Saturday, May 18, 2019

मुग्धा :एक बहती नदी (सोलहवीं क़िस्त)



★★★★★★★

राजुल ने मुग्धा को पहले ही सूचना दे दी थी कि मधु अखिल के क्लीनिक आ रही है ताकि टाइम स्लॉट के अनुसार वह मेनेज हो जाए. मुग्धा ने अखिल से मशविरा करके ऐसा समय इंगित कर दिया जब अखिल पूरा समय और ध्यान दे पाए.

राजुल अखिल के क्लीनिक तक मधु के साथ गया.मधु नहीं चाहती थी वो साथ आए लेकिन राजुल ने कहा उसे फ़िक्र रहेगी वो बस बाहर से छोड़ के लौट आएगा फिर जब मधु फ़्री हो के कॉल करेगी तो लेने भी आ जाएगा.मधु को उसका यह केयरिंग रूप अच्छा लगा लेकिन उसने कुछ भी ज़ाहिर नहीं किया.

अखिल का चेम्बर एक बड़ा सा कमरा था. जिसमें एक सॉलिड मार्बल टॉप वाली टेबल उसके लिए थे, एक बड़ी सी रिकलायिंग चेयर के साथ. सामने भी उसी के मैच की विज़िटर्ज़ चेयर्स लगी हुई थी. टेबल से दूर एक सिटिंग स्पेस बना था जहाँ बहुत ही आरामदेह सोफ़े लगे थे, ईरानी क़ालीन बिछा हुआ था और एक ऑरीएंटल डिज़ाइन की ग्लास टॉप वाली सेंट्रल टेबल लगी हुई थी. इस सिटिंग स्पेस का उपयोग सबजेक्ट (जिन्हें काउन्सलिंग करना हो) के साथ बात चीत के लिए करता था डाक्टर अखिल.

चेम्बर की साज सज्जा बहुत ही सूधिंग थी. टेबल के ठीक पीछे भगवान बुद्ध की एक बड़ी सी पेंटिंग लगी हुई थी. उधर सिटिंग प्लेस में कुरुक्षेत्र में अर्जुन को सारथी रूप कृष्ण की गीता का उपदेश देते हुए की पेंटिंग लगी थी. ताज़ा फूलों के गुलदस्ते भी लगे हुए थे. एक कोने में लाफ़िंग बुद्धा की एक बड़ी सी कलात्मक मूर्ति भी मार्बल स्टैंड पर लगी हुई थी. फ़र्नीचर और इंटिरीअर्स एक सुखद फ़ील देने वाले थे अखिल के चेम्बर में.

चेम्बर के साथ ही सटे तीन और चेम्बर्ज़ थे. एक चेम्बर में डाक्टर अनिमेश चक्रवर्ती बैठते थे, जो एक सीनियर  फिजिशियन थे. बाक़ी दो चेम्बर्ज़ काउन्सलिंग और थेरपी के लिए थे जिनका उपयोग उसकी टीम की क्लिनिकल सायिकलोजिस्ट डा. विभा राठोड़ और डा. अनुराधा उनियाल करते थे. विभा एक ग्रैजूएट मेडिको और क्लिनिकल सायकॉलिजस्ट थी. अनुराधा की शैक्षणिक योग्यताएँ लीक से हट कर थी, वह आयुर्वेद में स्नातक, डायटीशियन और  योगा डिप्लोमा होल्डर भी थी. अनुराधा ने दर्शन शास्त्र में मास्टर्स किया और प्राणिक हीलिंग में भी एडवांसड कोर्स किया हुआ था. मुग्धा ने भी सेल्फ़ स्टडी और अखिल के साथ के कारण बहुत कुछ जानकारी हासिल की हुई थी. अखिल की चिकित्सा का ढंग बहुत ही यूनिक था. उन्होंने पश्चिम और पूर्व की चिकित्सा प्रणालियों का शानदार समन्वय किया हुआ था जिसमें भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को भी ख़ास महत्व दिया था. अखिल की शिक्षा यद्यपि भारत के बाहर हुई, उदार चिंतन के साथ वह मौलिक भारतीय मूल्यों का क़ायल भी था.

