिकित्सक थे ..मानव मनोविज्ञान के गूढ़ रहस्यों को बेहतर तरीके से जानना  समझना उनका पेशा ही नहीं वरन  पैशन था ..और मुग्धा विज्ञान  के क्षेत्र से होते हुए भी साईकोलोजी में बेइंतिहा रूचि रखती थी और दोनों का यही कॉमन इंटरेस्ट उनको आपस में जोड़ने में बहुत मददगार साबित हुआ..मुग्धा के कजिन की शादी में पहली बार अखिल से मुलाकात हुई जो चाचा के दोस्त का लड़का था ..और यंगस्टर्स का अलग ग्रुप बन गया जहाँ उन दोनों ने एक दूसरे को पहचानने में कोई गलती नहीं करी ...और अब एक मैत्रीपूर्ण वैवाहिक जीवन के २० वर्ष पूरे करते हुए मुग्धा कितने ही केसेस में डॉ. अखिल श्रीवास्तव की असिस्टेंट होती है.. और कई बार तो पेचीदा केसेस की जड़ों तक अखिल मुग्धा से विमर्श के कारण ही पहुँच पाता है ..



क्रमशः

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