Thursday, May 16, 2019

मुग्धा: एक बहती नदी (पंद्रहवी क़िस्त)


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(अब तक आपने पढ़ा : २५ साल बाद कॉलेज के दोस्तों के गेट टुगेदर में मुग्धा बचपन के दोस्त राजुल से मिलती है ,जहाँ राजुल का अभी भी वही पुराना अपरिपक्व और अस्तव्यस्त सोचों से ग्रसित व्यवहार देख कर उसका मनोविश्लेषण का कीड़ा कुलबुलाने लगता है.. मुग्धा के पति अखिल एक जाने माने मनोचिकित्सक हैं और मुग्धा उनसे राजुल के बारे में डिस्कस करते हुए इस तरह के व्यवहार की जड़ों तक पहुंचना चाहती है
अखिल और मुग्धा पति पत्नी से ज़्यादा मित्रवत संबंध जीते हैं ,मनोविज्ञान की बारीकियों के बीच गुदगुदाती हुई चुहल के साथ दोनों मॉल घूमने का निश्चय करते हैं ,मॉल में अकस्मात सोनू उनसे टकरा जाता है जो राजुल का बेटा है ,राजुल और अखिल के बीच राजुल की पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बातें होती हैं और अखिल सोनू के हाथों पर कट्स के निशान देख कर चिंतित हो उठता है ,घर लौट कर मुग्धा को बताता है कि यह बच्चे में एंग्जायटी और डिप्रेशन का संकेत है ,दोनों सोनू की तरफ से परेशान हो कर बातें करते हुए  टहलने निकल जाते हैं,उधर राजुल अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद हल्के मन से घर पहुंचता है तो उसकी पत्नी मधु उस पर तानों और आरोपों की बौछार कर देती है जिससे परेशान हो कर वो घर से निकल जाता है ....मुग्धा और अखिल बात करके इस नतीजे पर पहुंचते  हैं कि राजुल के माध्यम से मधु और सोनू की मदद की जा सकती है ,मुग्धा राजुल से बात करके उसके विगत कई जानकारी ले कर उसे ढाँढस बंधाती है कि हम लोग मिल के सब ठीक करेंगे,अखिल और मुग्धा केस डिस्कस करके आगे की प्लानिंग के अनुसार राजुल को अपने घर नाश्ते पर बुलाते हैं,नाश्ते के दौरान अखिल राजुल को आइना दिखाता है और उसे मधु के ट्रीटमेंट में सहयोग करने के लिए राजी कर लेता है ,मुग्धा राजुल को एक्शन प्लान समझाती है )

अब आगे
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पंद्रहवी क़िस्त
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प्लान के मुताबिक़ राजुल मुग्धा के घर से निकल कर बाज़ार से  सोनू की मन पसंद चोकलेट पेस्ट्री और मधु की पसंद के मटर समोसे ले कर घर पहुँचा,सोच  रहा था कैसे बातों बातों में निकलवा लिया मुग्धा ने कि मधु को क्या पसंद है,इतने सालों में तो मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि शादी से पहले कैसे वो फ़रमाइश करके मुझसे ऑफ़िस से लौटते हुए  मटर समोसे मंगवाती थी. क्या सच ही मुझे ख़ुद को भी देखने की ज़रूरत है ! क्या तो बोल रही थी मुग्धा “ कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरपी “ ... क्या सचमुच मुझे भी ज़रूरत है उसकी ?

