Saturday, May 4, 2019

मुग्धा : एक बहती नदी (तेरहवीं क़िस्त)


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मुग्धा ने अखिल को राजुल से हुआ वार्तालाप यथावत विस्तार के साथ बताया. अखिल गंभीरता से हर बिंदु को ध्यान से सुन रहा था .सब कुछ सुन कर उसने एक गहरी साँस ली और बोला-"ओह तो यह सिचुएशन है. मधु का यह मेन्टल डिसऑर्डर और राजुल का कुंठित व्यक्तित्व ! कोढ़ में खाज जैसा है....मिसाल है न करेला और नीम चढ़ा "...कहते हुए मुस्कुरा पड़ा ..."लगता है हमें  दोनों एन्ड पर काम करना होगा मैडम जी."
अखिल ने बात आगे बढ़ायी, "हमें पहले तो राजुल को मधु की जेन्युइन प्रॉब्लम के लिए विश्वास दिलाना होगा और उसको तैयार करना होगा कोआपरेट करने के लिए. उसके बाद हम मधु के ट्रीटमेंट और काउंसलिंग पर ठीक से काम शुरू कर सकेंगे."

"लेकिन मेरे जाने मधु को तुम्हारे द्वारा हैंडल किया जाना ही उचित होगा अखिल, क्योंकि उसका शक्की दिमाग मेरे और राजुल के साथ होने पर एग्रिवेट हो सकता है." -मुग्धा कह रही थी.

"हाँ ,रानी साहिबा!" अखिल निहाल हो कर बोला, "यार तुम तो मुझसे भी बड़ी psycologist हो गयी हो."

"वैसे इस पैरानॉयड डिसऑर्डर पर कुछ और रोशनी डाल कर रिफ्रेश करेंगे, मियाँ अखिल !" जिज्ञासु हो कर पूछ रही थी मुग्धा.

अखिल का 'ज्ञान दान ' शुरू हो गया था - "यह एक क्रोनिक डिजीज है जो कि सोचने, विचारने की क्षमता के साथ-साथ व्यक्ति विशेष की कार्यक्षमता को भी व्यापक रुप से प्रभावित करती है.  इसके लक्षण कुछ हद तक सिजोफ्रेनिया  जैसे लगते हैं लेकिन यह सिजोफ्रेनिया से अलग होता है. कुछ रिसर्च में पाया गया है कि इन दोनों डिसऑर्डर्स में जेनेटिक आधार पर समानता पाई गई है. पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर में डिप्रेशन, नशीले पदार्थों के सेवन का आदी होना है और भीड़ से डर लगना आदि ....परेशानी होने का खतरा अधिक होता है. पैरानॉयड पर्सनालिटी डिसऑर्डर में व्यक्ति अक्सर अपने आस-पास के लोगों पर बेवजह शक करने लगता है. उसे लगता है कि हर एक व्यक्ति उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है. ऐसे वे वह अंदर ही अंदर अकेलेपन और घुटन का शिकार होता चला जाता है तथा डिप्रेशन और तनाव में आ जाता है.  मधु इससे ग्रसित है या नहीं यह तो मैं उसका क्लीनिकल इग्ज़ैमिनेशनऔर एनालिसिस करके ही डायग्नोज कर सकता हूँ, लेकिन जितना कुछ राजुल से पता चला है उसके आधार पर लक्षण तो यही लग रहे हैं."

मुग्धा ने हुँकार भरते हुए कहा -"तो हमें राजुल को कॉन्फिडेंस में लेना होगा पहले."

अखिल खिसियानी सी आजिज़ी के स्वर में बोला -"हाँ ! सर भारी हो रहा है मेरा तो,यारां, तुम्हारे हाथ की गरमा गरम चाय पीने की तलब होने लगी है."

"तुम और तुम्हारी तलब !  कब कब नहीं जगती यह निगौड़ी." मुग्धा मुस्कुराते हुए चाय बनाने चल दी और अखिल मन ही मन राजुल मधु और सोनू के लिए एक्शन प्लान की रूप रेखा पर सोचने लगा.

