Tuesday, November 13, 2018

मुग्धा: एक बहती नदी (दसवीं क़िस्त)


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(अब तक आपने पढ़ा : मुग्धा २५ साल बाद कॉलेज के गेट टुगेदर में राजुल से मिलती है ,उसके अप्रत्याशित और अजीब से व्यवहार की चर्चा अपने मनोचिकित्सक पति अखिल से करते हुए उसके व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है ,रविवार की खुशनुमा सुबह अखिल और मुग्धा मॉल घूमने जाने का कार्यक्रम बनाते हैं और वहां अचानक ही उनसे सोनू टकरा जाता है जो अपने पिता से बिछड़ गया है .. सोनू को ले कर जब वे लोग इनफार्मेशन काउंटर पर जाते हैं तो मुग्धा सोनू के पिता के रूप में राजुल को देख कर चौंक पड़ती है .......)

अब आगे :
(दसवीं क़िस्त)
मुग्धा की आवाज़ पर अखिल ने चौंक कर राजुल को  देखा जो इस समय नज़रें चुराता हुआ सोनू को अखिल की गोद से लेने के लिए आगे बढ़ आया था ,उसके चेहरे पर सोनू के मिल जाने की ख़ुशी से ज्यादा कुछ झेंप और शर्मिंदगी के भाव थे , वो मुग्धा की ओर देख भी नहीं रहा था और मुग्धा अचरज की स्थिति में लगातार उसे ही देखे जा रही थी . राजुल ने सोनू को गोद में लेना चाहा तो वह अखिल से और ज्यादा चिपक गया ,राजुल झुंझलाता हुआ बोला –“ ये क्या बदतमीजी है सोनू, एक तो तब से परेशान कर दिया मुझे , पता नहीं कहाँ चले गए थे और अब ये जिद “.
अखिल ने सोनू को प्यार से सँभालते हुए बहुत ही कोमल स्वर में पूछा –“बेटा , पापा के पास जाना है न ? “
सोनू ने ना में गर्दन हिलाते हुए अखिल के कंधे में मुंह छुपा लिया .
राजुल के चेहरे पर तमतमाहट उभरी लेकिन अखिल ने हाथ के इशारे से उसे शांत रहने को कहा और मुग्धा से मुखातिब हो कर बोला चलो हम सब चॉकलेट कैफ़े  चलते हैं वही बैठ कर गपशप होगी . और कहने के साथ ही उसने उधर की तरफ कदम बढ़ा  दिए ,अखिल के पीछे मुग्धा और उसके पीछे अनमना सा राजुल मजबूरी में ही सही  चल दिया ..
मुग्धा के मन में अनेकों प्रश्न उमड़ घुमड़ रहे थे लेकिन..अखिल की बात को याद करते हुए उसने खुद को जज़्ब किया हुआ था.. वह उसे अक्सर कहा करता था कि तुम मौके की नजाकत समझे बिना शुरू हो जाती हो कहीं भी ..थोडा धैर्य रखना सीखो  ..
चॉकलेट कैफ़े  पहुँच के अखिल ने सोनू को कोमलता से खुद से अलग किया और एक सोफे पे बिठा दिया .गोल मेज के इर्द गिर्द वो तीनों भी बैठ गए . वेटर आ कर मेनू कार्ड रख गया था
अखिल ने कार्ड सोनू की तरफ बढ़ाते हुए पूछा -क्या खायेगा हमारा बेटा ..सोनू के लिए यह अप्रत्याशित था ,वो कुछ कहता उससे पहले झुंझलाता हुआ राजुल बोला-इसको खिलाने  पिलाने ही लाया था मैं ..लेकिन न जाने क्या नखरे हैं साहबजादे के तब से मुँह बांधे घूम रहा है और कब मेरा हाथ छोड़ के खिसक गया पता भी नहीं चला  .
मुग्धा ने राजुल के हाथ पर अपना हाथ रख के उसे चुप रहने का इशारा किया ..मुग्धा के स्पर्श से राजुल ऐसे झेंप गया जैसे कोई अनहोनी हो गयी हो ..अखिल ने राजुल की बात को इग्नोर करते हुए मेनू कार्ड में झांकते हुए सोनू से कहा  -यहाँ का ग्रिल्ड सैंडविच और पास्ता बहुत अच्छा है ,तुमको अच्छा लगता है पास्ता?...सोनू अचंभित सा अखिल का चेहरा देख रहा था ..उसे शायद खुद ही अपनी पसंद नापसंद का अंदाज़ा नहीं था ...अखिल भांप गया था सोनू की मनस्थिति ,उसने कहा हम पास्ता और ग्रिल्ड सैंडविच मंगाते हैं और ख़ास तौर पर सोनू के लिए चॉकलेट ट्रफल पेस्ट्री ..स्ट्रॉबेरी शेक  पियोगे न ..सोनू ने चमकती आँखों के साथ हाँ में गर्दन हिला दी ..अखिल ने वेटर को बुला कर आर्डर किया और उसके बाद रिलैक्स हो कर सोनू की तरफ प्यार भरी नज़रों से देखा, सोनू कुछ कुछ सहज नज़र आ रहा था ...
राजुल को गहरी नज़रों से देखते हुए उसने कहा – हेलो राजुल ,मैं अखिल ,मुग्धा का पति ,तुम्हारे बारे में मुग्धा ने कल बताया था ..इन परिस्थितियों में यूँ अचानक मुलाकात होगी नहीं सोचा था ..कहते हए उसने हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया ..राजुल ने भी सकुचाते हए उसकी आँखों के गहरेपन से बचने की कोशिश करते हुए अखिल से हाथ मिलाया और पूछा –क्या बताया मुग्धा ने मेरे बारे में ?
अखिल मुस्कुराया और कहा-यही कि आप लोग बचपन के दोस्त हैं ,कल सबसे मिल कर मुग्धा को बहुत अच्छा लगा .
मुग्धा तब तक उठ कर सोनू के पास सोफे पर बैठ गयी थी ..उसके घुंघराले बालों में प्यार से उंगलियाँ फिराते हुए उसने पूछा – बेटा आपने इतनी मोटी फुल स्लीव्स की T’shirt पहनी है ..गरमी नहीं लग रही ?
और राजुल की तरफ देखते हुए बोली –“इतनी गरमी में इतने भारी भारी कपड़े क्यूँ पहनाये हैं इसे?”
राजुल बोला न जाने क्यूँ यह कभी हाल्फ स्लीव्स पहनता ही नहीं ..मैं तो अक्सर बाहर  ही रहता हूँ महीने में २५ दिन तो टूर ही रहता है ..इसके लिए कितनी ही हाफ टी ले कर आया किन्तु सब ऐसी ही पड़ी हैं और ये अपने सब Attires खुद ही लेता है और खुद ही चुन के पहनता है
अखिल इन सब बातों को गंभीरता से सुन रहा था और उसका मस्तिष्क तेज़ी से विश्लेषण कर रहा था सोनू के व्यवहार का ...
अखिल ने मुग्धा के फ़ोन पर मेसेज किया –“ सोनू की स्लीव्स ऊपर उठवाने की कोशिश करो “
मुग्धा ने फ़ोन पे अखिल का मेसेज देखा तो चौंक के अखिल से आँखों ही आँखों में पूछा ,अखिल ने पलकें झपकाते हुए उसे स्थिति की गंभीरता का एहसास करा दिया था ..
अखिल ने राजुल से पूछा –आपकी मैडम नहीं आई ? क्या नाम है उनका ?
राजुल ने विद्रूपता से कहा – मधु ... उसको तो नाटकों से फुर्सत नहीं वो कहाँ आएगी हमारे साथ
“ओह थिएटर आर्टिस्ट हैं क्या मधु ?”- अखिल ने पूछा
राजुल हँस पड़ा ,बोला- “नहीं नहीं... वो बहुत क्लेश करती है ,हर समय मुझसे लड़ती है..कभी एक दम गुमसुम हो कर किसी कोने में बैठ जाती है ..कभी किसी जंगली बिल्ली की तरह झपटती है मुझ पर ..इन सबसे बचने के लिए ही मैं अधिकतर टूर बना के खिसक लेता हूँ घर से .सोनू बताता है  मेरे जाने के बाद वह एक दम सही रहती है .”