अखिल की सेक्रेटरी ने मधु को विज़िटिर्स वेटिंग में बिठाया और अखिल को उसके आगमन की सूचना दे दी. पाँच मिनट पश्चात अखिल स्वयं चेम्बर से बाहर आया. मधु ने खड़े हो कर नमस्कार किया जिसका प्रत्युत्तर अखिल नें मुस्कुरा कर गर्मजोशी से स्वागत करते हुए नमस्ते कह कर दिया और बोला, "आइए मधुजी अपने बात चीत करते हैं." कुछ भी औपचारिक फ़ॉर्मैलिटी जैसे रेजिस्ट्रेशन फ़ीस पेमेंट आदि ना की जाय इसका निर्देश उसने पहले से ही अपनी सेक्रेटरी को दे दिया था.

अपने सामने वाली चेयर  पर बैठने का इशारा करते हुए अखिल ने कहा, "स्वागत है मधुजी आपका. कैसी हैं आप ?"

मधु बोली, "मैं अपोईंटमेंट लिए बिना ही चली आई, माफ़ कीजिएगा. दरअसल मुझे लगा कि मुझे वाक् इन कर लेना चाहिए और आप मुझे ज़रूर समय देंगे."

मधु मुस्कुरा रही थी.

अखिल ने कहा, "हम लोग पारिवारिक मित्र हैं. ऑफिशियल अपाइंटमेंट के रूल्ज़ हमारे लिए नहीं है लेकिन फ़ोन से सूचना देकर आने से आपको प्रतीक्षा में समय नहीं गँवाना होगा. यह कह कर अखिल ने अपना विज़िटिंग कार्ड मधु की ओर बढ़ा दिया. कह रहा था अखिल, "इस पर मेरे फ़ोन नंबर हैं. फ़ोन पहले मेरी सेक्रेटरी सोलिना उठाती है. बस आप उसको अपना नाम बोलिएगा मुझ से कनेक्ट कर देगी." फ़ेस रीडिंग में अखिलेश माहिर था, उसकी हर गतिविधि जो सहज दिखती थी उसके पीछे बहुत कुछ मनोवैज्ञानिक प्रोसेसिंग रहती थी.

"आप कॉफ़ी पीना पसंद करेंगी. सोलीना बहुत अच्छी कॉफ़ी बनाती है."अखिल का व्यवहार स्निग्ध किंतु गरिमामय था. मधु  मानो आसपास की सराउंडिंग का भरपूर जायज़ा विभोर हो कर ले रही थी. चेहरे पर ख़ुशी थी लेकिन कृत्रिम उदासी ओढ़ कर बोली, “डॉक्टर साहब बहुत कमज़ोरी लगती है सारे दिन घबराहट और बेचैनी सी रहती है ,अजीब अजीब सी आवाज़ें सुनायी देती हैं. कभी डोर बेल सुनायी देती है जा कर देखती हूँ तो कोई होता ही नहीं. कभी कभी फ़ोन की रिंग सुनायी देती है, अलग अलग रिंग टोन..लेकिन असल में कोई कॉल नहीं आयी होती. मुझे तो लगता है  सब कमज़ोरी की वजह से ही है." मधु जैसे ख़ुद का डायग्नोसिस ख़ुद ब ख़ुद कर रही थी.

अखिल बोला -“ क्वाइट पॉसिबल ! एक काम करते हैं आपका एक छोटा सा हेल्थ चेक अप मेरे कलीग डाक्टर अनिमेश से करवा देते हैं ताकि जनरल हेल्थ पर अपन जान लें." उसने  इंटरकॉम पर डा. अनिमेश से कहा, "दादा नमोस्कार. हमारी एक फ़्रेंड को आपकी हेल्प चाहिए. हम लोग काफ़ी पी कर आप के पास आ जाएँ. ज्यों ही फ़्री हों हमें बुला लीजिएगा."

कॉफ़ी सिप करते अखिल मधु से ऐसे बात कर रहा था मानो बरसों की नज़दीकी जान पहचान हो.

"अनिमेश दा याने डाक्टर अनिमेश चक्रवर्ती बस चार साल पहले लंदन से भारत आ बसे हैं. अकेले हैं, शादी नहीं की. गीत, संगीत, कविता और पेंटिंग के शौक़ीन है. बाहर से पढ़े होने के बावजूद भी ज्योतिष और हस्त रेखा में बड़ी रुचि रखते हैं. माँ काली के बड़े भक्त हैं दादा. की बोर्ड बहुत अच्छा बजाते हैं और  गाते भी बहुत अच्छा हैं."