सोचता हुआ राजुल घर में घुसा. सोनू अपने कमरे में किताबों में झुका हुआ था ,जाने पढ़ रहा था या कहीं खोया हुआ था. मधु अपने चेहरे पर फ़ेस पैक लगाए पैरों को पानी के टब में डुबोए मोबाइल पर कोई गेम खेल रही थी. घर अभी भी अस्तव्यस्त था ,हाँ रसोई के झूठे बर्तन ज़रूर महरी ने आ कर साफ़ कर थे. राजुल झुँझलाने ही लगा था कि उसे मुग्धा का कहा हुआ याद आ गया -“राजुल ,इस प्लान की पहली ज़रूरत यह है कि तुम किसी की भी कमियों का नेगेटिव रीऐक्शन नहीं दोगे. जब तक किसी बात से कुछ ख़ास अंतर न पड़ रहा हो उसे इग्नोर करोगे....और अगर उसे कहना ज़रूरी भी है तो तुरंत रीऐक्ट करने के बजाय उसे सकारात्मक तरीक़े से कन्वे करोगे,मूल मंत्र है ... *सो व्हाट !"  "क्या फ़र्क़ पड़ता है" .... इस मंत्र को याद रखना कुछ भी इरिटेट करे तो. कुछ दिन तुमको ख़ुद पर चेक रखना होगा, फिर यह तुम्हारे व्यवहार में आ जाएगा. तुम प्लीज़ इस को गम्भीरता से समझो और फ़ोलो करो."

राजुल ठहर गया. एक गहरी साँस भरी और सोचा -“क्या हुआ जो फैला पड़ा है सामान. कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता.".... और सोनू को आवाज़ लगते हुए बोला - “सोनू देखो पापा क्या लाए हैं.“

सोनू ने सुन कर भी अनसुना कर दिया. उसका कुछ भी मन ही नहीं कर रहा था. राजुल की आवाज़ दूसरी बार आयी तब भी सोनू अपनी ही सोचों में गुम था. तीसरी बार राजुल की आवाज़ थोड़ी झुँझलाहट भरी थी - “सोनू ,सुनायी नहीं पड़ रहा क्या ?” अब तो सोनू बिलकुल ही इग्नोर करने पर आमादा हो गया था. सोनू शायद सोचने लगा था क्या होगा ज़्यादा से ज़्यादा मार ही तो लेंगे न,नहीं जाऊँगा मैं. विद्रोही सा हो गया था सोनू.

उधर राजुल को फिर मुग्धा की चेतावनी याद आ गयी और फिर 'सो व्हाट' का मंत्र फूँक कर वो सोनू के कमरे में आया -“ क्या कर रहा है मेरा बच्चा.... देखो पापा चोकलेट पेस्ट्री लाए हैं सोनू के लिए ,पसंद है न तुम्हें." सोनू को यक़ीन नहीं हुआ कि ये उसके पापा हैं. उसने राजुल की ओर अविश्वसनीय निगाहों से देखा. उसका मुस्कुराता चेहरा देख सोनू की आँखों में भी चमक आ गयी .राजुल ने फिर कहा -“पसंद हैं न ?“ सोनू एकदम से उठ कर राजुल से लिपट गया बोला - "हाँ पापा , मुझे भूख भी लगी है."

चलो चलो, हम सब मिल कर खाते हैं. "देखो मैं मटर के समोसे भी लाया हूँ," राजुल ने मधु को सुनाते हुए कहा. न जाने क्यूँ अभी भी उसका पुरुष अहम उसे मधु से सीधे नहीं बोलने दे रहा था. मधु ने कनखियों से राजुल को देखा, लेकिन मुँह बनाए गेम खेलती रही. राजुल ने डाइनिंग टेबल पर सारा समान रख कर सोनू से कहा, "तुम मम्मी को बोल कर आओ मैं प्लेट्स लाता हूँ."

सोनू ख़ुश ख़ुश मधु के पास गया और बोला -“ चलो न मम्मी ! भूख लगी है ,पापा कितनी अच्छी चीज़ें लाएँ हैं."

मधु सोनू का हाथ झटक कर बोली - “मुझे नहीं खाना, न जाने क्या मिला कर लाए होंगे. इनका बस चले तो सीधे ज़हर ही दे दें मुझे."