मुग्धा ने सोनू के चेहरे को देखते हुए हलके से विरोध के स्वर में राजुल को टोका – “किस तरह बोल रहे हो बच्चे के सामने “
सोनू का चेहरा और भी उदास हो गया ..बड़ी बड़ी आँखों में मोटे मोटे आँसू भर आये थे ..और बहुत ही धीमी आवाज़ में बुदबुदाते हुए बोला- “पापा झूठ बोल रहे हैं “..
राजुल बोला- अरे जो सच है वही कह रहा हूँ ..तुम नहीं जानती उसे ..इसलिए तुम्हें लग रहा है..
मुग्धा बोली –अच्छा बताओ मधु के बारे में ..कब और कैसे हुई तुम्हारी शादी ...
राजुल ने कहा – लव मैरिज थी हमारी ..
मुग्धा बोली-अरे वाह ..कहाँ मिली तुम्हें ..साथ पढ़ती थी क्या ?
राजुल ने कहा – “नहीं ,मै जब जॉब कर रहा था तो जिस घर में किराये पर रहता था उन मकान मालिक की लड़की थी ... मेरे पीछे दीवानी थी , मुझसे शादी का वादा ले लिया ...उस समय तो मुझे भी लगा कि मैं प्यार करता हूँ इससे..लेकिन जब दूसरे शहर गया और कुछ दिन उससे दूर रहा तो खुमार उतर गया ..लेकिन मधु की जिद और फिर यह सोचा कि कोई और है भी तो नहीं जिसके लिए इसे मना करूँ” ...कहते हुए राजुल ने कुछ अजीब नज़रों से मुग्धा की ओर देखा जो मुग्धा और अखिल दोनों की निगाहों से छुप न सका .....
तब तक वेटर उनका आर्डर ले आया था , अखिल ने शेक का गिलास सोनू को पकड़ाते हुए पूछा –“ आप किस क्लास में पढ़ते हो बेटा ?”
सोनू बोला-“फिफ्थ स्टैण्डर्ड में “
अखिल ने फिर पूछा –“अच्छा लगता है स्कूल जाना ? खूब सारे दोस्त होंगे ..”
सोनू ने पलकें उठा कर राजुल की तरफ देखा और फिर आँखें झुका ली
राजुल बोला –“इसका कोई दोस्त नहीं है ..ये बहुत INTROVERT है स्कूल से घर आते ही कंप्यूटर खोल कर बैठ जाता है .घर में भी किसी से बात नहीं करता”
मुग्धा ने पूछा – “बस यही बेटा है ?”
राजुल बोला –“अब यही है ...”
मुग्धा बोली –“मतलब?”
राजुल ने कहा – “ये मेरा छोटा बेटा है इससे बड़ा एक और बेटा विभु  था जिसके दिल में जन्म के समय से ही सुराख़  था ..डॉक्टर्स ने कहा की बड़ा होने पर ऐसे सुराख  खुद ही बंद हो जाते हैं अगर प्रॉब्लम होती है तब सर्जरी का आप्शन है  ... जब उसकी उम्र ७ साल हुई तो उसकी तबियत काफी ख़राब रहने लगी उसे साँस की परेशानी हाथों पैरों में सूजन और थकान  रहती थी ..सोनू उस समय 4 साल का था , डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने कहा की सर्जरी ही करनी होगी यह सुराख  बढ़ रहा है ..लेकिन सर्जरी के लिए जब एनेस्थीसिया दिया गया तो विभु कोलाप्स  कर गया ..कभी कभी मुझे लगता है की सर्जरी न कराने  का सोचते तो शायद कुछ समय वो और जी लेता .”
कहते कहते राजुल भावुक हो गया था ,अखिल ने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए पानी का गिलास उसे दिया और कहा –“जितना लिखा था उसका साथ उतना ही मिला ..वो कष्ट में रहता वो भी ठीक नहीं होता .”
मुग्धा ने अचानक कहा – “सोनू के हाथ पेस्ट्री से चिपचिपा गए हैं ,मैं वाश करा कर लाती हूँ ..”
राजुल उठने का उपक्रम करता हुआ बोला “मैं धुला लाता हूँ “
मुग्धा ने कहा – “नहीं, तुम अखिल से बात करो ,मैं आती हूँ “
मुग्धा सोनू को ले कर वाश रूम चली गयी , उसे मौका चाहिए था अखिल के कहे अनुसार सोनू की स्लीव्स उठवा के देखने का .....
राजुल अखिल के गर्माहट भरे व्यवहार से थोडा सहज हो गया था  ,किन्तु मुग्धा की और सीधे देख कर बात नहीं कर रहा था ..मुग्धा के जाने के बाद थोड़ी देर ख़ामोशी पसरी रही दोनों के बीच..
फिर अखिल ने पूछा – “और आप का जॉब कहाँ है इस टाइम ?”
राजुल ने कहा – “एक्सपोर्ट का बिसनेस है मेरा ,इंडियन हेंडीक्राफ्ट और बेडशीट्स एंड Bedcovers एक्सपोर्ट करता हूँ , कई छोटी छोटी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स से कोलैबोरेशन है ,अमेरिका ,कनाडा  और यूरोप की कुछ कन्ट्रीज में भेजते हैं ..इसी सिलसिले में अक्सर बाहर रहना होता है ..कुछ घर के माहौल से दूर रहने के लिए भी बना लेता हूँ टूर.. जहाँ ज़रुरत नहीं भी होती वहां भी चला जाता हूँ “
अखिल ने कहा – “ये तो अच्छा है ,इस बहाने आपको कई कन्ट्रीज घूमने को मिल जाती हैं , लेकिन सोनू मिस करता होगा आपका साथ ...”
राजुल बोला- “मैं भी उसे मिस करता हूँ ,इसीलिए महीने में कुछ दिन के लिए आ ही जाता हूँ घर... “
तभी मुग्धा सोनू का हाथ पकडे हुए वहां आ गयी और अखिल को इशारा किया ,सोनू की स्लीव्स थोड़ी से मुड़ी हुई थी ,हाथ धुलवाने के बहाने मुग्धा ने फोल्ड कर दी थी , अखिल ने सोनू की कलाइयाँ देखीं तो एक दर्द की लहर उसकी आँखों से हो कर गुज़र गयी ,लेकिन उसने मुग्धा को इशारे से चुप रहने के लिए कहा ...
मुग्धा ने छूटे हुए क्रम को आगे बढ़ाते हुए राजुल से पूछा – “हाँ , तुम मधु के बारे में बता रहे थे न...”
राजुल ने कहा –“शादी के बाद से ही उसका व्यवहार बहुत अजीब होता चला गया ,जबकि हमारी लव मैरिज थी लेकिन बात बात पर शक करना ,ताने मारना ,मेरी किसी भी बात का उल्टा मतलब निकालना यह उसकी आदत में था लेकिन विभु की मौत के बाद तो उसका खुद पर जैसे कोई कण्ट्रोल ही नहीं रह गया है ..कभी कभी दौरे से पड़ जाते हैं उसे ...चीखने लगती है ..मुझ पर शक करती है कि मैं उसे मार डालूँगा ...अकेले खुद से बातें करती रहेगी कभी मन होगा तो घर के सब काम समय पर निबटा देगी वरना यूँही पड़े रहेंगे ..”
अखिल ने उसे बीच में ही रोक कर पूछा – “आपने कभी किसी डॉक्टर की सलाह नहीं ली ?”
राजुल बोला – “डॉक्टर को क्या दिखाना है ..? बीमार थोड़े ही है ..बस एक्टिंग करती है मुझे परेशान  करने के लिए “
मुग्धा बोली- नहीं राजुल –“ऐसा नहीं है ,हो सकता है उसे कुछ परेशानी हो ..”
राजुल बोला-“क्या परेशानी होगी ,हर चीज़ तो मुहैय्या है उसे ..पैसों की कोई कमी नहीं होने देता मैं ..शौपिंग का अंधाधुंध शौक ..कपडे गहने न जाने क्या क्या खरीदती रहेगी ..बातें भी सुनो तो ऐसी ज्ञान वाली की बड़े बड़े संत लोग भी पानी भरें .बस एक मुझसे ही न जाने क्या खार खाए रहती है ..”
 और राजुल  खुलता जा रहा था अखिल पूरे मनोयोग से उसको सुन रहा था और उसके वाक्यों से उसकी फितरत का अंदाज़ा लगा रहा था ...और मुग्धा  अखिल के मनोयोग को देख कर जान चुकी थी  कि चॉकलेट कैफ़े  का वह आउटलेट अखिल के क्लिनिक के चैम्बर  में परिवर्तित हो गया है ...

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क्रमश:

Friday, October 26, 2018

मुग्धा: एक बहती नदी ( नवीं क़िस्त)


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( अब तक आपने पढ़ा : २५ साल बाद कॉलेज के दोस्तों के गेट टुगेदर में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है ,जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करने का कीड़ा कुलबुलाने लगता है.. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है ...)

अब आगे .....

अखिल गंभीरता से बोला, "देखो मुग्धा ,मैं राजुल
से मिला नहीं हूँ और न ही मेरी उससे कभी डायरेक्ट बात हुई है. तुमने जितना उसका बैकग्राउंड बताया उसी आधार पर मैं कुछ कह
सकता हूँ लेकिन हो सकता है वो आकलन पूरी
तरह सटीक न हो ..जो कुछ तुमने बताया उस
आधार पर यही कहा जा सकता है कि राजुल ने
बचपन से एक संकीर्ण दायरे में ही जीना देखा है
..उसकी मम्मी dominating नेचर की थी और
पापा घर की शांति के लिए उनकी हर बात चुप रह
कर मानने को बाध्य ..पापा की निरीहता का
एहसास राजुल के मन में घर कर गया और उसने
खुद के लिए एक अग्रेसिव बिहेवियर चुन लिया.
उसे खुद को ऊपर रखते हुए सामने वाली, चाहे वो
फ्रेंड हो बहन हो बीवी हो या प्रेमिका उसको नीचा
दिखाने  में संतुष्टि का एहसास होता है ,मम्मी ने
उस पर प्रतिबन्ध लगाये तो उसका बदला वो
विद्रोही व्यवहार अपना कर लेता है ..बहन के
ऊपर जो बंदिशें घर में देखी, समझता है कि  वही
मापदंड होने चाहिए किसी भी लड़की के लिए
..जोर से मत हँसो  ..बात मत करो.. अपोजिट
जेंडर के साथ खुले दिल से मत मिलो ...बहुत सी
सहज इच्छाओं का दमन करना पड़ा उसको इन
मापदंडों को निभाने और निभवाने में और वो दमन
ही उसकी कुंठाओं का मूल कारण है ...जो उसे
इन से आगे सोचने विचारने ही नहीं देता."

अचानक अखिल बात पलटते हुए बोला,  "अरे हाँ
मैं तो भूल ही गया बताना कि सेलेक्ट सिटी मॉल
में मार्क एंड स्पेंसर की ओपनिंग के तीन साल पूरे
होने पर  रेगुलर कस्टमर्स के लिए आज स्पेशल
डिस्काउंट का ऑफर है..चलो न हम लोग चलते हैं
..मुझे शर्ट्स लेनी हैं ..और तुम्हारा भी तो Olay
का ऑफर आया हुआ है २०% डिस्काउंट का
...दोनों काम हो जायेंगे. हम वहीँ लंच करके
मूड हुआ तो कोई मूवी देख लेंगे"

आवाज़ में शरारत भर कर बोला, "कम से कम
सन्डे को तो यार इन मनोवैज्ञानिक बातों से निजात
लेने दो मुझे."

मुग्धा हंस कर बोली, "मियाँ अखिल, मनोवैज्ञानिक
बातों से तो जनाब आप को कोई भी निजात नहीं
दिला सकता ..आपका तो जन्म  ही जन जन की
मानसिक गुत्थियाँ  सुलझाने के लिए हुआ है
..लेकिन जाइये माफ़ किया आज आपको... अब
उठिए और तैयार हो जाइए ..मैं तब तक किचन
समेटने की हिदायतें इन लोगों को दे देती हूँ."

१२ बजते बजते अखिल और मुग्धा मॉल के
लिए निकल चुके थे ..मॉल पहुँचने पर उन्होंने
देखा कि आज तो सेलिब्रेशन वाला माहौल है.
दरअसल इस मॉल की ओपनिंग एनिवर्सरी थी
और उसी उपलक्ष्य में मॉल में जैसे मेला सा लगा
हुआ था ..बंजी जम्पिंग ,बलून्स
और मिक्की माउस ,एंग्री बर्ड्स,टेडी बेअर्स  के
चोले में सजे किरदार इधर उधर बच्चों का
मन बहलाते दिख रहे थे. छोटे छोटे बच्चे उन के
साथ हाथ मिला कर  फोटो खिंचवा रहे थे. कोई
कोई फॅमिली की सेल्फी ले रहा था ..कुल मिला
कर बहुत ही रौनक वाला माहौल था ...

दोनों पहले 'Olay'  beauty products के रिटेल
शोरूम पर पहुंचे ..Olay Sales कन्सल्टंट उन
दोनों को देखते  ही आवभगत के लिए उठ आई.
मुग्धा को  देख कर मुस्कुराते हुए बोली –"Ma'm,
you are looking very gorgeous ..बहुत
दिन बाद आई आप...भारत में नहीं थी क्या ?"