मधु बोली, "सुखी हैं, शादी नहीं की. बहुत मुश्किल है कोई कंपेटिबल जीवन साथी मिलना. क्या लाभ किसी ऐसे के साथ एक छत के नीचे समय बिताना जो कंपेटिबल ना हो." बहुत ओपिनियनेटेड हो रही थी मधु. कंपेटिबल शब्द  जो अपने आप में एक पैंडोरा बॉक्स है, बहुत कुछ कहे जा रहा था.

अखिल चाहता था मधु उससे खुल के बात करे जिससे उसके लिए उसका ट्रीटमेंट करना आसान हो जाए...इसलिए उसने कहा, " ट्रू !" और ऐसा एक्सप्रेस किया जैसे मधु कोई बहुत बड़े ज्ञान का रहस्योद्घाटन कर रही हो. कम्यूनिकेशन स्किल में माहिर अखिल जानता था कि मधु जैसे व्यक्ति कैसे बोलना शुरू करते हैं. अखिल बोला, "हाँ हम जो कुछ हैं अपने अपने अनुभवों की देन होते हैं.....और बताईये कुछ नया ताज़ा." मानो जैसे पहले लगातार बातें होती रही है.

मधु बोली-“ क्या कहूँ डॉक्टर साहब ! ज़िंदगी अजाब हो गयी है मेरी तो. जाने किस घड़ी में राजुल से शादी कर ली थी. बर्बाद ही हो गयी मैं तो. एक लम्हा भी ख़ुशी हासिल नहीं." फिर अचानक अखिल की आँखों में झाँकती हुई बड़े गहरे अन्दाज़ से बोली -"बस उस दिन जब से आपसे मिली हूँ तब से थोड़ी सी ख़ुशी महसूस कर पा रही हूँ .कितने अच्छे हैं आप. कितना ख़याल रखते हैं, (सब का शब्द जानकार दबी जुबान से बोली)...हर किसी की क़िस्मत में कहाँ आप सा साथी मिलना (साथी के आगे का शब्द "जीवन"--दबा गयी थी मधु)."

अखिल तटस्थ बना रहा. चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी. उसका पाला बहुत पड़ा था ऐसे पेशंट्स से. मुग्धा तो आए दिन उसकी खिंचायी करती रहती थी ऐसे क्रशेज़ को ले कर. ख़ूब आता था अखिल को इन स्थितियों से निबटना.

मधु से पूछा अखिल ने -“ऐसी क्या कमी है राजुल में ?"

मधु ने कहा -“कोई एक हो तो बताऊँ डॉक्टर साहब. हर बात में झगड़ा करना उसकी आदत हो गया है. बाहर न जाने कितनी औरतों से अफ़ेयर चलता है उसका. मेरी किसी बात का सीधे मुँह जवाब नहीं देता. अगर सोनू न होता तो मैंने तो तलाक़ ही ले लिया होता उससे."

अखिल ने कहा-“लेकिन राजुल तो आपकी बहुत तारीफ़ कर रहा था. उसने बताया कि आप कितनी अच्छी ड्रेस डिज़ाइन करती हैं और खाना भी बहुत अच्छा बनाती हैं. मैं तो किसी दिन सेल्फ़ इन्वाइट करने वाला हूँ आपके घर ख़ुद को.... खाना खाने के लिए."

मधु भौचक्की सी अखिल को सुन रही थी -“ राजुल ने कहा ये सब,मेरे लिए ?"

अखिल ने कहा -“ हाँ ,सही नहीं है क्या ?  वरना मुझे कैसे पता चलता कि आप ड्रेस डिज़ाइन भी करती हैं."

मधु कुछ सोचने लगी थी.मौक़ा देख कर अखिल ने राजुल की तरफ़ से बहुत सी ऐसी बातें उसे कहीं जो उसे कोमलता का एहसास कराए मसलन राजुल कहता है मधु कैसे सब मेनेज करती है ,बहुत स्मार्ट है ,मैं चिड़चिड़ा जाता हूँ काम के प्रेशर से लेकिन वह हमेशा मेरा साथ देती है.

मधु पर असर हो रहा था. चेहरे का तनाव ढीला पड़ रहा था तभी योजना अनुरूप मुग्धा ने क्लीनिक में प्रवेश किया और मधु के साथ अखिल को देख बोली-“ओह आइ ऐम सारी ! अगर मैंने डिस्टर्ब किया हो तो."

