Thursday, May 2, 2019

मुग्धा:एक बहती नदी (बारहवीं क़िस्त)


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(अब तक आपने पढ़ा : पच्चीस साल बाद कॉलेज के दोस्तों के 'गेट टुगेदर' में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है, जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण करने का कीड़ा कुलबुलाने लगता है. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं. मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं. मॉल में अकस्मात लगभग आठ वर्षीय सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है. राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है. घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है. दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं. उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....)
अब आगे-
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बारहवीं क़िस्त
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अखिल और मुग्धा टहलते हुए सोनू और राजुल की ही बातें कर रहे थे. मुग्धा महसूस कर रही थी कि अखिल को कहीं ना कहीं संतान की कमी खलती है. आज सोनू को देख कर उनकी आंखों में जो एहसास दिख रहा था वह मुग्धा को अंदर तक बेचैन किए जा रहा था. उसे भी बच्चे अच्छे लगते हैं लेकिन यह अपने हाथ में तो नहीं . शादी को कितने बरस हो गए किंतु वे संतान सुख से वंचित हैं और दूसरी ओर राजुल और मधु जैसे पेरेंट्स हैं जो अपनी आपसी लड़ाई में में प्रभु के उपहार मासूम बच्चों को पीस रहे हैं....आख़िर क्या गुनाह है इन नौनिहालों का ?

अखिल कह रहे थे: "सोनू की समस्या की जड़ तक पहुंचने के लिए राजुल और मधु के संबंधों को गहराई से समझना होगा. राजुल की बातों से ऐसा लग रहा था मुझे कि मधु कुछ एंग्जायटी या डिप्रेशन से ग्रसित है जिसे राजुल का कुंठित स्वभाव और खाद पानी देता है. तुम चाहो तो राजुल से दोस्ती को ज़रा रेफ़्रेश कर लो, उसी राह से हम मधु के लिए कुछ कर पाएँगे."

मुग्धा अपनी सोचों की तंद्रा से बाहर आते हुए बोली -"ठीक है ! मैं कोशिश करती हूं हालांकि उस चिड़चिडे इंसान को झेलना मेरे बस की बात नहीं. मुझे तो बचपन से ही उसके साथ कम्फ़र्ट लेवल नहीं रहा."

अखिल हँस पड़े -"जितनी बड़ी दुनिया है उतनी तरह के लोग हैं और फिर तुम भी तो राजुल की मदद करना चाहती थी. हो सकता है अस्तित्व ने इस के लिए हमें यह अनायास अवसर दिया है."


उधर घर से गुस्से से भरा हुआ निकला राजुल अपने ही ख़यालों में गाफ़िल  न जाने कितनी देर तक चलता रहा. अचानक ठंडी हवा ने उसके पसीने से भीगे बदन को छुआ तो ठिठक कर रुक गया. चलते चलते गोमती के किनारे आ पहुंचा था राजुल. नदी की तरफ से बह कर आती ठंडी हवा ने तन को ही नहीं मन को भी शीतलता पहुंचाई और वो वहीं किनारे बने एक पार्क की बेंच पर बैठ गया. मधु की बातों ने उसे बहुत अपसेट कर दिया था. ना जाने क्यों अखिल और मुग्धा के बारे में सोचते हुए उसे ईर्ष्या होने लगी थी. तभी उसके मोबाइल पर मुग्धा की कॉल आने लगी. एक अजब सी खुशी जैसे राजुल की रग रग में दौड़ गयी. उत्साह से उसने कॉल रिसीव की -"हाय मुग्धा ! कैसे याद किया ?"

मुग्धा ने पूछा-"कहाँ हो तुम ? मीटिंग ओवर हो गयी ?"

राजुल अचानक चौंक पड़ा-" अरे मैं तो भूल ही गया कि मुझे किसी से मिलना था. दरअसल घर पहुंचते ही मधु ने तमाशा खड़ा कर दिया और में गुस्से में घर से निकल आया. अब तो 7 बज रहा है ,मुझे दो मिनट दो मुग्धा, मैं ज़रा कॉल करके बता दूं क्लाइंट को, फिर तुम्हें कॉल बैक करता हूँ."

मुग्धा ने कहा -"हाँ हाँ कोई नहीं, मैंने तो ऐसे ही कर लिया था कॉल."

"नहीं मुग्धा अभी कॉल करता हूँ,तुम फ्री हो न ?" -पूछा राजुल ने

मुग्धा बोली -" हाँ राजुल तुम कर लेना कॉल."