अखिल फुसफुसा कर बोला –कस्टमर फँसाना
कोई इनसे सीखे..अब बोलेगी कि आप Olay
प्रोडक्ट यूज़ जो करती हैं इसीलिये  तो आपकी
स्किन बहुत अच्छी है ..मुग्धा  की हँसी नहीं रुक
रही थी अखिल को उस लड़की की नक़ल करते
देख कर लेकिन वो गंभीर बनी रही और अपनी
ज़रुरत का सामान आर्डर कर के बिल अखिल की
तरफ बढ़ा दिया .

अखिल बोला, "लो यहाँ भी जेब मेरी ही कटनी थी
क्या ... इसे कहते हैं अपना पैर कुल्हाड़ी पे दे मारना."

मुग्धा बोली चलो अब मार्क पर चलते है...अखिल
ने बिल पे करके पैकेट उठाया और बोला, "जो
हुकुम मेरे आका !"

दोनों प्रसन्न मन मार्क-स्पेंसर की ओर चल दिए थे
तीसरी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में शोरूम को बहुत
सुन्दर सजाया गया था ..हर आने वाले कस्टमर
को स्पेशल फील करते हुए एक एक रोज-बड दी
जा रही थी और एक काउंटर पर एक ट्रे में
खुशबूदार आर्गेनिक ड्रिंक्स रखे थे ..मुग्धा की
नज़र उधर उठते ही शोरूम का एक एम्प्लोयी उसे
उन फ्लेवर्स  की डिटेल्स देने के साथ टेस्ट करने
का आग्रह करने लगा ..मुग्धा को नयी चीज़ें ट्राई
करने का बहुत शौक था. रेफ्रेशिंग ड्रिंक्स देख
कर गर्मी की उस दोपहर उसने  हलके हरे रंग का
आँखों को शीतलता देता हुआ ड्रिंक उठा कर होठों
से लगा लिया ..तब तक अखिल ने अपने लिए
कुछ शर्ट्स सेलेक्ट कर ली थी और अब फाइनल
चुनाव और स्टैम्पिंग मुग्धा द्वारा होनी थी.

तभी शोरूम के इनफार्मेशन स्पीकर से एक
अनाउंसमेंट हुआ ... “कृपया ध्यान दें , एक बच्चा
जिसका नाम सोनू है ,उम्र कोई ८ वर्ष, गोरा रंग,
नीली आँखें ,घुंघराले बाल ,रेड एंड  ब्लू स्ट्राइप्स
की फुल टी शर्ट और ब्लू जीन्स पहने हुए है अपने
पापा से बिछड़ गया है. उसके पापा यहाँ
इनफार्मेशन काउंटर पर हमारे पास ही हैं. अगर
सोनू हमारी आवाज़ सुन रहा हो तो प्लीज़ काउंटर
पर आ जाए.यदि किसी को भी वह बच्चा मिलता
है तो उसे ले कर सीधे इनफार्मेशन काउंटर पर आ
जाएँ ,सोनू के पिता बहुत परेशान हैं,

अनाउंसमेंट सुन कर अखिल ने मुग्धा की तरफ
देखते हुए बोला, "हद्द है यार लोग कैसे लापरवाह
हो जाते हैं छोटे बच्चे की तरफ से. मुझे तो उसका
डिस्क्रिप्शन सुन कर ही लग रहा है कितना प्यारा
बच्चा होगा.

मुग्धा ने कहा, "छूट गया होगा साथ ..भीड़ भी तो
बहुत है.
"चलो ! शर्ट फाइनल करते हैं और ध्यान से देखते
हैं. शायद हमें ही दिख जाए सोनू."

अखिल की चुनी हुई शर्ट्स में से 4 शर्ट फाइनल
कर के बिल पेमेंट करके अखिल और मुग्धा
शोरूम से बाहर  निकले ही थे कि अखिल सामने
से आते सोनू से टकरा गया. इस टकराने पर पहले
से सहमा हुआ सोनू और भी रुआंसा हो गया
..अखिल ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया
..और न जाने क्या था अखिल के स्पर्श में जैसे
कोई गौरैया का नन्हा कोमल सा बच्चा गौरैया के
पंखों में छुप जाता है. सोनू अखिल के सीने में
दुबक गया था. अखिल ने उसे बाँहों में कस लिया
था.सोनू का खोया खोया चेहरा और सूनी आँखें
अखिल के स्नेहिल स्पर्श से पल भर को चमकी थ
और फिर जैसे बुझ गयी थी.

संवेदनशील मुग्धा का अंतर्मन इस दृश्य से भीग
उठा ..उसने सोनू के घुंघराले बालों में हाथ फिराते
हुए प्यार से कहा, "डरो नहीं बच्चा ! अभी चलते हैं
पापा के पास."

और सोनू सबसे बेखबर अखिल की गर्दन में बाहें
डालें उसके कंधे पर अपने गाल टिकाये किसी
ठंडी फुहार की शीतलता को महसूस कर रहा था
और अखिल उसके स्पंदन पा रहा था, मन भीग
गया था अखिल का भी ..इतना प्यारा बच्चा ..ये
तो डिस्क्रिप्शन से भी ज्यादा प्यारा है ..लेकिन
इतनी वीरानी इसकी आँखों में ..बाल सुलभ
चंचलता का तो नामोनिशान नहीं ....क्या माता
पिता  से कुछ देर बिछड़ जाने का इतना असर
हुआ है इस मासूम पर ..सोचते सोचते उसने मुग्धा
के साथ इनफार्मेशन काउंटर की तरफ कदम बढ़ा
दिए.

पूरे रास्ते सोनू कस के चिपका रहा अखिल के
सीने से जैसे न जाने कब से तरस रहा हो ऐसे
संरक्षण को. काउंटर पर पहुँच कर एनाउंसर से
अखिल ने सोनू के पिता के बारे में पूछा तो उसने
सामने खड़े एक व्यक्ति की तरफ इशारा किया.

मुग्धा और अखिल ने एक साथ मुड़  कर देखा
और मुग्धा आश्चर्य से लगभग चीख ही तो पड़ी,
"अरे राजुल ..तुम !!! सोनू तुम्हारा बेटा है ..!
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.
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.क्रमश:

Wednesday, October 17, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (अंक ८ )


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मुग्धा चाय की ट्रे लेकर जब लिविंग रूम में  पहुँची तो
अखिल मगन होकर रंगोली के गानों के साथ ताल मिलाते
हुए झूम रहा था .”पूछे जो कोई मुझसे बहार कैसी होती है ..”.और अगली लाइन पर मुग्धा को आते देख बोला, -“नाम तेरा ले कर कह दूँ की यार ऐसी होती है “...."यारजी कुछ
भी हो,ओल्ड इज गोल्ड.. ये गाने कभी भी मन से नहीं उतर
सकते.

मुग्धा मुस्कुराते हुए चाय का एक कप अखिल के हाथों में
पकडाते हुए और एक ख़ुद लेकर बोली "अब गाने ही सुनते
रहोगे कि  आगे का भी कुछ सोचना है"

अखिल एयर इंडिया के महाराजा की तरह सीने पे हाथ
रख के झुकते हुए  बोला "जो मल्क़ा-ए-अखिल्स्तान हुकुम
दें....बंदा हाज़िर है ..."

मुग्धा नखरे से बोली –"नौटंकी ! कौन  कहेगा कि  तुम इस
शहर के टॉप मोस्ट सायकाटरिस्ट हो.पागलों का इलाज करते करते खुद पागलों जैसी हरकतें करने लगे हो"

अखिल नाटकीयता भरे मगर फ़लसफ़ाना अन्दाज़ में बोला,
"बेगम मुग्धाजान हर इंसान किसी ना किसी लेवल का
पागल ही होता है ...कुछ के हालात और माहौल 
उन्हें कुछ ज्यादा इम्बैलेंस  कर देते हैं बस इतना ही तो
फ़र्क़ है."

मुग्धा ताड़ गयी थी कि अब लोहा गर्म है और चोट करने
से अखिल का टेक्निकल  ज्ञान झरना शुरू हो सकता है
...झट से पूछ बैठी, "कैसे असर करते है माहौल और
सोशल रेस्पांसिज़ के हालात  किसी के व्यवहार पर ?"

अखिल पहले से ही समझ चुका था की आज मुग्धा से
पीछा छुड़ाना आसान नहीं, इसलिए गंभीरता औढ़  कर चाय
का सिप लेते हुए बोला, "देखो सोशल कंडीशनिंग किसी
भी व्यक्ति को ट्रेनिंग देने के लिए एक तरह का सामाजिक
प्रोसेस है  ताकि  वो समाज में स्वीकृत तौर तरीकों  आदर्शों
और  नियमों   के हिसाब से अपने व्यवहार को सुनिश्चित
करे ..और संस्कार मनुष्य अपने आस पास के माहौल से
इकठ्ठा करता है जैसे माता पिता ,टीचर्स ,राजनीतिबाज़
धार्मगुरु, मीडिया आदि किसी न किसी रूप में हमारी
कल्चरल वैल्यूज ,beliefs एथिकल सिस्टम को हमारे
सामने रखते हैं और इन सबके बीच हम खुद को कहाँ पाते
हैं यह सबसे  महत्वपूर्ण है."

मुग्धा बहुत ध्यान से सुन रही थी अखिल नमकीन बादाम 
कुतरता हुआ बोला – " पर्सनलिटी की ग्रोथ सोशल
कंडीशनिंग पर तो निर्भर करती ही है जो कि सोशल 
कल्चरल फैक्टर्स पर बहुत हद तक  निर्भर होती है .किसी
का भी व्यक्तित्व सिर्फ कल्चर पर निर्भर नहीं कर सकता
इंडिविजुअल डिफरेंसेस का फैक्टर भी बहुत मायने रखता
है. इसलिए एक सी कल्चर और माहौल  में पलने बढ़ने वाले
भाई बहिन भी कभी कभी बहुत ही अलग व्यक्तित्व रखते
हैं."

अखिल दम भर को रुका ,मुग्धा की तन्मयता देख कर आगे
बोला, "सबसे मुश्किल है किसी भी व्यक्तित्व का
मनोवैज्ञानिक आकलन ,मनुष्य मशीन तो नहीं बहुत कुछ है
.यदि सिगमंड  फ्रायड की माने तो मानव व्यवहार
चेतन,अचेतन और अवचेतन का सम्मिलित रूप है जो काम
या यौन द्वारा प्रभावित होता है ,फ्रायड के शिष्य एडलर और
जुंग ने लगभग आपके गुरु के मनोविश्लेषण सिद्धांत को ही
आगे बढाया यद्यपि उसने  फ्रायड के सेक्स पहलु पर
अत्यधिक जोर देने की बात को संतुलित किया था."