अखिल बोला -“अरे नहीं मुग्धा सही समय आयी तुम. इनसे मिलो ये मेरे फ़्रेंड राजुल की वाइफ़ मधु हैं मतलब हमारी भी फ़्रेंड,और मधु ये मेरी बेटर हाफ़ मुग्धा है “

मधु ने ईर्ष्या भरी नज़रों से मुग्धा की तरफ़ देखा जैसे कि वह अखिल को उससे छीन रही हो. मुग्धा के चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान थी. उसने हाथ बढ़ते हुए कहा -“ हेलो मधु ,आप घर आइए न हमें बहुत ख़ुशी होगी."

अखिल ने मुग्धा से पूछा -“हाँ मुग्धा कैसे आना हुआ ?”

मुग्धा बोली -“अरे आज मेरा योगा पर एक सेमिनार है तुमको सुबह बताना याद नहीं रहा तो अभी घर की चाबियाँ  ड्रॉप करने आयी थी. सोलिना ने कहा अंदर कोई पेशेंट नहीं फ़्रेंड है तो सोचा मिलती चलूँ तुमसे भी और फ़्रेंड से भी."

अखिल बोला -“अच्छा हुआ मधु से भी मिलना हो गया. पता है ये बहुत अच्छी ड्रेस डिज़ाइनर हैं."

मुग्धा ने चहकते हुए कहा -“रियली ! वाओ !! मुझे अभी नीलिमा की शादी की पचीसवीं सालगिरह के लिए एक ड्रेस लेनी है ,क्यूँ न मधु, आप मेरे लिए डिज़ाइन करिए ना ओकेज़न के लिए एक शानदार सी ड्रेस."

मधु संकुचित हो उठी -“बोली मुझे तो बहुत समय हो गया ड्रेस डिज़ाइनिंग का काम छोड़े हुए, अब तो सब भूल ही गयी हूँ."

मुग्धा ने हँसते हुए कहा -“अरे हुनर कभी नहीं भूला जाता.हाँ थोड़ा धूल जम जाती है उसे हम झाड़ लेंगे. अब तो मेरी ड्रेस आप ही डिज़ाइन करेंगी, मैं आपका साथ दूँगी. बूटीक पर भी तो मैं ख़ुद का ही डिज़ाइन बनवाती हूँ...तो बस पक्का."

मधु ने अनमने ढंग से सर हिला दिया. किंतु कहीं उसको लग रहा था कि इस बहाने उसे अखिल का साथ शायद ज़्यादा मिल जाएगा जो उसे रोमांचित भी कर रहा था.

अखिल ने कहा -“मुग्धा तुम मधु को अपनी योगा क्लास में जोईन क्यूँ नहीं कर लेती थोड़ा कम्पोज़्ड फ़ील करेंगी."

मुग्धा बोली -“व्हाइ नॉट ! आइ वुड लव टू हैव हर देयर !”

अखिल बोला -“तो ठीक है मधु ! आप मुग्धा के साथ योगा सीखिए और उसकी ड्रेस डिज़ाइन कीजिए और हाँ इस शनिवार आप लोग हमारे घर खाने पर आ रहे हैं." फिर मुग्धा की तरफ़ मुख़ातिब हो कर बोला, "ख़ूब जमेगी शामे शनिवार."

मधु बोली -डॉक्टर साहब ,राजुल नहीं आएगा मेरे साथ."

“एक तो आप ये डॉक्टर साहब कहना बंद कीजिये. नाम से बुलाइए मुझे. हाँ राजुल से मैं बात कर लूँगा, वह तो क्या उसके फ़रिश्ते भी आएँगे." इंटिमेसी दिखाते हुए, हँसता हुए बोला था अखिल.

इतने में इंटरकॉम पर डा अनिमेश का फ़ोन आया, "ओखिल, तूम अपनी फ़्रेंड के साथ आओगे."

"हाँ दादा." कहते हुए अखिल खड़ा हो गया. मुग्धा ने दोनों से बाय किया. अखिल मधु के साथ अनिमेश दा के चेम्बर में था.

अनिमेश को परिचय करा रहा था अखिल, "दादा ये मधु है हमारी फ़्रेंड. मधु को बहुत कुछ करना है, लेकिन लो एनर्जी फ़ील करती है. आप प्लीज़ इनको हेल्प करें."