सोनू सुन कर सहम गया. किचन से प्लेट्स ले कर रहा राजुल भी तिलमिला उठा और चीख़ कर बोला -"तुम्हें क्यों दूँगा, ख़ुद ही खा लूँगा ज़हर मैं."... और टेबल पर प्लेट्स पटक कर बाहर निकल गया.
सोनू की मोटी मोटी आँखों में आँसू थे. क्या हो जाता है अचानक यह सब ? सोनू अपने कमरे में जा कर सुबक रहा था, उधर मधु बेपरवाही से गेम खेल रही थी और राजुल घर के बाहर निकल कर मुग्धा को कॉल कर रहा था -“नहीं होगा मुग्धा मुझसे ,,, यार कितना और बर्दाश्त करूँ ?" कहते हुए राजुल ने पूरी घटना सुना दी.
मुग्धा बोली - “राजुल तुमको संयम रखना होगा. मधु स्वस्थ नहीं  है इस बात को ख़याल में रखो. उसका व्यवहार एक नोर्मल व्यक्ति का व्यवहार नहीं है. तुम भी उसी की तरह रीऐक्ट करोगे तो कैसे सम्भलेगा सब,,,सोचो सोनू पर क्या बीती होगी. उसे भूख लगी थी. तुम तो समझदार हो,तुम संभाल सकते हो ना सब. जाओ वापस जाओ और मन को शांत रखो. शाम को अखिल आएँगे तुम्हारे घर. कुछ दिन में सब कुछ ठीक होने लगेगा."

राजुल उखड़ा हुआ था लेकिन उसे कोशिश तो करनी ही थी. उसने तीन चार गहरी साँसे ली तब उसे कुछ अच्छा महसूस हुआ. वापस घर में गया और सोनू के कमरे में जा कर उसको उठा के बोला-“आइ एम सारी सोनू. माफ़ कर दे राजा बेटा...ग़ुस्सा आ गया था, चल खाते हैं अपन."
सोनू सुबकते हुए बोला -“मम्मी ! “
राजुल ने कहा -“हाँ मम्मी भी खाएँगी “
और सोनू का हाथ पकड़ कर बाहर मधु के पास आया और कहा -“मधु आइ आम सारी ! मुझे ग़ुस्सा नहीं करना चाहिए था. दर असल मैं मन से तुम्हारी पसंद के मटर समोसे लाया हूँ. याद है न तुम फ़रमाइश किया करती थी. चलो मुँह धो लो प्लीज़, हम सब साथ बैठ कर खाएँगे." राजुल की आँखों में वही सहज स्नेहिल भाव आ गए थे. सोचों का असर हमारी बॉडी लैंग्विज पर जो पड़ता है.

मधु राजुल की आवाज़ की कोमलता पर चकित थी.कुछ तो गड़बड़ है उसने आँखों को गोल गोल घुमाते हुए सोचा. लेकिन मटर के समोसों का लालच उसे झगड़ा करने से रोकने में सफल हो गया और वो चुपचाप उठ कर मुँह धोने चली गयी. राजुल ने सोनू की ओर मुस्कुरा के उसके साथ हाथ की ताली मारी और दोनों टेबल की ओर चल दिए .

मटर के समोसे खाते हुए मधु वाचाल हो उठी थी ,सोनू को उत्साह से अपने और राजुल के वो दिन बता रही थी जब राजुल ऑफ़िस से आते हए उसके लिए समोसे लाता था. सोनू भी मम्मी को ख़ुश देख कर ख़ुश था और अपने स्कूल की बातें बता रहा था. राजुल सोच रहा था मुग्धा ने ठीक कहा था...इतना भी मुश्किल नहीं है माहौल को ठीक रखना, बस जज़्बा हो उसका और दृढ़ निश्चय भी.