गला साफ़ करके और उसके बाद हलकी सी सीटी बजाते
हुए अखिल कह रहा था "व्यवहार बहुत बड़ा फैक्टर होता है
किसी भी इंसान को समझने में ..यधपि आज के दिन
ब्रिटिश अमेरिकन मनोवैज्ञानिक, रेमंड  बी कैटल द्वारा
प्रतिपादित ट्रेट अप्रोच पर आधारित व्यक्तित्व
सिद्धांत को एक बीते दिनों की बात समझते हैं लेकिन मैं
आज भी इसके बेसिक्स को स्वीकारता हूँ और अपने चिंतन
 में रखता हूँ ..केटेल ने चार प्रकार के ट्रेट्स पहचानी जो
मनुष्यों में कुल मिला कर पायी जाती हैं .
पहली है, कॉमन ट्रेट्स, जो सामान्य जनता में पायी जाती है
जैसे आनेस्टी , अग्रेशन  और कोऑपरेशन.

दूसरी होती  है, यूनिक ट्रेट्स जैसे temperamental और
इमोशनल रीऐक्शंस.

अखिल अब किसी राजनेता की मिमिक्रि कर रहा था,

"बहनों और भाइयों ! तीसरी को  कहते हैं, सरफ़ेस ट्रेटस जैसे कि Curiosity, dependebility,tactfullness"

अब "नौटंकीबाज़" अखिल मदारी के अन्दाज़ में बोल रहा था,

"मेहरबान क़द्रदान !......और चौथी को उस्ताद कहते हैं सोर्स ट्रेटस जैसे dominance, submission,emotionality वग़ैरह."

मुग्ध हो रही थी मुग्धा कि उसका मियाँ कितना हुनरमंद है कि सामने वाले को  बांधे रखने के ज़मीनी गुर जानता है.

मुग्धा पूछ बैठी, "उस्ताद ! यह तो बताओ कि किया कैसे जाता है आकलन किसी के व्यक्तित्व का ?"

शांत भाव से अखिल चाय का सिप लेते हुए बोला, "यह
जानने  के लिए कि व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है
वास्तविक जीवन  स्थितियों में वे हैं : ऑब्जरवेशन
टेक्निक्स और situational tests ,लेकिन हमें व्यक्ति
की आत्मकथा (स्वक्ति),प्रश्नोत्तर जीवनी (परकथ्य) आदि
को भी कंसीडर करना होता है."

मुग्धा को इंटरेस्ट आ रहा था किन्तु कभी कभी ऐसा भी लग
रहा था कि कहीं अखिल उसे थकाने के लिए तो इस तकनीकी लेक्चर को लम्बा खींच रहा है ताकि मुग्धा थक हार कर विषय से  रुखसत ले ले...लेकिन मुग्धा जानती थी इस
मनोवैज्ञानिक से काम करवाना, अखिल सयिकोलोजिस्ट
था तो वो सुपर सयिकोलोजिस्ट.

बोली, "अच्छा अब नाश्ता लगाती हूँ बाकी बातें नाश्ते पर
होंगी ...और थोड़ी ही देर में पकोड़ों और हलवे की खुशबु से
घर महक उठा ..और कुछ ही देर में सद्यःस्नाता मुग्धा खूबसूरत महेश्वरी साड़ी में सजी अखिल की मनपसंद नोरिटा की सफ़ेद और सिल्वर क्राकरीसे सजी हुई नाश्ते की ट्रे
ले कर रूम में दाखिल हुई .

अखिल देखते ही निहाल हुआ सा  बोला, "भाई आज तो क़त्ल का पूरा साजो सामान ले कर चली हैं मोहतरमा."

भाप उड़ाती चाय और सोंधी सोन्धी पकोड़ों की खुशबू से अखिल पूरे मूड में आ गया ,लपक कर एक पकोड़ा उठा के मुंह में डालते ही बोला, "यार तुम कमाल हो,क्या ज़ायक़ा है हाथों में...जी करता है चूम ही लूं ."

मुग्धा  आँखों में ढेर सा प्यार भर के बोली -
"अखिल यार वह राजुल वाले सब्जेक्ट पर कुछ प्रैक्टिकल
पहलुओं को बताओ न ..मैं तो आज तुम्हारे श्री मुख से
राजुल के व्यक्तित्व का आकलन जानना चाहूंगी ..सुना है डाक्टर अखिल कांफ्रेंसेज में केस स्टडीज पर प्रेजेंटेशन दे कर झंडे गाड़ देते हैं."

प्यार करने वाला मर्द अपने पेशे में चाहे जितना भी
लोकप्रिय और सफल हो अपने जीवनसाथी की आँखों और
जुबान पर अपना नाम पेशे के एक्सपर्ट के रूप में भी चाहता
है मानों संगिनी एग्जामिनर हो और वो खुद एक नम्बर पाने
का इच्छुक स्टूडेंट.

शुरू हो गया था अखिल....,



क्रमशः

Sunday, October 14, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (अंक ७)



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अब तक का सार संक्षेप : मुग्धा एक उदार विचारों वाली सुसंस्कृत युवती है. उसका जीवन साथी अखिल एक मनोचिकित्सक. दोनों के बीच पति पत्नी से कहीं अधिक दोस्तों जैसा रिश्ता और आपसी समझ है. राजुल मुग्धा का बचपन का सहपाठी व्यक्तित्व में हीनभाव, सामाजिक पारिवारिक अनुकूल के चलते स्त्रियों के बारे में दक़ियानूसी सोच, असफलता जनित कुंठाएँ, राजुल का मुग्धा का कोलेज साथियों की पार्टी में मिलना, व्यंग्यात्मक और आधिकारिकता की बातें करना. मुग्धा का करुण हृदय अपने बचपन के दोस्त राजुल की मदद करना चाहता है अपने संगी अखिल की सहायता से.

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अंक सातवाँ
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अखिल की आवाज़ से मुग्धा ख़यालों से वापस लौटी ...अखिल कह रहा था कहाँ खो गयीं मैडम !! ज़रा कुछ चाय शाय इस गरीब को भी मिल जाती तो .....
 मुग्धा मुस्काराते हुए चाय बनाए चल दी  ...और अखिल उठ कर उन दोनों की पसंदीदा गज़लों का CD लगाने लगा ..फिज़ा में मेहंदी हसन की मखमली आवाज़ “ ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं “...बहने लगी ...चाय की ट्रे ले कर आती मुग्धा को अर्थपूर्ण मुस्कराहट के साथ देखता हुआ अखिल गुनगुना उठा “ मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा ... और मुग्धा के गाल किसी किशोरी की तरह लाल हो उठे .... और अखिल खिलखिला कर हंस पड़ा ,बोला – यही रंग देखना था मुझे ..यार इतने गंभीर डिस्कशन तुम्हारी शोखी चुरा लेते हैं ....

मुग्धा कुछ कह पाती इससे पहले अखिल के फ़ोन की घंटी बज उठी ... अखिल ने एक नज़र मुग्धा पर डाली और फ़ोन उठाया ,डॉ वर्मा थे दूसरी तरफ ..अखिल ने कहा कि  कुछ अर्जेंट न हो तो वो उनको १५ मिनट बाद कॉल बैक करता है ...और मुग्धा मुस्कुरा दी .. अखिल की ऐसी ही बातें उसके मन को गहरे छू जाती हैं...

फ़ोन रख कर अखिल ने मुग्धा की आँखों में झाँका और बोला-अब कहिये जनाब ...

मुग्धा जानते बूझते बोली –फ़ोन क्यूँ रख दिया ..बात कर लेते ...

अखिल शरारत से बोला –अरे चाय ठंडी हो जाती ....और फिर मेहँदी हसन साहब भी तो बुरा मान जाते ....कहते हुए खिलखिला दिया ...

अगले दिन इतवार था ...अखिल और मुग्धा के लिए रिलैक्स्ड दिन ....मुग्धा उनींदी  ही थी जब हर इतवार की तरह अखिल चाय की ट्रे ले के हाज़िर हो गया ..भोर की किरणों ने मुग्धा के चेहरे  को और भी रौशन कर दिया था .. मुग्धा के माथे पर चुम्बन अंकित करते हुए अखिल ने उसे जगाया तो मुग्धा को लगा जैसे पूरी कायनात उसकी बाहों में सिमट आई है....उससे ज्यादा खुशनसीब इस दुनिया में कोई नहीं ..अखिल के २० सालों के साथ ने उसे कितना कुछ दे दिया है ... उसके व्यक्तित्व को निखारने से ले कर उसकी मेधा को सही दिशा देने में हर समय अखिल उसके साथी के रूप में कदम दर कदम चला है ....

चाय का घूँट लेते हुए मुग्धा ने कहा – कितने साल हो गए तुमको चाय बनाते हुए ...

अखिल बोला –यार अब तुम जैसी नहीं बनती तो नहीं बनती ... पता नहीं  तुम्हारे हाथों का स्वाद आ जाता है क्या चाय में ...

मुग्धा खिलखिला उठी ,बोली –दिल से नहीं बनाते होगे न... मन तो तुम्हारा भटकता रहता है अपनी गोपियों में जो पेशेंट बनकर तुम कान्हा संग रास रचाने चली आती हैं कंसल्टेशन और काउन्सलिंग के बहाने.....

अखिल मुंह लटका के बोला –यार मैं तो अपनी पूरी बीइंग से बनता हूँ ..अपनी प्यारी बीवी के लिए ..लेकिन उसे कभी पसंद ही नहीं आती .....अब दूसरा राउंड खुद ही बनाये ...तो मुझे भी तृप्ति मिले ...

बेचारा अखिल गोपियों के बाबत अपनी ऐयर क्लीयर करे इस से पहले ही मुग्धा अगला राउंड चाय बनाने  के लिए उठ गयी और अखिल ने  लिविंग रूम में आ कर TV ऑन कर दिया ..इतवार की सुबह दोनों का पसंदीदा प्रोग्राम ‘रंगोली’ शुरू हो रहा था .. रंगोली के दौरान दोनों जैसे बच्चे बन जाते थे ...मुग्धा का फ़िल्मी गानों के प्रति बहुत रुझान था और उसे ज्यादातर गानों की जानकारी होती थी मसलन कौन सिंगर कौन सी मूवी कौन से एक्टर और उसे इसका गुमान भी था .. अखिल से पूछ बैठती कि  पहचानों कौन एक्टर और अखिल जानबूझ कर गलत बताता ...और मुग्धा बहुत गर्व से कहती नहीं ये नहीं है ..अखिल कहता लग जाए शर्त १००-१०० की .... और फिर हार जाता ...और मुग्धा शर्त जीत के खुश होती और अखिल उसकी ख़ुशी से...आज भी यही हुआ ....गाना बज रहा था “ये पर्वतों के दायरे ...” और हीरोइन थोडा कम जानी पहचानी सी थी....मुग्धा इतरा  के बोली बताओ कौन है....अखिल को नाम याद तो आ रहा था लेकिन वो मुग्धा के उत्साह पर पानी नहीं फेरना चाहता था ..बोला मुमताज़ लग रही है ...मुग्धा खिलखिला के हंस पड़ी...बोली तुमको तो सब एक सी लगती हैं ...अखिल बोला अरे नहीं..वही है... लगा लो शर्त... मुग्धा बोली आज तो १००० की लगाउंगी ..अखिल बोला भाई ये ज़ुल्म क्यूँ ..मुग्धा बोली -मुमताज़ तुम्हारी फेवरिट हीरोइन है और उसे ही नहीं पहचानते ...ये तो शर्त के साथ साथ जुरमाना भी हुआ .... अखिल भी अड़ गया कि  मुमताज़ ही है ...लग गयी शर्त ..और फिर मुग्धा ने बड़े गर्व से बताया की ये कुमुद चुगानी है ... और अखिल झूठा मातम मनाता हुआ सर पकड़ के बैठ गया “ लो इतवार की सुबह सुबह चूना लगवा दिया” ..और इन खुशनुमा पलों को जीते हुए दोनों ने सन्डे टाइम्स उठा लिया ..