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राजुल घर पहुंचा तो वहाँ सन्नाटा सा छाया हुआ था. सोनू उन्ही कपड़ों में रोता रोता सो गया था. उसके चेहरे पर आया दुख उसकी मासूमियत से मिल कर राजुल के मन को द्रवित कर गया. उसने गोद में उठा कर सोनू को उसके बिस्तर पर ठीक से लिटा कर चद्दर ओढ़ा दी और दबे पाँव कमरे से निकल आया. किचन में झांका तो देखा,सब कुछ अस्त व्यस्त पड़ा था. सिंक में गंदे बर्तनों का अंबार और गैस के ऊपर उबल कर गिरी हुई चाय पत्ती, एक भगोने में अधखायी मैगी पड़ी हुई थी ..राजुल को कोफ़्त हो आयी ...उसे भूख भी महसूस होने लगी थी. एक बार तो सोचा कि मधु को बोले, फिर कुछ सोच कर उसने चुपचाप फ्रिज से ब्रेड निकाल कर सेक ली और दूध के साथ खा लिया. मुग्धा की बातें उसके कानों में गूंज रही थी. इस समय वह किसी भी तमाशे की शुरुआत करने के मूड में नहीं था.

बैडरूम में सोई मधु के खूबसूरत चेहरे पर अभी भी तनाव था. राजुल उसे देखता हुआ विगत में पहुंच गया था. मधु की खूबसूरती उसके दोस्तों के बीच एक रश्क़ का सबब थी. गर्व किया करता था राजुल ऐसी खूबसूरत बीवी पा कर. ज़रा भी बर्दाश्त नहीं होता था उसे, अगर वह हँस कर उसके किसी भी दोस्त से बात कर ले. मधु के चक्कर में ही उसका लगभग अपने हरेक दोस्त से झगड़ा हो जाता था. मधु कभी भी तो उसे समझ नहीं पाई,स्ट्रगलिंग टाइम में भी कभी उसका सहारा नहीं बनी. बस हर समय लड़ना झगड़ना, ताने देना. आखिर घर किसलिए और किसके लिए आये वह. सुकून के दो पल भी तो नहीं मिलते. अचानक उसे मुग्धा की बात याद आ गयी. कहीं सच में तो मधु को मानसिक बीमारी नहीं ?.....और उसने गूगल कर के पैरानॉयड डिसऑर्डर सर्च किया ...उफ्फ ये तो सभी लक्षण मधु में हैं . यह मनोविकार अनुवांशिक भी हो सकता है... राजुल को ख़याल आया कि मधु की बुआ का व्यवहार भी कुछ ऐसा ही हुआ करता था. लड़ झगड़ कर पति का घर छोड़ आती थी बुआ और भाई के घर में ही रहने लगी थी. शादी से पहले मधु उनकी बहुत बातें बताया करती थी. राजुल ने दोनों हाथों से सर थाम लिया. हे भगवान ये सब मेरे ही साथ क्यों ? बचपन से अब तक मुझे ही बिना दोष के सज़ा क्यों मिलती रही है ...मैं तो सब को समझता हूँ मगर दुनिया में कोई भी मुझे क्यों नहीं समझ पाया आज तक.....माँ-बाप,दोस्त,बहन, टीचर्स, सहकर्मी, पड़ोसी और यहां तक कि मेरे क्लाइंट्स भी ..मैं ही तो सब के हिसाब से खुद को एडजस्ट करता रहता हूँ, लेकिन कोई मेरे बारे में सोचता तक नहीं ,कोई भी मेरी बात नहीं मानता...कितना कुछ सहा है मैंने और आज भी सहे जा रहा हूँ.....इन सबके कारण ही मैं ज़िंदगी का वो मुकाम हासिल नहीं कर पाया जो मेरा होना चाहिए था....चाहे परिवार हो या कैरियर..आज मधु की जगह मुग्धा मेरे साथ होती तो हम कितना खुश रहते...आखिर क्या है उस पागलों के डॉक्टर में जो मैं उसे नहीं दे सकता था ...बड़ी बड़ी बातें करता है बस वह 'जानवरों का डाक्टर'...,अरे मैंने उसे बचपन से इतना चाहा है कि कोई क्या चाहेगा ..पर उसे भी एहसास कहाँ था इस बात का ...घमंडी लड़की.  शायद अब रियलायीज हो रहा सब कुछ उसे तभी तो बढ़ बढ़ कर बात कर रही है मुझ से.