"डोंट यू वरी, आइ वुड डू माई बेस्ट." डा. अनिमेश बोल रहा था. अखिल अपने चेम्बर को लौट आया.

अनिमेश ने मधु का क्लिनिकल चेक अप किया. उसकी मेडिकल हिस्ट्री नोट की और कुछ रक्त के टेस्ट्स प्रिस्क्राइब किए. उसने कहा कि वैसे सब कुछ सामान्य लग रहा है, थोड़ी ख़ून की कमी दिख रही है और कुछ वायटमिंज़ और कैल्शियम डिफिशिएंसी भी. रिपोर्ट्स आने पर क्लिनिकल ओब्ज़र्वेशन को रिलेट कर पाएँगे. उसने कुछ सप्लिमेंट्स मधु के लिए प्रिस्क्राइब किए.

मधु लौट कर अखिल के चेम्बर में चली आयी. अखिल "साइकोलॉजी टुडे " का ताज़ा अंक पलट रहा था. अखिल देख पा रहा था कि बहुत ही प्रशंसा भरी गहरी नज़रों से मधु उसे देख रही थी. इन्फ़ोर्मल होती सी मधु पूछ रही थी, "अखिल साहब यह आप जो पिन स्ट्राइप शर्ट पहने हैं वह माइकेल कोर है ना. बड़ा फब रहा है आप पर. हाँ इस पर यह जो ब्लू टाई है ना उसकी जगह अगर मेरून हो तो और अच्छी लगेगी. माफ़ कीजिएगा फ़ेशन डिज़ाइनर हूँ ना कहे बिना नहीं रह सकी." मधु मानो अखिल को इमप्रेस करना चाह रही थी. "बहुत अच्छा लगा मुझे आप से मिलकर. मुझे तो लगता है आप मेरी ज़िंदगी में देवदूत बन कर आए हैं." अच्छा चलती हूँ अभी. शनिवार की शाम आप से भेंट होगी. अब तो क्लीनिक में भी आना जाना लगा ही रहेगा.

मैं आप से कुछ और भी डिस्कस करना चाहूँगी.

अखिल ने कहा-"बिल्कुल,अनिमेश दा और मैं आपकी रिपोर्ट्स देख लेते हैं फिर बैठेंगे, बातें होगी."

मधु अखिल को धन्यवाद दे कर बोली राजुल मुझे लेने आएगा. मैं विज़िटर ऐरिया में बैठती हूँ, अभी आप व्यस्त होंगे.

अखिल को समझते देर नहीं लगी कि मधु की मनसा उसके यहाँ ठहरने की है. उसने कहा, "मैं फ़्री हूँ.  आप यहाँ राजुल का इंतज़ार कर सकती हैं, इस बहाने आपसे कुछ और बातें भी होगी."

मधु को मानो मुँह माँगी मुराद मिल गयी हो. थेंक्स बोलकर जम गयी.

मधु का मन बहुत हल्का था जब उसने राजुल को आने के लिए फ़ोन किया. उधर मुग्धा राजुल को पहले ही मेसेज कर चुकी थी “प्लान  एक्सेक्यूटेड !”

अखिल मधु से उसकी हॉबीज़ और कॉलेज जीवन के बारे में बात करने लगा था. अखिल की हर बात का जवाब उत्साह से दे रही थी मधु और बातें इस तरह पुट कर रही थी जिस से अखिल इंप्रेस हो. अखिल भी उत्साह दिखा रहा था. यह बात और थी कि मधु यह नहीं जान पा रही थी कि अखिल किस मिट्टी का बना है. उसकी शालीनता और सपोर्टिव होना उसकी प्रोफ़ेसनल ही नहीं वैयक्तिकता की भी ख़ासियत थी. वो जानता था कि कहाँ बेलेंस स्ट्राइक करना है. अपने दोस्तों के बीच नवाब पतंगबाज के निक नेम से जाना जाता था अखिल. ढील देने और खींचने के अनोखे अन्दाज़ होते थे अखिल के.