मुग्धा की नज़र ह्यूमन साइकोलॉजी पर आधारित एक आर्टिकल पर पड़ी और उसने अखिल से कुछ पूछने को मुंह खोला ही था कि अखिल ने उसके हाथ से पेपर छीन लिया..बोला-“बस अब तुम शुरू हो जाओगी मेरा दिमाग खाली करने को..यार सन्डे को तो इन सब को backfoot पर रख दो.. चलो movie देखने चलते हैं “ ...कह कर पेपर  में नज़रें दौड़ाने लगा एक एक करके सब मूवीज के नाम बताये लेकिन मुग्धा का मन किसी पे अटका ही नहीं उसके दिमाग में तो साइकोलॉजी का कीड़ा कुलबुला रहा था और राजुल उसके दिमाग से हट नहीं रहा था ...उधर अखिल मूड में नहीं था गंभीर विषय को छूने के लिए ...

मुग्धा को अनमना देख अखिल पूछ बैठा- क्या हुआ देवी जी ..अब कौन सा कीड़ा घुस गया दिमाग में ...

मुग्धा बोली –यार आर्टिकल में लिखा है कि सोशल कंडीशनिंग का बहुत व्यापक असर होता है इस तरह की सोचों और व्यवहार पर.. राजुल के बारे में सोच रही थी की उसका व्यवहार इतना अजीब क्यूँ हैं ..रात तुमने  बात को उसके इन्फिरियोरिटी काम्प्लेक्स की तरफ घुमा दिया  और उसके मेरे प्रति अजीब व्यवहार के कारण को टाल गए   ....

अखिल ज्ञानी की मुद्रा में बोला- “बालिके !!! जितनी तुम्हारी पाचन शक्ति है उतना ही परोसूँगा न मैं ...कल भर के लिए उतना काफी था फिर एक layman की तरह बाकी बातों को टच किया था न उसमें कौन सी राकेट साइंस है ...अब तुम्ही देखो न..बचपन से देखा है मुग्धा देवी ने अपनी माताश्री को अपने पापा पर हुकुम चलाते तो  इस मासूम अखिल पर वही अप्लाई हो जाता है..” छेड़ते हुए बोला अखिल

मुग्धा सुन के चिढ़ गयी बोली- कब मैंने हुकुम चलाया तुम पर ...

अखिल ठहाके लगा के हंसा और शरारत से गाने लगा “जान मेरी रूठ गयी जाने क्यूँ हमसे ...आफत में पड़ गयी जान “ ...

मुग्धा भी उसकी अदाओं पर अपनी हँसी नहीं रोक पायी  ...लेकिन उसको तो राजुल की सोशल कंडीशनिंग की तह तक पहुंचना था ..अखिल को पटाने का तरीका जानती थी वो..

बोली – गोभी के पकोड़े और सूजी का हलवा खाओगे नाश्ते में.... अखिल के चेहरे पे ज्यूँ १००० वाट का बल्ब जल गया हो...बोला हाँ हाँ क्यूँ नहीं ..लेकिन उससे पहले एक चाय और चाहिए .... मुग्धा उठ के चाय बनाने चल दी और अपनी कुक को ज़रूरी इंस्ट्रक्शन दे कर बोली तुम सिर्फ तैयारी करो..मैं खुद बनाउंगी आज सब कुछ ..





(क्रमशः)

Wednesday, October 10, 2018

मुग्धा : एक बहती नदी (भाग ६)


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(अब तक आपने पढ़ा कि कॉलेज फ्रेंड्स के 25 साल बाद मिलने पर मुग्धा अतीत से होते हुए वर्तमान के राजुल तक पहुंचती है ..उसके व्यवहार से क्षुब्ध मुग्धा उसके इस व्यवहार के पीछे छिपे कारणों को जानने को उत्सुक हो उठती है ...अब आगे ....)
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घर आ कर उसने अखिल को राजुल द्वारा  की गयी टिप्पणियों के बारे में बताया.. अखिल ने कहा -" यह बहुत जड़ों तक पैठ जाता है कई लोगों के दिमाग में ..लड़की लड़के का फ़र्क ..लड़कियों के लिए बनाये हुए कुछ मानक जो न जाने किन परिस्थितियों में इजाद हुए ..और खुद की कुंठित भावनाएं इन सभी का मिला  जुला असर पड़ता है एक व्यक्ति की सोच पर ..तुम तो राजुल और उसके परिवार को बचपन से जानती हो ..कैसा था इसका बचपन का बैकग्राउंड ??

मुग्धा ने बताया- उसके मम्मी पापा संकीर्ण सोच रखते थे ...उस पर घर वालों के मापदंडों का बहुत प्रेशर था ,यह करो यह मत करो ..पढाई में अव्वल रहो ,ऊंचा चरित्र रहे इसके लिए लड़कियों से दूर रहो ...हर बात में critisize करते थे उसके परिवार के लोग ..उसे कुछ नया करते देख बोलते कि पढाई करो ये सब काम नहीं आएगा ..बारहवीं क्लास में उसने एक ट्रांसमीटर बनाया था उस पर भी उसकी तारीफ करने के बजाय यही बोला गया कि समय और पैसे की बर्बादी..बारहवीं के बाद इंजीनियरिंग में दाखिला नहीं मिल पाया था तब भी बहुत सुनने को मिलता था उसे ..हमारे साथ के एक लड़के के नम्बर इससे कम होते हुए भी उसे reservation policy के तहत एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग institute में एडमिशन मिल गया था उसका भी बहुत नकारात्मक असर हुआ था राजुल पर.

अखिल बहुत गंभीरता से मुग्धा की बातें सुन रहा था ,एक गहरी हुंकार के साथ उसने कहा – इसीलिए उसके व्यवहार में एक तरह का विद्रोह पनप गया था ,वह  अटेंशन और अप्रूवल के लिए लोगों का मुंह देखता था और खुद के प्रति हीन भावना घर कर गयी .

अपना चश्मा उतार कर मुग्धा को निहारता हुआ अखिल बोला:
 "an inferiority complex occurs when the feelings of inferiority are intensified in the individual through discouragement or failure .

 राजुल में इस inferiority complex का बीज उसी समय पड़ गया था जो आज एक भरा पूरा वृक्ष बन चुका है और इसी के चलते शायद वह suffer कर रहा है ....आजकल मनोवैज्ञानिक inferiority complex को “ lack of covert self esteem” भी  कहते हैं ."

मुग्धा ने पूछा –क्या इस हीन भावना का असर हमेशा नकारात्मक ही होता है ?

अखिल बोला : Alfred Adler नामक मनोवैज्ञानिक के अनुसार हम सभी में inferiority की फीलिंग होती है ,यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह स्वस्थ सामान्य जीवन जीने के प्रयास के लिए stimuli हो सकती है यदि हम इसको समझ सकें और सकारात्मक दृष्टिकोण अपना कर इसे रूपांतरित कर सकें ..
हाँ !यह एक बीमारी जैसी अवस्था में बदल जाती है जब व्यक्ति  को खुद की अनुपयोगिता का एहसास बहुत गहरा होने लगे और वो प्रेरित होने के बजाय एंग्जायटी और डिप्रेशन की तरफ जाने लगे ..ऐसे केस में डेवेलप होने के बजाय डिक्लाइन होने लगता है इंसान और राजुल का केस कुछ ऐसा ही लगता है ..रहा सवाल उसके विकृत नजरिये का तो बचपन की टोकाटाकी ,लड़की लड़कों में फरक करना उसके अस्वस्थ मन में जड़ें जमा गया है ...पुरुषों को अधिकारिक्ता और possesiveness का एहसास हमारा समाज सदियों से कराता आया है और इसीलिए पुरुष और स्त्री के बीच मित्रता का खयाल  ही ऐसी कुंठित सोच वाले पुरुषों को अस्तव्यस्त कर देता है ..उनको लगता है कि स्त्री को लगाम को खींच कर रखना चाहिए ..जबकि उन्हें यह नहीं पता कि बेलगाम तो उनके अंदर की दमित भावनाएं हैं जो किसी स्त्री को सहज व्यवहार करते देख सरपट दौड़ने लगती है और जिसका दोषारोपण वे उस स्त्री पर करते हैं ....एक सीमित परिधि में देखना  और कुछ परिभाषाओं में किसी भी व्यक्तित्व को फिट करने की कोशिश  करना ऐसी सोच को बढ़ावा देता है ..सही गलत का निर्धारण ऐसे लोग अपनी मान्यताओं के हिसाब से करने लगते हैं ..और यह नहीं समझ पाते कि दूसरों से अधिक उनका खुद का नुकसान हो रहा है.. मित्रता  से वंचित ..मित्र न मिल पाने का दोष पूरे ज़माने पर रख देते हैं .. उनके दुखों के लिए हर कोई जिम्मेदार होता है .. सिर्फ उन्हें खुद को छोड़ कर...."

मुग्धा ने कहा -' हाँ ..पुराना मित्र होने के नाते मुझे उससे सहानुभूति है .. मैं चाहती हूँ कि वह ज़िंदगी को विस्तृत तौर पर देख पाये ..हो सकता है अभी तक उसकी कुंठित सोच को झकझोरने वाला कोई न मिला हो .. कई बार जिसे हम मित्र समझते हैं वही हमारी कुंठाओं को बढ़ावा देने वाला साबित होता है ..दूसरे आयाम न दिखा कर उसी सोच को समर्थन देना मित्रता कतई नहीं ..एक मित्र होने के नाते मैं उसे इस तरह की सोचों के दलदल से बाहर  निकालना  चाहती हूँ ..सफल होना या न होना अलग बात है..किन्तु ईमानदारी से प्रयास करना चाहती हूँ .."

अखिल ने कहा - " हाँ यही तो एक होशमंद इंसान होने के नाते हमारा कर्तव्य है ..यदि हमें कोई बात ऐसी लगती है जो किसी को  एक बेहतर जीवन जीने में सहायता कर सकती है उसे हमें दूसरों तक पहुँचाना अवश्य चाहिए ..अपनाना या न अपनाना उसकी मर्जी ..बस एक बात का ध्यान रखना ..वह तुम्हारे लिए ओवर प्रोटेक्टिव है ..कहीं कोई गहन भावना भी है ..तुम्हारी इस कंसर्न को वह कहीं एक 'प्रेम प्रसंग' समझने की भूल भी कर सकता है ..तुम मदद की मंशा लिए एक मनोविज्ञानिक केस स्टडी करते करते खुद न उलझने लगो.."

