Monday, March 29, 2010

है तुझे भी इजाज़त...(पांचवी किस्त )

खाना खा कर संजय तो सोने चला गया .रेवती रसोई समेट ही रही थी कि चंद्रप्रभा जी का कॉल आया.उन्होंने उसकोअखबार में फोटो छपने की बधाई दी और कहा कि आज शाम एक छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम है विकलांग बच्चोंके लिए चल रहे एक चेरिटेबल ट्रस्ट के सौजन्य से..तुमको वहां गाना गाना है..रेवती ने असमर्थता जता दी..चंद्रप्रभाजी ने पूछा -"क्यूँ क्या हुआ? "
रेवती ने कहा -"संजय आये हुए हैं और मैं नहीं पाउंगी "..
चंद्रप्रभा जी ने खुश हो कर कहा -"अरे यह तो बड़ी अच्छी बात है..उनको भी साथ ले कर आना" ...
रेवती ने कहा -"उनको शौक नहीं है इन सबका.."
चंद्रप्रभा जी ने कहा -"वह ना आना चाहे अलग बात है पर तुम क्यूँ नहीं आओगी? "
रेवती इस पर चुप रह गयी ..समझ नहीं पाई की क्या जवाब दे.. चंद्रप्रभा जी अविवाहित महिला हैं.स्वतंत्र हैं .वहक्या जाने एक विवाहिता की मजबूरियां .चंद्रप्रभा जी ने फिर पूछा तो रेवती ने कहा -"बस ऐसे ही संजय को पसंदनहीं"..
चंद्रप्रभा दो क्षण को मौन हो गयी फिर उन्होंने कहा अच्छा अभी मैं तुम्हारे घर की तरफ से ही गुज़र रही हूँ.. तुम फ्रीहो तो मिलती चलूँ..रेवती ने हुलस कर उनका स्वागत किया..कहा -"बिलकुल ,आइये ना आपका ही घर है..".
चंद्रप्रभा ने कहा -"ठीक ..मैं १० मिनट में पहुँचती हूँ तुम्हारे घर ".
रेवती को तो यकीन नहीं हो रहा था .इतनी मशहूर महिला सिर्फ एक दिन की मुलाकात के बाद उससे मिलने उसकेघर रही है.. जल्दी जल्दी
उसने ड्राइंगरूम ठीक किया खुद पर एक नज़र डाली अव्यवस्थित बालों को सही कियाऔर उनके इंतज़ार में बैठ गयी..
करीब १५ मिनट बाद बेल बजी..रेवती ने दरवाज़ा खोला और मुस्कुराती हुई चंद्रप्रभा जी घर में दाखिल हुई..सबसेपहले उन्होंने रेवती को भरपूर नज़र से देखा और कहा -"बड़ी प्यारी लग रही हो इस चंदेरी में.." रेवती सकुचागयी..यूँ सामने सामने प्रशंसा पाने की वो आदी नहीं थी पर मन को बहुत अच्छा लगा ..चंद्रप्रभा जी ने आगे कहा -" तुमको पारंपरिक साड़ी पसंद हैं ना.कल भी ढाकाई साड़ी पहनी थी " रेवती ने कहा -"जी "..मन में सोचा उसनेअदभुत है ये महिला..क्या ओब्सर्वेशन पॉवर है..मुझे तो याद भी नहीं की कल इन्होने क्या पहना था ".रेवतीचंद्रप्रभा जी के लिए निम्बू पानी बना कर ले आई और उसके बाद उन्होंने कहा की अब आराम से बैठो ..बहुत सीबातें करनी हैं तुमसे ..
रेवती असमंजस की स्थिति में बैठ गयी उनके साथ के सोफे पर .चंद्रप्रभा जी ने उससे उसके जीवन सम्बंधित प्रश्नपूछने शुरू किये.. कब शादी हुई..कब बेटी हुई.. कैसा अनुभव रहा शादी के बाद और कुछ बाद के सालों का..रेवतीसम्मोहित सी हो कर सब बताती चली गयी.. जिन बातों को अब तक वो व्यक्तिगत समझ कहीं ज़िक्र भी नहीं करतीथी वह सब उसने दिल खोल कर चंद्रप्रभा जी से कह डाला..गज़ब की कशिश थी उनके व्यक्तित्व में..और एक सुरक्षाका एहसास भी..जैसे कोई घने पेड़ की छाँव तले बैठा हो..चंद्रप्रभा जी पूरे ध्यान से सुनती रही चेहरे की मुस्कराहटज्यों की त्यों बनी रही.. और रेवती के मन के कपाटो का खुलना महसूस करती रही..
रेवती जब सब कुछ उंडेल चुकी यहाँ तक की संजय का आज का व्यवहार और उससे आहत उसका मन भी तबउन्होंने उसकी तरफ पानी का ग्लास बढाया .और कहा-"संजय को तुमने कभी बताया की तुम गाने का शौक रखतीहो? ".रेवती चुप..अपलक प्रभा जी को देखती रही..वह आगे बोली-देखो रेवती,भारतीय पारंपरिक विवाह की यहबहुत बड़ी विडम्बना है की इसमें दो आत्माओं का बंधन माने जाने वाले विवाह से दो आत्माएं बंधक हो जाती हैं .दोइंसान जो एक दूसरे के सत्व से अछूते होते हैं साथ रहने को बाध्य कर दिए जाते हैं समाज के द्वारा .और उनकी पूरीज़िन्दगी एक दूसरे के हिसाब से खुद को ढालने में निकल जाती है.