दो मिनट बाद ही राजुल का कॉल आ गया . बहुत उत्साहित था वह .मुग्धा से पूछा-'कैसी हो तुम ? "
मुग्धा हँस के बोली- "अरे अभी कुछ ही देर पहले तो मिले थे इतनी देर में क्या बदल जाऊंगी."
राजुल बोला -"अरे उस समय तुमसे तो ज़्यादा बात ही नहीं हो पाई. मुझे संकोच हो रहा था, न जाने तुम्हारे पति क्या सोचें."
 मुग्धा ने कहा -"तुम दोस्त हो मेरे इसमें सोचने जैसा क्या है."

राजुल ने ठंडी सांस भरते हुते कहा-"तुम नहीं समझोगी मुग्धा.यह पति पत्नी का रिश्ता बड़ा अजीब होता है. अधिकारत्व की भावना इतनी प्रबल होती है कि दम घुटने लगता है कभी कभी तो."

मुग्धा ने बात बदलते हुए कहा -"अरे छोड़ो इन बातों को. अपने बारे में बताओ, क्या किया क्या कर रहे हो ? इतने साल कैसे गुज़रे ?"
राजुल शुरू हो गया. उसकी आवाज़ में जोश था, जैसे बहुत दिन बाद बन्द कपाट खुले हों और ताज़ी हवा में भीतर का सब जमाव पिघलने लगा हो..बहने लगा हो. फ़ोन की दूसरी और से राजुल की आवाज़ आती जा रही थी जिसका कुछ अंश मुग्धा सुनती और कुछ के परे जा कर उसका अर्थ समझने की कोशिश करती जा रही थी. राजुल ने उसे बताया, अपने विगत के बारे में और बताते हुए यह एहसास बहुत प्रखर था कि ज़िंदगी में उसे कुछ भी नहीं मिला.

राजुल का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी के लिए टी .एस.राजेंद्रा में हो गया था किन्तु उसके पापा और मम्मी ने उसे वहाँ नहीं जाने दिया इकलौता बेटा था पूरे साल शक्ल  भी नहीं देख पायेंगे.फिर हमेशा शिप पर रहेगा ..हम लोग रिटायर होने के बाद अकेले कैसे रहेंगे. राजुल की आवाज़ में अपने माता पिता के प्रति खिन्नता थी ..मुग्धा को एहसास हुआ कि राजुल की सोचों पर उसके माता पिता का ही असर है ..एक परिधि से बाहर  जैसे उन्होंने देखना  नहीं सीखा वैसे ही राजुल भी एक सीमा के परे जा कर नहीं देख पा रहा था.
उसके बाद राजुल कभी कहीं कभी कहीं छोटे मोटे जॉब करता रहा . कभी मेडिकल रिप्रेसेन्टेटिव ,कभी लैब अस्सिटेंट ..कुछ अच्छे मौके मिले लेकिन गलत निर्णय के कारण हाथ से निकल गए ..उसी बीच में मधु से शादी ..मधु उसके घर के पास ही रहती थी और बेहद खूबसूरत मधु से हर कोई बात करने को लालायित रहता था ..राजुल से मधु ज्यादा खुली हुई थी और उसने राजुल से वादा  ले लिया था शादी का ..राजुल ने मुग्धा को बताया कि जब तक मधु के साथ रहा उसे लगता रहा कि  वह उसे प्यार करता है ..लेकिन कुछ सालों के लिए दूसरे शहर जाने के बाद उसको उस एहसास में कमी नज़र आने लगी ..किन्तु मधु से किये वादे ने उसको शादी से मुकरने नहीं दिया ..और उसने सोचा की शादी तो करनी ही है.. किसी अनजान से करने से अच्छा है मधु से ही सही.. और यदि राजुल मधु से शादी करने से इनकार करता तो मधु टूट जाती ..और फिर कोई ऐसा कुछ था भी तो नहीं जिसकी वजह से मधु से शादी करने के लिए मना किया जाए.

मुग्धा को ये सब बातें सुन कर महसूस हुआ कि राजुल स्वयं को शहीद समझता है ...उसे लगता है उसने मधु को खुश करने के लिए उससे शादी की.. मम्मी पापा को खुश करने के लिए मर्चेंट नेवी का जॉब छोड़ा..एक धारणा उसके मन में गहरे पैठी है कि उसने सभी की  खुशी के लिए त्याग किया है एक आदर्श पुत्र और पति बनने की कोशिश की है  जिसके कारण आज भी वह खुद को सेटल नहीं कर पा रहा है ..अपनी इस अस्तव्यस्त ज़िंदगी का जिम्मेदार वह अपनी ज़िंदगी से जुड़े सभी लोगों को मानता है.

 राजुल ने मुग्धा से पूछा उसकी ज़िंदगी के बारे में ..मुग्धा एक सहज ज़िंदगी जीने वाली ..उसने  बिना किसी लाग लपेट के अपने और अखिल के मिलने और शादी के बारे में बताया .. राजुल की ईर्ष्याजनित टिप्पणी थी -"तो तुम बिना किसी उतार  चढ़ाव के एक खुशहाल ज़िंदगी जी रही हो..कितनी खुशकिस्मत हो तुम, समय पर शादी....सब कुछ अपनी जगह सेट्ट ...लेकिन मैं इतना किस्मत वाला नहीं ..पता नहीं कौन से कर्मों का बोझा ढो रहा हूँ."

