Monday, October 8, 2018

मुग्धा: एक बहती नदी (पांचवी क़िस्त)


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पार्टी खतम होने पर सभी दोस्तों ने एक दूसरे के फोन नंबरों का आदान प्रदान किया और भविष्य में मिलते रहने के वादे के साथ एक दूसरे से विदा ली.. राजुल ने मुग्धा से पूछा कि वह उसे कब फोन कर सकता है ?

यद्यपि मुग्धा चाहती नहीं थी कि वह उससे कोई संपर्क रखे किन्तु ऐसी ही क्षणों में वह स्वयं को कमजोर महसूस करती थी ..सीधे सपाट शब्दों में 'ना' कहना उसे जैसे नहीं आता था ..कई बार क्षुब्ध हो कर अखिल से भी इस विषय पर विमर्श किया था उसने ..अखिल ने उसे यही कहा था कि स्वयं को उलझाने से बचने के लिए कई बार शुष्क व्यवहार भी करना पड़ता है.. किन्तु मुग्धा उतार नहीं पायी इसे अपने व्यवहार में

और सहज रूप से वह राजुल से कह बैठी - जब चाहो ..

राजुल बोला तुम्हारे पति किस समय घर पर नहीं होते ?

मुग्धा ने कहा - उससे क्या मतलब ?

राजुल ने कहा - उनको शायद पसंद न आये  मेरा तुमको कॉल करना ..

मुग्धा ने कहा - ऐसा कुछ नहीं है ..तुम कभी भी कॉल कर  सकते हो ..

राजुल ने कहा - भाई मैं तो जानता  हूँ ,मर्दों की प्रवृति ..और मर्दों की ही क्यूँ औरतों की भी .. कोई भी नहीं चाहता कि उसके पति/पत्नी का कोई विपरीतलिंगी दोस्त हो ..शायद मेरी पत्नी के पास फोन आये उसके किसी दोस्त का तो मैं तो सहन  न कर पाऊं ...

मुग्धा को उसके इस मंतव्य से घुटन होने लगी ..उसने कभी इस तरह की सोच देखी ही नहीं थी ..अखिल और वह मित्र ज्यादा पति-पत्नी कम दिखते थे ..एक दूसरे के व्यक्तिगत स्पेस का सम्मान करना भी खूब जानते थे और दोनों ने ही एक दूसरे पर कभी एक दूसरे को थोपा नहीं था ..शायद यह अखिल और मुग्धा दोनों के ही मानव मनोविज्ञान में गहरी पैठ के कारण था !!और राजुल के इस वक्तव्य के साथ साथ ही मुग्धा के मन -मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगा ..

उसे राजुल अब दोस्त नहीं एक केस स्टडी के रूप में नज़र आने लगा और वह  उसके विगत जीवन के बारे में जानने को उत्सुक हो गयी ...इसलिए सारी मलिनता भुला कर उसने सहज भाव से उसे कहा - सब लोग एक से नहीं होते राजुल ..तुम चाहो तो घर भी आ सकते हो अखिल तुमसे मिल कर बेहद खुश होंगे ..और हो सके तो अपनी पत्नी को भी ले कर आना ..

राजुल एक विद्रूप सी हँसी हंस कर बोला - पत्नी!! ..काश मैं उसे ले जा सकता कहीं ..पत्नी होते हुए भी कुंवारा सा ही हूँ मैं तो ..अ फोर्सड बैचलर ...!!

मुग्धा को देर हो रही थी ..इसलिए बात को अधूरा ही छोड़ उसने राजुल से विदा ली ..यह कहते हुए कि कभी फुर्सत से बात करेंगे ...

मुग्धा का  राजुल को देखने का नजरिया अब बिलकुल बदल चुका था.. अब वह खुद को परे रखते हुए राजुल के अप्रत्याशित व्यवहारों की स्टडी करना चाहती थी...और उसके लिए उसे राजुल से मिलना ही होगा ..बार बार ....



क्रमशः

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