मुग्धा शरारत से मुस्कारते हुए कहा - " मेरा इलाज तो तुम कर ही लोगे .." और इसके साथ ही दोनों हंस पड़े ..मुग्धा मन में सोचने लगी कि कितने पति पत्नी होते होंगे इस तरह के मित्र .!! क्यूँ समझ नहीं पाते कि यह रिश्ता इसी मित्रता की भावना से पनप सकता है सुन्दर फूल खिला सकता है और इसी तरह की नयी पौध भी तैयार कर सकता है ...जीवन का सबसे गहन रिश्ता किस तरह परम्पराओं और मान्यताओं की भेंट चढ जाता है लोग कभी जान ही नहीं पायेंगे शायद ..




क्रमशः

Monday, October 8, 2018

मुग्धा: एक बहती नदी (पांचवी क़िस्त)


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पार्टी खतम होने पर सभी दोस्तों ने एक दूसरे के फोन नंबरों का आदान प्रदान किया और भविष्य में मिलते रहने के वादे के साथ एक दूसरे से विदा ली.. राजुल ने मुग्धा से पूछा कि वह उसे कब फोन कर सकता है ?

यद्यपि मुग्धा चाहती नहीं थी कि वह उससे कोई संपर्क रखे किन्तु ऐसी ही क्षणों में वह स्वयं को कमजोर महसूस करती थी ..सीधे सपाट शब्दों में 'ना' कहना उसे जैसे नहीं आता था ..कई बार क्षुब्ध हो कर अखिल से भी इस विषय पर विमर्श किया था उसने ..अखिल ने उसे यही कहा था कि स्वयं को उलझाने से बचने के लिए कई बार शुष्क व्यवहार भी करना पड़ता है.. किन्तु मुग्धा उतार नहीं पायी इसे अपने व्यवहार में

और सहज रूप से वह राजुल से कह बैठी - जब चाहो ..

राजुल बोला तुम्हारे पति किस समय घर पर नहीं होते ?

मुग्धा ने कहा - उससे क्या मतलब ?

राजुल ने कहा - उनको शायद पसंद न आये  मेरा तुमको कॉल करना ..

मुग्धा ने कहा - ऐसा कुछ नहीं है ..तुम कभी भी कॉल कर  सकते हो ..

राजुल ने कहा - भाई मैं तो जानता  हूँ ,मर्दों की प्रवृति ..और मर्दों की ही क्यूँ औरतों की भी .. कोई भी नहीं चाहता कि उसके पति/पत्नी का कोई विपरीतलिंगी दोस्त हो ..शायद मेरी पत्नी के पास फोन आये उसके किसी दोस्त का तो मैं तो सहन  न कर पाऊं ...

मुग्धा को उसके इस मंतव्य से घुटन होने लगी ..उसने कभी इस तरह की सोच देखी ही नहीं थी ..अखिल और वह मित्र ज्यादा पति-पत्नी कम दिखते थे ..एक दूसरे के व्यक्तिगत स्पेस का सम्मान करना भी खूब जानते थे और दोनों ने ही एक दूसरे पर कभी एक दूसरे को थोपा नहीं था ..शायद यह अखिल और मुग्धा दोनों के ही मानव मनोविज्ञान में गहरी पैठ के कारण था !!और राजुल के इस वक्तव्य के साथ साथ ही मुग्धा के मन -मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगा ..

उसे राजुल अब दोस्त नहीं एक केस स्टडी के रूप में नज़र आने लगा और वह  उसके विगत जीवन के बारे में जानने को उत्सुक हो गयी ...इसलिए सारी मलिनता भुला कर उसने सहज भाव से उसे कहा - सब लोग एक से नहीं होते राजुल ..तुम चाहो तो घर भी आ सकते हो अखिल तुमसे मिल कर बेहद खुश होंगे ..और हो सके तो अपनी पत्नी को भी ले कर आना ..

राजुल एक विद्रूप सी हँसी हंस कर बोला - पत्नी!! ..काश मैं उसे ले जा सकता कहीं ..पत्नी होते हुए भी कुंवारा सा ही हूँ मैं तो ..अ फोर्सड बैचलर ...!!

मुग्धा को देर हो रही थी ..इसलिए बात को अधूरा ही छोड़ उसने राजुल से विदा ली ..यह कहते हुए कि कभी फुर्सत से बात करेंगे ...

मुग्धा का  राजुल को देखने का नजरिया अब बिलकुल बदल चुका था.. अब वह खुद को परे रखते हुए राजुल के अप्रत्याशित व्यवहारों की स्टडी करना चाहती थी...और उसके लिए उसे राजुल से मिलना ही होगा ..बार बार ....



क्रमशः

मुग्धा:एक बहती नदी (भाग -४)


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आखिरकार शनिवार का दिन भी आ गया और होटल हेरिटेज के पूलसाइड  रेस्तरां में मुग्धा के बैच के करीब २५-३० लोग इक्कठे हुए ..सब बहुत उत्साहित थे ..और एक दूसरे को देख  कर उनके पुराने रूपों को याद करते हुए वक्त की मार को महसूस कर रहे थे ..अधिकतर लड़कों की तोंद निकल आई थी कई के सर के बाल गायब हो गए थे .. और लडकियां भी अधिकतर गोलाकार सी हो गयी थी ..सबसे ज्यादा हैरानी तो मुग्धा को नमिता को देख कर  हुई.. बी.एससी. में उनके पूरे बैच की रोल मॉडल थी वह.. ५ फुट ६ इंच लंबी पतली दुबली नमिता  चेहरे पर आत्मविश्वास लिए जब क्लास में दाखिल होती थी तो दो चार मनचलों की सिस्कारियां  सुनाई पड़ ही जाती थी..मुग्धा को भी उसी ने टोक टोक कर उसके ढीले ढाले सूट्स  से मुक्ति दिलाई थी .. अच्छी फिटिंग के बिना बाँहों के कुर्ते अपने साथ टेलर के यहाँ ले जा कर बनवाए थे ..मुग्धा ना ना करती रही ..तो नमिता ने उसे घुड़क दिया था कि अभी नहीं पहनोगी तो क्या बुढ़ापे में पहनोगी ..छोटे कसबे की मुग्धा फैशन के नाम पर बिलकुल मूढ़ ही तो थी  ..और आज वही नमिता ..वृहदाकार शरीर को एक सिल्क की साड़ी  में लपेटे हुए कितनी कांतिहीन दिख रही है ..अपने मनोवैज्ञानिक पैशन के चलते मुग्धा बेसब्र हो उठी उसकी इस उदासी का राज़ जानने के लिए ..किन्तु न तो जगह और न ही समय था ये सब पूछने का ..

सबसे मिलती जुलती मुग्धा मोहित के पास पहुंची जो इस समय एक होस्ट की भूमिका निभा रहा था ..मुग्धा को पूर्ण एहसास था कि  जहाँ जहाँ से वह गुज़र रही है हर किसी की नज़रें जैसे उसी पर चिपक कर रह जा रही हैं.. शिफ़ान की साड़ी  में  संतुलित  शारीरिक सौष्ठव  मुग्धा के व्यक्तित्व को बेहद गरिमामय ढंग से व्यक्त कर रहा था .चेहरे पर हमेशा खिली रहने वाली मुस्कुराहट बहुत सकारात्मक स्पंदन प्रेषित कर रही थी ..मुग्धा महसूस कर रही थी कुछ इर्ष्यालू और कुछ प्रशंसात्मक निगाहें उसकी ओर उठती हुई ..और इसके साथ ही उसकी चाल में और भी आत्मविश्वास दृष्टिगोचर हो रहा था ..मोहित के करीब पहुंच कर उसने पूछा और कौन कौन  आना बाकी रह गया है अभी ?

मोहित ने कहा - राजुल को आना चाहिए था

मुग्धा ने पूछा -और ?

 मोहित ने कहा - अजय , सचिन ,साधना इन सबने भी कन्फर्म किया था ..

मुग्धा फिर मुड कर दोस्तों के बीच चली गयी  ढेरों बातें थी करने को .. जो खास दोस्त हुआ करते थे उनके २५ साल कैसे बीते जानना था ..कुछ चेहरे बस देखे हुए से थे और कुछ बिलकुल अजनबी ..मुग्धा का दायरा बस करीब दस लोगों तक सीमित था  ..अचानक उसके पीछे से किसी ने कहा - हाय मुग्धा ..!! मुग्धा ने पलट कर देखा तो अचानक से पहचान नहीं पायी ..जाना पहचाना सा चेहरा ..लेकिन कितना अजनबी भी .. और उसने  हिचकिचाते हुए कहा -'राजुल !! तुम ? '

राजुल बोला - थैंक गोड ! तुमने पहचान लिया ..मुझे तो लगा था भूल ही गयी होगी ..

मुग्धा ने मुस्कुराते हुए कहा - ऐसे कैसे भूल सकते हैं पुराने दोस्तों को ..

राजुल बोला - तुम बदली नहीं जरा भी ..

मुग्धा को लगा कि वह उसके व्यक्तित्व की बात कर रहा है..मुग्धा को एहसास था कि उस पर उम्र का प्रभाव बहुत नहीं दिखता है ..इसलिए उसने हलके से मुस्कुरा कर राजुल की इस बात का स्वागत किया

किन्तु राहुल ने आगे कहा - पहले जैसी फ्लर्ट थी आज भी वैसी ही हो  ..तुम्हारे पति तुम्हें टोकते नहीं ?

मुग्धा का चेहरा एकदम काला  पड़ गया ..और क्षणांश  में उसने जान लिया कि राजुल अभी भी वही कुंठित इंसान है ..बहुत कुछ जवाब दे सकती थी वह किन्तु इस तरह पब्लिकली बोलना उसके शिष्टाचार के खिलाफ था इसलिए चेहरे पर यथासंभव संयत मुस्कराहट लाते हुए उसने कहा - अच्छा तो है न ..वरना आज की दुनिया में तो इंसान पल पल बदलता रहता है ...तुम कैसे हो ? कहाँ हो ? और  मुग्धा ने बातों की  दिशा मोड़ दी ..




क्रमशः

Friday, October 5, 2018

मुग्धा:एक बहती नदी (तीसरा अंक)


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राजुल बी.एससी. करने के बाद न जाने किस शहर में  चला गया और मुग्धा भी उस कॉलेज से स्नातक की पढाई करने के बाद स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी चली आई ..कभी कोई कॉमन फ्रेंड मिलता तो उसके बारे में उड़ती हुई खबरें सुनने को मिलती.. कभी जॉब कर रहा है कभी कोई कोर्स कर रहा है..मुग्धा को अफ़सोस होता कि उसकी मेधा व्यर्थ जा रही है उसमें इंजिनीयर बनने के सभी गुण थे .. बारहवीं कक्षा में ही न जाने कैसे कैसे प्रोजेक्ट बनाता रहता था जो दैनिन्दिन जीवन में उपयोगी होते थे ..किन्तु समय के थपेडों ने न जाने क्या सोचा हुआ था उसके लिए ...