मुग्धा ने कहा - " हो जाता है जीवन में ऐसा..कभी कभी कुछ गलत निर्णय ज़िंदगी को अस्तव्यस्त कर देते हैं ..लेकिन उनसे उबरना होता है हमें ..आगे बढ़ना होता है उन्ही का मातम नहीं मनाते रहना होता."

राजुल बोला - " मुग्धा ! तुम नहीं जानती कुछ भी. ज़िंदगी ने कैसे कैसे मजाक किये है मेरे साथ.  मुझसे मेरा बेटा छीन  लिया ..और मेरी बीवी...उसने मेरी ज़िंदगी नरक बना रखी है....मुझ पर हर पल शक रहता है उसे ..अजीब अजीब इलज़ाम लगा लगा कर मुझसे लड़ने के सिवाय और कुछ आता ही नहीं..कितनी बार वह आत्महत्या की कोशिश कर चुकी है ..उसी के कारण मैं घर से बाहर  भटकता रहता हूँ... जब सब लोग सो जाते हैं, तभी घर में एंटर होता हूँ ..डॉक्टर कहते हैं कि उसे कोई मानसिक बीमारी है ..लेकिन मुझे तो लगता है वह नाटक करती है."

मुग्धा ने कहा-'हो सकता है उसे सच में ही कोई प्रॉब्लम हो..क्या होता है मुझे डिटेल्स  बताओ .नाटक क्यूँ करेगी वह ?"

राजुल ने कहा -" कहती है कि कोई उसके खिलाफ साजिश करता है. कोई उसे मारने  का षड़यंत्र  करता है. एक बार तो उसने पुलिस में मेरे खिलाफ रपट तक लिखा दी थी ..घर पर पुलिस  आई ..बेटे पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है इन सब बातों का."

मुग्धा ने पूछा-"कब से है ऐसा ?"

राजुल बोला -"शादी के कुछ समय बाद से ही. दरअसल एक बार मेरी एक मित्र का फोन आ गया था बस तभी से उसे मेरी हर बात पर उसे शक होने लगा. मीनू नाम की मेरी मित्र का नाम ले ले कर वह मुझे कोसती रहती है ताने देती है."

मुग्धा ने पूछा - "डॉक्टर को दिखाया तुमने उसे ?"

राजुल बोला-"हाँ दिखाया है.. डॉक्टर कहते हैं कि पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर है. लेकिन मुझे लगता है कि वह नाटक करती है. सब कुछ ठीक चलता रहता है. सबसे हंस कर बात करती है बस मुझे ही देख कर भड़क जाती है."

मुग्धा  बोली -"राजुल यह एक मानसिक डिसऑर्डर. तुम शायद मधु को गलत समझ रहे हो. उसको प्यार और अपनत्व की जरूरत है .. इस तरह की बीमारियों में परिवार वाले और ख़ास कर spouse बहुत बड़ा संबल होते हैं पीड़ित व्यक्ति के लिए."

राजुल ने कहा -'"तुम इतनी श्योरिटी से कैसे कह सकती हो ?"

मुग्धा बोली- "अखिल एक मनोचिकित्सक हैं और ऐसे कितने ही केसेज़ मैंने देखे है उनको हैंडल करते हुए. बहुत क्रिटिकल सिचुयेशन होती है ..तुम हौसला रखो मैं तुम्हारे साथ हूँ..मधु का ट्रीटमेंट पॉसिबल है ..हम बात करेंगे इस बारे में."

राजुल बोला -"तुम नहीं जानती मुग्धा ..तुमसे बात करके मुझे कितना अच्छा लग रहा है ..ऐसा लग रहा है मैं अकेला नहीं हूँ ...कोई है जो मेरी परेशानियों को समझ सकता है ..वरना मैं तो बहुत अकेला पड़ गया हूँ."

मुग्धा ने तहे दिल से कहा- "राजुल दोस्त होते किसलिए हैं. तुम परेशान रहना बंद करो. ऐसा करो, जल्द ही मधु और सोनू को ले घर चले आओ."

राजुल बोला- "मधु कहीं नहीं जाएगी मेरे साथ."

मुग्धा ने कहा -"अच्छा कोई बात नहीं, हम देखते हैं कि हम उसे कैसे कम्फ़र्टेबल कर सकते हैं."

राजुल मुग्धा से बात करके ख़ुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा था.

.....और मुग्धा ? उसे तो अखिल को अपनी 'इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट' जो देनी थी.
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(क्रमश:)

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