खा पी कर मधु अपने कमरे में सोने चली गयी थी. राजुल सोनू  के साथ उसके रूम में उसकी बुक्स और स्कूल का काम देखने लगा. मुग्धा ने उसे कहा था सोनू के साथ क्वालिटी टाइम बिताने को. सोनू थोड़ा घबराया हुआ था क्योंकि स्कूल का कोई भी काम उसने पूरा नहीं किया हुआ था. डर था उसे कि अभी फिर से पापा ग़ुस्सा हो के चिल्लाने लगेंगे. लेकिन राजुल कुछ नहीं बोला और उसकी सब कापीयां देखता रहा. फिर उसने बहुत ही कोमलता से सोनू से पूछा कि मन नहीं लगता क्या पढ़ने में ,सोनू ने आँखें झुका लीं. उसका नन्हा सा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. राजुल ने उसको प्यार से अपनी तरफ़ खींचा और बोला,"अच्छा पापा पढ़ाएँगे सोनू को तो पढ़ेगा ना." सोनू ने सर हिला कर हामी भरी और राजुल के सीने से लिपट गया. उसे बहुत सुखद एहसास हो रहा था राजुल के इस परिवर्तन पर और राजुल मुग्धा के दिए निर्देश बार बार याद कर रहा था अपना धैर्य बनाए रखने के लिए. अखिल और मुग्धा से मिलने के बाद उसे उम्मीद हो चली थी कि ज़िंदगी पटरी पर आ सकती है.

पूर्व निश्चित समय पर अखिल राजुल के घर पहुँचा , राजुल ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया और सोनू को आवाज़ लगायी -“देखो तो सोनू कौन आया है."

सोनू अपने कमरे से बाहर आया और अखिल को देखते ही दौड़ कर उससे लिपट गया. कितना सुकून था दोनो के लिए ही.अखिल ने हाथ में पकड़ा हुआ कूकीज़ बॉक्स और कार ब्लॉक्स का गेम सोनू को दिया. सोनू की आँखें ख़ुशी से चमक उठी, "क्या मेरे लिए अंकल ?"

अखिल शरारत से मुस्कुराते हए बोला -“और कौन है यहाँ सोनू बेटे के अलावा,जिसके लिए मैं लाउँगा."

आवाज़ें सुन कर मधु भी अपने कमरे से बाहर आ गयी. अस्तव्यस्त सी मधु अभी नाइट गाउन में ही थी. बिखरे बाल,सूनी सी आँखें....सवालिया निगाहों से उसने अखिल की तरफ़ देखा. राजुल ने परिचय कराते हुए कहा -" मधु ये मेरे दोस्त हैं कल अचानक बहुत साल बाद माल में मिले तो मैंने घर आने के लिए बोला था." उसी साँस में मधु की ओर मुख़ातिब हो कर बोला, "और यह मधु है मेरी बेटर हाफ़."

सुनते ही भड़क उठी मधु-“किस किस को लाओगे मेरे मर्डर का प्लान करने ,इतने सालों में तो कोई दोस्त नहीं आया कभी ,अचानक से ये दोस्त कहाँ से पैदा हो गया."

अखिल हाथ जोड़ते हुए विनम्रत से बोला-  “आप कुछ और  समझ रही हैं मधु जी. स्वाभाविक भी है अचानक ही तो मैं सामने आ गया हूँ."

अखिल की बात पूरी भी नहीं हो पायी थी कि घायल चीते की सी गति से मधु किचन में गयी और चाक़ू उठा लायी. वहशी अन्दाज़ में लहराते हए बोली -“ख़बरदार मुझे किसी ने भी छूने की कोशिश की,काट के रख दूँगी."