राजुल अखिल के क्लीनिक पहुँचा तो मधु अखिल के चेंबर में ही थी. अखिल ने राजुल को तुरंत अंदर ही बुला लिया और मधु के बारे में बताते हए बोला -“राजुल हम ने  कुछ टेस्टस प्रिस्क्राइब किए हैं  मधु के.  ये काफ़ी वीक और अनीमिक लग रही हैं इसलिए कुछ सप्लिमेंट्स लिखे हैं डा अनिमेश ने. तुम्हें ख़याल रखना है कि ये उन्हें रेगुलर लें.  बाक़ी सब ठीक है. और हाँ इस सैटर्डे तुम मधु और सोनू हमारे घर डिनर पर आ रहे हो. मुग्धा से भी मिलना हो जाएगा तुम्हारा. मधु तो अभी मिल चुकी है."

प्लान के मुताबिक़ मधु पर यही ज़ाहिर होना था की अखिल और राजुल पुराने दोस्त हैं ,क्यूँकि मधु की मानसिक स्थिति राजुल की महिला मित्रों को स्वीकार करने योग्य नहीं थी. ऐसी कोई भी बात जो उसके डिसॉर्डर को ट्रिगर करे अवोईड करनी थी. राजुल को मुग्धा लगातार निर्देश देती रहती थी वाटसप्प के ज़रिए और उसको सकारात्मक सोचों की तरफ़ प्रेरित करने में सफल भी हो रही थी. राजुल अपनी कुंठाओं से बाहर आने की कोशिश कर रहा था,अभी तक किसी ने भी उसे यह रास्ता दिखाया ही नहीं था. मित्र के नाम पर जो भी थे सब उसकी कुंठित सोचों में वृद्धि ही करते थे और पीठ पीछे मज़ाक़ भी बनाते थे. आइना दिखा कर सुधार लाने का काम तो कभी किसी ने किया ही नहीं था. करते भी कैसे ? ख़ुद ही लोग इतने उलझे हुए रहते हैं की उन्हें दिखता ही कहाँ है की कोई दूसरा उलझा है.

मधु पर दवा का असर दिखने लगा था. अखिल ने सप्लिमेंट्स के साथ कुछ न्योरोलोजिकल दवाएँ भी लिखवा दी थी जिनके लिए ख़ास तौर पर उसने राजुल को बता दिया था कि मिस नहीं होनी चाहिए. राजुल मधु का पूरा ख़याल रखता था और सोनू भी धीरे धीरे अपनी बाल सुलभ चंचलता की ओर वापस आ रहा था. मुग्धा रोज़ ड्राइवर भेज कर मधु को अपने साथ योगा क्लास ले जाने लगी जिससे मधु का व्यक्तित्व संतुलित होने लगा था

शनिवार को राजुल मधु और सोनू अखिल मुग्धा के घर पहुँचे ,मुग्धा की अभिजात्य छाप उसके घर पर परिलक्षित थी. डिनर बहुत ही शानदार रहा. सभी ने मिलकर म्यूज़िक भी सुना और सोनू के साथ तो ख़ुद अखिल शतरंज की बाज़ी लगा बैठा. अखिल ने सोनू के लिए कहा कि उसमें ग्रांड मास्टर होने की क़ाबलियत है.

मधु का सारा ध्यान अखिल पर ही केंद्रित था. किसी न किसी बहाने वो उसको स्पर्श करना चाह रही थी. कभी सब्ज़ी का डोंगा पास करते हुए कभी उससे सलाद की प्लेट माँगते हुए. अखिल और मुग्धा समझ रहे थे किंतु राजुल थोड़ा अजीब महसूस कर रहा था. अखिल ने इशारे से राजुल को ढाढ़स दिया. मुग्धा भी सहज थी मुस्कुराते हुए मधु से बात करते हुए कोशिश की थी कि उसका ध्यान अखिल से हट सके. बहुत बातें हुई..फ़िल्मों की गानों की. मधु को फ़िल्में देखने का बहुत शौक़ था लेकिन अब तो कब से उन लोगों ने हॉल में जा कर कोई फ़िल्म ही नहीं देखी थी. ,मुग्धा ने आननफानन में अगले संडे का मूवी देखने का प्रोग्राम फ़ाइनल कर लिया. सोनू भी ख़ुशी से उछल पड़ा. राजुल भी अब जान पा रहा था की ज़िंदगी इन छोटी छोटी ख़ुशियों से भरी है बस ज़रूरत है ख़ुद को थोड़ा सहज और खुला रखने की.