फिर एक दिन एक मित्र के माध्यम से सन्देश आया उसका कि वह मुग्धा से मिलना चाहता है .. मुग्धा को क्या आपत्ति हो सकती थी ..मुग्धा ने तो जैसे कुछ रोकना जाना ही नहीं था .. उसका यही व्यवहार उसे सामाजिक नियम कायदों से अलग करता था .. और शायद यही कारण था उस पर लगे हुए " बदचलन ' के ठप्पे का.. जो " चलन " से हट कर व्यवहार करे वह बदचलन ..!!!

राजुल को क्या बात करनी है इसका जरा भी अंदाज़ा मुग्धा को नहीं था ..

मिलते ही राजुल ने गड़े मुर्दे उखाड़ने शुरू किये ..पुरानी बातों को याद दिला दिला कर उसको गलत ठहराना ...मसलन ..गाने इतनी तेज आवाज़ में क्यूँ सुनती थी ..सबको अपनी ओर आकर्षित करने का तरीका था क्या.. कॉलेज में पढ़ने आती थी कि हँसने ..और तो और पता नहीं कहाँ  से खबर सुन के आया था कि मुग्धा की बदचलनियों  के चलते उसके पापा ने उसकी खूब पिटाई की थी और शर्म के कारण  वे १५ दिन की  छुट्टी ले कर अपने गांव चले गए थे ...मुग्धा से उसने इन सबका जवाब माँगा ..मुग्धा हक्की बक्की सी उसे देखे जा रही थी ..और सोच रही थी कि कितना कचरा भरा है इसके दिमाग में ... राजुल ने दुनिया भर में उसके बारे गढ़ी हुई कहानिया सुन कर कुछ धारणाएं स्थापित कर ली  थी ..जिनको  गलत सिद्ध करने का मुग्धा के पास न तो साधन था और न ही मानस   .. राजुल उससे कहता रहा ..वो सुनती रही और बस यही कहती रही कि जैसा तुम ठीक समझो.. मुझे खुद को साबित नहीं करना है किसी के भी सामने ..मैं जो हूँ वह हूँ ..मेरा परिवार जानता  है कि मैं क्या हूँ उनका विश्वास मेरे साथ है और मुझे किसी की  परवाह नहीं कि कोई मेरे बारे में क्या सोचता है और क्यूँ सोचता है ..

राजुल ने कहा - समाज में रहना है तो उसी के हिसाब से रहना होता है..तुम्हें बदनामी से डर नहीं लगता ? कोई शादी भी नहीं करेगा तुमसे  इस बदनामी के चलते ..

वितृष्णा हो आई मुग्धा को ..किस कुघड़ी  में उसने इससे मिलने के लिए हाँ कह दिया था ..अच्छी खासी सरल ज़िंदगी जी रही है ..कहाँ की गन्दगी भर के ले आया है दिमाग में..

प्रकट में मुग्धा ने इतना ही कहा कि मनगढंत बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं ..तुम चाहो तो सच मानों   वरना मुझ पर यकीं कर लो..तुम्हारी इच्छा ..

और राजुल एक दम से विनम्र हो गया और बोला - बस अब तुमने कह दिया कि सब झूठ है मुझे तसल्ली  हो गयी .. और यह कहते हुए उसने विदा ली मुग्धा से कि अब हम जब भी मिलेंगे अच्छे दोस्तों की तरह मिलेंगे .. सब गलतफहमियां  दूर ..और अब हम परिपक्व हो गए हैं बचकानी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए ..

मुग्धा ने राहत  की साँस ली ..और राजुल के अपरिपक्व व्यवहार को भी सहज मान के ज्यादा ध्यान नहीं दिया ...

मुग्धा ने सर को झटका दिया ..कॉलेज की यादों में और भी बहुत सी बातें हैं उसे रह रह कर राजुल की बातें ही क्यूँ याद रहती हैं ...सुरभि,मोहित , आस्था और नमिता ..उसकी तो शादी भी तय हो गयी थी बी.एससी. करते करते ..और उसका मंगेतर जब उससे मिलने आता था तो हम सब सहेलियां उसकी कितनी खिंचाई करते थे ..आखिरी बार उन सबसे नमिता की शादी में ही मिलना हुआ था ..२५ साल बाद सबसे मिलना होगा कितना मज़ा आएगा ..मोहित और सुरभि से तो कभी कभी फोन पर बात हो जाती है किन्तु अपनी अपनी दुनिया में उलझे हुए मिलने का मौका मिल ही नहीं पाया ..मोहित ने ही नेट पर से ढूंढ ढूंढ कर अधिकतर दोस्तों के पते ठिकाने मालूम किये हैं और सबको इस शनिवार मिलने का मौका भी उपलब्ध कराया है ..मुग्धा को ऐसा लग रहा था कि वो वही २० साल की तरुणी बन गयी है ...आँखों के सामने सहेलियों के साथ मूवी देखने जाना ..चाट खाना ..कितने मजेदार दिन होते थे वे..उस समय लगता था कि मम्मी लोगों के मजे हैं..हमको तो पढ़ना पड़ता है ..अब एहसास हुआ कि एक पत्नी, एक माँ बनने में कितनी तपस्या और सहनशीलता चाहिए होती है ..विचारों का ताना बाना चलता रहा ,कभी मुग्धा खुद में ही डूबी मुस्कुरा पड़ती कभी उदास हो जाती ..अखिल ने तो उसको छेड़ना भी शुरू कर  दिया था कि अपने पुराने दोस्तों से मिलने से पहले ही यह हाल है..बाद में मुझे तो डर है कि इकलौती बीवी से हाथ न धो बैठूं ...

अखिल लखनऊ  के एक जाने माने मनोचिकित्सक थे ..मानव मनोविज्ञान के गूढ़ रहस्यों को बेहतर तरीके से जानना  समझना उनका पेशा ही नहीं वरन  पैशन था ..और मुग्धा विज्ञान  के क्षेत्र से होते हुए भी साईकोलोजी में बेइंतिहा रूचि रखती थी और दोनों का यही कॉमन इंटरेस्ट उनको आपस में जोड़ने में बहुत मददगार साबित हुआ..मुग्धा के कजिन की शादी में पहली बार अखिल से मुलाकात हुई जो चाचा के दोस्त का लड़का था ..और यंगस्टर्स का अलग ग्रुप बन गया जहाँ उन दोनों ने एक दूसरे को पहचानने में कोई गलती नहीं करी ...और अब एक मैत्रीपूर्ण वैवाहिक जीवन के २० वर्ष पूरे करते हुए मुग्धा कितने ही केसेस में डॉ. अखिल श्रीवास्तव की असिस्टेंट होती है.. और कई बार तो पेचीदा केसेस की जड़ों तक अखिल मुग्धा से विमर्श के कारण ही पहुँच पाता है ..



क्रमशः

Thursday, October 4, 2018

मुग्धा: एक बहती नदी (भाग २)


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कॉलेज  में उसी 'राजुल' को अपने साथ की सीट पर बैठा देख कुछ पल के लिए उसे असुविधा सी महसूस हुई किन्तु 'राजुल' का मुस्कुराता  चेहरा देख उसने खुद को आश्वस्त किया कि अब हम बच्चे नहीं हैं ..और शायद राजुल पुरानी सभी बातें भुला कर एक नयी दोस्ती की  शुरुआत कर सके ..यह सोच कर उसने भी उस मुस्कुराहट का प्रतिउत्तर हलकी मुस्कुराहट से देते हुए पूछ लिया -"कैसे हो ? "

राजुल ने कहा," मैं ठीक हूँ ...तुम ? "

मुग्धा बोली 'मैं भी ठीक हूँ .."

इतने में सर आ गए और क्लास शुरू हो गयी ...

समय अपनी गति से बढ़ता रहा ..पढाई में 'राजुल' और 'मुग्धा ' दोनों ही मेधावी थे ..दोनों एक दूसरे की  यथासंभव सहायता करते और नोट्स का आदम प्रदान करते ..कि अचानक एक दिन मुग्धा ने अपनी किसी दोस्त के जरिये सुना कि राजुल के घर में उसे ले कर बहुत क्लेश हो रहा है ..राजुल की  मम्मी नहीं चाहती कि वह मुग्धा के साथ बात करे ..क्यूंकि मुग्धा एक बदचलन लड़की  है . उनके बेटे की बदनामी मुग्धा के कारण हो रही है... और राजुल की बहन ने भी कहा कि वह नहीं चाहती कि उसका भाई एक कैरेक्टरलेस लड़की से बात करे .लेकिन राजुल मुग्धा से बात करना छोड़ने को तैयार नहीं ...मुग्धा यह सुन के मानों  ज़मीन पर आ गिरी.. राजुल की बहन 'तनुश्री' जो उससे कितनी अच्छी तरह मिलती है.. ढेरों बातें करती है ..पीठ पीछे उसके लिए ऐसा कैसे कह सकती है.. और मुग्धा चरित्रहीन है !! ...क्यूंकि वह बिना किसी पूर्वाग्रह के लड़कों से बात कर पाती है.. लेकिन  सामने सामने शालीन और छुईमुई बने रहने  और छुप छुप कर लड़कों से मिलने वाली लडकियां बहुत सुसंस्कृत और चरित्र वाली हैं !! क्या है कैरेक्टर की परिभाषा?? मुग्धा को घर से किसी बात के लिए रोक टोक नहीं थी और इसीलिए वह एक जिम्मेदार युवती थी हर किसी से सहजता से मिलना बात करना बिना किसी कंडिशनिंग के उसके व्यक्तित्व में शुमार था और शायद यही उसे बाकी लड़कियों से अलग करता था ...तथाकथित चरित्रवान लड़कियों से ...

मुग्धा अपनी मम्मी से कुछ नहीं छुपाती थी... उसका मानसिक और भावात्मक संबल उसका परिवार था.. उसने यह सब कह डाला अपनी मम्मी से... और एक बार फिर राजुल और उसकी दोस्ती पर ताले लग गए ...मुग्धा ने अपनी तरफ़ से राजुल से बात करना बंद कर दिया..

ऐसे में एक दिन मुग्धा ने पाया कि किसी दूसरे कॉलेज का एक मवाली सा लड़का रोज ही उसका पीछा करता है जब वह कॉलेज आती है ..और ३-४ दिन बाद तो उसने उसका रस्ता रोक कर बात करने की कोशिश करी .. मुग्धा अकेली आती  थी अपनी साइकल पर ..वो बुरी तरह घबरा गयी ..और उसे एकमात्र सहारा राजुल ही दिखा जिससे वह मदद मांग सकती थी . किन्तु जब उसने राजुल से बताया तो उसने कहा- " अपना मतलब पड़ा तो मुझसे बात करने चली आई..!!