उत्तेजना से मधु की साँसे उखड़  रही थी. सोनू सहम कर राजुल के पीछे छुप गया था. अखिल ने राजुल को शांत रहने का इशारा कर दिया था. धीमे धीमे क़दमों से मधु की ओर बढ़ते हए अखिल गहरी नज़रों से मधु को देखते हुए बोल रहा था -“मधु जी आप तो बहुत समझदार हैं. कितनी सचेत हैं अपनी सुरक्षा के प्रति."
कहे जा रहा था अखिल, "ख़ूबसूरती और बुद्धिमता का ऐसा कंबिनेशन तो बहुत ही रेयर होता है." मधु की सांसें उसकी बातें सुनते हुए कुछ धीमी हुई लेकिन अभी भी हिंसा और जुनून उसकी बॉडी लैंग्विज से बजाहिर था.....कब क्या कर डाले उस धारदार चाकू से जिसे हाथ में लिए वह चण्डी सी बनी हुई थी. ऐसे में प्रेज़ेन्स ओफ़ माइंड बहुत ज़रूरी होती है और अखिल इस विषय में माहिर.
तब तक अखिल ने लपक कर मधु को पकड़ लिया और उसके  हाथों से चाक़ू छीन कर एक तरफ़ उछाल दिया. मधु छटपटा रही थी उसकी गिरफ़्त से छूटने को लेकिन अखिल की मज़बूत बाहों से ना निकल सकने के कारण निढाल हो गयी थी. राजुल तब तक पानी का ग्लास ले आया था. अखिल ने मधु को शालीनता  से कुर्सी पर बिठा कर उसे पानी दिया....स्निग्ध स्वर और परवाह वाले अन्दाज़ में पूछा, "आप ठीक हैं न मधु जी"
मधु ने हाँ में सर हिलाया... ना जाने कैसी  मदहोशी थी अभी भी कि उसे अखिल की पुष्ट बाहें अपने इर्द गिर्द महसूस हो रही थीं. अखिल की आवाज़ मानों उसके कानों में शहद सी घुल रही थी, अरसे बाद पुरुष स्पर्श ने उसको झंकृत कर दिया था. अखिल ने कोमलता से उसका हाथ थामा हुआ था और दूसरे हाथ से उसके हाथ पर थपकी दे रहा था. राजुल संकोच से गड़ा जा रहा था. मधु का व्यवहार उसके लिए नया नहीं था लेकिन अखिल के सामने पहली बार ऐसा होने से वह बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा था.

अखिल ने मधु से पूछा, "आप थक गयी होंगी, थोड़ा आराम करना चाहेंगी ?"
मधु यंत्रचालित सी अखिल का सहारा ले कर बेडरूम तक चली गयी. अखिल ने एक टैब्लेट निकाल कर कहा आपको वीकनेस है यह गोली खा लीजिए अच्छा फ़ील करेंगी."

राजुल चकित था देख कर कि कैसे मधु ने बिना किसी हील हुज्जत के  वह दवा  खा ली. अखिल ज़रूर सम्मोहन विद्या में भी पारंगत है. राजुल ने सुन रखा था कि परामनोविज्ञान की तकनीकें भी मनोचिकित्सा के लिए कुछ विशेषज्ञ प्रयोग में लाते हैं.

अखिल ने मधु को सिर्फ़ रीलेक्सेंट और नींद की गोली दी थी जो उसे कुछ ही देर में नींद के आग़ोश में ले गयी. वह गहरी नींद में है यह सुनिश्चहित कर अखिल राजुल को ले कर बाहर के कमरे में आ गया. सोनू सहमा सहमा सा दोनो को देखे जा रहा था.अखिल ने उसे प्यार से पास बुलाया और कहा -“मम्मा की तबियत ठीक नहीं है. सोनू इज ए बिग बॉय. हेल्प करेगा न मम्मा को ठीक करने में और उनका ख़याल रखने में." सोनू ने तुरंत गर्दन हिला दी.