इंसान खुद को जान नहीं पाता और दूसरे कीइच्छानुसार बनने की कोशिश करता रहता है.परन्तु दुनिया के हिसाब से ढल जाने वाले कभी भी अपने लिए एकखुशनुमा ज़िन्दगी नहीं जी पाते .हमारे समाज में विवाह के लिए सबसे पहले खानदान देखा जाता है फिर स्तरउसके बाद लड़के/लड़की की शैक्ष्णिक योग्यता .और सब कुछ ठीक रहा तो परिवार वालों की उपस्थिति में कुछबातें करने का मौका दिया जाना हमारे समय की आधुनिकता थी..आज की पीढ़ी कम से कम इस दिशा मेंसकारात्मक दृष्टिकोण अपना रही है..पर सही दिशानिर्देशन के अभाव में उनसे भी गलतियाँ हो जाती हैं."
रेवती हतप्रभ सी चंद्रप्रभा जी को बोलते सुन रही थी..और उसे सुकून महसूस हो रहा था क्युंकि जो सोचें अभी तकउसको उद्वेलित करती थी उन्ही को आज कोई शब्द दे रहा था
चंद्रप्रभा जी आगे बोली-"विवाह के बाद कुछ समय नए रिश्ते के उत्साह में निकल जाता है..फिर एक मोह का बंधनजुड़ने लगता है ...और स्वयं को पीछे छोड़ साथी की इच्छा के आगे समर्पित हो जाना विवाह की नियति मान लीजाती है..खासकर यह अपेक्षा नारी से ज्यादा होती है क्युंकि वही सहनशीलता की मूरत मानी जाती है..पर कईजगह नारी प्रभुत्व जमाती हो जाती है और पति निभाने कि कोशिश कर रहे होते हैं..मूल रूप से विवाह संस्थाआत्माओं का देवीय मिलन ना हो कर समझौतों का घर संसार बन जाता है..और जहाँ समझौते काम नहीं आते वहांतलाक की नौबत जाती है..तथाकथित सुखद वैवाहिक जीवन जीने वालों के अन्दर कितनी घुटन होती है यहतुम खुद महसूस कर चुकी हो..वह घुटन विवाह के कारण नहीं है..वह घुटन तुम्हारी अपनी उपज है.तुमने अपनीज़िन्दगी को इस तरह जिया है की तुम्हें घुटन महसूस होने लगी है..तुम्हारी आत्मा तड़प रही है अपनी पहचान केलिए..सबसे पहले तो उसे तुम्हें ही पहचानना होगा..तुम जब अपने साथ होती हो तो कितना खुश महसूस करती हो.. कल शाम की रेवती और आज की रेवती में ज़मीन आसमान का अंतर दिख रहा है मुझे ..पर यह अंतर तुमने खुदअपने मन में बोया है..परिस्थितियों को दोष दे कर खुद को निरीह बना लेना एक कमजोर इंसान की पहचानहै..ज़िन्दगी खुश रह कर बितानी है या दुखी रह कर यह इंसान के स्वयं के ऊपर निर्भर करता है।तुमने अपने मन मेंयह सोच लिया की संजय पसंद नहीं करेंगे या संजय के व्यवहार को देख कर तुमने निर्णय ले लिया कि तुम गानानहीं गाओगी . तुम्हारी आत्मा को जो कष्ट हुआ उसे तुम कैसे अनदेखा कर सकती हो॥जब तक तुम अपने कोपहचान कर अपने लिए सम्मान नहीं पैदा करोगी अपने मन में कोई दूसरा कैसे तुम्हारा सम्मान करेगा ...रहीसंजय के व्यवहार की बात तो यह भारतीय पुरुषों की बरसों की कंडिशनिंग का नतीजा है..स्वामित्व की चाह मेंउन्होंने पत्नियों को हमेशा ऐसे ट्रीट किया है कि वह अपने को दोयम दर्जे का ही समझ कर रहे तारीफ करना हमेशायूँही समझा है कि इससे उनके दिमाग ख़राब हो जाते हैं..भावनाएं ज़ाहिर करना भी पुरुषत्व की निशानी नहींसमझा जाता ..यदि कोई पुरुष अपनी भावनाएं ज़ाहिर करता भी है तो दुनिया उसे छिछोरा कहती है.. और इन सबसे बचने के लिए भावनाओं के होते हुए भी कई बार उनको तालों में बंद रखा जाता है.. संजय ने एक जिम्मेदार पतिऔर पिता का कर्त्तव्य निभाया है..पर वो जिम्मेदारी सामाजिक है..भावनात्मक जिम्मेदारी वह समझ ही नहीं पायाक्युंकि उसने कभी जाना नहीं इसका महत्व..उसके लिए भावनाएं जाहिर करना चोंचलेबाजी है ..तुम दुखी इसलिएहो जाती हो क्युंकि तुम्हें लगता है तुम्हारी कोमल भावनाएं आहत होती हैं.. तुम अपेक्षा करना छोड़ कर सहज रूपसे उसके साथ व्यवहार करो ।देखना उसकी खिन्नता और तीक्ष्नता कम होने लगेगी..पर सबसे ज़रूरी है अपनीआत्मा का विकास.."स्वार्थी"हो जाना पड़ता है ..इस शब्द का अर्थ भी शब्दकोष में दिया है..अपना मतलब साधनेवाला..परन्तु मैं इसका अर्थ लेती हूँ"स्व का अर्थ जिसने जान लिया वह स्वार्थी ".