मुग्धा ने जवाब दिया , "मुझे अकेले आने में डर लगता है ..अगर तुम मेरे हॉस्टल से कॉलेज तक मेरे साथ आओ तो वह लड़का एक दो दिन में पीछा करना छोड़ देगा ."

राजुल ने व्यंग से कहा ,"क्यूँ ? मैं क्यूँ आऊँ  ? तुमने ही उसे सिग्नल दिए होंगे ..तभी तो वो आता है तुम्हारे पीछे ..वैसे तो मुझसे बात नहीं करती और अब जरूरत पड़ने पर मदद मांगने चली आई

मुग्धा हतप्रभ सी राजुल को देखती रह गयी...अफ़सोस हुआ उसे कि क्यूँ इतना कमजोर समझा उसने खुद को जो इस घटिया इंसान से मदद मांगने चली आई ..अपनी जंग हर किसी को खुद ही लड़नी होती है ..खुद ही सोचेगी वह कुछ और .. अब इस राजुल के सामने कभी हाथ नहीं फैलाएगी मदद के लिए .. उसे लगा था कि जो कुछ भी पुराने सम्बन्ध रहे हैं  उनके नाते ही राजुल को उसकी सुरक्षा की  चिंता होगी ..किन्तु उसकी सोच जान कर उसे बहुत अफ़सोस हुआ ...और उस दिन के बाद मुग्धा के लिए राजुल के अस्तित्व का कोई मतलब नहीं रह गया था ..




क्रमशः

Wednesday, October 3, 2018

मुग्धा -एक बहती नदी


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(धारावाहिक कहानी -प्रथम अंक)
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मुग्धा बहुत उत्साहित थी . अगले शनिवार को उसके ग्रेजुएशन  बैच का  गेट टुगेदर था .२५ साल ..ओह .!! कितना लम्बा अरसा बीत गया ..२५ साल ऐसा लग रहा है बीच में से हवा के झोंके  के साथ उड़ कर कहीं चले गए हैं और मुग्धा वापस अपने कॉलेज के दिनों में पहुँच गयी ..

कॉलेज का पहला दिन..पहली बार रंगीन कपड़ों में पढने आना ..बड़े होने का एहसास और स्वयं सबसे जूनियर होने का एहसास दोनों ही एक अजब सी मनोस्थिति बना दे रहे थे मुग्धा के लिए ..बारहवीं तक सह-शिक्षा स्कूल में पढने वाली  बिंदास मुग्धा इस समय सहमी सहमी सी किसी जाने पहचाने चेहरे की तलाश में कोरिडोर में बढ़ी जा रही थी . नोटिस बोर्ड पर लगे क्लास शेड्यूल के अनुसार रूम नंबर ढूँढने में उसे दिक्कत नहीं हुई ..बी.एससी. प्रथम वर्ष की  कक्षा पहले तल पर थी ..जब मुग्धा क्लास में पहुंची तो लगभग सभी सीट्स भर चुकी थी ..तीसरी पंक्ति में एक सीट खाली देख मुग्धा वहीं जा कर बैठ गयी ...और उसे एहसास हुआ कि उसके बराबर में बैठा हुआ छात्र लगातार उसे देख रहा है.. उसने अचकचा कर उसकी तरफ देखा तो हतप्रभ रह गयी.."राजुल" और यहाँ ..!!!

और पिछले ४ साल की  घटनाएं उसकी नज़रों के सामने दौड गयी ..नवीं कक्षा में पापा के ट्रान्सफर के साथ ही सिन्हा अंकल का भी ट्रान्सफर उस प्रोजेक्ट पर हुआ था जो अभी शुरू ही हुआ था ..गर्मियों की छुट्टियाँ पहाड के समान हो गयी थी ..जब तक स्कूल न खुले तब तक कहाँ मन लगाये मुग्धा ..कोई संगी साथी नहीं .. ऐसे में सिन्हा अंकल का आना और उनके दो हमउम्र बच्चों का साथ बियाबान में फूल खिलने के समान था .. सिन्हा अंकल  की बड़ी बेटी तनुश्री मुग्धा से दो साल बड़ी थी और उनका बेटा राजुल मुग्धा के ही बराबर .. मुग्धा को तो मानो  पंख मिल गए .. सारे सारे दिन तीनो की  बैठक जमती ..कभी ताश कभी कैरम ..कभी लूडो ..और शाम को लंबी  दूरी का टहलना .. तीनो की खूब जमती थी एक दूसरे से ..' राजुल ' जब देखो तब टांग खिंचाई करता रहता था मुग्धा की.. और संवेदनशील मुग्धा रो पड़ती थी..फिर राजुल उसको घंटो मनाया करता था ..दोनों का एडमिशन भी एक ही स्कूल में हो गया था ..तनुश्री का स्कूल दूसरा था ..लेकिन जाते तीनो एक ही बस से थे .. बचपन की मासूमियत को झटका तब लगा जब एक दिन मुग्धा की मम्मी ने उसे कहा कि  वो राजुल के साथ खेलना बंद कर दे...और दुनिया की ऊँच  नीच समझा बुझा कर यह भी बताया कि राजुल की मम्मी नहीं चाहती कि वह लड़कियों के साथ खेले और जब उन्होंने राजुल को मना किया तो राजुल ने साफ़ इनकार कर दिया कि वह मुग्धा के साथ खेलना नहीं छोड़ेगा ..इसलिए उन्होंने मुग्धा को समझाने के लिए कहा है ..मुग्धा मान गयी और उसने राजुल से बात करना बंद कर दिया ...दो मासूमों की मित्रता दुनियादारी की भेंट चढ गयी .. और उसकी प्रतिक्रिया राजुल पर बेतरह उलटी हुई.. उसने मुग्धा की हर बात पर नज़र रखना शुरू कर दिया .. वह किससे  बात कर रही है ..कैसे बात कर रही है .. कैसा करना चाहिए ,कैसा नहीं करना चाहिए ....और जब तब उसके व्यवहार पर आक्षेप लगाने उसके घर आ कर उसको दो चार सुना जाता ..मुग्धा को एक हमउम्र भाई की कमी महसूस होती थी और इस तरह का व्यवहार उसे एक सुरक्षा का एहसास कराता था जो शायद बालमन की सहज अनुभूति थी ...जो भी रहा हो दोनों के ही मन में एक दूसरे के लिए स्नेह और अपनापन था  और दुनियादारी निभाने के लिए वे आपस में बात नहीं करते थे .. हालांकि स्कूल आते जाते समय या क्लास में कभी नज़रें मिल जाती तो एक स्नेहयुक्त मुस्कुराहट दोनों के ही चेहरों पर आ जाती थी ..राजुल के तमाम आक्षेपों के बावजूद मुग्धा के मन में उसके लिए कड़वाहट नहीं थी..

समय बीतता गया ... राजुल  की पसेसिवनेस  उसे समय असमय मुग्धा पर कटाक्ष करने  को प्रेरित करती रहती थी ..किन्तु मुग्धा ने उसे कभी अहम् का मुद्दा नहीं बनाया ..किन्तु  धीरे धीरे उसके स्नेह और ममत्व के भाव कम होते चले गए और 'राजुल' उसके लिए सिर्फ एक पूर्व परिचित बन कर रह गया ...



क्रमश:

Tuesday, September 25, 2018

बेगम का जन्मदिन उर्फ़ मुल्ला का रोमांस


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उम्र के साथ कुव्वत बदलती है, हालात भी बदलते हैं,,,,मगर इंसान की तमन्नाएँ नहीं बदलती. बदले भी कैसे....इल्मी कहते कहते थकते नहीं....काहे के बूढ़े हो गए,,,,बूढ़ा होना महज एक दिमागी ख़याल है.....हमें सोचों से हमेशा जवान बने रहना चाहिए. यही बात जब अंग्रेजी में कही जाय  तो और दमदार हो जाती है, जैसा कि अमूमन देखा जाता है.
कहा जाता है, " To be young means living state of mind."....और यही तो हुआ मुल्ला नसरुदीन के यहाँ कल ही.

मुल्ला नसरुदीन की बेगम साहिबा 'लाल बीबी'  की साल गिरह थी 2 अक्टूबर को. कहा करती है, लोग गा गा के बावळे हुए फिरते हैं, आज के दिन दो फूल खिले थे जिनसे महका हिन्दुस्तान." अरे भाई 2 अक्टूबर महज़ मोहनदास करमचन्द गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का ही हैप्पी बर्थडे नहीं, इसी दिन यह लाल बेगम उर्फ़ लैला जान भी इस जमीन पर नमूदर हुई थी. सीनियर सिटीजन होने के बावज़ूद भी बच्चों की मानिंद बहुत एक्साईंटेड होती है हमारी लैला भाभी अपने हैप्पी बर्थडे के लिए.

हाँ तो किस्सा यह हुआ कि 1 अक्टूबर की रात,,,,घडी के दोनों कांटे जवान मोहब्बत करने वालों की तरह मिले, बारह बजे,,तारीख बदली,,,नसरुदीन ने लैला भाभी से कहा, "मुबारक हो बेगम साहिबां, साल गिरहा मुबारक हो".
मुल्ला का यह बोलना नेताजी याने मुलायम सिंह यादव स्टाइल में था.
'मुबाअक हो सा' गिरा' टाइप्स.

बेगम बोली, मियाँ आज सूखे सूखे मुबाअकबाद से काम नहीं चलने का...याद करो वो जमाना जब तुम मुझ से बड़ी मोहब्बत किया करते थे,,,,कभी उंगली,,,,,कभी कुछ,,,,,,ऐसा काटते थे,,,,,बड़ी लुत्फ़ वाली आह निकलती थी,,,नीले नीले निशान कायम हो जाते थे.

मुल्ला भी मूड में आ गया था. बोला बेगम नीले निशान पर याद आया.....अर्ज़ किया है :

"क्या क़यामत है कि आरिज़ उनके नीले पड़ गए,
हमने तो बोसा लिया था ख़्वाब में तस्वीर का !!"

शायरी के दौर ने जरा बेगम को और डिमांडिंग बना दिया.
करने लगी इसरार, मुल्ला आज मेरी सालगिरह है,,,आज तो तुम को मेरी उंगली काटनी ही होगी.

मुल्ला बोला, काहे रात ख़राब कर रही हो नींद आ रही है, सो जाना चाहिए. कल देखेंगे.

लैला बेगम को कल कहाँ, हियर एंड नाउ की थ्योरी सुनी हुई.
बोली ना आज और अभी.

मुल्ला को मज़बूरन हामी भरनी पड़ी. बिस्तर से उठा और वाशरूम की जानिब मुखातिब हुआ.

बेगम बैचैन,,,,पूछे,,,,मुल्ला कहाँ चल दिए,,,काटो ना.

नसरुदीन बोला, "बेगम ज़रा दांत तो ले आऊं."

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