अखिल राजुल की तरफ़ मुख़ातिब हो कर बोला -“देखो राजुल इस समय मधु की कंडिशन सिवियर है. वायलेंट  हो रही है वह. इस समय बातचीत का कोई असर नहीं होगा उस पर. हमें पहले मेडिकेशन के ज़रिए उसे उस स्टेज तक लाना होगा, जहाँ वह स्थितियों को समझने लायक़ हो जाए. मेडिकेशन का असर आने में दो से तीन हफ़्ते लगते हैं. इस दवा की रिक्वायर्ड डोजेज  किसी भी तरह उसके शरीर में पहुँचनी होगी. चूँकि ऐसे डिसोर्ड़र से ग्रसित व्यक्ति सीधे सीधे दवा लेने में सहयोग नहीं करते, उनके अपने भले के लिए कुछ उपाय अपनाने होते हैं. दवा कोई ऐसे व्यक्ति के ज़रिए खाने या पीने की चीज़ों में मिलाकर दी जाती है जिस पर उसका संदेह नहीं होता और लगाव भी होता है."

अखिल कह रहा था, "जब थोड़ी अंडर्स्टैंडिंग होने लगती है दवा के असर से, उसके बाद काउन्सलिंग के ज़रिए हम पेशेंट को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि उसके साथ कुछ परेशानी है जिसके लिए उसे यह दवा हमेशा लेनी होगी.  कई बार दवा बंद भी कर दी जाती है लेकिन जेनेटिक कारणों से हुई ऐसी बीमारियों में ज़्यादातर केसेज़ में लगातार लाइफ़ टाइम दवा लेनी होती है, ताकि दैन दिन ज़िंदगी नोर्मल गुज़र सके. अभी मैं एक  इंजेक्शन लिख रहा हूँ तुम तुरंत ले आओ. मधु लगभग सोयी सी है, मैं लगा देता हूँ. उसका असर इंटेन्स होगा. साथ में दवा भी लिख दे रहा हूँ. तुम ले आओ मैं समझा दूँगा कैसे देनी है."

फिर सोनू से बहुत दुलार से बोला अखिल,  "सोनू मम्मा को दवा देने में हेल्प करेगा ना ?"
राजुल ने पूछा, "लेकिन सोनू क्यों ?"
अखिल ने कहा,-" मधु को तुम पर भरोसा नहीं है. सोनू पर उसे कोई शक नहीं होगा. दवा लिक्विड और टेबलेट्स में है. सोनू पानी में मिला कर भी दे सकता है या किसी भी खाने की चीज़ में भी. सोनू को थोड़ा सा ट्रेंड करना होगा. बस कुछ ही दिन की बात है फिर मधु ख़ुद ही हेंडल करने लगेगी. बस तुम दोनो को बहुत संयम रखना होगा और पूरा सहयोग करना होगा."

सोनू अपनी उम्र से ज़्यादा परिपक्व था. उसने डॉक्टर अखिल से मम्मा को दवा देने का तरीक़ा समझ लिया. दवा की शीशी और गोलियाँ उसने अपनी किताबों की शेल्फ़ में छुपा कर रख दी और अखिल के बताए अनुसार येन केन प्रकारेण मधु को किसी भी तरह दे ही देता था. इंजेक्शन और लगातार दावा का असर था कि मधु का व्यवहार भी संयत हो रहा था. राजुल को देख कर अब भड़कती नहीं थी मधु.  हाँ बातें बहुत बड़ी बड़ी करती थीं,जैसे दुनिया भर का ज्ञान उसी के दिमाग़ की उपज हो.

अखिल के राजुल के घर आने के चार पाँच दिन बाद मधु ने राजुल से कहा तुम्हारा वो दोस्त नहीं आया फिर.  राजुल ने कहा -“ समय नहीं मिला होगा. डॉक्टर है ना वो ..क्लीनिक में बिजी रहता होगा."

मधु बोली-“अच्छा, मैं भी सोच रही थी किसी डॉक्टर को दिखा लूँ बहुत वीकनेस लगती है आजकल. मुझे पता देना उनके क्लीनिक का मैं मिल आऊँगी."

राजुल ने अखिल से पूछा तो अखिल ने मधु से मिलने के लिए ग्रीन सिग्नल दे दिया और साथ ही यह भी कहा कि उसे अकेले ही आने देना चूँकि वह अकेले ही आना  चाहती है.