घर पहुँच कर भी मधु अखिल के बारे में ही सोचती रही,कितना शालीन है. हर बात की कितनी केयर है उसे. मुग्धा कितनी लकी है काश मुझे मिलता अखिल. सोचते सोचते सो गयी मधु...और सपने में भी अखिल का साथ ही देखती रही. न जाने उसके अवचेतन ने उसे क्या बता दिया कि वह सोमवार को बिना किसी को बताए सीधे अखिल के क्लीनिक पहुँच गयी. अखिल अकेला ही था चेम्बर में. मधु बिना एक क्षण का विलंब किए सीधे अखिल से लिपट गयी. अखिल इस अप्रत्याशित पहल से भौचक्का रह गया. उधर मधु फूट फूट कर रोए जा रही थी और कह रही थी, "अखिल आइ लव यू सो मच. मैं अकेली हूँ नितांत अकेली. मेरे नारीत्व को एक ऐसे पुरुष साथी की तलाश रहती थी जाने कब से जो मेरे अरमानों और चाहत को समझ पाए. हर पल जीने में मेरा साथ दे. जो मुझे सुने और समझे. मेरे लिए रुके और चले. मेरा इंतज़ार करे. मुझे लगता है मेरी यह तलाश अब ख़त्म हुई. तुम को देखा तो लगा हमारा तो जन्मों का नाता है. अखिल तुम मुझे मिल गए हो अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती प्लीज़ मुझे ले चलो कहीं. कैसे जीऊँगी मैं तुम बिन."

अखिल का अध्ययन और प्रोफ़ेशन ऐसा था कि मानव व्यवहार की बारीकियों को वह भली भाँति समझ पा रहा था. मधु का यह ऐब्नॉर्मल बिहेवियर उसका अपना स्वभाव नहीं था. उसके हार्मोंस और नयूरोंस का असंतुलन उसके लिए ज़िम्मेदार था. जजमेंटल होकर उसे दुषचरित्र महिला समझ लेना एक घोर नासमझी की बात होगी. अखिल जानता था कि मेडिकेशन और थेरपी मधु को वापस एक सामान्य मानवी के रूप में फिरा लाएँगे. राजुल को भी हीनत्व भावना और कुंठाओं से बाहर लाना होगा ताकि मधु और उसको आपसी संबंधों के लिए अनुकूल वातावरण मिल सके.

अखिल एक कमिटमेंट और कनविक्शन को जीने वाला इंसान था जो अपनी संगिनी मुग्धा को बेंइंतेहा प्यार करता था. मुग्धा को अपने बचपन के दोस्त राजुल के जीवन में ख़ुशहाली आई देख दिली ख़ुशी होगी और मुग्धा की ख़ुशी उसका विजन और मिशन हर पल के लिए जो था. इसलिए अखिल मुहावरे वाली -'एक्स्ट्रा माइल' वाक करने को तत्पर था. ऐसी विकट स्थिति को सकारात्मक और रचनात्मक रूप देकर समस्या को अवसर में बदल देना उस जैसे जीनियस के वश की ही बात थी. दुनियावी सोचों और तौर तरीक़ों से हट कर अप्रोच थी अखिल

की जीने की.

अखिल ने ख़ुद को संयत करते हुए कोमलता से मधु को हल्के हाथों से कंधे से पकड़ कर ख़ुद से अलग करते हुए कुर्सी पर बिठाया और पानी का ग्लास उसकी तरफ़ बढ़ा दिया. मधु अभी भी सुबक रही थी. अखिल बोला -“शांत हो जाओ मधु , गहरी साँस लो और पानी पियो ,आँख बंद करके ख़ुद को ढीला छोड़

दो....सोचो तुम एक मानसरोवर में हंसिनी की तरह फ़्लोट हो रही हो."

अखिल की गहरी आवाज़ का जादू मधु पर असर कर रहा था.

अखिल ने मधु के सिर पर हाथ फेरा और ललाट पर आज्ञा चक्र के पास अपने अंगूठे से छुआ.

थोड़ी देर में मधु शांत हो गयी,उसकी साँसों की गति से लग रहा था कि वह गहरी नींद में सो गयी है. अखिल ने मुग्धा  को फ़ोन करके सब कुछ बताया और कहा कि क्लीनिक आकर मधु को कहीं सैर करा लाए. क़रीब दस मिनट बाद मधु जागेगी तब तक मुग्धा भी पहुँच पाएगी.
.
.
.
क्रमशः

No comments:

Post a Comment