-" , रेवती का मन अब काफी शांत था .उसने मुस्कुराते हुए चंद्रप्रभा जी से पूछा.-"आप अविवाहित होते हुए भी विवाहकी समस्याओं और पुरुष की भावनाओ को इतने अच्छे से कैसे समझती हैं ?"
चंद्रप्रभा जी मुस्कुरा उठी ,बोली-"भावनाओं को समझने के लिए विवाह की नहीं हृदय की ज़रुरत होती है,औरअविवाहित रहने का ये मतलब नहीं की मेरी ज़िन्दगी में कभी कोई पुरुष रहा ही नहीं ,विवाह तो एक सामाजिकव्यवस्था है वरना बिना कसमों और रस्मों के दो व्यक्तियों में कहीं ज्याद दृढ बंधन जुड़ सकता है .खैर इन सब बातोंको छोडो और अब शाम के कार्यक्रम पर पुन: विचार करो..अपनी अंतरात्मा से पूछो वह क्या चाहती है..और जिसकार्य को करने में किसी का अहित ना हो उसे करने से हिचको मत..किसी का आहत होना या पसंद ना करना उसकीअपनी मानसिकता कि निशानी है अपने अस्तित्व को मार कर तुम किसी का भी भला नहीं करोगी " ..

रेवती अपने मन के उदगार उड़ेलने के बाद बहुत हल्का महसूस कर रही थी . वह शाम के कार्यक्रम में गाने का मनबना चुकी थी कि संजय भी अपनी नींद पूरी करके ड्राइंगरूम में चला आया ..रेवती ने उसका चंद्रप्रभा जी से परिचयकराया..और शाम के कार्यक्रम के बारे में बताया ..संजय ने शुष्क भाव से कंधे
उचकाते हुए कहा -"देख लो जैसातुम्हें ठीक लगे ..तुम तो स्वनिर्णय लेने में सक्षम हो .मेरे पीछे कौन सा हर काम मुझसे पूछ कर करती हो.."
रेवती की आँखें फिर भीगने को तैयार हुई की चंद्रप्रभा जी ने आँखों आँखों में उसे शांत रहने को कहा .. और उठते हुएबोली -"तब ठीक है रेवती..मैं ठीक बजे गाड़ी भेज दूँगी तुम तैयार रहना ." फिर संजय की ओर मुखातिब हो करबोली -"आप भी आइयेगा साथ में ..हमें ख़ुशी होगी आपकी उपस्थिति से".

और नमस्कार करके वह रेवती से विदा ले कर चली गयी..रेवती जब उनको छोड़ कर घर में आई तो संजयअनमना सा बैठा था..रेवती चुपचाप चाय बनाने चली गयी..संजय सोच नहीं पा रहा था की रेवती को मना करे या नाकरे..रेवती ने भी तो कभी उसके मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया ..और अब अगर वो अपनी ख़ुशी के लिए कुछकरना चाहती है तो वह क्यूँ उबल रहा है ..शायद कहीं उसके अहम् को चोट लगी है..कि उसको नहीं पता था किउसकी पत्नी गाना गाती है..कभी जानने की कोशिश ही नहीं की उसने रेवती को व्यक्तिगत रूप से.. उसने उसे बसएक पत्नी एक माँ और उसका घर सँभालने वाली ही समझा..कभी उसके एक व्यक्तिक रूप को क्यूँ नहीं देखा ..ऐसाक्यूँ होता है की शादी के बाद एक लड़की के सारे गुण छुप जाते हैं ..और उस पर अपेक्षाओं का बोझ डालकर उन परखरा उतरने की उम्मीद की जाती है.. शायद पहली बार संजय अपने रिश्ते के इस पहलू को देख रहा था औरसमझने की कोशिश कर रहा था ..
(क्रमश:)

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