राजुल से अखिल का ऐड्रेस मिलने के बाद मधु अलग ही कल्पनालोक में विचरण करने लगी थी. उसे ना जाने क्यों नाज़ था अपनी सुंदरता पर. सोचती थी किसी को भी अपना दीवाना बना लेना उसके लिए बाएँ हाथ का खेल है. उस दिन अखिल के सानिद्य ने उसकी सुसुप्त वांछाओं को जगा दिया था. मानव एक ऐसा पुतला है जहाँ बायोलोजी और सायकॉलोजी बाज़ वक़्त दोनों ही अपना खेल करने लगती है. मधु कपोल कल्पनाओं में अखिल के साथ शारीरिक नज़दीकियों को जी कर ख़ुद को खिली खिली सी महसूस कर रही थी. राजुल के अजीब से व्यवहार और अप्रोच के चलते उसका छूना उसे बर्दाश्त नहीं था. पुरुष संसर्ग के लिए उसमें अजीब सी अरुचि पैदा हो गयी थी. लेकिन अनायास ही वह अखिल की कल्पनाओं में बिलकुल ही डूब सी गयी थी और उसे एनज़ोय कर रही थी. मानव मन की इस सहज मनस्थिति के लिए जजमेंटल नहीं होकर इसे एक सहज मनोवैज्ञानिक स्थिति समझना विवेक सम्मत होगा.....विवेक द्वारा स्वसंतुलन का वरदान भी अस्तित्व से मानव को मिला है, बस आवश्यकता है होशमंद और स्पष्ट होने की. हाँ तो मधु का अंतरंग और बहिरंग दोनों ख़ुशी से दमक रहा था.

अखिल से मिलने को अवचेतन में रखते हुए मधु सुबह से सँवार रही थी ख़ुद को. उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना जो उसके गोरे रंग पर गुलाबी आभा दे रहा था. क़रीने से किया हुआ हल्का सा मेकअप, खूबसूरत मोतियों की हल्की फुल्की लेकिन अभिजात्य ज्वेलरी और राजुल का लाया विदेशी मादक पर्फ़्यूम ग़ज़ब ढा रहे थे. आज की मधु और एक हफ़्ते पहले की मधु में ज़मीन आसमान का अंतर था. राजुल चुपचाप उसकी सब तैयारियाँ देख रहा था. अनायास आ रहे जलन और असुरक्षा के भावों से लड़ते हुए यह भी सोच रहा था कि कितने अच्छे से कैरी करती है मधु ख़ुद को. राजुल को विश्वास सा हो रहा था कि अखिल और मुग्धा उसे नकारात्मक सोचों से अवश्य बाहर निकालेंगे....उसका वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक जीवन सकारात्मकता और रचनात्मकता की राह पर चला आएगा . फिर वापस यह विचार भी आ रहे थे, सब किताबी बातें है ... इतना सब जो बिगड़ चुका है, ठीक थोड़ा ही होगा. मधु जो परानोईड पर्सनैलिटी डिसॉर्डर की ऐब्नोर्मैलिटी से ग्रसित है क्या सामान्य हो पाएगी. अचानक उसने सिर झटका और मुग्धा और अखिल मानो उसके सामने आ गए. मुग्धा को तो ख़ैर वह बचपन से ही जानता था और दिल की गहराई में वह उसकी सद्भावना और करुणा को समझ पा रहा था लेकिन अखिल के स्पंदन उसमें आशा और विश्वास का संचार कर रहे थे. उसे लग रहा था कि परमात्मा ने इस जोड़े को उसके भले के लिए ही उस से मिलवाया है.
मुग्धा-अखिल के प्रति एक गहरे आदर और विश्वास के भाव उसकी सारी नकारात्मकता को दूर भगा ले जा रहे थे. एक नज़र उसने मधु पर डाली, उसने अपने अंतर में कुछ कोमल कोमल सा अनुभव किया. सोच रहा था राजुल, काश सब कुछ ठीक हो जाए.......
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क्रमशः

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