मन ही मन राजुल अपने एहसासे कमतरी को काल्पनिक बहानों के कवर चढ़ा रहा था. उसने कभी भी खुद को 'जस का तस' देखने की कोशिश ही नहीं कि थी और औरों को भी अपने रंगीन चश्मों से ही देखता था...उसकी इसी प्रवृति ने उसके मानस में कई ग्रंथियों का निर्माण कर दिया था जो उसको चैन से नहीं जीने दे रही थीं...कुंठाएं उस के व्यवहार पर हावी हो कर अपना अक्स अक्सर दिखा ही जाती थी ...एक कन्फ्यूज्ड सा व्यक्तित्व था राजुल का.

राजुल बेचैनी से सुबह होने के इंतज़ार में था, उसे मुग्धा और अखिल से मिलना जो था.

सुबह राजुल मुग्धा को कॉल करता, उससे पहले ही अखिल का कॉल आ गया. अखिल ने राजुल से कहा कि वो 10 बजे तक उसके घर आ जाये. अखिल का क्लीनिक टाइम 11 बजे से था ,वह उससे पहले ही राजुल से मिल कर सब बातें तसल्ली से कर लेना चाहता था.

राजुल जल्दी जल्दी तैयार हो कर निकलने लगा तो मधु ने पूछा, "कहाँ जा रहे हो सुबह सुबह." मधु की आवाज़ में रात की घटना के असर की कोई झलक तक नहीं थी.राजुल ने चिढ़ कर जवाब दिया, "तुमसे मतलब ..कहीं भी जाऊँ ..."

मधु खिसिया गयी और हाथ का बर्तन फेंक मारा राजुल पर. तब तक राजुल घर से बाहर निकल चुका था.पीछे से मधु के बड़बड़ाने की आवाज़ें आ रही थी .राजुल सर झटक कर कैब बुक करने लगा था.

मुग्धा के घर राजुल 10 बजे से पहले ही पहुंच गया था. अखिल अभी वाशरूम में ही था और क्लिनिक के लिए तैयार हो रहा था. मुग्धा ने राजुल को ड्राइंगरूम में बिठाया और मेड से चाय नाश्ता लाने को बोल दिया. मुग्धा की सहजता के सामने राजुल ख़ुद को बहुत अशांत और असहज अनुभव कर रहा था. उसके दिमाग में कॉलेज के दिन चलचित्र की भांति घूम रहे थे. काश ! मुग्धा उसे मिल गयी होती.

मुग्धा पूछ रही थी - " कैसा है सोनू ?"
"कहाँ खोये हो राजुल ,मैं पूछ रही हूँ सोनू कैसा है " दुबारा पूछा था मुग्धा ने तो राजुल सोचों से बाहर आया, बोला -"हाँ सोनू ठीक है, सो रहा था अभी."

तभी अखिल तैयार हो कर ड्राइंग रूम में आ गया और बड़ी गर्मजोशी से राजुल से हाथ मिलाते हुए बोला-" स्वागतम राजुल भाई ! भई आपसे तो पहली ही मुलाकात में कुछ गहरा रिश्ता जुड़ गया है .प्लीज़ बी कम्फ़र्टेबल ! मुग्धा यार नाश्ता लगवाओ ...."

मुग्धा कुछ बोलती उससे पहले ही ट्राली में सजा हुआ नाश्ता ले कर मेड हाज़िर हो गयी थी.

पोहा,सैंडविच छौंकी हुई बटन इडली और सूजी का बादाम वाला हलवा ..अखिल लंबी साँस खींच के नाश्ते की खुशबू लेता हुआ बोला, "आज तो राजुल के बहाने हमको भी अच्छा खाने को मिल जाएगा." फिर मुग्धा की तरफ एक शरारती मुस्कुराहट फेंक कर बोला -" क्यों ना बेगम !" और ठठा कर हँस पड़ा.राजुल की तरफ देख कर उसने कहा, "चलो नाश्ता करते हैं और साथ साथ बातें भी होती रहेंगी."

राजुल कुछ संकोच और कुछ अखिल के खुलेपन पर चकित सा डाइनिंग टेबल की ओर उन दोनों के साथ बढ़ गया था.
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क्रमश:

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